भावनाओं की आँधी उठे
या शनै: शनै: शीतल बयार बहे
या हो बारिश सी फुहार
सारे शब्द कहाँ पकड़ में आते हैं !
कुछ अटक जाते हैं अधर में
कुछ छुप जाते हैं चाँदनी में
कुछ बहते हैं आँखों से
और कभी उँगलियों के पोरों से छिटक जाते हैं
तो कभी आँचल में टंक जाते हैं
......
मैंने देखा है कई बार इनको
पानी के ग्लास में तैरते
तो कभी अपने बच्चों की मुस्कान में
महसूस किया है अपनी लम्बी सी सांस में
माँ की ख़ामोशी में
लोगों की अतिरिक्त समझदारी में
ईश्वर की आँखों में
कामवाली की बातों में
चिलचिलाती धूप में खड़े असहाय बच्चे में
.....
यात्रा में जितने मुसाफिर मिलते हैं
सबकी चाल और इधर उधर घूमती आँखों में
कुछ शब्द मिलते हैं
अपना शहर आते दूसरे शब्दों के पीछे
वे अचानक विलीन हो जाते हैं
मेरी पेशानी में आंखमिचौली खेलते हैं
और फिर मेरी थकान में बैठ जाते हैं ....
चलता रहता है अनवरत शब्दों का आना जाना
सपने भी उनसे अछूते नहीं होते
सिरहाने रखते जाओ
पर सुबह होते निकल भागते हैं !
परेशान सिरहाने के पास हथेलियों से ढूंढती हूँ
चाय पीते हुए
शून्य में उसकी आकृति पकड़ना चाहती हूँ
फिर समझाती हूँ खुद को -
सारे शब्द कहाँ टिकते हैं !
पर इसी पाने - खोने में
कई बार भाव भी खो जाते हैं
और तब बड़ी वेदना होती है !
इस वेदना में दूसरे भाव पनप जाते हैं
और फिर ------ देखते ही देखते
शब्दों की लुकाछिपी शुरू !!!
सच कहा आपने ..पाने खोने में भाव खो जाते हैं,अक्सर.शब्दों की यह लुका-छिपी रास भी आती है...पर,तभी तक जब तक वो हमारे चाहे से दिख जाएँ...मिल जायें.
जवाब देंहटाएंसारे शब्द कहाँ टिकते हैं !
जवाब देंहटाएंपर इसी पाने - खोने में
कई बार भाव भी खो जाते हैं
और तब बड़ी वेदना होती है !
इस वेदना में दूसरे भाव पनप जाते हैं
और फिर ------ देखते ही देखते
शब्दों की लुकाछिपी शुरू !!!
.....जैसे मुँह की बात छीन ली ......ऐसा ही होता है ...सच !!!!!!
इस लुका छिपी का भी अपना ही मजा है.
जवाब देंहटाएंसारे शब्द कहाँ टिकते हैं !
जवाब देंहटाएंपर इसी पाने - खोने में
कई बार भाव भी खो जाते हैं
और तब बड़ी वेदना होती है !
इस वेदना में दूसरे भाव पनप जाते हैं
सही कहा...कभी कभी कहना कुछ और चाहते हैं
पर कुछ और बात उभर कर आ जाती है...
और यही आपकी खासियत है ..कितनी सहजता से वह बात कह जाती हैं...जो कहने के लिए कभी घंटों ...कभी दिनों...हम शब्दों के पीछे भागते रहते हैं ...और वह सरकते जाते हैं ...रेत की मानिंद ....
जवाब देंहटाएंकाश उस पल की पोटली में प्रेम ही प्रेम छिपा होता ...प्रेम शब्द हैं और सशब्द मेरे हैं ...उस प्रेम की भांति जिसे हम सब ने मिल कर जिया हैं
जवाब देंहटाएंमैंने देखा है कई बार इनको
जवाब देंहटाएंपानी के ग्लास में तैरते
तो कभी अपने बच्चों की मुस्कान में
महसूस किया है अपनी लम्बी सी सांस में
माँ की ख़ामोशी में
लोगों की अतिरिक्त समझदारी में
ईश्वर की आँखों में
कामवाली की बातों में
चिलचिलाती धूप में खड़े असहाय बच्चे में
......बहुत अद्भुत अहसास.....
