.........
जोड़े थे दिन उँगलियों पर
बड़ी ऐंठन हुई थी अन्दर
फिर धीरे धीरे मान लिया था मैंने
प्यार एक इबादत है
ज़रूरी नहीं कि इबादत करने पर
खुदा आँखें खोल ही दे !
..........
फिर मैंने अपने चेहरे के आईने से
तेरा अक्स हटा दिया
पर मन की स्लेट से
तेरे नाम को मिटाना आसान न था
यूँ कहो
मुझे गवारा न था
.....
अपनी धड़कनों में मैंने तेरा नाम
मंत्र की तरह
धड़कने को छोड़ दिया
अच्छा लगता था
बेखबर अपनी दुनिया में
बेमानी ठहाके लगाते तुम
मेरे भीतर ही धड़कते हो !
.........
दिल पर रखकर हाथ
मैंने वह हर हौसला लिया तुमसे
जिन्हें तुम सोच भी नहीं सकते थे
...
दुनिया भला क्या हिसाब करेगी इसका
वह तो रुद्राक्ष के 108 मनके में
प्रभु का नाम लेने में भटकती है
खामखाह उसने आँखों में पट्टी बाँध
खुद को कानून की मूर्ति बना लिया
उन्हें क्या मालूम -
प्रेम किसी की नहीं सुनता
प्रेम आत्मा है
और आत्मा में प्रवेश संभव ही नहीं !
.......
उन्हें क्या मालूम
प्रेम का लक्ष्य प्रेम है
वह जब भी अपनी प्रत्यंचा खींचता है
दिशाएं पिघलकर नदी की तरह बहती हैं
और बंजर धरती में
हरियाली दिखती है ...
ये अमर है . अनिवर्चनीय है , मानवता के लिए अमृत सदृश है , इबादत है और खुदा भी . प्रेम ही सत्य है .
जवाब देंहटाएंmam apne buhut hi sundar likha hai.apki har kavita dil ko chu liti hai.
जवाब देंहटाएंप्रेम, ओज, आध्यात्म से भरी कविता ! बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंप्रेम क्या है और उसका लक्ष्य क्या है ..इसको बहुत सुन्दर शब्दों में रख खींच ही तो दी आपने प्रत्यंचा ...बहुत सुन्दर भाव ..एक एक पंक्ति मन में उतरती चली गयी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता रश्मि जी| बधाई|
जवाब देंहटाएंप्रेम का लक्ष्य प्रेम है
जवाब देंहटाएंbahut sunder , shaandar kvita ke lie bdhaai ho
sahitya surbhi
बहुत ही अच्छी ओर संवेदनशील रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदार्शनिक कविता.
जवाब देंहटाएंप्रेम आत्मा है ...और आत्मा में प्रवेश संभव ही नहीं ..
जवाब देंहटाएंनिःशब्द हूँ !
ज़रूरी नहीं कि इबादत करने पर
जवाब देंहटाएंखुदा आँखें खोल ही दे !
अपनी धड़कनों में मैंने तेरा नाम
मंत्र की तरह
धड़कने को छोड़ दिया
प्रेम आत्मा है
और आत्मा में प्रवेश संभव ही नहीं !
उन्हें क्या मालूम
प्रेम का लक्ष्य प्रेम है
वह जब भी अपनी प्रत्यंचा खींचता है
दिशाएं पिघलकर नदी की तरह बहती हैं
और बंजर धरती में
हरियाली दिखती है ..
ise padne ke baad kisi aur pravachan ki zaroorat hi nahi...! bahut sunder, saadar
"उन्हें क्या मालूम
जवाब देंहटाएंप्रेम किसी की नहीं सुनता
प्रेम आत्मा है
और आत्मा में प्रवेश संभव ही नहीं
.......
उन्हें क्या मालूम
प्रेम का लक्ष्य प्रेम है "
भावों की गहराई और अध्यात्म की ऊंचाई के साथ प्रेम की अलौकिक सत्ता का शब्दांकन प्रणम्य है |
बहुत ही अद्भुत रचना रश्मिजी !!! आप तो खैर आप ही हैं एक श्रेष्ट शब्दों की धनि !!
जवाब देंहटाएंउन्हें क्या मालूम
जवाब देंहटाएंप्रेम का लक्ष्य प्रेम है
वह जब भी अपनी प्रत्यंचा खींचता है
दिशाएं पिघलकर नदी की तरह बहती हैं
और बंजर धरती में
हरियाली दिखती है ...
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत सुन्दर कालजयी रचना!
जवाब देंहटाएंwah kya baat hai.
जवाब देंहटाएंsashakt prem kee sshakt rachana.
उठा बबूला प्रेम का ,तिनका उडा आकाश
जवाब देंहटाएंतिनका तिनके से मिला,तिनका तिनके पास
प्रेम के ऊपर अति शानदार अभिव्यक्ति.
मेरी नयी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई'पर आपका स्वागत है.
बेहतरीन कविता!
