उफ़ ये गर्मी !
शब्द भी बीमार हो गए हैं
डिहाईडरेशन के शिकार हो गए हैं
सर उठाते तो हैं
पर निढाल लुढ़क जाते हैं ...
एलेक्ट्रोल पिलाया है
दही सफगोल भी दिया है
निम्बू पानी तो भरपूर
फिर भी आँखें थोड़ी खुली
थोड़ी बन्द सी हैं शब्दों की
तीमारदारी ज़रूरी है
वरना बातों का क्रम रुक जायेगा
गलतफहमियां लू की तरह झुलसाने लगेंगी
और गर्मी के मारे हम अजनबी हो जायेंगे
कच्चे आम ले आई हूँ
इसे भी आजमाना है
शब्दों को बचाना है
कुछ कहना है और सुनना है ...
हर बात आपकी ख़ास है... बहुत दिनों से आपकी कविता का इन्तजार था... आयी तो नई ताजगी के साथ... नए विषय पर... आपने हम सबके शब्दों को बचाने का उपाय बता दिया... सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंगलतफहमियां लू की तरह झुलसाने लगेंगी
जवाब देंहटाएंऔर गर्मी के मरे हम अजनबी हो जायेंगे
thik kaha mummy ji garmi to bahut hi hai...
मम्मी जी.... बहुत नायाब और शानदार अंदाज़ में लिखी बहुत ही खूबसूरत कविता.....
जवाब देंहटाएंशीतलता प्रदान करती हुई रचना
जवाब देंहटाएंउफ़ ...गर्मी का ये हाल
जवाब देंहटाएंइंसान तो इंसान
शब्द भी हो गए बेहाल.
कच्चे आम का पन्ना ,
और निम्बू पानी
शायद
शब्दों को मिल जाये
फिर से रवानी.....
बहुत बढ़िया नज़्म है...बिलकुल नया प्रयोग...
दीदी ,
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम, मेरी इच्छा आप की इस कविता पे कोई प्रतिक्रिया प्रदान करने की नहीं हुई क्योकि ये रचना आप के हर बार की तरह उम्दा रचना नहीं लगी , क्षमा चाहुगा .
सादर
बिकल-बेकल मन है, गर्मी से इस बार
जवाब देंहटाएंपारा भी कर गया है हद को ही पार॥
गर्मी तो ऐसी है पूछिए मत!
ना जाने कैसी है पूछिए मत!
बहुत सही लिखा है!
bahut sundar!!अक अलग ही अंदाज मे रचना प्रस्तुत की है।बधाई।
जवाब देंहटाएंक्षमा की क्या बात, हम अपनी सोच के साथ ही चलते हैं भाई....जो ना अच्छा लगे, तो सही है, सच ही कहना न
जवाब देंहटाएंshabo ko har haal mein geeto mein pirona hai..... sandesh deti kavita.......
जवाब देंहटाएंवाह! क्या बात है ! आप जैसे चिकित्सक के रहते शब्द कभी बीमार नहीं हो सकते !
जवाब देंहटाएंअरे दीदी ,गर्मी में ये कविता कुछ यूँ लगी जैसे शब्दों को शहद ,केसर ,चन्दन और खस का शरबत पिलाया हो ,खूब
जवाब देंहटाएंji bahut badhiya...
जवाब देंहटाएंkunwar ji,
बहुत शीतलता मिली
जवाब देंहटाएंकच्चे आम और पुदीने का असर तो होगा ही.
बेहतरीन रचना
kavita padaker garmi ki bhayankta ka ahsas hota hai achchhi kavita
जवाब देंहटाएंहां क्या पता किस गर्मी से क्या हो जाये??
जवाब देंहटाएंVaah .. Jhulsaati huyi garmi ka chitr khainch diya hai aapne ... bahut hi nayaab andaaz hai is rachna ka ...
जवाब देंहटाएंगर्मी पर क्या खूब रचना कही है आपने ...सच ये गर्मी तो जान लेवा है...हमारे बचपन में रेडिओ पर ये गीत गर्मियों में अक्सर बजा करता था...किसने लिखा ये तो पता नहीं लेकिन उसके बोल कुछ यूँ थे...
जवाब देंहटाएंगर्मी आई गर्मी आई
गर्मी आई गर्मी आई
आग बरसती
लू है चलती
गरम तवे सी
धरती जलती
गर्मी आई
गर्मी आई
नीरज
गलतफहमियां लू की तरह झुलसाने लगेंगी
जवाब देंहटाएंऔर गर्मी के मरे हम अजनबी हो जायेंगे
....garmee se raahat ke upaay abhivyakt karatee rachanaa ... prabhaavashaalee rachanaa !!
garmiyon ki taklife aur rahat dono ka ahsaas karati ek anokhi rachna ,sach behad garmi hai ,tan man sab jhulsh rahe hai .
जवाब देंहटाएंवाह वाह कच्चे आमो की चटनी खाये, ओर फ़िर सुंदर जी कविता पर छाये... हमारे यहां तो अभी भी सर्दी है, लेकिन भारत की गर्मी का सुन कर इस सर्दी मै भी पसीने आते है, भगवान ना करे कभी आ कर रहना पडा तो क्या होगा.....
