02 अगस्त, 2011

दर्द को हम बाँट लेंगे !!!



तुम्हें क्या लगता है
मुझे शाखों से गिरने का डर है
तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है
कैसे लगता है
तुमने देखा न हो
पर जानते तो हो
मैं पतली टहनियों से भी फिसलकर निकलना
बखूबी जानती हूँ ....

डर किसे नहीं लगता
क्यूँ नहीं लगेगा
क्या तुम्हें नहीं लगता ...
तुम्हें लगता है
मैं जानती हूँ !

संकरे रास्तों से निकलने में तुम्हें वक़्त लगा
मैं धड़कते दिल से निकल गई
बस इतना सोचा - जो होगा देखा जायेगा ...
होना तय है , तो रुकना कैसा !

एक दो तीन ... सात समंदर नहीं
सात खाइयों को जिसने पार किया हो
उसके अन्दर चाहत हो सकती है
असुरक्षा नहीं ...
और चाहतें मंजिल की चाभी हुआ करती हैं !

स्त्रीत्व और पुरुषार्थ का फर्क है
वह रहेगा ही
वरना एक सहज डर तुम्हारे अन्दर भी है
मेरे अन्दर भी ...
तुम्हारे पुरुषार्थ का मान यदि मैं रखती हूँ
तो मेरे स्त्रीत्व का मान तुम भी रखो
न तुम मेरा डर उछालो
न मैं ....
फिर हम सही सहयात्री होंगे
एक कांधा तुम होगे
एक मैं ..... दर्द को हम बाँट लेंगे !!!

43 टिप्‍पणियां:

  1. badi maa... poori kavita to hai hi shaandaar... magar antim ki lines... bas yahi samajh le har koi to bas... baat ban jae...
    thank u so much...

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  2. तुम्हारे पुरुषार्थ का मान यदि मैं रखती हूँ
    तो मेरे स्त्रीत्व का मान तुम भी रखो
    न तुम मेरा डर उछालो
    न मैं ....
    फिर हम सही सहयात्री होंगे
    एक कांधा तुम होगे
    एक मैं ..... दर्द को हम बाँट लेंगे !!!
    सशक्‍त भावों का समावेश हर पंक्ति में ...बहुत ही अद्भुत सोच ...।

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  3. khoobsurat kavita... ek gambhir vishay ko uthati kavita achhi bani hai... behatreen !

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  4. ek kandha tum aur ek main....atiuttam bhaav.tabhi to gaadi chalegi jindagi ki.

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  5. मेरे अन्दर भी ...
    तुम्हारे पुरुषार्थ का मान यदि मैं रखती हूँ
    तो मेरे स्त्रीत्व का मान तुम भी रखो

    यही बात तो समझनी है....धन्यवाद।

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  6. बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना...... आभार

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  7. संकरे रास्तों से निकलने में तुम्हें वक़्त लगा
    मैं धड़कते दिल से निकल गई
    बस इतना सोचा - जो होगा देखा जायेगा ...
    होना तय है , तो रुकना कैसा

    kyaa baat hai!!!

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  8. तुम्हारे पुरुषार्थ का मान यदि मैं रखती हूँ
    तो मेरे स्त्रीत्व का मान तुम भी रखो
    न तुम मेरा डर उछालो
    न मैं ....

    नर और नारी दोनों की ही भावनाओं का सहज चित्रण .. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  9. sathi wahi jo dard ko baant sake.....
    aur dard wahi jo khushi ka anibhav kara sake...

    agar dard dukh naa hon hamare jivan main to ham khushi ko mehsus karna uska anubhav bhul jayege.....

    sab bahut ajib sa ho jayega na jivan main koi rang bachegaa..

    isliye jitna jaruri khushi hai utna hi jaruri dard bhi..

    bahut acchi rachna......

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  10. और चाहतें मंजिल की चाभी हुआ करती हैं !
    bahut hi achchi lagi aapki ye kavita......

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  11. तुम्हारे पुरुषार्थ का मान यदि मैं रखती हूँ
    तो मेरे स्त्रीत्व का मान तुम भी रखो
    न तुम मेरा डर उछालो
    न मैं ....
    फिर हम सही सहयात्री होंगे
    एक कांधा तुम होगे
    एक मैं ..... दर्द को हम बाँट लेंगे !!!

    सब कुछ कह दिया आपने कितनी सहजता और खूबसूरती से... तभी तो होंगे सहयात्री... बहुत-बहुत आभार इस अभिव्यक्ति के लिए...

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  12. यही संवेदनायें ही तो सफ़ल जीवन में सहभागिता निभाती हैं ..... सादर !

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  13. बहुत गहरी बातें हैं. ये खुशियाँ बाँटने से बढती हैं दर्द बाँटने से घटता है यही जीवन को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.लाजवाब प्रस्तुति

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  14. सात खाइयों को जिसने पार किया हो
    उसके अन्दर चाहत हो सकती है
    ......................
    एक कांधा तुम होगे
    एक मैं ..... दर्द को हम बाँट लेंगे !!!

