21 सितंबर, 2012

बिना कोई कट्टम कुट्टी के ....


भावनाओं का चौसर 
शब्द लिखे सपनों के पासे 
बिना कोई कट्टम कुट्टी के
आओ खेलें...
शब्द एक हों
या छः 
आगे बढ़ना ही है 
बिना कटे निर्भय बढ़ना 
मंजिल तक का निश्चित भरोसा 
सोचो न ...कोई झगड़ा ही नहीं होगा 
कित्ता मज़ा आएगा !
रंगों का भी हम द्वन्द नहीं रखेंगे 
लाल पीले हरे नीले 
सब रंगों से खेलेंगे 
माहौल में सिर्फ खिलखिलाहट होगी 
चौसर तोड़ने फाड़ने की 
कोई नौबत नहीं आएगी !
........................
पहले तो हम सपरिवार अपने ही राज्य में थे
अब - अलग अलग राज्यों की कौन कहे
विदेशों में भी हम रहने लगे घर बनाकर
इतने दूर हो गए 
कि मिलने का समय समाप्त हो गया 
कभी सोचा है 
घर के कोने में अधफटा कागज़ी चौसर 
हर आहट पर चौंकता है 
हमारी बाट जोहता है 
इस विश्वास के साथ 
कि सांझ होते हम सब घर लौटेंगे 
यह गाते हुए -
'लाख लुभाए महल पराये 
अपना घर फिर अपना घर है ...'

तब हमें भी तो सोचना होगा न 
.........
न चिढ़ायेंगे,न रुलायेंगे,न झगड़ेंगे 
सिर्फ खेलेंगे -
अपनी अपनी भावनाओं को साझा करेंगे 
कभी मन हुआ तो अपना अंक 
दूसरे को दे देंगे 
बिना किसी नियम के 
हम खेलेंगे
और एक ही पलंग पर आड़े तिरछे सो जायेंगे ...
सोचो,
वह सुबह अपनी होगी.......
और वह सुबह ज़रूर आएगी
क्योंकि हमें लाना है 
हर तू तू,मैं मैं, अहम् को ताक पे रखकर 

तुम भी सोचो,हम भी सोचें 
बिना कोई कट्टम कुट्टी के ....

48 टिप्‍पणियां:

  1. काश जिंदगी बिना कुट्टम कुट्टी के हो सकता... बेहतरीन कविता... नए से भाव...

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  2. तुम भी सोचो,हम भी सोचें
    बिना कोई कट्टम कुट्टी के ....
    भावनाओं का चौसर
    शब्द लिखे सपनों के पासे
    फिर मन घबराए क्‍यूँ ...

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  3. जगह, समय कोई भी हो.खेल की भावना का होना बेहद जरुरी है.

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  4. बिना कुट्टम कुट्टी का जीवन...अद्भुत कल्पना...काश कि ये दिन आए|

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  5. काश कि अपने अंक दूसरे को देते...खेलते बिना नियम....
    काश...
    मगर यहाँ तो नियम बनाये जाते हैं सारे अंक खुद बटोर लेने को...
    सुन्दर भाव दी...

    सादर
    अनु

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  6. तुम भी सोचो,हम भी सोचें
    बिना कोई कट्टम कुट्टी के ....

    saral aur sahaj ...yahi to jeevan hai ...

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  7. बहुत सुन्दर सन्देश देती रचना !
    सादर .

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  8. सोचो,
    वह सुबह अपनी होगी.......
    और वह सुबह ज़रूर आएगी
    क्योंकि हमें लाना है
    हर तू तू,मैं मैं, अहम् को ताक पे रखकर

    kash ye masumiyat aa pati

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  9. लाख खेल भावना हो , कभी- कभी दे दिया तो कोई बात नहीं , हर समय हमारे पासे दूसरों को देंगे तो नहीं चलेगा :):) कुट्टी भी होगी , झगडा भी ...बता देते हैं !!!!
    थोडा गंभीर हो लें तो पूरी धरती को बिछावन कर ले , आसमान ओढ़ कर , उसके अलग -अलग हिस्से में तारे गिनती राते , दिन उजले सुनहरे ...दुनिया के किसी छोर पर हम दूर , फिर भी साथ !! क्या हसीं ख्वाब है ...ख्वाब में ही सही , दुनिया सबके लिए इतनी ही खूबसूरत हो जाती !