जवाब देंहटाएंसादर
सच है प्रेम का लक्ष्य सिर्फ प्रेम के अतिरिक्त और क्या हो सकता है !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुती !
उन्हें क्या मालूम
जवाब देंहटाएंप्रेम का लक्ष्य प्रेम है
वह जब भी अपनी प्रत्यंचा खींचता है
दिशाएं पिघलकर नदी की तरह बहती हैं
और बंजर धरती में
हरियाली दिखती है ..
गहन चिंतन और प्रेम से सराबोर उत्कृष्ट रचना..भावों और उनकी अद्भुत अभिव्यक्ति ने निशब्द कर दिया..
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22 -03 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
"फिर मैंने अपने चेहरे के आईने से
जवाब देंहटाएंतेरा अक्स हटा दिया
पर मन की स्लेट से
तेरे नाम को मिटाना आसान न था
यूँ कहो
मुझे गवारा न था.."
बहुत सुंदर रचना ! प्रेम की ऐसी अभिव्यक्ति ! जो अक्स एक बार चढ़ गया सो चढ़ गया ..
प्रेम की प्रत्यन्चा चढ़ी रहे। बहुत ही सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंज़रूरी नहीं कि इबादत करने पर
जवाब देंहटाएंखुदा आँखें खोल ही दे !
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
उन्हें क्या मालूम -
जवाब देंहटाएंप्रेम किसी की नहीं सुनता
प्रेम आत्मा है
और आत्मा में प्रवेश संभव ही नहीं !
.......
बहुत सुंदर रचना !
वह जब भी अपनी प्रत्यंचा खींचता है
जवाब देंहटाएंदिशाएं पिघलकर नदी की तरह बहती हैं
और बंजर धरती में
हरियाली दिखती है ...
चर्चा मंच के माध्यम से आपके ब्लॉग पर आने का सुअवसर मिला, सौभाग्य।
प्रेम की अभिव्यक्ति इससे इतर और कुछ हो ही नहीं सकता।
रूद्रक्ष की 108 माला।
और प्रत्यंचा।
या फिर बंजर जमीन पर हरियाली।
आभार।
प्रेम का लक्ष्य प्रेम ही है -
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव -
अनेक शुभकामनाएं
प्रेम किसी की नहीं सुनता
जवाब देंहटाएंप्रेम आत्मा है
और आत्मा में प्रवेश संभव ही नहीं !
एक सच.. जिसके आगे हर शब्द मौन है ...बहुत खूब ।।
प्यार की शक्ति का कोमल भावनाओं के संग वर्णन बेहद गीतमय रहा।
जवाब देंहटाएंप्रेम का लक्ष्य प्रेम है
वह जब भी अपनी प्रत्यंचा खींचता है
दिशाएं पिघलकर नदी की तरह बहती हैं
मोहक प्रस्तुति।
अपनी धड़कनों में मैंने तेरा नाम
जवाब देंहटाएंमंत्र की तरह
धड़कने को छोड़ दिया
अच्छा लगता था
बेखबर अपनी दुनिया में
बेमानी ठहाके लगाते तुम
मेरे भीतर ही धड़कते हो !
अध्यात्म और प्रेम का सुन्दर समन्वय किया है…………प्रेम को परिभाषित करती एक सुन्दर रचना।
प्रेम किसी की नहीं सुनता
जवाब देंहटाएंप्रेम आत्मा है
और आत्मा में प्रवेश संभव ही नहीं !
एकदम सच ... जिसके आगे हर शब्द मौन हो जाता है ...सशक्त रचना ।।
फिर मैंने अपने चेहरे के आईने से
जवाब देंहटाएंतेरा अक्स हटा दिया
पर मन की स्लेट से
तेरे नाम को मिटाना आसान न था
यूँ कहो
मुझे गवारा न था
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मन की भावो को बहुत सुन्दरता से बयां करती है आपकी कविता ...
अद्भुत रचना...बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
अपनी धड़कनों में मैंने तेरा नाम
जवाब देंहटाएंमंत्र की तरह
धड़कने को छोड़ दिया
अच्छा लगता था
बेखबर अपनी दुनिया में
बेमानी ठहाके लगाते तुम
मेरे भीतर ही धड़कते हो !
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kai baar padhi ,bahut achcha lag raha hai.
फिर मैंने अपने चेहरे के आईने से
जवाब देंहटाएंतेरा अक्स हटा दिया
पर मन की स्लेट से
तेरे नाम को मिटाना आसान न था
यूँ कहो
मुझे गवारा न था
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bahut accha likha hai aapne...dil se kisi ki yaad yun mitaya na gaya,
apne aap ko yun fir sataya na gaya.
प्रेम ही ईश्वर है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कोमल अभिव्यक्ति...सत्य है प्रेम आत्मा कि स्वामी नहीं ...सेवक होती है....बहुत बहुत बहुत शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंबहुत कोमल भाव पूर्ण अभिव्यक्ति |मन को गहराई तक छू गयी |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
प्रेम आत्मा है
जवाब देंहटाएंऔर आत्मा में प्रवेश संभव ही नहीं !
bahut sundar aur bhav poorn lekhan..har pankti jeevan aur prem se sarobbar hai..ati sundar..
