07 अप्रैल, 2013

सच कुछ भी नहीं




जब ज़िन्दगी ठहर जाती है 
नदी किनारों से परे 
बेवजह कलकल करती है 
तो न सन्नाटे बोलते हैं 
न शोर ही सुनाई देता है ...
उपदेशकों की भीड़ 
और तन्हा मन -
कोई चेहरा भी दिखाई नहीं देता .
चीख बुझ गई है 
आग रुक गई है 
किसी का कोई इंतज़ार नहीं !
मोह की बेड़ियाँ तो अब स्वतः खुलने लगी हैं 
कभी पूछ बैठूँ 
कि कौन हो तुम ....
तो हँसना मत 
अब हँसी भी मुझे दिखाई सुनाई नहीं देती !
आवारा सड़कों से दूर 
सभ्यता से भरे कमरे में 
मैं ढूंढती रही वह लफ्ज़ 
जो मुझे सुकून दे सके 
अब तो आईने ने भी मुझे दिखाना बंद कर दिया है !
क्यूँ घूर रहे मुझे ?
विश्वास नहीं होता ?
चलो छोड़ो -
इस विश्वास,अविश्वास से भी कुछ नहीं होता 
सच कुछ भी नहीं  
शायद आत्मा की अमरता भी छलावा है 
सिर्फ छलावा !!!

43 टिप्‍पणियां:

  1. kash yeh jindgi apne hone ka sabab janti .kuch ham use mante kuch woh hame manti .......nice post

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  2. सच कुछ भी नहीं.....

    वाकई...शायद???

    उलझ गयी हूँ..

    सादर
    अनु

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  3. ये पंक्तियाँ, ये उदासी मैंने आपके शब्दों में पहली बार देखी है। आप तो वो हीरे की चमक हैं, जिनकी रौशनी से न जाने कितने लोगों का अंतस उज्जवल है ... और ये रोशनी छलावा नहीं, इसका यकीन है हमें।
    सादर
    मधुरेश

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  4. आवारा सड़कों से दूर
    सभ्यता से भरे कमरे में
    मैं ढूंढती रही वह लफ्ज़
    जो मुझे सुकून दे सके

    कहीं मेरे मन की आवाजें तो आप तक नहीं पहुँच गयीं ! ऐसा लगता है मेरे अंतर की प्रतिध्वनियाँ आपकी रचना से सुनाई दे रही हैं ! बहुत सुंदर !

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  5. ये क्या हुआ हुआ , कैसे हुआ , क्यों हुआ कब हुआ ....
    भूल कर भी हो मुश्किल भुलाना , यह जो याद था कि किसी को भुलाया !

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  6. इस विश्वास,अविश्वास से भी कुछ नहीं होता
    सच कुछ भी नहीं
    शायद आत्मा की अमरता भी छलावा है
    सिर्फ छलावा !!!

    बहुत बड़ी बात कह जी आपने...अनुभूतियों की इतनी गहराई में कैसे उतर जाती हैं आप..?

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  7. ये छलावा है याकि एक खूबसुरत मजाक हमसे..

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  8. ऐसे लम्हात आते है कि एक धुंधलका सा आता है लेकिन वो हट भी जाता है. आखिर वो सच है, झूठ नहीं. सत्य , सत्य है अचल, अटल. दो शेर याद आ रहे हैं. एक श्री आदित्य पन्त का लिखा हुआ है और दूसरा कृष्ण बिहारी नूर का. आपसे साझा करता हूँ.

    लब-ऐ-खामोश में पिन्हा है कोई राज़ नहीं
    ज़िन्दगी साज़ है जिसमे कोई आवाज़

    रू-ब-रू आईने के होता हूँ तो दिखता है मुझे
    अजनबी शख्स जो हमशक्ल ओ हमआवाज़ नहीं

    (आदित्य पन्त )

    सच घटे या बढे तो सच न रहे
    झूठ की कोई इन्तेहा ही नहीं.

    (कृष्णा बिहारी नूर)

    गहरी रचना.

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  9. इस विश्वास,अविश्वास से भी कुछ नहीं होता
    सच कुछ भी नहीं
    शायद आत्मा की अमरता भी छलावा है
    सिर्फ छलावा !!!
    जब मन गहन निराशा में हो तो ऐसा लगना स्वाभाविक है ! आत्मा की अजर अमरता की बात ही छोड़िए उसे कुछ फर्क नहीं पड़ता हमारे मानने न मानने से लेकिन हमें बहुत फर्क पड़ता है ! आज हम है हमारे अपने है यह एक सत्य है कल नहीं होंगे यह भी एक सत्य है क्यों न आज के सत्य के साथ जिया जाय ...सच यही है !

