सत्य क्या है ?
वह - जो हम सोचते हैं
वह - जो हम चाहते हैं
या वह - जो हम करते हैं ?
बिना लिबास का सत्य
क्या बर्दाश्त हो सकता है ?
सत्य झूठ के कपड़ों से न ढंका हो
तो उससे बढ़कर कुरूप कुछ नहीं !
आवरण हटते न संस्कार
न आध्यात्म
न मोह
न त्याग
---- सबकुछ प्रयोजनयुक्त !
हम सब अपने अपने नग्न सत्य से वाकिफ हैं
उसे हम ही सौ पर्दों से ढँक देते हैं
दर्द , अन्याय ,
.... अक्षरसः कौन सुना पाया है ?
हाँ चटखारे लेकर
अर्धसत्य को उधेड़ना सब चाहते हैं
पर अपने अपने सत्य को
कई तहखानों में रख कर ही चलना चाहते हैं
पर्दे के पीछे हुई हर घटनाओं का मात्र धुआं ही दिखता है
तो ज़ाहिर है -
आग तक पहुंचने में कठिनाई होती है....
और कई बार तो धुंए का रूख भी मुड़ जाता है !
सब कहते हैं -
कान हल्के होते हैं
कानों सुनी बात पर यकीन मत करो ....
पर आँखें
जो दृश्य दिमाग से गढ़ती हैं
उनका यकीन कैसे हो ?
आँख, कान , मुंह, दिमाग ...
इनका होना मायने तो रखता है
पर उनके द्वारा उपस्थित किया हुआ दृश्य
विश्वसनीय हो - ज़रूरी नहीं
अविश्वसनीय हो सकता है ...कभी भी, कहीं भी !
हम सब अक्सर उतना ही देखते सुनते हैं
जितना और जैसा हम चाहते हैं
न कारण सत्य है, न परिणाम ....
एक ही बात -
जो कही जाती है
जो बताई जाती है
जो दुहराई जाती है .....
उसमें कोई संबंध नहीं होता
और दुर्गति
हमेशा सत्य की होती है -
क्योंकि वह सोच और चाह के धरातल पर खरा नहीं होता ...
हम सब अक्सर उतना ही देखते सुनते हैं
जवाब देंहटाएंजितना और जैसा हम चाहते हैं
न कारण सत्य है, न परिणाम ....
एक तयशुदा सोच पर ही चलते हैं .....वो सोच अक्सर यही तो होती है ....
एक ही बात -
जवाब देंहटाएंजो कही जाती है
जो बताई जाती है
जो दुहराई जाती है .....
उसमें कोई संबंध नहीं होता
और दुर्गति
हमेशा सत्य की होती है -
क्योंकि वह सोच और चाह के धरातल पर खरा नहीं होता ..."
सत्य की परिभाषा अपने आप में विशालता लिए हैं .. बहुत खूब
हाँ चटखारे लेकर
जवाब देंहटाएंअर्धसत्य को उधेड़ना सब चाहते हैं
पर अपने अपने सत्य को
कई तहखानों में रख कर ही हर शक्स चलता है !
मानव मनोविज्ञान को बखूबी लिखा है ... सच है कि कभी कभी आँखों देखा भी सच नहीं होता ... बहुत गहन अभिव्यक्ति
पर आँखें
जवाब देंहटाएंजो दृश्य दिमाग से गढ़ती हैं
उनका यकीन कैसे हो ?
आँख, कान , मुंह, दिमाग ...
इनका होना मायने तो रखता है
पर उनके द्वारा उपस्थित किया हुआ दृश्य
विश्वसनीय हो - ज़रूरी नहीं
बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति // बेहतरीन रचना //
MY RECENT POST .....फुहार....: प्रिया तुम चली आना.....
दीदी,
जवाब देंहटाएंबताते हैं कि जब बुद्ध को सत्यका साक्षात्कार हुआ तो वह सात दिनों तक कुछ बोले नहीं.. जब उनसे कुछ बोलने को कहा गया तो उन्होंने बस यही कहा कि जिस सत्य को मैंने जाना है यदि उसके विषय में कहूँ तो वह वही नहीं रह जाएगा..
