07 सितंबर, 2012

कुरुक्षेत्र - कर्ण - कृष्ण और सार




कल रात
दिखा कुरुक्षेत्र का शमशान
कर्ण की रूह
अश्रुयुक्त आँखों से
धंसे पहिये को निहारती
जूझ रही थी
ह्रदय में उठते प्रश्नों के अविरल बवंडर में ...
- ऐसा क्यूँ . क्यूँ , क्यूँ ???

प्रवाहित होकर भी मैं बच गया
कौन्तेय होकर राधेय कहलाया
गुरु की नींद की सोच
दर्द सहता गया
शाप का भागी बना ...
हर सभा में अपमानित प्रश्नों के आगे
रहा निरुत्तर इस विश्वास में
कि माता कुमाता न भवति
....बुजुर्गों पर रहा विश्वास
पर कुछ न आया हाथ !!!

अंग देश का राज्य दे
मेरा राज्याभिषेक कर
दुर्योधन ने मान दिया
ऋणी बना मुझको अपने साथ किया !
यदि नहीं होता मैं ऋणी
तो क्या कुंती मातृत्व वेश में आतीं
साथ अपने - मुझसे चलने को कहतीं
!!!
केशव को था भान
मुझे हराना नहीं आसान
तो सारथी बन अर्जुन का रथ रखा मुझसे दूर
जब नहीं मिला निदान
तो कैसे लिया यह ठान
कि रथ का पहिया ना निकले
और निहत्थे कर्ण का दम निकले .... !!!

कुंती के मिले वरदान को
मैं तिल तिल जलकर सहता रहा
राधा की गोद में कुंती को ही सोचता रहा
कुंती से जुड़े रिश्ते
मेरे भी थे अपने
पर जो कभी नहीं हुए अपने ....
मैं सुन न सका पांडवों के मुख से ' भईया'
मैं दे न सका द्रौपदी को आशीष
स्व के भंवर में
मैं कण कण मिटता गया
ऋण चुकाने में सारे कर्तव्य खोता गया
पिता सूर्य ने तो सुरक्षा कवच से सुरक्षित किया भी था मुझे
पर .... उससे भी दूर हुआ !
........क्यूँ !..........

रूह का प्रलाप
वह भी कर्ण की रूह
फिर कृष्ण को तो आना ही था
संक्षिप्त जीवन सार देना ही था ...

कृष्ण उवाच -
अजेय कर्ण
तुमने अपने सारे कर्तव्य निभाए
पर रखा खुद को मान्य अधिकारों से वंचित
.... सूर्य ने तुम्हें डूबने से बचाया
राधा के रूप में माँ का दान मिला
कवच तुम्हारा अंगरक्षक बना
फिर भी तुमने अपमान की ज्वाला में
खुद को समाहित कर डाला !
कर्ण तुम रह ना सके राधेय बनकर
सहनशीलता की अग्नि में
स्व को किया भस्म स्वाहा कहकर ...
अधिकारों से विमुख
करते रहे खुद को दान
अति सर्वत्र वर्जयेत
इससे हो गए अनजान ...

मैंने तो रथ में बिठाकर
रिश्तों के एवज में
तुम्हें बचाने का ही किया था प्रयास
पर तुम ऋण आबद्ध थे कर्ण
तो कुंती के आँचल से अलग
होनी विरोध बन गई
और मैं ...... !!!

मैं विवश था कर्ण
क्योंकि तुमने हर प्राप्य की हदें पार कर
उन्हें गँवा दिया !
तुम दानवीर थे
तुम्हें छद्म रूपों का भान था
आगत का ज्ञान था
तब भी तुमने इन्द्र को कवच दिया
सूर्य ने तुम्हें निराकरण दिया अमोघास्त्र का
पर अपनी परिभाषा में तुमने सिर्फ दिया ...