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  10. माया ही तो है यह जीवन ...
    छल दृष्टि का दिखावा ...

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  11. इस उलझन से कोई परे नही है,बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.

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  12. छलावा एक मात्र मन है..और हम हैं कि उसी मन की माने जाते हैं..

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  13. आवारा सड़कों से दूर
    सभ्यता से भरे कमरे में
    मैं ढूंढती रही वह लफ्ज़
    जो मुझे सुकून दे सके
    ये तलाश कभी-कभी हर नज़र को होती है ... बेहद गहन भाव रचना के
    सादर

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  14. आत्मा है? नहीं है? यह तो शाश्वत प्रश्न है.निराशा में अपने अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है. भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार
    LATEST POSTसपना और तुम

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  15. सच कुछ भी नहीं
    शायद आत्मा की अमरता भी छलावा है
    कभी -कभी उलझ जाता है मन इन अनसुलझे सवालों में... गहन भाव... आभार

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  16. चलो छोड़ो -
    इस विश्वास,अविश्वास से भी कुछ नहीं होता
    सच कुछ भी नहीं
    शायद आत्मा की अमरता भी छलावा है
    सिर्फ छलावा !!!
    ..सच कहा आपने ..जिंदगी में इतना कुछ घटता है आँखों के सामने कि फिर विश्वास,अविश्वास में उलझ जाता है मन ...

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  17. मन इसी उलझन में उलझा रहता है....आभार

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  18. जब मन गहन निराशा में हो तो ऐसा लगना स्वाभाविक है !

    RECENT POST: जुल्म

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  19. sochne ko prerit karti hai... !! kaphi acha likha hai aapne...!!maano to sab kuch hai aur naa maano to kuch bhi nahi jindagi!!!!

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  20. aaj to di mere dil ki baat kah di ......pichhle kuch dinon se inhi ahsaason se gujar rahi hun aaj aapne unhein shabd de diya

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  21. तो न सन्नाटे बोलते हैं
    न शोर ही सुनाई देता है ...
    उपदेशकों की भीड़
    और तन्हा मन -

    बहुत गहरे अर्थ सुन्दर शब्दों में ढले हुए ।

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  22. Zindagi ke jis pahlu se hum gujar rhe hote hai shyad use hi sachhayi maan lete hain...uljhan to ye sabke man ki hai..
    Gahre bhav lie hue umda rachna.

    Sadar

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  23. शायद यह छलावा ही ज़िंदगी है जो जीने का हौंसला और निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा भी देती है साथ ही कहीं हम इसके आदि न हो जाएँ इसलिए वक्त बे वक्त छलती भी रहती है।

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  24. बहुत गहरी रचना.. दिल की गहराइयों में उतर जाती है!!

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  25. आवारा सड़कों से दूर
    सभ्यता से भरे कमरे में
    मैं ढूंढती रही वह लफ्ज़
    जो मुझे सुकून दे सके

    ...अंतस को छूती पंक्तियाँ...बहुत गहन प्रस्तुति, जीवन की तरह..

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  26. जब समय ठहरता है तो प्रकृति डुलाती है।

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  27. कभी कभी लफ्ज भी रूठ जाते हैं जिनसे कुछ सुकून मिलता है ... आपसे तो सब प्रेरणा लेते हैं .... यह छलावा सा क्यों भला ?

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  28. आत्मा है? या नहीं...? पता नहीं...
    पर...ज़िंदगी के ठहर जाने का दर्द....... कितना दर्दभरा...
    ~सादर!!!

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  29. आत्मा है? या नहीं...? पता नहीं...
    पर...ज़िंदगी के ठहर जाने का दर्द....... कितना दर्दभरा...
    ~सादर!!!

    जवाब देंहटाएं
  30. बहुत सुन्दर रचना!!!! गहरी रचना .. !!!

    जवाब देंहटाएं
  31. चीख बुझ गई है
    आग रुक गई है
    किसी का कोई इंतज़ार नहीं !
    मोह की बेड़ियाँ तो अब स्वतः खुलने लगी हैं

    जब ये बेड़ियाँ खुलने लगती है तो कितनी ही चीजें (जो शायद कभी थी ही नहीं) अदृश्य हुए जाती है
    सादर!

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  32. माया, मोह, मन, विश्वास और जिंदगी का छलावा. जिंदगी की का फलसफा ही इसमें समाहित है. सुंदर प्रस्तुति.

    नवसंवत्सर की शुभकामनाएँ.

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