25 मई, 2012

तलाश क्या है



यह तलाश क्या है
क्यूँ है
और इसकी अवधि क्या है !
क्या इसका आरम्भ सृष्टि के आरम्भ से है
या सिर्फ यह वर्तमान है
या आगत के भी स्रोत इससे जुड़े हैं ?
क्या तलाश मुक्ति है
या वह प्रलाप जो नदी के गर्भ में है
या वह प्रवाह
जिसका गंतव्य उसके समर्पण से जुड़ा है !
जन्म का रहस्य जानना है
या मृत्यु के बाद के सत्य से अवगत होना है
धरती से आकाश तक
कारण परिणाम के कई विम्ब हैं
कारण भी अनुत्तरित
परिणाम भी अनुत्तरित
सबकुछ महज एक अनुमान है
और अनुमान से तलाश ....
कहाँ संभव है !
इस तलाश में गर चेतन है
तो अवचेतन भी है
प्राण है
निष्प्राण गंतव्य भी है ...
प्रत्युत्तर में त्रिदेव भी खड़े हैं
निर्माण यज्ञ में
उनकी तलाश भी अधूरी रही है !
कमजोरी यदि तलाश के रास्ते अवरुद्ध करती है
तो ईश्वर भी कमज़ोर रहा है
स्नेह और भक्ति के आगे
गलत वरदान देता रहा है ...
गलत को सही करने में
उसके पैरों तले भी पृथ्वी डोली है
महारथी देवों ने भी त्राहिमाम के रट लगाए हैं
फिर ....
क्या उस अनादि
सूक्ष्म प्रभुत्व के कणों ने
मुझे तलाश का माध्यम बनाया है !
और ....
क्या मैं यानि तुम यानि हम
ब्रह्मांड हैं
और तलाश है इसे पूर्णतया पाने की ?

23 टिप्‍पणियां:

  1. जी हाँ मैं यानि तुम यानि हम
    ब्रह्मांड हैं
    और तलाश है इसे पूर्णतया पाने की
    क्योंकि यही तलाश हमारी मुक्ति है...
    गहन भाव... आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. सूक्ष्म प्रभुत्व के कणों ने
    मुझे तलाश का माध्यम बनाया है !
    और ....
    क्या मैं यानि तुम यानि हम
    ब्रह्मांड हैं
    और तलाश है इसे पूर्णतया पाने की ?
    शायद ही कभी किसी ने इतने निष्‍पक्ष भावों की हो तलाश ... आभार उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति के लिए

    जवाब देंहटाएं
  3. और ....
    क्या मैं यानि तुम यानि हम
    ब्रह्मांड हैं
    और तलाश है इसे पूर्णतया पाने की ?

    बहुत भाव पुर्ण अभिव्यक्ति,के लिये आभार

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

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  4. अनुपम कृति.....खोज पूर्णतया पाने की..सुन्दर

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  5. क्या मैं यानि तुम यानि हम
    ब्रह्मांड हैं
    और तलाश है इसे पूर्णतया पाने की ?
    कल क्रमश: नहीं हो कर अल्पविराम था ....

    आज तो *खुद की तलाश*की भूमिका नज़र आ रही है .... !!
    अद्धभुत भावो की अनुपम अभिव्यक्ति.... :)

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  6. पूर्णता की तलाश...तलाश के सबके मायने अलग अलग हैं...जो तलाश संतुष्टि दे सके...वही प्रमुख है.

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  7. दीदी,
    बहुत ही गहरे अर्थ छिपे हैं इस कविता में, गहन प्रश्न और उनकी व्याख्या.. आप कवयित्री से दार्शनिक होती जा रही हैं!!

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  8. बहुत सुंदर भाव

    कमजोरी यदि तलाश के रास्ते अवरुद्ध करती है
    तो ईश्वर भी कमज़ोर रहा है
    स्नेह और भक्ति के आगे
    गलत वरदान देता रहा है ...
    गलत को सही करने में
    उसके पैरों तले भी पृथ्वी डोली है
    महारथी देवों ने भी त्राहिमाम के रट लगाए हैं


    क्या कहने..

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  9. तलाश तो जीवन में हर किसी को है ...बस ऑब्जेक्ट, वजह और तरीके भिन्न हैं .....और शायद अवधि भी ...

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  10. दार्शनिकता को छूती हुई है आज की कविता..

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  11. गहन प्रश्न है....ये विशाल परिधि मुझमे ही गतिशील है और मैं ही तो ये विशाल परिधि हूँ।

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  12. कमजोरी यदि तलाश के रास्ते अवरुद्ध करती है
    तो ईश्वर भी कमज़ोर रहा है
    स्नेह और भक्ति के आगे
    गलत वरदान देता रहा है ...
    गलत को सही करने में
    उसके पैरों तले भी पृथ्वी डोली है

    ....बहुत गहन अर्थ संजोये उत्कृष्ट प्रस्तुति...आपकी रचनायें इतने गहन भावों में डुबो देती हैं कि उन पर कुछ कहने को शब्द भी गुम हो जाते हैं...आभार

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  13. गूढ़ सत्य को प्रकाशित करती अद्भुत रचना दी...
    कणकण में हूँ खुद बसा, खुद को करूँ तलाश।
    नदिया व्याकुल बह रही, बुझे न उसकी प्यास॥


    सादर नमन.

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  14. खुद की तलाश में एक गहन अभियक्ति... बहुत सारे प्रशनो को उभारती है.....

    जवाब देंहटाएं
  15. खुद की तलाश में एक गहन अभियक्ति... बहुत सारे प्रशनो को उभारती है.....

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  16. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  17. भरपूर दार्शनिकता ... थोडा ठहरना होगा !

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  18. सत्य मिले यह आशा है.. सुंदर साहित्य..
    आभार!!

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  19. दार्शनिक सोच से परिपूर्ण अपने अस्तित्व की तलाश सच कहा हम सब को ही माध्यम बनाया है उसने हर प्रश्न का उत्तर तलाशने के लिए ,अप्रतिम रचना ...बहुत खूब

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  20. prashno me hi chipi hai talash ki tlash .ati sundar .
    ha ham bhi brahmand ke hi ansh hai.

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  21. तलाश है तो उसका अंत भी कहीं तो होगा ही...उससे पूर्व कोई निर्णय लेना ठीक नहीं है...बहुत गहरे प्रश्न उठाती रचना !

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  22. "सबकुछ महज एक अनुमान है
    और अनुमान से तलाश कहाँ संभव है!"

    जब महान वैज्ञानिक श्रोदिन्जेर ने कुछ ऐसा कहा था.. तो आइन्स्टाइन का जवाब था.. 'God doesn't play dice'. आइन्स्टाइन ग़लत थे... सबकुछ महज़ एक अनुमान है.. (everything is probabilistic )... विडंबना तो ये है.. कि हम न तो सृष्टि के ओर-छोर जानते हैं, ना आरभ और अंत!.. बस तलाश ही है!!

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  23. ये तलाश ही तो जीवन का धय मात्र हैं

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