दरवाजे रोज खोलती हूँ
फिर भी जंग लगे हैं
शायद - इसलिए कि -
मन के दरवाजे नहीं खुलते !!!
तभी, अक्सर
ताज़ी हवाओं का कृत्रिम एहसास होता है
दम घुटता है
कुछ खोने की प्रक्रिया में !
कुछ खोना नहीं चाहता मन
पर इकतरफा पकड़ भी तो नहीं सकता
और … मैं
प्रत्याशा की भोर में
खोलती हूँ सारे दरवाजे
बहुत शोर होता है
पंछी उड़ जाते हैं भयाक्रांत
मन की हथेली पर रखे दाने
रखे ही रह जाते हैं
.... सोचती हूँ,
बंद रहना,जंग खाना
अपनी विवशता का परिणाम है
या इनके हिस्से की नियति है यह !
वजह जो भी हो,
मैं हर दिन उम्मीदों की तलाश लिए
सोच की धुंध से लड़ती हूँ
ठंड लगने लगती है
शरीर अकड़ जाता है
मन कुम्हला जाता है
पर - मैं हार नहीं मानती !
बचपन से अब तक
आशाओं की चादर बड़ी घनी बुनी है
सिलाई उधड़े
- सवाल ही नहीं उठता !
जानती हूँ
मानती हूँ
रिश्ते बेरंग हों
तो उनको कोई शक्ल देना
बहुत मुश्किल है
अपनी जद्दोजहद से अलग
अपनों के सवालों की जद्दोजहद से भी गुजरना पड़ता है
बार-बार कटघरे में
एक ही जवाब देते-देते ऊब जाता है मन
साँचे में भी रखा रिश्ता
आकारहीन, बेशक्ल हो जाता है
और -
फिर,
अपना ही घर अजायबघर लगता है
चरमराते खुलते दरवाजे की आवाज से
माथे पर पसीना छलछला उठता है
....
कई बार सोचता है मन
कि आज धूप से कट्टी कर लूँ
पर - सुबह,दिन,शाम,रात से परे
जिंदगी खिसकती नहीं
उलझन ही सही -
वो भी ज़रूरी है
एक और दिन जीने के लिए
जी जाने की मुहर लगाने के लिए !!!
आशा और निराशा के बीच छुपी है कहीं जीवन जीते रहने की बस एक वजह .....!!वही तो चाहिए ...!!बहुत सुंदर उद्गार दी ....!!
जवाब देंहटाएंक्या कहूं..! सफल अभिव्यक्ति की प्रशंसा करूँ या कि अवसाद के इन पलों को भूल धूप-छाँव से मिठ्ठी करने की सलाह दूँ? समझ में नहीं आ रहा।
जवाब देंहटाएंसाधू साधू.....
जवाब देंहटाएंमन के जंग लगे किवाड़ों की चरमराहट उष्णता आने नहीं देती रिश्तों में !
जवाब देंहटाएंउदास सी रचना कुछ समय की अनुभूतियों में ही जन्मी होगी , शेष तो आशा का समन्दर है !
चित्र बहुत प्यारा है !
रिश्ते,
जवाब देंहटाएंबड़े अजीब होते है ये रिश्ते
न हम उनकी अपेक्षाओं पर
खरे उतरते है न वे हमारी
अब रिश्तों के साथ तो
कोई उपाय नहीं कुछ
करने का न कुछ होने का
अगर कुछ करना ही है तो
हमारे मन रूपी दरवाजे को
जंग लगने से बचाना है
ताकि सूरज की ताजी
किरणे भीतर आ सके … !
आज मन को छू गयी यह रचना !
दरवाजा खोलना
जवाब देंहटाएंऔर वो भी रोज
जरूरी भी तो होता है
क्या पता किसी
दिन कोई सच में
आ जाये हवा
बनकर और
बंद दरवाजा
पा लौट जाये
आता नहीं है
कोई भी कभी
फिर भी हाथ
में मुहर रख
इंतजार करने
में भी कोई
बुराई नहीं है :)
दरवाज़े कितने अजीब होते हैं न रास्ता बनाते भी हैं और बंद भी करते हैं | गहन भाव |
जवाब देंहटाएंअंत भला तो सब भला
जवाब देंहटाएंसमय गुजर जाता है
यादें दामन मे देकर
हार्दिक शुभकामनायें
बार-बार कटघरे में
जवाब देंहटाएंएक ही जवाब देते-देते ऊब जाता है मन
साँचे में भी रखा रिश्ता
आकारहीन, बेशक्ल हो जाता है
और -
फिर,
अपना ही घर अजायबघर लगता है !
