28 मई, 2012

खुद की तलाश में मैं और मेरी कलम



तलाश शुरू होती है जन्म से , घुटनों से पाँव पर खड़ी होती है , दौड़ती है - गिरती है फिर उठती है , संकल्प उठाती है . अपने संकल्प को आज मैं शब्दों की थाती सौंप रही हूँ खुद की तलाश में -

खुद को खुद से अलग कर
मैं खुद का अध्ययन कर रही हूँ
क्या खोया .... क्या पाया
इस पर मनन कर रही हूँ !
खोया , बहुत कुछ खोया
खोने का कारण रही मैं
यानि मेरा स्वभाव !
गलत को अनदेखा किया
छल को अनदेखा किया
झूठ को अनदेखा किया
..... तो मिलना भी क्या था !
जो भी पाया -
उसके पीछे रही मेरी ख़ामोशी !
मन की उद्विग्नता सह गई
हाँ में हाँ मिलाया
तो पाने का भ्रम मिलता गया !
यह जो सामने मैं हूँ
उसे देखकर दया आ रही है
गुमान की धज्जियां चेहरे पर
उघरे बखिये सी है
कच्ची सिलाई से एहसास
थके थके से लग रहे हैं -
क्या करुँगी खुद को सहलाकर
सांत्वना देकर ...
कितनी चपलता थी इसके क़दमों में
कितना विश्वास था
नकारात्मकता उसकी सकारात्मकता के आगे हार जाती
आज नकारात्मकता उसका उपहास उड़ा रही है
क्योंकि बड़ी बड़ी लहरों पर
बे इन्तहां थरथराते हुए भी
वह जबरदस्त पकड़ रखती रही है !
सारे नाविक उसे डराते
लहरों का खौफ दिखाते
बिना नाव के तो डूबना ही है -
यह समझदारी बताते ....
पर वह -
अहले सुबह खुद को नाव बना
साहस को पतवार बना
लहरों पर चल पड़ती थी
पूरा हुजूम देखने को उमड़ता
उसके डूबने की चाह लिए
उसके लौटने तक !
हाथों में उसकी मछलियाँ होतीं
मोती और शाम की लाली ,
चाँद , सितारे
- निष्पक्ष , निश्छल भाव से वह साझा करती
सबके घर मछली बनती गर्मागर्म चावल के साथ
और एक एक मोती सबकी आलमारी में !
खाना खाकर जब सब चाँद तारों की रौशनी में बैठते
तो फिर इस सत्य पर चर्चा होती कि
उसके पास नाव नहीं है
और सुनामी आ जाने पर तो नाव नहीं टिकती
वह क्या है !
वह हंसती - सुनामी आने पर देखा जायेगा
और हर दिन की सुनामी लानेवालों को
भरी भरी आँखों से देखती ...
साथ हंसने की ख्वाहिश लिए
वह इतना रोई
कि आँखें सूख गयीं
पुतली और पलकों के घर्षण से
बरसों से दबी आग भभकी
और स्वयं जल गई ....
चिरौंधे सी गंध उसे निगल रही है
पर जाने किस उम्मीद में
वह आज भी नाउम्मीदी से लड़ रही है
.......

इससे परे -

अपनी तलाश में मैंने खुद को
बरसाने की राधा में ढूँढा
कभी देवकी
कभी यशोदा की जगह खुद को पाया
यशोधरा बनकर मैंने
सिद्धार्थ को अपना साथ दिया
ढूँढा खुद को ही मैंने
हिरोशिमा की पीड़ा में
भगत सिंह की मुस्कान में ढूँढा
बाल दिवस उत्सव में ढूँढा
चुपके से सबसे छुपकर
अरुणा शानबाग में ढूँढा ....
उसके निष्प्राण प्राणों में
खुद की ही पहचान मिली
शोर से दूर सन्नाटों में
मेरी अपनी प्रतिछाया मिली
मैं ध्वनि हुई प्रतिध्वनि हुई
चातक की मैं प्यास बनी
कभी पंछी की उड़ान बनी
ओस हुई मिट्टी भी हुई
पुरवईया की मीत बनी
कभी समंदर कभी बवंडर
कभी भोली मुस्कान बनी
अर्जुन का मैं लक्ष्य बनी
कर्ण का उज्जवल तेज बनी
बाणों की निर्मित शय्या में
भीष्म की अदभुत चाह बनी
मैं गीत बनी मैं राग बनी
टूटे तारों की दुआ बनी
घुट घुटकर मरनेवालों की
घुटती साँसों में मिली
मैं हीर बनी मैं प्रेम बनी
अलगाव की पीड़ा बनी
मैं बेटी बनी मैं बहन बनी
परिणीता बनी परित्यक्ता बनी
मैं माँ बनी जीवन बनी
मैं दोस्त बनी दुश्मन भी हुई
प्रभु ने जितने भी सांचे गढ़े
उन सांचों का मकसद मैं बनी ...............