प्रतिकूल परिस्थितियों में कवच
तुम्हारी विरासत थी कर्ण
दानवीरता सही थी
पर छल के आगे
जानते बुझते
खुद को शक्तिहीन करना गलत था
....
तुम्हारी हार .तुम्हारी मृत्यु
समय की माँग थी
अर्जुन नहीं जीतता
तो निःसंदेह कुंती अपना वचन नहीं निभाती
फिर तुम कहो क्या करते
उस पीड़ा को कैसे सहते !
सच है ,
तुम्हारी जीत अवश्यम्भावी थी
हस्तिनापुर पर तुम्हारा ही सही अधिकार भी था
पर अजेय कर्ण
हस्तिनापुर तुम्हारे हाथों सुरक्षित नहीं था
कब कौन किस रूप में तुम्हारे पास आता
और तुमसे हस्तिनापुर ले जाता
..... फिर तुम्हीं कहो इसका भविष्य क्या होता ?

37 टिप्‍पणियां:

  1. तुम दानवीर थे
    तुम्हें छद्म रूपों का भान था
    आगत का ज्ञान था
    तब भी तुमने इन्द्र को कवच दिया
    सूर्य ने तुम्हें निराकरण दिया अमोघास्त्र का
    पर अपनी परिभाषा में तुमने सिर्फ दिया ...

    bahut sundar likha hai di ...
    nishabd hoon ..!!

    जवाब देंहटाएं
  2. कृष्ण उवाच ने कर्ण के सत्य को कह डाला ॥ बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर दी......
    आभार इस पोस्ट के लिए.

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  4. हस्तिनापुर तुम्हारे हाथों सुरक्षित नहीं था
    कब कौन किस रूप में तुम्हारे पास आता
    और तुमसे हस्तिनापुर ले जाता
    ..... फिर तुम्हीं कहो इसका भविष्य क्या होता ?
    इस तरह तो आज तक किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी !!
    सदैव की तरह निशब्द कराती रचना !!

    जवाब देंहटाएं
  5. रतिकूल परिस्थितियों में कवच
    तुम्हारी विरासत थी कर्ण
    दानवीरता सही थी
    पर छल के आगे
    जानते बुझते
    खुद को शक्तिहीन करना गलत था
    उन हाथों में भविष्य कैसे सुरक्षित रह सकता था भला... सत्य वचन...

    जवाब देंहटाएं
  6. भावों और कथ्य दोनों के उत्कृष्टता लिए है यह रचना .अतिकाव्यात्मक तार्किक प्रस्तुति .
    शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
    शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक

    जवाब देंहटाएं
  7. भरी सभा में द्रौपदी का अपमान ,
    कर्ण तुम्हारा अपराध भी कम नहीं था !!

    जवाब देंहटाएं
  8. कर्ण के मन की पीड़ा की अभिव्यक्ति कृष्ण के माध्यम से.... बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  9. यह हमेशा देखा गया है की कहीं न कहीं ...इंसान की कमजोरी ही उसके पतन की वजह बनी है ......उसकी हार का कारण बनी है ......

    प्रतिकूल परिस्थितियों में कवच
    तुम्हारी विरासत थी कर्ण
    दानवीरता सही थी
    पर छल के आगे
    जानते बुझते
    खुद को शक्तिहीन करना गलत था...

    ......और यही कमजोरी उसकी नियति बन गयी

    जवाब देंहटाएं
  10. कर्ण का पात्र ...
    कृष्ण उवाच...
    दोनों में ही आपने सत्य उद्घाटित किये...बधाई
    अच्छा लगा,पढ़ कर

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुन्दर और तथ्यपूर्ण लेखन . महाभारत में कर्ण एक ऐसा पात्र है जो आज के संवेदनशील समाज को गहन सोच की भूमि प्रदान करता है जी आपने बखूबी उकेरा है बधाई

    जवाब देंहटाएं
  12. देने के साथ लेना भी सीखना होगा..देनेवाले का अहंकार बढता है और लेने वाला उसे कभी क्षमा नहीं क्र पाता...

