22 मार्च, 2012

ऐ तुम ! एक नाम के सिवा ...



ऐ तुम !
तुम्हें लगता है
कि तुम जो कह रहे
सुन रहे
देख रहे .... वह सही है
या तुम उसे अर्थ देने की चेष्टा में हो !
तुम सजग हो क्या किसी अर्थ के लिए ?
या दीवारें भी तुमने बनायीं
और पटक रहे हो अपना सर
अँधेरे से बाहर आने के लिए ?
अपने सुकून के लिए जो कैक्टस राह में उगाये थे
क्या वे रात की ख़ामोशी में तुम्हें सुकून देते हैं ?
या बदहवास अपनी नियत से तुम विक्षिप्त हुए जा रहे हो !

ऐ तुम !
अपने साफ़ सुथरे कीमती कपड़ों पर
क्या आज भी तुम्हें नाज है ?
या .... साधारण कपड़ों से झांकती
चपल आँखों की मुस्कान
तुम्हें फिर से जीने को बाध्य करती है ?
तुमने जो सिक्के जमा किये थे अमीर बनने के लिए
उनकी ढेर के आगे क्या तुम अमीर रह गए हो ?
क्या तुम्हारी चौखट पर कोई मिट्टी लगे क़दमों से आता है
या तुम अब एक आहट के लिए बेसब्र हो ?
या
कोई चौखट ही नहीं रहा तुम्हारे हिस्से ?

ऐ तुम !
'मैं' बनकर तुम्हें जो मिला
क्या उसे आज उपलब्द्धि मान पाते हो
या अब एक ' मैं ' ही रह गया तुम्हारे पास ? !
और 'हम' की तलाश में
तुम खुद में प्रलाप करते हो ?

ऐ तुम !
दिल पर हाथ रखकर कहना
कहीं से तुम वह रह गए हो
जो तुम थे ? एक नाम के सिवा ...

43 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत प्रश्न है यह.. और उतना ही कठिन है इसका उत्तर खोजना.. कहीं से तउम वह रह गए हो जो तुम थे?? एक नाम के सिवा... मैं और तुम के बिम्बों के बीच एक गज़ब का आध्यात्मिक घोष करती है यह कविता!!

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  2. बड़ी गहरी रचना है रश्मिजी.. डूब कर लिखा है आपने

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  3. ऐ तुम !
    'मैं' बनकर तुम्हें जो मिला
    क्या उसे आज उपलब्द्धि मान पाते हो
    या अब एक ' मैं ' ही रह गया तुम्हारे पास ? !
    और 'हम' की तलाश में
    तुम खुद में प्रलाप करते हो ?
    Waah behtree Rachna, Dil ko chu gayi*****

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  4. चिंतनीय ....
    शुभकामनायें आपको !

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  5. very deep n intense expressions..
    your lines forces reader to go in to introspection !!

    Awesome read :)

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  6. या अब एक ' मैं ' ही रह गया तुम्हारे पास ? !
    और 'हम' की तलाश में
    तुम खुद में प्रलाप करते हो ?

    सवालों में उलझा हुआ एक मन ... एक नाम के सिवा ..

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  7. आपाधापी में जिए जीवन का समग्र सार.. मैं-तुम की महिमा अपरम्पार..अच्छी लगी .

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  8. ऐ तुम !
    दिल पर हाथ रखकर कहना
    कहीं से तुम वह रह गए हो
    जो तुम थे ? एक नाम के सिवा ...
    dil ko jhakjhornewala ek satya.....jiska uttaar nahin milta....behad sashakt rachna.

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  9. "ऐ तुम !
    दिल पर हाथ रखकर कहना
    कहीं से तुम वह रह गए हो
    जो तुम थे ? एक नाम के सिवा ..."

    इस प्रश्न का उत्तर दिल पर रखकर तो शायद ही कोई दे पाए | रिश्तों, हालातों, समाज और मर्यादा से बंधा इंसान जो 'था' कहाँ रह पाता है | इज्ज़त, स्वयं और घर की कहाँ किसी को बनावट के आवरण से परे रहने देते हैं !
    गहन अनुभूतियों से उपजी मन बांधती रचना |

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  10. ' हम ' की तलाश में ' मैं '...विचारणीय है|

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  11. ऐ तुम !
    'मैं' बनकर तुम्हें जो मिला
    क्या उसे आज उपलब्द्धि मान पाते हो
    या अब एक ' मैं ' ही रह गया तुम्हारे पास ? !
    और 'हम' की तलाश में
    तुम खुद में प्रलाप करते हो ?