आपकी लेखनी से निकल हर शब्द नये अर्थों को जीने लगता है और पहले से अधिक मूल्यवान हो जाता है ! बहुत सुंदर रचना !
मन कुम्हला जाता है
जवाब देंहटाएंपर - मैं हार नहीं मानती !
बचपन से अब तक
आशाओं की चादर बड़ी घनी बुनी है
सिलाई उधड़े
- सवाल ही नहीं उठता !
ये ज़ज्बा यूँ ही क़ायम रहे .... आमीन !!!!
ठंड लगने लगती है
जवाब देंहटाएंशरीर अकड़ जाता है
मन कुम्हला जाता है
पर - मैं हार नहीं मानती !
बचपन से अब तक
आशाओं की चादर बड़ी घनी बुनी है
सिलाई उधड़े
- सवाल ही नहीं उठता !............लाजवाब.......
dil ke anginat bhaw chhupe hain ...aapki is rachna me rashmi jee ....
जवाब देंहटाएंमैं हर दिन उम्मीदों की तलाश लिए
जवाब देंहटाएंसोच की धुंध से लड़ती हूँ
ठंड लगने लगती है
शरीर अकड़ जाता है
मन कुम्हला जाता है
पर - मैं हार नहीं मानती !
...सच जब तक साँस तब तक आस नहीं छोड़नी चाहिए इंसान को ,,..
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना ..
अपने आप रातों में/चिलमनें सरकती हैं
जवाब देंहटाएंचौंकते हैं दरवाज़े/सीढियाँ धड़कती हैं!!
अपने आप!!
/ चाहे कितना भी ज़्नग लगा हो मन के दरवाज़ों में... आशा अपने आप सारे दरवाज़े खोल देती है!!
बहुत गहराई से आप भावो6 को अभिव्यक्त करती हैं!!
आशा और निराशा के बीच झूलते रिश्ते कभी बन जाते हैं अवसाद और कभी आशा जीने की..आशा और निराशा के बीच झूलती रिश्तों का कटु सत्य दर्शाती बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंउलझन ही सही -
वो भी ज़रूरी है
एक और दिन जीने के लिए
जी जाने की मुहर लगाने के लिए !!!
...और शायद यही जीवन का सत्य है...
nishabd hoon
जवाब देंहटाएंप्रत्याशा की भोर में
जवाब देंहटाएंखोलती हूँ सारे दरवाजे
बहुत शोर होता है
पंछी उड़ जाते हैं भयाक्रांत
मन की हथेली पर रखे दाने
रखे ही रह जाते हैं..................
अतिसुन्दर दी......
सादर
अनु
इतना कुछ हो जाने पर भी मन उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ता और छोड़ना भी नहीं चाहिए ....गहन भाव लिए बहुत ही सुंदर भवाभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंकई बार सोचता है मन
जवाब देंहटाएंकि आज धूप से कट्टी कर लूँ
पर - सुबह,दिन,शाम,रात से परे
जिंदगी खिसकती नहीं
उलझन ही सही -
वो भी ज़रूरी है
एक और दिन जीने के लिए
जी जाने की मुहर लगाने के लिए !!!
इसी से मिलती जीवन को निरंतरता ...बहुत सुन्दर !
New post Arrival of Spring !
सियासत “आप” की !
हर दिन जीने का आग्रह, जीवन जीने की संवेदना
जवाब देंहटाएंउलझन ही सही -
जवाब देंहटाएंवो भी ज़रूरी है
एक और दिन जीने के लिए ....bahut sunder !
बेहतरीन अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंमन के बंद दरवाजों पर भले ही जंग लगा हो पर आप रोज़ भोर होते ही खोलने का प्रयास करती हैं चरमराहट की आवाज़ भले ही आये पर खुल तो जाते हैं दरवाज़े .... और उम्मीद की किरण मन को कर देती है उत्साहित . बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआशा ओर निराशा के बीक ह भी जीवन है जो चलता रहता है ...
जवाब देंहटाएंजीवन के हर गुजरते पलों में आशा और निराशा का संचार होता है
जवाब देंहटाएंजूझना तो पड़ता है-----आशा और निराशा कि पड़ताल करती अनुभूति-----
जीवन में संघर्ष किन किन रूपों में सामने आता है, पर इनके आगे न झुकना ही जीवन है...
जवाब देंहटाएंबचपन से अब तक
आशाओं की चादर बड़ी घनी बुनी है
सिलाई उधड़े
- सवाल ही नहीं उठता !
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना, बधाई.
जो कुम्हला जाये उसी का नाम तो मन है..मन तो अपना काम ठीक से ही करता है..हम ही हैं वह कमल जो कभी नहीं कुम्हलाता..
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