बिलकुल सही कहा आपने.. जो बात कही जाती है, बताई जाती है उसमें दुर्गति सत्य की ही होती है..!! बहुत ही बड़ा और गहरा दर्शन छिपा है इस अभिव्यक्ति में!! आभार दीदी!!
बहुत ही गंभीर कविता और सच भी..सादर
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन के साथ सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंऔर दुर्गति
जवाब देंहटाएंहमेशा सत्य की होती है -
क्योंकि वह सोच और चाह के धरातल पर खरा नहीं होता ...
सत्य वचन... हर कोई सत्य से दूर भागता है, छिपा देता है उसे गहरे तहखानो में और तड़पकर रह जाता है, बेचारा सत्य मुक्त होने के लिए... गहन अभिव्यक्ति... आभार
हम सब अक्सर उतना ही देखते सुनते हैं
जवाब देंहटाएंजितना और जैसा हम चाहते हैं
न कारण सत्य है, न परिणाम ....
एक ही बात -
जो कही जाती है
जो बताई जाती है
जो दुहराई जाती है .....
उसमें कोई संबंध नहीं होता
और दुर्गति
हमेशा सत्य की होती है -
जिसकी सज़ा मिलती है उसे जो उससे जुड़ा होता है ... एक और उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ...आभार ।
सच कहा है अपना अपना सत्य हर कोई छुपाना चाहता है ... कुरूप जो होता है ...
जवाब देंहटाएंआपकी रचना में दर्शन है,
जवाब देंहटाएंसत्य का वो रूप है जिसकी हम कल्पना मात्र करते हैं, उस पर चलने से डरते हैं।
बहुत सुंदर रचना
सुन्दर गहन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंईश्वर की माया अपरम्पार है.
सत्य की सच्ची चाहत ही
सत्य का शोधन करा सकती है.
सत्,रज,तम से ढका सत्य
ईश्वर का ही प्रारूप है.
आपकी प्रस्तुति गंभीर चिंतन कराने
की ओर उन्मुख करती है.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
और दुर्गति
जवाब देंहटाएंहमेशा सत्य की होती है -
क्योंकि वह सोच और चाह के धरातल पर खरा नहीं होता ...
Exectly, इस कलयुग में खरा होते हुए भी खरा नही होता, क्योंकि हम उसे खरा देखना ही नहीं चाहते ! बढ़िया प्रस्तुति !
एक दम सत्य-बचन .......सत्य !!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर जीवन दर्शन प्रस्तुत किया है आपने...
जवाब देंहटाएंसत्य हमेशा से हमारे ही आस-पास होता है, कभी हम तैयार नहीं होते, कभी परदे के पीछे होतें है या फिर कभी हम भी शरीक होते हैं उसे छिपाए रखने में.
बेहतरीन रचना...आभार.
पहली बार जो कहा जाता है वह सत्य के क़रीब होता है... आगे बढ़ते बढ़ते उसका रूप रंग आकार सबकुछ बदल जाता है.
जवाब देंहटाएंसत्य झूठ के कपड़ों से न ढंका हो
जवाब देंहटाएंतो उससे बढ़कर कुरूप कुछ नहीं !
हम सब अपने अपने नग्न सत्य से वाकिफ हैं
उसे हम ही सौ पर्दों से ढँक देते हैं
अपने अपने सत्य को,कई तहखानों में ,
रख कर ही हर शक्स चलता है !
न कारण सत्य है, न परिणाम ....
और दुर्गति ,हमेशा सत्य की होती है - (कठिन सवाल का)
क्योंकि वह सोच और चाह के धरातल पर खरा नहीं होता ....(सही-आसान जबाब)
बेहद गहन और सार्थक है पोस्ट झूठ के आवरण के बिना नग्न सत्य बहुत कटु होता है ये अनुभव जीवन के रुख मोड़ देते हैं आसमान से ज़मीं पर लाकर पटक देता है ये सत्य......इस शानदार पोस्ट के लिए हैट्स ऑफ आपको।
जवाब देंहटाएंन जाने कैसे इतने दिनों से आपके ब्लॉग पर कभी आना नहीं हुआ.....वंचित रहा.... खैर देर आयद दुरुस्त आयद.....बहुत अच्छा लगा यहाँ आकर आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे ।
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को भी)
http://jazbaattheemotions.blogspot.in/
http://mirzagalibatribute.blogspot.in/
http://khaleelzibran.blogspot.in/
http://qalamkasipahi.blogspot.in/
एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह
सत्य तो आखिर सत्य ही है।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने, सत्य का सामना करना आसान नहीं है !!!!