    ऐ तुम !
    दिल पर हाथ रखकर कहना
    कहीं से तुम वह रह गए हो
    जो तुम थे ? एक नाम के सिवा .…………

    और एक दिन ये नाम भी नही रहता ………फिर ना मै ना तुम ना हम ………वजूद की हर पहचान मिट जाती है मगर ये बात इंसान कहाँ समझ पाता है।

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  12. धन और नाम के पीछे भागता आदमी बस मैं बन कर रह जाता है ... और अकेलापन उसका साथी .... गहन प्रश्न ...

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  13. ओह.. तीन बार पढ़ा, आखिर में इसे कापी करके अपने डेस्कटाप पर रखा हूं और लोगों को भी पढाने के लिए।
    बहुत सुंदर

    ऐ तुम !
    'मैं' बनकर तुम्हें जो मिला
    क्या उसे आज उपलब्द्धि मान पाते हो
    या अब एक ' मैं ' ही रह गया तुम्हारे पास ? !
    और 'हम' की तलाश में
    तुम खुद में प्रलाप करते हो ?

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  14. इस रचना पर कुछ टिपण्णी देने की योग्यता तो नहीं है... बहुत गहरी बातें... बस बार-बार पढ़ कर आत्म-मंथन कर सकता हूँ.
    सादर

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  15. न जाने कितना कुछ जुड़ा रहता एक नाम के सिवाय।

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  16. ऐ तुम !
    दिल पर हाथ रखकर कहना
    कहीं से तुम वह रह गए हो
    जो तुम थे ? एक नाम के सिवा ...

    प्रबल रचना ...!!
    पल पल बदलता जीवन ...बदलते विचार ...कुछ भी स्थिर है कहाँ ...?

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  17. ऐ तुम !
    'मैं' बनकर तुम्हें जो मिला
    क्या उसे आज उपलब्द्धि मान पाते हो
    या अब एक ' मैं ' ही रह गया तुम्हारे पास ? !
    और 'हम' की तलाश में
    तुम खुद में प्रलाप करते हो ?
    ;
    ;
    ;
    बहुत सही ....
    अकसर "मै" के साथ ऐसा होता है ...
    "हम " चाहता है बनाना
    पर "मैं " रोक लेता है ...

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  18. ऐ तुम "मैं " बनकर जिसे उपलब्धि मान रहे थे "हम" की तलाश में
    तुम खुद में प्रलाप करते हो ? सिर्फ "वह" रह गए हो ... वह जो जो तुम थे बस एक नाम के सिवा कुछ नहीं कुछ भी नहीं... गहन भाव... आभार

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  19. ऐ तुम !
    दिल पर हाथ रखकर कहना
    कहीं से तुम वह रह गए हो
    जो तुम थे ? एक नाम के सिवा ...

    भावों की अद्भुत अभिव्यक्ति

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  20. ||अहं वयं के रास्ते, नए बिम्ब नव शोध
    संकेतों में दे रही, रचना जीवन बोध||


    सादर बधाई दी.

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  21. जब "मैं " से प्यार हो जाये तो कुछ दिखाई नहीं देता.

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  22. यक्ष प्रश्न है!!!!!

    क्या जवाब देगा........सोचने और समझने की शक्ति खोकर ही तो यहाँ पहुंचा है....

    सादर...

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  23. ऐ तुम !
    दिल पर हाथ रखकर कहना
    कहीं से तुम वह रह गए हो
    जो तुम थे ? एक नाम के सिवा
    kya saval hai sochne pr majbur karta hai
    rachana

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  24. जब मायावी आकर्षणों के पास में बंध जाए तो वह तुम तुम थोड़े रह जाता है।

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  25. बहुत सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  26. विचारणीय गहन सोच युक्त सुन्दर् रचना...