शब्दों की जादूगरी... :)
जवाब देंहटाएंशब्दों की लुका छिपी तो चलती है फिर भी कुछ तो पकड़ में आ ही जाते हैं .... सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंइसी लुका - छिपी के बीच एक शब्द है, जीवन जिसे हम जिए जाते हैं चलता और रहता है अनवरत शब्दों का आना जाना... बिलकुल अपने से भाव...
जवाब देंहटाएंशब्दों की लुकाछिपी में भावनाएं या तो छिप जाती हैं या फिर उभर आती हैं. भावनाओं की लुकाछिपी भी समानांतर चलती है
जवाब देंहटाएंआपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक।
जवाब देंहटाएंअब शब्दों की जिम्मेदारी ....
जवाब देंहटाएंहाँ काम वाली की बातों में होतें हैं शब्दों के अपने अक्श ,अनुगूंज और तलाश अपने होने की ...बहुत ही बढ़िया भावाभिव्यक्ति ..... .कृपया यहाँ भी -
जवाब देंहटाएं.
बृहस्पतिवार, 31 मई 2012
शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?
शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?
माहिरों ने इस अल्पज्ञात संक्रामक बीमारी को इस छुतहा रोग को जो एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुँच सकता है न्यू एच आई वी एड्स ऑफ़ अमेरिका कह दिया है .
http://veerubhai1947.blogspot.in/
उतनी ही खतरनाक होती हैं इलेक्त्रोनिक सिगरेटें
उतनी ही खतरनाक होती हैं इलेक्त्रोनिक सिगरेटें
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
रश्मिजी, बेहद सुन्दर कविता. जिंदगी के सरल और मासूम लम्हों को कभी शब्दों में पकड़ नहीं पाते, कभी पकड़ में आते आते छूट जाते है जैसे हवा में खुशबू नहीं ठहरती.
जवाब देंहटाएंमन को छूती और दिमाग में भाव उमेढ़ कर लाती आपकी कविता मुझे बहुत पसंद आयी, अपनी मम्मी को भी भेजी आपकी यह लिंक.
और कभी उँगलियों के पोरों से छिटक जाते हैं
मेरी पेशानी में आंखमिचौली खेलते हैं
और फिर मेरी थकान में बैठ जाते हैं ....
चलता रहता है अनवरत शब्दों का आना जाना
सपने भी उनसे अछूते नहीं होते
सिरहाने रखते जाओ
पर सुबह होते निकल भागते हैं !
परेशान सिरहाने के पास हथेलियों से ढूंढती हूँ
चाय पीते हुए
शून्य में उसकी आकृति पकड़ना चाहती हूँ
फिर समझाती हूँ खुद को -
सारे शब्द कहाँ टिकते हैं !
भावनाओं का ज्वार उमड़ा हो , दिमाग में भयंकर तूफ़ान ,
जवाब देंहटाएंशब्दों को हमजोली बनाओ तो सारे शब्द कहाँ आते हैं ...
मौके की नजाकत का फायदा उठाते करते हैं लुका छिपी !
ये शब्द ही हैं जो भाव बताते हैं,
जवाब देंहटाएंदूसरों से हमारी पहचान कराते हैं,
बड़ी शिद्दत से आते हैं,
रुसवा कर चले जाते हैं|
...कितना कुछ कह दिया आपने,सच्ची में आज आपके शब्दों से मिलकर लगा कि इतनी देर से वे हवा में थे या हम..?
सारे शब्द कहाँ टिकते हैं !
जवाब देंहटाएंपर इसी पाने - खोने में
कई बार भाव भी खो जाते हैं
और तब बड़ी वेदना होती है !
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर भाव की रचना,,,,,
RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
हम पोस्टों को आंकते नहीं , बांटते भर हैं , सो आज भी बांटी हैं कुछ पोस्टें , एक आपकी भी है , लिंक पर चटका लगा दें आप पहुंच जाएंगे , आज की बुलेटिन पोस्ट पर
जवाब देंहटाएंचलता रहता है अनवरत शब्दों का आना जाना
जवाब देंहटाएंसपने भी उनसे अछूते नहीं होते
सिरहाने रखते जाओ
पर सुबह होते निकल भागते हैं !
और फिर ------ देखते ही देखते
शब्दों की लुकाछिपी शुरू !!!
