31 अक्टूबर, 2009

कंजूसी कैसी??????????


आपने 'गोलमाल' फिल्म देखी है? उत्पल दत्त का इरीटेशन याद है? नहीं?- तो फिर देखिये ........हाँ,हाँ जिसके नायक अमोल पालेकर थे.
फिल्म बहुत अच्छी है,आपका भरपूर मनोरंजन करेगी,लेकिन इस लेख के द्बारा मैं इस फिल्म को प्रमोट नहीं कर रही हूँ, बल्कि उत्पल दत्त के ऐक्शन को याद कर रही हूँ......उनका " ईईईईईईईईईईईईईईईईईईई " करना आजकल मेरे दिमाग में चलने लगा है.
हम,आप, वे, वो लिखते हैं, बदले में प्रतिक्रया यानि 'टिप्पणी' पाते हैं........बहुत अच्छा लगता है यह देखना कि हमें इतने लोग पढ़ते हैं !!!!!!!!!!!!
पर कई टिप्पणियों को देखकर प्रतीत होता है( जो सच भी है) कि खानापूर्ति की गयी है ..........
'बहुत सुन्दर-बधाई'- बधाई !? इस बधाई ने मुझे हताश कर दिया , इस नज़्म के लिए बधाई क्यूँ? ........मेरी बेटी ने कहा ' दिमाग अभी भी चल रहा है, इसकी बधाई' !
'उम्दा', 'सुन्दर', 'नाइस '.............माना वक़्त कम है,माना सारी रचनाएँ दिल तक नहीं जातीं,पर जिन रचनाओं में दम होता है,संजीदगी होती है, समय की गहरी नाजुकता होती है-उस पर अपनी सहज अभिव्यक्ति को कैसे रोक सकते हैं ! अरे भाई, ईश्वर ने कलम की ताकत दी है, शब्दों की थाती दी है,
कंजूसी कैसी??????????

28 अक्टूबर, 2009

भावनाओं के राग !



शब्द-
एक देश से दूसरे देश
एक शहर से दूसरे शहर
एक दिल से दूसरे दिल तक जाते-जाते
या तो अपने अर्थ
अपनी गरिमा खो देते हैं
या फिर निखर जाते हैं .........
भावनाओं को देखना-समझना
आसान नहीं होता !
जिस पात्र को
हम धरोहर समझते हैं
कई जगहों पर
उसका कोई मूल्य नहीं होता !
पर कवि-
जो भावनाओं के गलीचों से गुजरता है
वह
भावशून्य कैसे हो सकता है !
खूबसूरत भावनाओं की बारिश में
वह अन्भीगा कैसे रह सकता है
शुष्क,सपाट,सतही कैसे हो सकता है !
माना-
समुद्र की लहरें आम तौर पर
शोर करती हैं
अति वर्षा विभीषिका लाती है
........
पर जब नन्हीं बूंदें
गर्म धरती पर
टप से गिरती हैं
तो किसान का घर
सोंधे राग सुनाता है .........



22 अक्टूबर, 2009

मेरी नज़्म............


मेरी नज्मों ने तुम्हें आवाज़ दी है
ओस की तरह तुम आओ
सुबह की पहली किरण में तुम्हें देखूं
आंखों में काजल बनाकर
दिन गुजार लूँ
फिर शरद चांदनी में
तुम्हारी राह देखूं..........!
मेरी नज्मों ने तुम्हें आवाज़ दी है
पर्वतों पर
बादल बन उतर आओ
छू जाओ मुझे
मैं भीग उठूं
फिर तुम
इन्द्रधनुष बन जाओ
और मेरी नज्मों को
सात रंगों की बानगी दे जाओ...........!
मेरी नज्मों ने तुम्हे आवाज़ दी है
अगर की सुगंध में बस जाओ
मेरी पूजा का प्रसाद बन
मुझे आशीष दो
मंत्र बनकर मेरे अन्दर
मुखरित हो जाओ.............!
मेरी नज्मों ने आवाज़ दी है
तुम मेरी नज़्म बन जाओ !!!!!!!!!!!!!!!!!

16 अक्टूबर, 2009

सफाई अभियान और लक्ष्मी का स्नेह,प्रकोप !


