05 फ़रवरी, 2013

कोई शक्ति होती है



कोई शक्ति होती तो है ...
शक्ति - अद्वैत की 
जिसकी सरहद पर होती है बातें 
आत्मा की परमात्मा से ...
मैं सुन सकूँ उस शक्ति को 
शायद या संभवतः इसीलिए 
अबोध बचपन में मैं शमशान से गुजरी 
ओह !.... 
निःसंदेह अपार भय मेरे संग था 
पर वहां सोये अपने छोटे भाई से मिलने 
अपनी माँ की वेदना के संग 
मैं ही नहीं ..... हम सारे भाई बहन जाते थे !
मैं नहीं जानती औरों का अनुभव 
पर मेरे साथ कोई लौटता था 
हर घड़ी उसका साथ रहना भय था 
या सत्य ..... इससे परे 
मैं उससे बातें करती 
मुझ जैसे साधारण अस्तित्व का डरना 
साधारण सी ही बात है 
पर इस भय के मध्य वह कुछ ऐसा बताता कि 
..... बहुत अनोखा 
अजीब सा लगता 
पर आत्मा भूत ईश्वर के मध्य 
ऐसी कई अनुभूतियाँ सबसे परे लगतीं !
जब जब अँधेरा होता 
ये अनुभूतियाँ 
एक ही बार में कई पतवारों पर 
अपनी अद्भुत सशक्त पकड़ रखतीं 
मैं भले ही घबरा जाऊं 
इनसे दूर भागने की 
छुपने की कोशिश करूँ 
इन्होंने वो सारे दृश्य उपस्थित किये 
जहाँ इनकी ऊँगली ही मेरी दिशा बनी !

धीरे धीरे मैंने जाना 
कि न जन्म है न मृत्यु 
हर कार्य का है प्रयोजन ...
शरीर नश्वर कहाँ 
इसका प्रत्येक सञ्चालन 
आत्मायुक्त परमात्मा से है !
जो नष्ट होता है 
वह भ्रमजाल है 
वियोग- मायाजाल 
जब हम अपने भ्रम को स्वीकार कर लेते हैं 
वियोग से समझौता कर लेते हैं 
तब होता है दूसरे चरण का आरम्भ !

.... सत्य का प्राप्य प्रत्यक्ष जो भी दिखे 
सत्य के प्रत्येक पल में 
प्रभु का हाथ सर पे होता है 
रक्त की एक एक बूंद में 
वह अमरत्व घोलता है ....
सत्य को ठेस -
इसके पीछे भी ईश्वर का करिश्मा ...
झूठ के संहार के लिए 
उसके अपरिवर्तित रूप को उजागर करना होता है 
कोई भी असुर हो 
उसे पहले अपरिमित शक्ति दी जाती है 
फिर अहंकार के आगे संहार के रास्ते 
स्वतः खुल जाते हैं ....

मैंने देखा,मैंने जाना,मैंने महसूस किया 
परछाईं की तरह वह रहस्य 
यानि ईश्वर 
साथ साथ चलता है 
ज्ञान से परे कई अविश्वसनीय तथ्य देता है 
मस्तिष्क मृत 
शरीर जाग्रत  
यह सब यूँ हीं नहीं होता 
मृत संवेदनाओं को जगाने के लिए 
अनोखी जडी बूटियों से 
साँसों को चलाना भी पड़ता है ....
.........
:)
मैं स्वयं हूँ कहाँ ???

27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहराई होती है आपकी अभिव्यक्तियों में ...
    शुभकामनायें !

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  2. कोई भी असुर हो
    उसे पहले अपरिमित शक्ति दी जाती है
    फिर अहंकार के आगे संहार के रास्ते
    स्वतः खुल जाते हैं ....
    कितना गहन चिंतन, शब्‍दश: मन को छूती पोस्‍ट
    सच कोई शक्ति होती है ... वर्ना कहाँ संभव इतनी गहनता विचारों में
    सादर

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  3. मैं तो होता ही नहीं …… भ्रम है
    जागृत आँखों का मिथ्याभ्रम जीते हैं
    और मैं की भूलभुलैया में
    उलझे रहते हैं
    जिसने इस परदे को काटा
    वो ही बाहर झांका
    और मिल गया आत्मबोध

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  4. मैं स्वयं हूँ कहाँ ???
    दुआओं बद्दूआओं या .............