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  10. बिना कट्टम कुट्टी अब ज़िंदगी रही कहाँ? मन और घर सब कुछ बँट गए, उम्मीद भी नहीं कि आड़े तिरछे एक बिस्तर पर... और सुबह नोक झोंक. उस कट्टम कुट्टी का अपना मज़ा था जब कुट्टी के बाद ठहाके गूंजते थे. बहुत भावपूर्ण रचना. बधाई.

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  11. वह सुबह अपनी होगी.......
    और वह सुबह ज़रूर आएगी
    क्योंकि हमें लाना है
    हर तू तू,मैं मैं, अहम् को ताक पे रखकर...........काश ऐसी सुबह हर किसी की जिन्दगी मे आए..

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  12. वह सुबह अपनी होगी.......
    और वह सुबह ज़रूर आएगी
    क्योंकि हमें लाना है
    हर तू तू,मैं मैं, अहम् को ताक पे रखकर...........काश ऐसी सुबह हर किसी की जिन्दगी मे आए..

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  13. इस जिंदगी में कोई भी खेल के नियम लागू नहीं करता ...किस से कोई भी उम्मीद लगाना बेकार है :))))

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  14. ज़िन्दगी कभी लूडो ,कभी सांप-सीढ़ी,
    कारवां यूं ही गुजरा है पीढ़ी दर पीढ़ी |

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  15. कि सांझ होते हम सब घर लौटेंगे
    यह गाते हुए -
    'लाख लुभाए महल पराये
    अपना घर फिर अपना घर है ...'बिलकुल सही ,अपने घर एक आगे सब बेकार.


    न चिढ़ायेंगे,न रुलायेंगे,न झगड़ेंगे
    सिर्फ खेलेंगे -
    अपनी अपनी भावनाओं को साझा करेंगे ....यह ही होना चाहिए...जीवन जीने में.

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  16. तुम भी सोचो,हम भी सोचें
    बिना कोई कट्टम कुट्टी के ....

    जीवन कितना सुंदर होता
    कुछ खट्टा,कुछ मीठा
    काश .....
    सुंदर रचना !

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  17. नियम बनाने वाले सभी नियम अपने हक़ में बनाते हैं..उम्मीद करताहूँ आपकी तमन्ना पूरी हो.

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  18. नियम बनाने वाले सभी नियम अपने हक़ में बनाते हैं..उम्मीद करताहूँ आपकी तमन्ना पूरी हो.

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  19. जाने क्यों, बचपन के दिन याद आ गए :(

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  20. वो सुबह ....कभी तो आएगी ....
    आप की आशाओं को
    शुभकामनायें!

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  21. बिना कट्टम कुट्टी के ...कितनी मनोहारी सोच ... लेकिन कहाँ होता है ऐसा ... सब तो दूसरे के अंक भी हड़प लेना चाहते हैं ... हाँ आड़े तिरछे हो कर खेलते हैं एक साथ पर स्वयं की जीत के लिए ....
    एक सुखद सोच देती सुंदर रचना

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  22. अपनी गोटी पूरा चक्कर लगा कर मंजिल(Home) के करीब पहुँच जाए और 1 चाहिए ....
    वो 1 दो बार धड़कन बढ़ाती है .....
    मुंह पर कट जाए तो फिर क्या कहना :( उसे शब्दों में बयाँ नहीं कर पाते .....

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  23. काश कि ऐसी सुबह आये और हम खेल पायें बिना कुट्टम कुट्टी के । एक अलग सी प्रस्तुति ।

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  24. सही मायने में तो जी भी तभी पायेंगें ...

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  25. काश जेसा सोचा ...सच हो जाए....न हो कुट्टी ॥सब रंग मिल जाए ...

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  26. काश हो एसा॥सुंदर जीवन बिन कुट्टी सा ....

