27 मार्च, 2008

रहस्यमयी.....



उम्र कोई हो,
एक लड़की-
१६ वर्ष की,
मन के अन्दर सिमटी रहती है...
पुरवा का हाथ पकड़
दौड़ती है खुले बालों मे
नंगे पाँव....
रिमझिम बारिश मे !
अबाध गति से हँसती है
कजरारी आंखो से,
इधर उधर देखती है...
क्या खोया? - इससे परे
शकुंतला बन
फूलों से श्रृंगार करती है
" बेटी सज़ा-ए-आफ़ता पत्नी" बनती होगी
पर यह,
सिर्फ़ सुरीला तान होती है!
यातना-गृह मे डालो
या अपनी मर्ज़ी का मुकदमा चलाओ ,
वक्त निकाल ,
यह कवि की प्रेरणा बन जाती है ,
दुर्गा रूप से निकल कर
" छुई-मुई " बन जाती है- यह लड़की!
मौत को चकमा तक दे जाती है....
तभी तो
"रहस्यमयी " कही जाती है...!

14 टिप्‍पणियां:

  1. "वक्त निकाल ,
    यह कवि की प्रेरणा बन जाती है ,
    दुर्गा रूप से निकल कर
    " छुई-मुई " बन जाती है यह लड़की"

    बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ है..
    नारी के बहुआयामी विकास यात्रा का सुन्दर और सटीक चित्र खीचा है आपने.

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  2. यह कवि की प्रेरणा बन जाती है ,
    दुर्गा रूप से निकल कर
    " छुई-मुई " बन जाती है- यह लड़की!
    मौत को चकमा तक दे जाती है....
    तभी तो
    "रहस्यमयी " कही जाती है...!
    bahut hi khubsurat,sach kaha solahawa sawan har umar mein saath hotahai,very beautiful

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  3. एक बेहतरीन शब्द चित्र का नमूना. बधाई.

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  4. यह कवि की प्रेरणा बन जाती है ,
    दुर्गा रूप से निकल कर
    " छुई-मुई " बन जाती है यह लड़की!
    मौत को चकमा दे जाती है....
    तभी तो
    "रहस्यमयी " कही जाती है..

    बहुत सुंदर रचना

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  5. rashmi jee, hamesha kee tarah bahut gehree baat bahut hee saralta se aur ek alag andaaz mein keh dee aapne.

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  6. भावनाओं का अनोखा संगम…
    रहस्य के भीतर एक मासूम लड़की को दिखा दिया।

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  7. रश्मि आपने तो सारा रहस्य बहुत ही आसानी से बयां कर दिया । उम्मीद से उन्दा लिखा है आपने। तहे दिल से शुक्रिया आपका।
    शुद्ध और तीव्र गति है इसमें। बधाई आप को।

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  8. di kaun hai ye rahasymayee....par jo bhi hai shrashti ka sara rahasy swayam main samete hue hai......adbhut kavita bade hi saral andaaj main

    .....ehsaas!

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  9. bahut bahut achhe shabd

    tum ne akash ko giraftar kar liya hai
    chand tumahree kavita kee chakree karata hai sitare shabd ban jate hain aur kya kahoon?

    Anil

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  10. रहस्यमयी........... बहुत ही प्रभावशाली रचना है..... एक नारी की पूरी जीवन यात्रा आपने चन्द शब्दों में बयां कर दी है ........ उम्दा कृति है यह, इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई रश्मि जी ........

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  11. मेरा ख्याल है कि ये भी एक अपराध है जब हम
    महिला और पुरुष को अलग अलग करके देखते हैं.आज देखा जाए तो पुरुषों की भी हालत बैसी है, अगर आप सोचते हैं कि शादी औरत के लिए सजा है तो उस पुरुष के लिए भी सजा है जिससे उसकी शादी होगी,अपनी पसंद का जीवन न तो औरत को नसीब होता है न मर्द को.. तो ये रोना क्यों.

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  12. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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