खुद की तलाश
खुद के लिए होती है
क्योंकि प्रश्न खुद में होते हैं
ये बात और है
कि इस तलाश यात्रा में
कई चेहरे खुद को पा लेते हैं
................
अबोध आकृति
जब माँ की बाहों के घेरे में होती है
तब वही उसका संसार होता है
वही प्राप्य
और वही संतोष .... !
पर जब अक्षरों की शुरुआत होती है
साथ में कोई और होता है
प्रथम द्वितीय ..... का दृश्य होता है
तो ज्ञान में हम कहाँ हैं
इसकी तलाश होती है !
अजीब बात है -
सबसे कम अंक अज्ञानी हो - ज़रूरी तो नहीं
यह तो उस क्षण विशेष का सच है
प्रथम रटनतू हो सकता है
जो फेल है
वह उस वक़्त इस जीत हार से उदासीन हो
इसकी पूरी संभावना हो सकती है ...
अंक देने वाले की निष्पक्षता
और मनःस्थिति भी मायने रखती है
साथ ही उसका ज्ञान भी !
सीधे रास्ते ही हमेशा सही नहीं होते
राम के बदले मरा कहने में भी भक्ति है
असीम भक्ति -
फिर तलाश किस तरह निर्धारित हो !
अपने बारे में स्वयं से अधिक
कोई कैसे जान सकता है
पर अक्सर कोई और निर्धारित करने लगता है ...
किसी को
किसी को भी ...
और खुद को जानने के लिए
आत्मा की आँखें चाहिए !
जो जीकर भी मृत है
उसे किसी के लिए कुछ कहने का अधिकार नहीं
पर यह आखिर कैसे तय हो !
मैं सही
वो गलत - आखिर कैसे !
नहीं कह सकते .....
तो खुद को ही सही गलत मानकर
खुद के विचार से चलो
दूसरों को कारण मत बनाओ
मुझे भी मुक्त करो
खुद भी मुक्त हो जाओ ...
पर - यदि बढाते हो हाथ
तो विश्वास करना सीखो
असुर को देवता
देवता को असुर मान
जितने भी मंथन कर लो
न अमृत मिलेगा न विष ....... खुद को पाना आसान नहीं !
यदि बढाते हो हाथ
जवाब देंहटाएंतो विश्वास करना सीखो
असुर को देवता
देवता को असुर मान
जितने भी मंथन कर लो
न अमृत मिलेगा न विष ....... खुद को पाना आसान नहीं !
सारगर्भित..
तो खुद को ही सही गलत मानकर
जवाब देंहटाएंखुद के विचार से चलो
दूसरों को कारण मत बनाओ
मुझे भी मुक्त करो
खुद भी मुक्त हो जाओ ...
पर - यदि बढाते हो हाथ
तो विश्वास करना सीखो...........bahut sundar.Rashmi ji..
सही कहा, खुद को पाना कहां आसान हे
जवाब देंहटाएंज्ञान में हम कहाँ हैं .... ??
जवाब देंहटाएंसबसे कम अंक अज्ञानी हो - ज़रूरी तो नहीं*,बिल्कुल भी नहीं !
अपने बारे में स्वयं से अधिक
कोई कैसे जान सकता है .... सच
जितने भी मंथन कर लो
न अमृत मिलेगा न विष ....... खुद को पाना आसान नहीं !
खुद को पाना आसान नहीं .... !!
ज्ञान में हम कहाँ हैं .... ??
जवाब देंहटाएंसबसे कम अंक अज्ञानी हो - ज़रूरी तो नहीं*,बिल्कुल भी नहीं !
अपने बारे में स्वयं से अधिक
कोई कैसे जान सकता है .... सच
जितने भी मंथन कर लो
न अमृत मिलेगा न विष ....... खुद को पाना आसान नहीं !
खुद को पाना आसान नहीं .... !!
बहुत सुंदर दी.....
जवाब देंहटाएंआसान नहीं खुद को पाना......
मुक्त होना बहुत कठिन है.....
सादर.
Very nice post.....
जवाब देंहटाएंAabhar!
खुद को ही सही गलत मानकर
जवाब देंहटाएंखुद के विचार से चलो
दूसरों को कारण मत बनाओ
यह बात सही है...काम बिगड़ने पर अक्सर दूसरों को दोष दे देते हैं.
बिल्कुल सही
जवाब देंहटाएंअगर आज सबसे मुश्किल कुछ है तो वो खुद को तलाश करना। जब खुद की तलाश ही मुश्किल हो तो खुद को पाना तो लगभग असंभव सा लगता है।
बहुत सुंदर
भाव अभिव्यंजना को पंख लग गए हैं .खुद बा खुद खुद से निकला मुख से वाह . बढ़िया प्रस्तुति है .... .कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंरविवार, 27 मई 2012
ईस्वी सन ३३ ,३ अप्रेल को लटकाया गया था ईसा मसीह
.
ram ram bhai
को सूली पर
http://veerubhai1947.blogspot.in/
तथा यहाँ भी -
चालीस साल बाद उसे इल्म हुआ वह औरत है
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
bahut sundar. mulyankan ki bhi apni seemayen hain.