जवाब देंहटाएंab apki kavita aayi hai blog pr to shbdon ki tabiyat to durust honi hi hai
जवाब देंहटाएंuff !!! sach mein itni garmi hai..
जवाब देंहटाएंmain abhi shimla mein hoon lekin pichle kuch saalon ki apekha is baar garmi sabse jyada hai..
bilkul hi parishthiti ke anukul kavita likhi hai...
yun hi likhte rahein
regards
http://i555.blogspot.com/
शब्दों को मिल जाये
जवाब देंहटाएंफिर से रवानी.....
गर्मी के बहाने शब्द साधना ! अति सुंदर और सामयिक रचना के लिए बधाई !
bahut garmi hai bakai...bachav jaruri hai
जवाब देंहटाएंवाकई में इतनी गर्मी है की सबका हाल बहुत ही बुरा है! बहुत ही सुन्दर, शानदार और उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंशब्दों को बचाना है ...
जवाब देंहटाएंलू से ...कैरी लेकर आई हैं ...
अब तो बच ही जायेंगे ...क्या शक है ...!!
यह तो शब्दों की किस्मत है
जवाब देंहटाएंऐसी प्यासी नारी के चित्र के नीचे झुलस ही न जाएंगे..!
Garmee ka sundar chitran---kam shabdon kee lekin sashakt kavita.
जवाब देंहटाएंbahut hi saamayik kavita...sab behaal hain is garmi to shabd kyun nahi..
जवाब देंहटाएंशब्दों को बचाने का सुंदर उपाय बता दिया... सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसुनों गोर से पेपसी वालों,
जवाब देंहटाएंबुरी नज़र न कोक पे डालों,
चाहे जितना डियू पिलालों,
सबसे आगे होगा नीम्बू पानी....नीम्बू पानी...
हमने पिया है, तुम भी पिओ.....
"इस सुन्दर पेशकश के साथ गर्मी पर अपनी बात रखने का मुझे आपने ये अवसर दिया और हम भी थोड़ा झूम लिए."
सच कहा रश्मि जी इस गर्मी ने सबको डीहाईड्रेट कर दिया है... कोई उपाय तो करना ही होगा इन शब्दों को बचाने के लिये :-)
जवाब देंहटाएंएक अलग ढंग की कविता है ! पढके मज़ा आया ! हालाँकि देश से दूर हूँ, इस गर्मी का मज़ा नहीं ले पा रहा हूँ पर कल्पना कर सकता हूँ ... और कच्चे आम की शरबत का वो स्वाद ... आहा ... क्या कहने ...कभी न कभी तो फिर मिलेगा !
जवाब देंहटाएंनये बिंबों का अद्भुत प्रयोग है मुझे तो पसंद आया..
जवाब देंहटाएंAapne ne timely glucose chadha diya.... jab tak aise doctors hai shabd to door kisi harf ki kya mazaal to beemar ho jaaye :-)
जवाब देंहटाएंक्या बात है.......
जवाब देंहटाएंलू चली तो पर आपके शब्द बचाते गये.....
very nice di,
जवाब देंहटाएंशब्दों का दर्द कोई सह्रदय कवि मन ही समझ सकता है. भाव के मानवीकरण के सहारे आपने गर्मी का जो चित्र खींचा है ,सराहनीय है.
जवाब देंहटाएंSochta hoon niboliyon wala
जवाब देंहटाएंped aangan mein ek lagwa loon
Khoobsoorat kavita.... badhaai
priy Rashmi ji,
जवाब देंहटाएंaapke meri kavitao k prati jo vichar hai, uske liye bahut bahut Dhanyvaad....!
- nikita
http://love-you-mom.blogspot.com
यह अंदाजे बयां भी निराला है, अच्छा लगा पढना |
जवाब देंहटाएंइस बार तो मुंबई में भी गर्मी है । सुंदर कविता ।
जवाब देंहटाएंनेट की समस्या थी इसलिये ब्लाग जगत से दूर था
Garmi mein man ko thandak pahunchati behatreen rachna.....
जवाब देंहटाएंHaardik shubhkamnayne...
" गर्मी है " पढ़ी..
जवाब देंहटाएंअच्छी बन पड़ी है..
वाह ...वाह ...रश्मि जी खिलाइए खिलाइए कच्चे आम भी खिलाइए ...मैं भी ले आई हूँ आज .....!!
जवाब देंहटाएंजी इधर भी यही हाल है
जवाब देंहटाएंHi..
जवाब देंहटाएंShabdon ki jadugar se ab shabd chikitsak sa dekha..
Apne snehil sparshon se har shabd saheja sa dekha..
Garmi main sharbat se lekar thandai tak faile aap..
Shabdon ke dukh har baithe ho..
Har baithe unke santaap..
DEEPAK..
पेट गर्म होने पर सएसफगोल कॉम करता हक्या
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