ज्ञान- बुद्ध और घर !
ज्ञान वही एक सत्य-
रोटी,कपड़ा और मकान .
जन्म,मृत्यु,बुढापा,रोग...
कुछ तो नहीं बदलता ज्ञान से !
हाथ की टूटी लकीरों के बावजूद
कोई जी लेता है
कोई असामयिक मौत को पाता है
पर क्या यह सच है?
क्या सच में असामयिक मृत्यु होती है ?
जन्म,मृत्यु तो तय है
रास्तों का चयन भी
घुमावदार रास्ते भी ....
पेट की भूख,शरीर की भूख
और आत्मा की भूख
छत भले ही आकाश हो
क्षुधा शांत करने के स्रोत मिल ही जाते हैं
.... ना मिले तो जबरन !!!
पर......
आत्मा की भूख जबरन नहीं मिटती
और वही तलाश
किसी को बुद्ध
किसी को आइन्स्टाइन
किसी को अंगुलीमाल
किसी को वाल्मीकि .... बनाती है
आत्मा के गह्वर से
विकसित होती है सहनशीलता
और सहनशीलता पहाड़ों को चीरकर
अपनी निश्चित दिशा निर्मित करती है ...
.....इसे ज्ञान कहो
या घर
एक रोटी के साथ आत्मा भटकती है
मरती है
फिर जन्म लेती है
तलाश पूरी हो तो अमर हो जाती है
असतो माँ सदगमय ॥
जवाब देंहटाएंतमसो माँ ज्योतिरगमय ...
मृत्योर्मा अमृतांगमय ....
प्रेरणास्पद ...बहुत सार्थक और सुंदर बात कही है दी ...
स्वरोज सुर मंदिर पर पधार कर अपने विचार दीजिएगा ...
विकसित होती है सहनशीलता
जवाब देंहटाएंऔर सहनशीलता पहाड़ों को चीरकर
अपनी निश्चित दिशा निर्मित करती है ...
.....इसे ज्ञान कहो
ये ज्ञान पाना ,कभी-कभी बहुत कठिन लगता है !!
वही तलाश
जवाब देंहटाएंकिसी को बुद्ध
किसी को आइन्स्टाइन
किसी को अंगुलीमाल
किसी को वाल्मीकि .... बनाती है.....har koi usi talaash men laga rahta hai umr bhar......
ज्ञान- बुद्ध और घर !
जवाब देंहटाएंज्ञान वही एक सत्य-
रोटी,कपड़ा और मकान .
जन्म,मृत्यु,बुढापा,रोग...
कुछ तो नहीं बदलता ज्ञान से !..ji ..sahi kaaa
बहुत सुन्दर निरुपण किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर निरुपण किया है।
जवाब देंहटाएंvery very nice :)
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विकसित होती है सहनशीलता
जवाब देंहटाएंऔर सहनशीलता पहाड़ों को चीरकर
अपनी निश्चित दिशा निर्मित करती है ...
सहनशीलता से विकसित किए गए दिशा को कोई बदल नहीं पाता क्योंकि यहाँ मौन शामिल है जिससे कोई लड़ नहीं पाता|
बेहद सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंआत्मत्रप्ति ही मोक्ष का मार्ग है...
जवाब देंहटाएंआत्मा की भूख ही आदमी को आदमी बनाती है...पर मूल में तो रोटी की भूख ही है...भूखे भजन ना होंही गोपाला...
जवाब देंहटाएंएक ज्ञान की खोज कितने घुमावदार रास्तों की यात्रा करवाती है, यह इस कविता के आरोह अवरोह से स्पष्ट दिखाई दे रहा है!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
पहले रोटी में व्यस्त,
जवाब देंहटाएंतब ही ज्ञान में अभ्यस्त।
गहन .....सहनशीलता अपनी राहे ढूंढ ही लेती है....
जवाब देंहटाएंकभी रोटी से ज्ञान मिलता है तो कभी ज्ञान से रोटी।
जवाब देंहटाएंएक रोटी के साथ आत्मा भटकती है
जवाब देंहटाएंमरती है
फिर जन्म लेती है
तलाश पूरी हो तो अमर हो जाती है
गहन भाव लिए सशक्त अभिव्यक्ति ... आभार
बहुत गहन चिंतन...अप्रतिम प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंतलाश पूरी हो तो अमर हो जाती है.....यही सत्य है....इसके अलावा कुछ जानने योग्य नहीं है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव!!
आत्मा की भूख जबरन नहीं मिटती
और वही तलाश
किसी को बुद्ध
किसी को आइन्स्टाइन
किसी को अंगुलीमाल
किसी को वाल्मीकि .... बनाती है
....मानवता के कल्याण के लिए किया गया सार्थक तलाश कभी भुलाया नहीं जा सकता है ..
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना
आभार
पर......
जवाब देंहटाएंआत्मा की भूख जबरन नहीं मिटती
और वही तलाश
किसी को बुद्ध
किसी को आइन्स्टाइन
किसी को अंगुलीमाल
किसी को वाल्मीकि .... बनाती है ..
किसी को सत्य की राह दिखाती है ..तो किसी को जीवन के भेद बताती है ....बहुत सुन्दर रश्मिजी
बहुत गहन चिंतन..बहुत सुन्दर रश्मिजी
जवाब देंहटाएंबहुत गहन चिंतन..बहुत सुन्दर रश्मिजी
जवाब देंहटाएंरोटी की तलाश जब पूरी हो तभी आत्मा की खोज हो सकती है !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना .....
बहुत सार्थक ,सुन्दर, शीप में मोती वाली बात कही है आपने..सुन्दर..
जवाब देंहटाएं:-)
एकदम ह्रदय की बात को कह देती हैं आप.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आत्मा की ही भूख है जो सब कुछ मिल जाने पर भी शांत नहीं होती ज्ञान ही उसे शांत कर सकता है ।
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