जवाब देंहटाएंसच यही है कि अपने बारे में स्वयं से अधिक कोई कैसे जान सकता है, फिर भी खुद को पाना आसान नहीं... सारगर्भित रचना. सादर
जवाब देंहटाएंअपने को पहचानने और जानने की प्रक्रिया प्रारम्भ करना बहुत ही हिम्मत का कार्य है।
जवाब देंहटाएंखुद को पाना आसान नहीं !बिलकुल सच्ची बात.....
जवाब देंहटाएंक्या बात है!!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 28-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-893 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत ही सच्ची बात कही है आपने
जवाब देंहटाएंखुद को पाना आसान नहीं...
हम कहा सही है कहा गलत है इसी में उलझ कर रह जाते है...
और अंत में दूसरो की करनी पर अपनी प्रतिक्रिया को ही
सही मानकर खुद को सही मानते चले जाते है..
आसान नहीं है खुद को पाना खुद को पहचानना ...
बहुत ही बेहतरीन रचना...
:-)
अबोध आकृति
जवाब देंहटाएंजब माँ की बाहों के घेरे में होती है
तब वही उसका संसार होता है
वही प्राप्य
और वही संतोष .... !
प्राप्य लक्ष्य बदलता रहता है .. शायद इसीलिये खुद को जानना भी दुष्कर है
आत्म बोध सभी संशय को समाप्त करता है...पर उसे पाना निश्चय ही कठिन है...
जवाब देंहटाएंkhud ko pahchaanNa bhi koi aasan kaam nahi...lekin shuruaat kar hi di hai to isme imandar rahna bhi bahut mushkil hai.
जवाब देंहटाएंखुद को पाना तो सबसे मुश्किल है.
जवाब देंहटाएंअसुर को देवता
जवाब देंहटाएंदेवता को असुर मान
जितने भी मंथन कर लो
न अमृत मिलेगा न विष ....... खुद को पाना आसान नहीं !
बहुत सही लिखा है दी ...!!हम जान कर भी स्वयम से अंजान बने रहते हैं ....
सबसे कम अंक अज्ञानी हो - ज़रूरी तो नहीं
जवाब देंहटाएंअंक देने वाले की निष्पक्षता
और मनःस्थिति भी मायने रखती है
साथ ही उसका ज्ञान भी !
जिंदगी की पाठशाल में भी तो यही दृष्टिकोण हार पराजय को भूला कर फिर से खड़ा होने का सामर्थ्य देता है !
असुर को देवता
देवता को असुर मान
जितने भी मंथन कर लो
न अमृत मिलेगा न विष !
दिक्कत यही है कि कलियुग में ना सुर की पहचान ना असुर की !
किसी को
जवाब देंहटाएंकिसी को भी ...
और खुद को जानने के लिए
आत्मा की आँखें चाहिए !
जो जीकर भी मृत है
उसे किसी के लिए कुछ कहने का अधिकार नहीं...
सही है खुद को जाने बिना दूसरों को जानने का दावा तो कोर भ्रम ही है
101….सुपर फ़ास्ट महाबुलेटिन एक्सप्रेस ..राईट टाईम पर आ रही है
जवाब देंहटाएंएक डिब्बा आपका भी है देख सकते हैं इस टिप्पणी को क्लिक करें
खुद की तलाश
जवाब देंहटाएंखुद के लिए होती है
क्योंकि प्रश्न खुद में होते हैं
ये बात और है
कि इस तलाश यात्रा में
कई चेहरे खुद को पा लेते हैं
................सुंदर प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
खुद को पाना आसान नहीं बल्कि मैं तो यह कहूँगी नामुमकिन है इसलिए शायद कबीर दस जी ने कहा होगा।
जवाब देंहटाएं"बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोए जो मन खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय"
खुद में ही खोती तलाश..पर मिलता भी खुद ही...
जवाब देंहटाएंमैं सही
जवाब देंहटाएंवो गलत - आखिर कैसे !
नहीं कह सकते .....
तो खुद को ही सही गलत मानकर
खुद के विचार से चलो
दूसरों को कारण मत बनाओ
मुझे भी मुक्त करो
खुद भी मुक्त हो जाओ ...
बेहतरीन और लाजवाब ।
जितने भी मंथन कर लो
जवाब देंहटाएंन अमृत मिलेगा न विष ....... खुद को पाना आसान नहीं !..............
खुद की तलाश ...क्या कभी पूर्ण होगी ???
सुन्दर,
जवाब देंहटाएंआभार.