सच की अभिव्यक्ति कितनी सरलता और सहजता से कर जाती हैं .....
सब की सोच की समझ दिखाती है आपकी रचना में ....
सारे शब्द कहाँ टिकते हैं !
जवाब देंहटाएंपर इसी पाने - खोने में
कई बार भाव भी खो जाते हैं
और तब बड़ी वेदना होती है !
बिल्कुल सच .. गहन भाव संयोजित करते हुए ..उत्कृष्ट प्रस्तुति ..आभार ।
सही कहा रश्मि जी कई बार भावों को शब्दों में बाँधना चाह्ते हैं तो शब्द ही कही खो जाते है..शब्द मिलते है तो भाव गायब ..बस ऐसे ही भावों और शब्दों की लुका-छिपी होती रहती है...
जवाब देंहटाएंशायद ही कोई हो जो इनकी लुकाछिपी से बच पाता हो………बहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंshabdo ki herafery,,usme hi kahi bandha jiwan ...bahut badhiya .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,
जवाब देंहटाएंसादर.
भाव शब्दों की पकड़ में नहीं आते वे तो अशब्द की दुनिया के बाशिंदे हैं...शब्दों की सीमा है भाव असीम है...
जवाब देंहटाएंआज आपकी कविता ने श्री हरि मेहता की याद दिला दी.. वे एक डायरी रखते थे पास में और कुछ न कुछ लिखते रहते थे.. एक बार पूछा कि वे क्या लिखते हैं तो वे बोले.. भावों को जस का तस पकडने की कोशिश करता हूँ.. उनके नाटकों में वे भाव और उस चरित्र के वे शब्द हमेशा दिखाई देते थे..
जवाब देंहटाएंसही कहा दीदी आपने छूट जाएँ तो आँख मिचौनी खेलने लगते हैं ये शब्द!!
आज आपकी कविता ने श्री हरि मेहता की याद दिला दी.. वे एक डायरी रखते थे पास में और कुछ न कुछ लिखते रहते थे.. एक बार पूछा कि वे क्या लिखते हैं तो वे बोले.. भावों को जस का तस पकडने की कोशिश करता हूँ.. उनके नाटकों में वे भाव और उस चरित्र के वे शब्द हमेशा दिखाई देते थे..
जवाब देंहटाएंसही कहा दीदी आपने छूट जाएँ तो आँख मिचौनी खेलने लगते हैं ये शब्द!!
सारे शब्द कहाँ टिकते हैं !
जवाब देंहटाएंपर इसी पाने - खोने में
कई बार भाव भी खो जाते हैं
और तब बड़ी वेदना होती है !
इस वेदना में दूसरे भाव पनप जाते हैं
और फिर ------ देखते ही देखते
शब्दों की लुकाछिपी शुरू !!!
बहुत गहन....जीवन की बहुत गहन सच्चाई है इसमें ।
सपने भी उनसे अछूते नहीं होते
जवाब देंहटाएंसिरहाने रखते जाओ
पर सुबह होते निकल भागते हैं !
बहुत सुन्दर !
सारे शब्द कहाँ टिकते हैं !
जवाब देंहटाएंपर इसी पाने - खोने में
कई बार भाव भी खो जाते हैं
और तब बड़ी वेदना होती है !
इस वेदना में दूसरे भाव पनप जाते हैं
और फिर ------ देखते ही देखते
शब्दों की लुकाछिपी शुरू !!! बिलकुल सच्ची बात कही अपने..... सच में सभी कुछ कहने के लिए शब्द कहाँ हमें मिल पाते है..... हम भी इन शांदो की लुका छिपी में खो जाते है.....
मैंने देखा है कई बार इनको
जवाब देंहटाएंपानी के ग्लास में तैरते
तो कभी अपने बच्चों की मुस्कान में
महसूस किया है अपनी लम्बी सी सांस में ......
बहुत कोमल भाव
गुलज़ार साहब की याद दिलाती हैं ये लाइन्स
बेहतरीन रचना मैम
आभार
behtarin rachna hai,
जवाब देंहटाएंbhavnayein shabdo ki mohtaj nahi hoti,
bhav to vyakt ho sakte hain kewl ankhon se, shabdon ki luka-chipi to bahan hai apne bhav vyakt na kar pane ki vivashta ko chupane ka.......