जवाब देंहटाएंऔर दुर्गति
जवाब देंहटाएंहमेशा सत्य की होती है -
क्योंकि वह सोच और चाह के धरातल पर खरा नहीं होता ...
पर अंततः जीत तो सत्य की ही होती है
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
हम सब अक्सर उतना ही देखते सुनते हैं
जवाब देंहटाएंजितना और जैसा हम चाहते हैं
न कारण सत्य है, न परिणाम ....
....बिलकुल सच...बहुत गहन और सार्थक चिंतन...आभार
तभी सत्य को कडवा कहा गया है आवरण हटते ही उसकी दुर्गति निश्चित है और अपने सत्य से सभी परिचित होते हैं …………एक अति उत्तम अभिव्यक्ति सारे भेद खोलती।
जवाब देंहटाएंहम सब अक्सर उतना ही देखते सुनते हैं
जवाब देंहटाएंजितना और जैसा हम चाहते हैं
वाह...रश्मि जी एक बार र आपने अपनी लेखनी का लोहा मनवाया है...बधाई स्वीकारें
नीरज
यह दुहरा चरित्र मानवता को बर्वाद कर रहा है और जिम्मेवार हम सब हैं !
जवाब देंहटाएंआभार ...
सही सत्य कहा है .....
जवाब देंहटाएंसत्यमेव जयते तो एक आशा है , जिसकी धार पर जिजीविषा बनी रहती है ...
जवाब देंहटाएंहम सब अक्सर उतना ही देखते सुनते हैं
जवाब देंहटाएंजितना और जैसा हम चाहते हैं
न कारण सत्य है, न परिणाम ....satay ki khoz me hai har koi.... ye rachna sayad hame staya se milane ki ek kosish hai....
एक एक कर सारे भार हटा कर देखे हैं, अस्तित्व की भारहीनता आनन्ददायिनी है।
जवाब देंहटाएंबहुत गहन अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंएक ही बात -
जवाब देंहटाएंजो कही जाती है
जो बताई जाती है
जो दुहराई जाती है .....
उसमें कोई संबंध नहीं होता
सम्बन्ध हो न हो प्रयोजन जरूर होता है ..
कानपुर के टेम्पो के पीछे लिखा सद्विचार...सत्य परेशान हो सकता है...पराजित नहीं...
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन को बाध्य करती रचना.....
जवाब देंहटाएंMujhe thoda time lagega samajhne mein.. shaayad abhi itni paripakvata nahi hai...!
जवाब देंहटाएंहम सब अपने अपने नग्न सत्य से वाकिफ हैं
जवाब देंहटाएंउसे हम ही सौ पर्दों से ढँक देते हैं
दर्द , अन्याय ,
.... अक्षरसः कौन सुना पाया है ?
हाँ चटखारे लेकर
अर्धसत्य को उधेड़ना सब चाहते हैं
पर अपने अपने सत्य को
कई तहखानों में रख कर ही चलना चाहते हैं!
हम सब यही तो करते हैं !
गहन गूढ़ अभिव्यक्ति !
और दुर्गति
जवाब देंहटाएंहमेशा सत्य की होती है -
क्योंकि वह सोच और चाह के धरातल पर खरा नहीं होता ...gahan soch..sundar abhivyakti...
हम सब अक्सर उतना ही देखते सुनते हैं
जवाब देंहटाएंजितना और जैसा हम चाहते हैं
ठीक बाट है दी ...पर सत्य की जय मुश्किल भले हो ....असंभव नहीं .....
सत्य की राह पर अडचने ज्यादा आतीं हैं ....
आपने तो सब सत्य ही कह दिया!
जवाब देंहटाएं