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  5. कविता कहीं गहरे उतर गयी और एक वेदना का सर्जन भी कर गयी .. कुछ फफोले टीसने लगे .. कविता का एक रूप ये भी है बधाई

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  6. ज्ञान से परे कई अविश्वसनीय तथ्य देता है
    मस्तिष्क मृत
    शरीर जाग्रत
    यह सब यूँ हीं नहीं होता
    मृत संवेदनाओं को जगाने के लिए
    अनोखी जडी बूटियों से
    साँसों को चलाना भी पड़ता है ....

    हमेशा की तरह बहुत गहरी संवेदनशील अभिव्यक्ति,,,

    RECENT POST बदनसीबी,

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  7. मैंने देखा,मैंने जाना,मैंने महसूस किया
    परछाईं की तरह वह रहस्य
    यानि ईश्वर
    साथ साथ चलता है
    ज्ञान से परे कई अविश्वसनीय तथ्य देता है
    मस्तिष्क मृत
    शरीर जाग्रत
    यह सब यूँ हीं नहीं होता

    बहुत गहराई से निकली पंक्तियाँ..आभार !

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  8. स्वयं का होना ...आज भी एक कठिन प्रश्न है

    जवाब देंहटाएं
  9. मैंने देखा,मैंने जाना,मैंने महसूस किया
    परछाईं की तरह वह रहस्य
    यानि ईश्वर
    साथ साथ चलता है
    ज्ञान से परे कई अविश्वसनीय तथ्य देता है
    मस्तिष्क मृत
    शरीर जाग्रत
    यह सब यूँ हीं नहीं होता
    मृत संवेदनाओं को जगाने के लिए
    अनोखी जडी बूटियों से
    साँसों को चलाना भी पड़ता है ....
    .........
    :)
    मैं स्वयं हूँ कहाँ ???

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  10. मैंने देखा,मैंने जाना,मैंने महसूस किया
    परछाईं की तरह वह रहस्य
    यानि ईश्वर
    साथ साथ चलता है
    ज्ञान से परे कई अविश्वसनीय तथ्य देता है
    मस्तिष्क मृत
    शरीर जाग्रत
    यह सब यूँ हीं नहीं होता
    मृत संवेदनाओं को जगाने के लिए
    अनोखी जडी बूटियों से
    साँसों को चलाना भी पड़ता है ....
    .........
    :)
    मैं स्वयं हूँ कहाँ ???
    परम अनुभूति
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  11. राह इतनी लम्बी हो जाती है कि आदि अन्त से नाता छूट जाता है, बस राह का पथरीलापन ही दिखना है।

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  12. जब हम अपने भ्रम को स्वीकार कर लेते हैं
    वियोग से समझौता कर लेते हैं
    तब होता है दूसरे चरण का आरम्भ !
    बिल्कुल सही.

    कुछ रचनाएं ऐसी होती हैं कि आप उसे पढ़ तो जाते हैं एक झटके में,लेकिन उसकी गूढ़ता को समझने में वक्त लगता है। खासतौर पर हम जैसों के लिए.. बहुत सुंदर रचना..

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  13. अबूझे रहस्यों को सुलझाती गहन अभिव्यक्ति ! मन की कई शंकाओं का शमन हुआ ! आभार आपका !

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  14. धीरे धीरे मैंने जाना
    कि न जन्म है न मृत्यु
    हर कार्य का है प्रयोजन ...
    शरीर नश्वर कहाँ
    इसका प्रत्येक सञ्चालन
    आत्मायुक्त परमात्मा से है !


    बहुत गहरे भाव है. सुन्दर कृति.

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  15. कोई भी असुर हो
    उसे पहले अपरिमित शक्ति दी जाती है
    फिर अहंकार के आगे संहार के रास्ते
    स्वतः खुल जाते हैं ....

    जीवन के परे की संभावनाएं तलाशती सुंदर और गहन अभिव्यक्ति

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  16. वो अविश्वसनीय तथ्य ही विश्वास के अंतिम छोर तक लिये जाता है..

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  17. गहरी अभिव्यक्ति .... ईश्वर अक्सर ओने होने का एहसास कराता है ...

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  18. कुछ भी अच्छा हो या बुरा हो...सब ईश्वर की मर्जी से होता है...किन्तु हम साधारण मानव की समझ से परे होता है| एक-एक शब्द की सच्चाई दिल तक उतर गई|

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  19. असुर को अपरिमित शक्ति देखर परमात्मा अपने होने की महत्ता दर्शाता है , कभी कभी ऐसा भी लगता है .
    गूढ़ ज्ञान !

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