    जवाब देंहटाएं

  13. Ati sundar prastuti ke sath sundar sikh

    "अति सर्वत्र वर्जयेत"

    जवाब देंहटाएं
  14. ्सत्य को उदघाटित करती सुन्दर कृति।

    जवाब देंहटाएं
  15. कौन्तेय होकर राधेय कहलाया ...
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  16. कौन्तेय होकर राधेय कहलाया ...
    बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  17. कल से सीख ली जाए तो आज की तस्वीर बदली जा सकती है।
    बहुत सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  18. कल से सीख ली जाए तो आज की तस्वीर बदली जा सकती है।
    बहुत सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  19. कर्ण की वेदना ... उसके सत्य को उजागर किया है इस अध्बुध रचना में ...
    बधाई इस प्रभावी रचना के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    जवाब देंहटाएं
  21. तुम्हारी हार .तुम्हारी मृत्यु
    समय की माँग थी
    अर्जुन नहीं जीतता
    तो निःसंदेह कुंती अपना वचन नहीं निभाती
    फिर तुम कहो क्या करते
    उस पीड़ा को कैसे सहते !

    बहुत सुन्दर रश्मि दीदी ....

    जवाब देंहटाएं
  22. कर्तव्य निभाने के साथ अधिकारों को पाना भी सीखना जरूरी है...कर्ण और कृष्ण की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति आपकी कलम से !!

    जवाब देंहटाएं
  23. बहुत सूंदर रचना:

    उसकी हार उस
    समय की माँग थी
    अब तो समय ने
    मांगना छोड़ दिया है
    जो हो रहा है वो
    सतत होता गया है !

    जवाब देंहटाएं
  24. बात अधिकार के मान रखने की है, स्वामी लोभी था।

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत कुछ जानने को मिला है आपकी इस रचना से..
    आभार आंटी जी...
    :-)

    जवाब देंहटाएं
  26. हर हार के बाद जीत हैं ...एक सोच की नया आगाज़ ....सादर

    जवाब देंहटाएं
  27. अत्यंत सुंदर व गहन..मंथन करने योग्य..

    जवाब देंहटाएं
  28. कब कौन किस रूप में तुम्हारे पास आता
    और तुमसे हस्तिनापुर ले जाता
    ..... फिर तुम्हीं कहो इसका भविष्य क्या होता ?
    bemisal.......aur kya boloon?

    जवाब देंहटाएं
  29. पौराणिक पात्रों के माध्यम से शाश्वत प्रश्न की विवेचना की गई है।

    जवाब देंहटाएं
  30. कब कौन किस रूप में तुम्हारे पास आता
    और तुमसे हस्तिनापुर ले जाता
    ..... फिर तुम्हीं कहो इसका भविष्य क्या होता ?
    नि:शब्‍द करती अभिव्‍यक्ति ... आभार आपका
    इस उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति के लिए

    जवाब देंहटाएं
  31. महाभारत के मेरे प्रिय पात्र के ऊपर इतनी सटीक और सुन्दर रचना.....कर्ण और कृष्ण के माध्यम से इतना गहन संवाद.......हैट्स ऑफ इसके लिए।

    जवाब देंहटाएं
  32. तुम दानवीर थे
    तुम्हें छद्म रूपों का भान था
    आगत का ज्ञान था
    तब भी तुमने इन्द्र को कवच दिया
    सूर्य ने तुम्हें निराकरण दिया अमोघास्त्र का
    पर अपनी परिभाषा में तुमने सिर्फ दिया ..

    ....सुंदर रचना...

    जवाब देंहटाएं
  33. तुम दानवीर थे
    तुम्हें छद्म रूपों का भान था
    आगत का ज्ञान था
    तब भी तुमने इन्द्र को कवच दिया
    सूर्य ने तुम्हें निराकरण दिया अमोघास्त्र का
    पर अपनी परिभाषा में तुमने सिर्फ दिया ..

    ....सुंदर रचना...

    जवाब देंहटाएं
  34. गहन संवेदना से भरे कर्ण और कृष्ण के अंतर्द्वंध का जीवंत चित्रण!
    सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...