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  27. सार्थक पोस्ट ..!
    नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ|

    जवाब देंहटाएं
  28. सार्थक पोस्ट ..!
    नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ|

    जवाब देंहटाएं
  29. ऐ तुम !
    अपने साफ़ सुथरे कीमती कपड़ों पर
    क्या आज भी तुम्हें नाज है ?
    या .... साधारण कपड़ों से झांकती
    चपल आँखों की मुस्कान
    तुम्हें फिर से जीने को बाध्य करती है ?
    तुमने जो सिक्के जमा किये थे अमीर बनने के लिए
    उनकी ढेर के आगे क्या तुम अमीर रह गए हो ?
    क्या तुम्हारी चौखट पर कोई मिट्टी लगे क़दमों से आता है
    या तुम अब एक आहट के लिए बेसब्र हो ?
    या
    कोई चौखट ही नहीं रहा तुम्हारे हिस्से ?...........
    .........
    ऐ तुम !
    'मैं' बनकर तुम्हें जो मिला
    क्या उसे आज उपलब्द्धि मान पाते हो
    या अब एक ' मैं ' ही रह गया तुम्हारे पास ? !
    और 'हम' की तलाश में
    तुम खुद में प्रलाप कर ते हो ?

    वैसे मुझे कविताओं की ज्यादा समझ नहीं है पर जाने क्यूँ आपकी कविता में अक्सर मुझे जीवन की झलक मिल जाती है बस वही बात मुझे आपके ब्लॉग पर खींच लाती है.

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  30. खुद से ऐसा सवाल... बहुत मुमकिन कि जवाब मालूम है पर सोच नहीं पाते. गहरी सोच की अभिव्यक्ति, बधाई.

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  31. दिल पर हाथ रखकर कहना
    कहीं से तुम वह रह गए हो
    जो तुम थे ? एक नाम के सिवा ...gazab ke expression rashmi jee....mere blog pr aapke darshan kb honge?????

    जवाब देंहटाएं
  32. ऐ तुम !
    दिल पर हाथ रखकर कहना
    कहीं से तुम वह रह गए हो
    जो तुम थे ? एक नाम के सिवा ...
    bahut sarthak rachna ..

    जवाब देंहटाएं
  33. कहाँ रह पाते हैं हम , जिंदगी इतने इम्तिहान लेती है कि सब कुछ बदल जाता है ...
    मगर हम सुकून में हैं ...कुछ हमारा हमारे भीतर अब भी बचा है ...
    आत्मावलोकन को विवश करती है पोस्ट ...

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  34. कहा तो यही जाता है सर्वश्रेष्ठ कृतियाँ दर्द से उपजती हैं ...मगर इसके लिए दर्द को क्यूँ बुलायें ...किसी और का दर्द ही महसूस कर ले ना ...

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  35. जिंदगी के कैनवास पर 'मैं' और 'तुम' के स्पष्ट चित्र खींचे हैं.दैनिक अहसास के चटक रंग मन को छू गये.

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  36. जीवन का गहन प्रश्न... आज के इस आपा-धापी वाले जीवन में बस "मै" ही तो रह जाता है इंसान के साथ बाकी सब तो न जाने कहाँ पीछे छूट जाता है....

    वैसे देखा जाये तो आज का इंसान इतना असंवेदनशील हो गया है कि पता नहीं उस पर किसी चीज का असर होता भी है या नहीं... पर आपकी इस रचना का एक एक शब्द इतना प्रभावशाली है कि जो भी इसे पढ़ेगा...एक बारगी सोचने पर मजबूर तो हो ही जायेगा... उसकी अंतरात्मा उसे एक बार तो झकझोर ही देगी..और यदि ऐसे हो गया तो लेखक का धर्म और कर्त्तव्य तो पूरा हो ही गया....
    सादर
    मंजु

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  37. ऐ तुम !
    'मैं' बनकर तुम्हें जो मिला
    क्या उसे आज उपलब्द्धि मान पाते हो
    या अब एक ' मैं ' ही रह गया तुम्हारे पास ? !
    और 'हम' की तलाश में
    तुम खुद में प्रलाप करते हो ?

    ऐ तुम !
    'मैं' बनकर तुम्हें जो मिला
    क्या उसे आज उपलब्द्धि मान पाते हो
    या अब एक ' मैं ' ही रह गया तुम्हारे पास ? !
    और 'हम' की तलाश में
    तुम खुद में प्रलाप करते हो ?
    sampoorn bimb poorn aahuti saa .

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  38. ऐ तुम !
    'मैं' बनकर तुम्हें जो मिला
    क्या उसे आज उपलब्द्धि मान पाते हो
    या अब एक ' मैं ' ही रह गया तुम्हारे पास ? !
    और 'हम' की तलाश में
    तुम खुद में प्रलाप करते हो ?
    जितनी बार पढती हूँ आपकी रचना... हर बार नए-ने अर्थ समझाती है.....

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...