(तमाम सुधिजनों को दीपावली की शुभकामनाओं के साथ एक सत्य की सौगात )

साप्ताहिक योजना में
घर की सफाई हो रही है
हर कोने की गन्दगी हटाई जा रही है
छोटी-बड़ी हर दुकानें
सज गई हैं
एक साल की धूल हटाकर
लक्ष्मी की प्रतीक्षा है सबको !
.............................................
पर जो गंदगियाँ पोखर,तालाबों,
नदियों,पहाड़ों, सड़कों के किनारे हैं
उनका क्या होगा?
जो ईर्ष्या,द्वेष,घृणा,उपेक्षा की परतें
हमारे अन्दर हैं
उनका क्या होगा?
इन गंदगियों को पारकर
लक्ष्मी कैसे आएँगी?
क्यूँ आएँगी?
............................
साप्ताहिक सफाई का
सारा नज़ारा लक्ष्मी ने भी देखा है
मंद मुस्कान लिए
मन की परतों को भी जाना है
दीये की लौ
कितनी ईमानदार है
और कितनी भ्रष्ट....
सबकुछ पहचाना है !
.........जहाँ ईमानदारी है
वहां लक्ष्मी वैभव बनकर आएँगी
भ्रष्टाचार की दुनिया में
जहाँ उनको उछाला जाता है
वहां तांडव ही करके जाएँगी !
पटाखों की शोर में
स्व की मद में
शायद तुम्हें अभी पता न चले
पर सारा हिसाब लक्ष्मी करके जाएँगी
चुटकी बजाते
दीवालेपन की घंटी बजाकर जाएँगी !

13 अक्टूबर, 2009

सिर्फ ख्याल




ख्याल ही ...
हमारा संचित धन है ,
उसी से ख़ुशी मिलती है,
आंसू मिलते हैं,
भूख मिटती है....
ख्यालों में सबकुछ
कभी अपना,
कभी जुदा होता है !
ज़िन्दगी तो अक्सर
रेत की तरह फिसलती रहती है,
ख्यालों का दामन ना पकड़ें
तो फिर गूंगे , बहरे हो जाएँगे
ख्याल अपने होते हैं,
सिर्फ अपने......

11 अक्टूबर, 2009

हम....यानि मैं और तुम !




हम साथ चले.....
एक धरती तुम्हें मिली
एक मुझे !
एक आकाश तुम्हे मिला
एक मुझे !
.....मैंने अपनी पूरी धरती को
स्नेहिल कामनाओं से सींचा
प्यार के खाद से
उसे उर्वरक बनाया.......
अपनी पसंद से अधिक
तुम्हारी पसंद का ख्याल किया !
फसल हुई
तो बराबर का हिस्सा किया....
फसल देते वक़्त
उम्मीद भरी नज़रों से
मैंने तुम्हे देखा....
तुम मुंह बिचकाए
मेरे जाने के इंतज़ार में थे !
मैंने तुम्हारी धरती की तरफ देखा
सारी फसल तुम्हारी थी !
मैं कीमत का आकलन करने में
असमर्थ रही
तुम धनाढ्य लोगों में गुम रहे !
यादों को
रिश्तों को
सिर्फ मैंने जीया
तुम तो वर्तमान की पुख्ता धरती पर
'स्व' तक सीमित रहे
मैंने खोया
तुमने पाया !..........
जीवन की शाम है
धरती का एक टुकडा मुझे मिलेगा
तो निःसंदेह
तुम भी एक टुकड़े के ही भागीदार होगे
पर तुम -
अकेले रहोगे,
मेरे साथ -
मेरे सुकून के आंसू होंगे !


08 अक्टूबर, 2009

पगडण्डी


समय कहता रहा,
हम सुनते रहे
कब शब्द उगे हमारे मन में
जाना नहीं
सुबह जब अपने नाम के पीछे
पड़े हुए निशानों को देखा
तो जाना-
एक पगडण्डी हमने भी बना ली !

05 अक्टूबर, 2009

तूफ़ान और मंद हवाएँ............




सोच के तूफानों ने कहा
-क्या जीकर करना !
चलो,
इन तूफानों में ही दम तोड़ लें ....
मैं अवाक !
मेरी कलम-
मेरी ऊर्जा,मेरी जिजीविषा बन साथ है....
सुनते ही,
तूफानों ने रुख मोड़ लिया
मंद हवाएँ बहने लगीं !

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...