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  15. तुम्हारे पुरुषार्थ का मान यदि मैं रखती हूँ
    तो मेरे स्त्रीत्व का मान तुम भी रखो
    न तुम मेरा डर उछालो
    न मैं ....
    इस संसार की ख़ूबसूरती का आधार यही संतुलन होगा ..
    सुन्दर !

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  16. स्त्रीत्व और पुरुषार्थ का फर्क है
    वह रहेगा ही
    वरना एक सहज डर तुम्हारे अन्दर भी है
    मेरे अन्दर भी ...
    तुम्हारे पुरुषार्थ का मान यदि मैं रखती हूँ
    तो मेरे स्त्रीत्व का मान तुम भी रखो
    न तुम मेरा डर उछालो
    न मैं ....
    फिर हम सही सहयात्री होंगे
    एक कांधा तुम होगे
    एक मैं ..... दर्द को हम बाँट लेंगे !!!
    bahut hi khubsoorat rachnaa...abhaar...."bhay bin preet na hoy gosaai" ko dhyan me rakhte hue chahe stree ho ya purush maryaada ka paalan karte hue bilkul sahi maayne me sahyatri aur jeevan me safal yatri ho sakte hain.... baht sundar bhaav...

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  17. तुम्हारे पुरुषार्थ का मान यदि मैं रखती हूँ
    तो मेरे स्त्रीत्व का मान तुम भी रखो
    न तुम मेरा डर उछालो
    न मैं ....



    कटु सत्य
    पर अपनाने योग्य

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  18. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना

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  19. फिर हम सही सहयात्री होंगे
    एक कांधा तुम होगे
    एक मैं ..... दर्द को हम बाँट लेंगे !!!

    इसी में जिंदगी का सार है ।
    बहुत सुन्दर ।

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  20. सशक्त भावो को प्रस्तुती करती रचना...

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  21. सुदृढ़ गहन ,सकारात्मक सोच ...रास्ते आसान करती हुई ...!!
    abhar.

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  22. कौन सी पंक्ति को
    मै यह कह दूँ
    की ये कुछ
    असरदार नहीं.
    सोच रही हूँ...
    लेकिन मैं जानती हूँ
    मै बेकार सोच रही हूँ.
    असल में तो मुझे
    दाद देनी है
    शब्दों के चुनाव की,
    इस सृजन की,
    इस लेखन की...
    क्युकी..
    में हतप्रभ हूँ
    कैसे शब्द मिल जाते हैं आपको
    ऐसे एहसासों को
    कहने के लिए...
    जिन्हें हम
    सोचते ही रह जाते हैं...
    और हाँ...
    हैरान के साथ
    एक सोच और भी है
    मुझे तो सह यात्री बनना है
    फिर मै कैसे कह दूँ...
    कुछ असरदार नहीं.

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  23. बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

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  24. तुम्हारे पुरुषार्थ का मान यदि मैं रखती हूँ
    तो मेरे स्त्रीत्व का मान तुम भी रखो

    बेमिसाल पंक्तियाँ ..... सुंदर

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  25. संवेदनाओं से परिपूर्ण ....सुन्दर रचना!!
    चाहतें मंजिल की चाभी हुआ करती हैं !....कितनी सच्ची बात !!
    तुम्हारे पुरुषार्थ का मान यदि मैं रखती हूँ
    तो मेरे स्त्रीत्व का मान तुम भी रखो .....रिश्तों को निभाने का सबसे अच्छा तरीका यही है....

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  26. वरना एक सहज डर तुम्हारे अन्दर भी है
    मेरे अन्दर भी ...
    तुम्हारे पुरुषार्थ का मान यदि मैं रखती हूँ
    तो मेरे स्त्रीत्व का मान तुम भी रखो
    न तुम मेरा डर उछालो
    न मैं ....
    यही तो हर कोई चाहता है

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  27. न तुम मेरा डर उछालो
    न मैं ....
    फिर हम सही सहयात्री होंगे
    एक कांधा तुम होगे
    एक मैं ..... दर्द को हम बाँट लेंगे !!!
    ...ekdam sahi..tabhi to safar aassan hoga...
    bahut sundar prernaprad rachna ke liye aabhar!

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  28. सशक्‍त भावों से सजी सुन्दर प्रस्तुति.. जिसमें दर्द भी है और दवा भी...

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  29. एक बड़ा शब्द है...हम...जब मै और तुम के ऊपर...हम आ गया...तो फिर क्या गम है...

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  30. और चाहतें मंजिल की चाभी हुआ करती हैं !

    गहन भावाभिव्यक्ति... संवेदनशील और सारगर्भित रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  31. kavita bahut sunder hai rashmi ji .

    magar sabko apna apna dard khud sahna padta hai.

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  32. ओह क्या गज़ब का लिखा है आपने....
    तुम्हारे पुरुषार्थ का मान मैं रखती हूँ
    तो मेरे स्त्रीत्व का मान भी तो तुम ही रखोगे
    तभी तो हम बन पाएंगे "सह-यात्री"
    सही कहा...... बहुत सही

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  33. जिंदगी तो ऐसे ही चलनी चाहिए...:)

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  34. सारगर्भित रचना, बधाई स्वीकारें.

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  35. सशक्‍त भावों का समावेश हर पंक्ति में ...बहुत ही अद्भुत सोच.....

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