गर चाह नहीं है जीने की तो मरने की भी चाह नहीं , अभी यात्रा जारी है और खोज भी अपनी बाकी है .............

यह तलाश क्या है
क्यूँ है
और इसकी अवधि क्या है !
क्या इसका आरम्भ सृष्टि के आरम्भ से है
या सिर्फ यह वर्तमान है
या आगत के भी स्रोत इससे जुड़े हैं ?
क्या तलाश मुक्ति है
या वह प्रलाप जो नदी के गर्भ में है
या वह प्रवाह
जिसका गंतव्य उसके समर्पण से जुड़ा है !
जन्म का रहस्य जानना है
या मृत्यु के बाद के सत्य से अवगत होना है
धरती से आकाश तक
कारण परिणाम के कई विम्ब हैं
पर कारण भी अनुत्तरित
परिणाम भी अनुत्तरित
सबकुछ महज एक अनुमान है
और अनुमान से तलाश ....
कहाँ संभव है !
इस तलाश में गर चेतन है
तो अवचेतन भी है
प्राण भी है
निष्प्राण गंतव्य भी है ...
प्रत्युत्तर में त्रिदेव भी खड़े हैं
क्योंकि निर्माण यज्ञ में
उनकी तलाश भी अधूरी रही है !
कमजोरी यदि तलाश के रास्ते अवरुद्ध करती है
तो ईश्वर भी कमज़ोर रहा है
स्नेह और भक्ति के आगे
गलत वरदान देता रहा है ...
गलत को सही करने में
उसके पैरों तले भी पृथ्वी डोली है
महारथी देवों ने भी त्राहिमाम के रट लगाए हैं
फिर ....
क्या उस अनादि
सूक्ष्म प्रभुत्व के कणों ने
मुझे तलाश का माध्यम बनाया है !
और ....
क्या मैं यानि तुम यानि हम
ब्रह्मांड हैं
और तलाश है इसे पूर्णतया पाने की ?.........

नाउम्मीदी में भी कई उम्मीदें हैं
कह दो ज़रा इकबाल से
नम हो या फिर बंज़र हो मिट्टी
इस मिट्टी में कई ज़रखेज़ सपने हैं आज भी ...

21 टिप्‍पणियां:

  1. अहले सुबह खुद को नाव बना
    साहस को पतवार बना
    लहरों पर चल पड़ती थी
    ...

    इस मिट्टी में कई ज़रखेज़ सपने हैं आज भी ...

    एक ऐसा व्‍यक्तित्‍व जो‍ सिर्फ प्रेरणा ही दे सकता है औरों को शब्‍दों में उतर आया है साहस का जादू ... आभार

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  2. नकारात्मकता उसकी सकारात्मकता के आगे हार जाती
    आज नकारात्मकता उसका उपहास उड़ा रही है ... खुद की तलाश में सार्थक नहीं ....
    क्यों कि .....
    पूरा हुजूम देखने को उमड़ता
    उसके डूबने की चाह लिए
    पर जाने किस उम्मीद में
    वह आज भी नाउम्मीदी से लड़ रही है
    प्रभु ने जितने भी सांचे गढ़े
    उन सांचों का मकसद बनी
    कह दो ज़रा इकबाल से
    नम हो या फिर बंज़र हो मिट्टी
    इस मिट्टी में कई ज़रखेज़ सपने हैं आज भी ....
    मुझे फिर से जीने कि वजह मिली है ..... आभार .... !!

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  3. ओह, बिल्कुल निशब्द हूं, एक एक लाइन क्या एक शब्द जहां हैं, अपनी उपस्थिति का अहसास दिला रहे हैं। इस रचना के जरिए शब्द जो अपना अर्थ खोते जा रहे हैं, उन्हें उनका स्थान मिला है।

    बहुत सुंदर

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  4. सोचती हूँ दी कि क्या टिप्पणी करूँ..........

    या कुछ ना कहूँ...????
    आपकी तलाश में हमने क्या पाया आप क्या जानो....

    सादर

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  5. रश्मि जी, पिछले दिनों और आज भी आपकी यह पोस्ट पढ़कर मुझे लगता है आपके भीतर अभी बहुत कुछ है बहुत कुछ अनकहा बाहर आने को व्याकुल..यह कविता की विधा जैसे छोटी पड़ रही है, आप सब कुछ कह डालिए आप गद्य का आश्रय ले सकती हैं..आप के जीवन की कहानी न जाने कितनों के लिये प्रेरणा स्रोत बन जाये, आप जैसे व्यक्तित्व बार बार नहीं होते.