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  27. लूडो का खेल और और खेल के नए नियम... रंगों, पासों और रास्तों को मिलाकर कमाल की प्रेरक रचना है यह.. काश हम अपने बच्चों को बताते कि जिस नियम से हम वो खेल खेलते आये हैं वो अब बदलने का समय आ गया है.. बच्चों तुम यह नया नियम अपनाओ.. दुनिया को चौसर की बिसात नहीं, स्वर्ग बनाओ!!
    बहुत बहुत सुन्दर, दीदी!!

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  28. simple to understand, however, still deep. loved the lines..

    कभी मन हुआ तो अपना अंक
    दूसरे को दे देंगे

    I am a Fan now :)

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  29. कितनी भोली कितनी मासूम सी कामना है ! कट्टम कट्टी का कोई काम ना हो बस प्यार ही प्यार हो , मिठास ही मिठास हो और सिर्फ खेल की भावना हो रश्मिप्रभा जी आकाश कुसुम तोड़ कर लाने की बातें कैसे कर लेती हैं आप ! आपकी रचनाओं में ही सही कुछ पल को ये सुकून भरे पल जी तो लेते हैं ! बहुत-बहुत आभार आपका !

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  30. वाह...बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट।

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  31. हम तो यही सोचते रहते हैं कि कौन सी गोटी बढ़ायी जाये।

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  32. काश बिना किसी कट्टम कुट्टी के जिंदगी
    चलती..कभी मन होता तो अपने अंक दूसरो को भी दे देते.. न किसी तू-तू मै -मै के सब साथ होते तो बहुत अच्छा होता..
    काश ये बाते सच हो जाती..
    सुन्दर भाव लिए रचना...
    :-)

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  33. वह सुबह अपनी होगी.......
    और वह सुबह ज़रूर आएगी
    क्योंकि हमें लाना है
    हर तू तू,मैं मैं, अहम् को ताक पे रखकर.

    सही सन्देश. काश ऐसा हो सके...

    बहुत सुंदर.

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  34. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  35. कभी सोचा है
    घर के कोने में अधफटा कागज़ी चौसर
    हर आहट पर चौंकता है
    हमारी बाट जोहता है
    इस विश्वास के साथ
    कि सांझ होते हम सब घर लौटेंगे

    मन को छू गया ...........मर्म

    नैन बिछाए, बाँहें पसारे
    बचपन वाले नाम पुकारे
    आ अब लौट चलें सुनने को
    तरसे चौसर,साँझ सकारे....

    तोड़ गये बचपन की यारी
    सब बिछड़े हैं,बारी बारी
    अब तो खेल यही है जारी
    हर एक रिश्ता रूठ गया रे........

    सुंदर सपना बीत गया है
    क्रूर जमाना जीत गया है
    जीवन का संगीत गया है
    दिल का खिलौना टूट गया रे.........

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  36. ये इत्तेफाक है अजीब ... इस शुक्रवार को हम घर में बैठ के यही लूडो खेल रहे थे और बचपनकी बातें यादे ताज़ा कर रहे थे ...
    बहुत भाव पूर्ण रचना ...

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  37. तुम भी सोचो,हम भी सोचें
    बिना कोई कट्टम कुट्टी के ....wah....lazabab.

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  38. सुन्दर कल्पना है । काश यथार्थ में भी ऐसा ही होता ।

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  39. वह सुबह अपनी होगी.......
    और वह सुबह ज़रूर आएगी

    आमीन

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  40. बेहतरीन !

    यहाँ भी है
    हमारे पास
    हम सब
    भी खेलते हैं
    अपने चौसर
    अपनी गोटियों
    के साथ !

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  41. वह सुबह अपनी होगी.......
    और वह सुबह ज़रूर आएगी
    क्योंकि हमें लाना है
    हर तू तू,मैं मैं, अहम् को ताक पे रखकर

    बहुत ही सुन्दर कविता

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  42. बिना किसी नियम के जिंदगी चलती रहे तो क्या कहना ..

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  43. सही मायने में तो जी भी तभी पाएंगे...जब ऐसा खेल पायेंगे

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...