उन्हें क्या मालूम
जवाब देंहटाएंप्रेम का लक्ष्य प्रेम है
वह जब भी अपनी प्रत्यंचा खींचता है
दिशाएं पिघलकर नदी की तरह बहती हैं
और बंजर धरती में
हरियाली दिखती है ...
बहुत प्रभावशाली एवं सशक्त अभिव्यक्ति ! प्रेम की इसी सात्विकता को कोई स्पर्श नहीं कर सकता ! वह शाश्वत है, अनंत है, अनमोल है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !
प्रेम का लक्ष्य प्रेम है
जवाब देंहटाएंवह जब भी अपनी प्रत्यंचा खींचता है
दिशाएं पिघलकर नदी की तरह बहती हैं
और बंजर धरती में
हरियाली दिखती है ...
प्रेम कालजयी है और हमेशा रहेगा. इसकी महिमा के क्या कहने. शुभकामना
उन्हें क्या मालूम
जवाब देंहटाएंप्रेम का लक्ष्य प्रेम है
प्रेम की प्रत्यंचा पर प्रेम ही चढ़ता है और शायद प्रेम ही लक्ष्य होता है
बेहतरीन भाव, बेहतरीन कविता
saadgi aur umdaaygi ka namoona hai ye aapki rachna...bahut mushkil hota hai aise bhaavo ko shabdo ki mala me piron jisme aap maahir hain. pranaam.
जवाब देंहटाएंउन्हें क्या मालूम
जवाब देंहटाएंप्रेम का लक्ष्य प्रेम है
वह जब भी अपनी प्रत्यंचा खींचता है
दिशाएं पिघलकर नदी की तरह बहती हैं
प्रेम से बहुत कुछ बदल सकता है दीदी ! ज्यादातर लोग यह बात समझते ही नहीं ! हम नफरत को इस कदर अपना चुके हैं कि अब मुहब्बत परायी हो चुकी है ...
Pantji ki hi tarah aapki abhivyakti bahut achchhi hai. Prem, Ishwar aur Atma-tatva ko darshati aapki kavita bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंप्रेम किसी की नहीं सुनता
जवाब देंहटाएंप्रेम आत्मा है
और आत्मा में प्रवेश संभव ही नहीं !
So true!!!
फिर मैंने अपने चेहरे के आईने से
जवाब देंहटाएंतेरा अक्स हटा दिया
पर मन की स्लेट से
तेरे नाम को मिटाना आसान न था
यूँ कहो
मुझे गवारा न था
sahi kahaa aapne man ki slat vo chij hai jaha ek bar nam likh lo fir vo kabhi nahi mitta.
prem ki puri bat dil dahelaane vali likhi hai aapne..
sundar,rachana hardik badhai...
जवाब देंहटाएंप्रेम का लक्ष्य प्रेम है " Khubsurat Bat
जवाब देंहटाएंप्रेम का लक्ष्य प्रेम है " khubsurat bat
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार. 14 फरवरी 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
उन्हें क्या मालूम
जवाब देंहटाएंप्रेम का लक्ष्य प्रेम है
वह जब भी अपनी प्रत्यंचा खींचता है
दिशाएं पिघलकर नदी की तरह बहती हैं
और बंजर धरती में
हरियाली दिखती है ...
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अद्भुत पंक्तियाँ।
अनूठा सृजन।
सादर।
प्रेम आत्मा है
जवाब देंहटाएंऔर आत्मा में प्रवेश संभव ही नहीं
सटीक...
सही कहा प्रेम का लक्ष्य प्रेम है
बहुत ही गहन भावपूर्ण अद्भुत एवं लाजवाब सृजन
🙏🙏🙏🙏
फिर धीरे धीरे मान लिया था मैंने
जवाब देंहटाएंप्यार एक इबादत है
ज़रूरी नहीं कि इबादत करने पर
खुदा आँखें खोल ही दे ///
बहुत भावपूर्ण रचना रश्मि जी | यूँ प्रेम में अक्सर आँखें बंद ही होती हैं |इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं|रचना के समकक्ष गुनीजनों की सुंदर टिप्पणियाँ बहुत मनमोहक हैं |
उन्हें क्या मालूम
जवाब देंहटाएंप्रेम का लक्ष्य प्रेम है
वह जब भी अपनी प्रत्यंचा खींचता है
दिशाएं पिघलकर नदी की तरह बहती हैं
और बंजर धरती में
हरियाली दिखती है ...
अदभुत, प्रशंसा के लिए शब्द नहीं है, फिर से एक बार संगीता दी को बहुत बहुत धन्यवाद इतनी बेहतरीन रचनाओं तक पहुंचने के लिए, हृदयतल से नमन आपको 🙏