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  6. खुद को खोकर ही खुद को तलाशा उम्र भर

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  7. खुद की तलाश जीवन के कितने ऐसे आयाम खोलती चली जाती है की खुद कों पता ही नहीं होता ...

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  8. आज तो आपकी रचनाएँ आत्मसात कर लेने को जी चाह रहा है.

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  9. स्वयं को समझना और व्यक्त कर पाना एक पुनर्जन्म जैसा ही है।

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  10. वैसे अनीता जी के विचारों से आदर के साथ मेरा तो मानना है कि मन की अभिव्यक्ति के लिए काव्य सर्वोत्तम है.:).

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  11. रश्मि जी,
    आपके इस संकल्प की स्वीकारोक्ति पढकर बहुत देर तक मन बेचैन रहा. कोई शब्द नहीं सूझ रहे कि क्या कहूँ. यूँ तो हर बार निःशब्द होती हूँ पर इन रचनाओं ने...

    साथ हंसने की ख्वाहिश लिए
    वह इतना रोई
    कि आँखें सूख गयीं
    पुतली और पलकों के घर्षण से
    बरसों से दबी आग भभकी
    और स्वयं जल गई ....
    चिरौंधे सी गंध उसे निगल रही है
    पर जाने किस उम्मीद में
    वह आज भी नाउम्मीदी से लड़ रही है

    शुभकामनाएँ.

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  12. रश्मिजी जितनी बार पढ़ती हूँ ..उतने ही नए अर्थ मिलते जाते हैं आपकी रचनाओं में ....एक सुखद एहसास है आपको पढ़ना ......

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  13. खुद की तलाश में जो जीवन को सही अर्थों में जीते हुए चलता है वह हमेशा औरों को देकर खुद को उपेक्षित कर चलता है और जब यही मैं सर उठा कर अपने से प्रश्न करता है कि तुम खुद क्या हो? और अपने लिए क्या किया है? तो हम सब कुछ अपने और अपनों के लिए ही तो किया है कह कर उसको छुप करा देते हें लेकिन फिर खुद अपने में सोच कर देखते हें तो यही पाते हें. जितने रूपों पर नजर डालते हें तो लगता है हाँ यही रूप भी तो जिया है लेकिन फिर सम्पूर्ण रूप से अपने को किसी भी रूप में उतार पाने में विफल ही होते हें.
    अपने में अपने को तलाशने की जो प्रक्रिया अपने शुरू की है , जहाँ खुद को संतुष्ट कर लें तो उसे भी लेकर आइयेगा. उस आईने में सब अपना चेहरा देख लेंगे

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  14. अभी यात्रा जारी है और खोज भी अपनी बाकी है .......'
    सफर जारी रहे, रहेगी ...

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  15. क्या कहूँ...हताशा में भी आशा...संकल्प की अद्भुत मिसाल...अभिव्यक्ति की ऊँचाई यूँ ही नहीं पाई है आपने...जो खोया वह नहीं खोना चाहिए था पर जो पाया...कलम की अनवरत चाल,शब्दों का जादू,सोच की पराकाष्ठा शायद खोने का ही परिणाम था.अन्दर एक बेचैनी महसूस कर रही हूँ...ईश्वर आपकी हर सम्भव मदद करें और आपकी तलाश पूरी हो.

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  16. साहस भरी जिजीविषा भरी इस भावना को प्रणाम

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  17. जन्म का रहस्य जानना है
    या मृत्यु के बाद के सत्य से अवगत होना है
    धरती से आकाश तक
    कारण परिणाम के कई विम्ब हैं
    पर कारण भी अनुत्तरित
    परिणाम भी अनुत्तरित
    सबकुछ महज एक अनुमान है
    और अनुमान से तलाश ....
    कहाँ संभव है !.................Gyan Darshan

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  18. खुद की तलाश के अथाह समन्दर से निकलता हुआ मोती चकित कर रहा है..

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  19. खोया , बहुत कुछ खोया
    खोने का कारण रही मैं
    यानि मेरा स्वभाव !
    गलत को अनदेखा किया
    छल को अनदेखा किया
    झूठ को अनदेखा किया
    ..... तो मिलना भी क्या था !
    जो भी पाया -
    उसके पीछे रही मेरी ख़ामोशी !
    मन की उद्विग्नता सह गई
    हाँ में हाँ मिलाया
    तो पाने का भ्रम मिलता गया !

    बस इतना ही कह सकता हूँ यही सत्य की तलाश है हम सब इसी तलाश में है.....हैट्स ऑफ ।

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...