16 मई, 2010

इस बार नज़र नहीं लगने दूंगी !



कितनी छोटी सी लड़ाई थी
पर हमारे चेहरे गुब्बारे हो गए थे
- महीनों के लिए !
जिद उस उम्र की
इगो का प्रश्न था
हार कौन माने !
पर उम्र का ही तकाजा था
या फिर ख़्वाबों का ...
हम हारे तो साथ साथ !
जाने कब इस हार की रुनझुन ने
कानों में धीरे से कहा - 'इसे प्यार कहते हैं'
.....
हम समझ पाते
सपनों में हकीकत के रंग भर पाते
तब तक...
आकाश काले मेघों सा स्याह हो गया
दिशाएं फूट फूटकर रोयीं
और प्यार के पन्ने खो गए !

बहुत ढूंढा उन पन्नों को
जिस पर हमने अपनी हथेलियों के
मासूम चित्र उकेरे थे
कुछ गीत गुनगुनाये थे
एक दूसरे की आँखों की ख्वाहिशें चित्रित की थीं

भटकन इतनी बढ़ी कि
मन विरक्त हो चला
लोगों के चेहरे उबाने लगे
और ...........

तभी हवा कानों में कह गई
'मैं हूँ' .... ये तुम थे
और देखते - देखते मेरे सारे खोये सपने
मुझसे खेलने लगे
और गुरुर से भरे अपने चेहरे को
मैंने छुपा लिया
--- इस बार किसी की नज़र नहीं लगने दूंगी !

56 टिप्‍पणियां:

  1. जिद उस उम्र की
    इगो का प्रश्न था
    हार कौन माने !

    बहुत सुन्दर .. अब ये जिद अक्सर हावी हो जाती है हँसते खेलते रिश्तों पर...

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  2. बहुत हि सुंदर रचना! काला टीका लगाना न भूलीये कही किसी कि नजर न लग जाये!

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  3. पता नहीं क्यूं, मुझे यह काफी दुख से लिपटे भावना का इजहार लग रहा है। दीदी, आप ठीक तो हैं ना...? आपकी लेखनी बिल्कुल जीवंत अभिव्यक्ति होती है।

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  4. Mummy ji.....सुंदर शीर्षक के साथ..... बहुत सुंदर रचना...

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  5. ये रचना मुझे पसंद आई है
    सादर,

    माणिक
    आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से जुड़ाव अपनी माटी
    माणिकनामा

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  6. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. भटकन बढती है तो मन विरक्त हो उठता है.
    लेकिन इस स्थिति में यह अंत सुखद सा रहा ..कि चेहरे में फिर से वो खुशी तो नज़र आई....खुद पर गुरुर हुआ..
    सच ...'एक संबोधन'एक आवाज़...सारा अहम ....सारी दूरियां मिटा गया!

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  8. जिद उस उम्र की
    इगो का प्रश्न था
    हार कौन माने !....
    ओर दोनो ही हार गये इगो जीत गई-
    बहुत सुंदर, धन्यवाद

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  9. इस बार किसी की नज़र नहीं लगने दूंगी.. आधिकारिक होने का कितना उम्दा सम्प्रेषण है.. सच है यदि कोई प्रिय व्यक्ति या वस्तु जीवन से जाने के बाद अचानक वापस मिल जाए तो ऐसे ही भाव निकलते होंगे दिल से... मन से..

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  10. बड़ी ही मनभावन कविता..पढ़ कर बचपन का वक्त याद आ जाता है जब बात-बात पर बहेन से लड़ाइयां होती थी..न बोलने की धमकियाँ होती थीं..मगर फिर भी बिना बोले नही रहा जाता था..सच.कविता को किसी की नजर ना लगे..

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  11. Hi..

    "Abki baar kisi ki nazar na lagne dungi".. kya ahsaas hain..

    Tujhse door gaya hoga jo..
    Dil wo chhod gaya hoga..
    Rishte ki jis door bandha wo..
    Kaise tod gaya hoga..

    Tum bhi ruthi us se hongi..
    Rutha wo bhi
    tumse hoga..
    Magar pyaar ka rishta dil ko..
    Fir se jod gaya hoga..

    Aaj wo tere pass hai aaya..
    Use nazar main bhar len fir se..
    Buri nazar se use bacha den..
    Use basa len ghar main dil ke..

    Sundar bhav..

    DEEPAK..

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  12. --- इस बार किसी की नज़र नहीं लगने दूंगी !
    खुद की नज़र से बचाना भी तो जरूरी है.
    बहुत सुन्दर रचना

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  13. एक लहर सी उठा देती है जब किसी की कोई रचना,तब अपने भावों ,विचारों को प्रकट किये बिना नही रह पाती.


    'तभी हवा कानों में कह गई
    'मैं हूँ' .... ये तुम थे
    और देखते - देखते मेरे सारे खोये सपने
    मुझसे खेलने लगे
    और गुरुर से भरे अपने चेहरे को
    मैंने छुपा लिया
    --- इस बार किसी की नज़र नहीं लगने दूंगी !'

    हम भी यही चाहते हैं कि कभी नजर ना लगे. गुरुर से क्यों ना भर उठेगा चेहरा ?
    'जब तुम मुझे अपना कहते हो,अपने पर गुरुर आ जाता है' है ना ?
    अच्छी लगी ये कविता,सच.
    कुछ समय से जो मुझे अंदर तक छू जाये वैसी कविता नही मिली मुझे आपके ब्लॉग पर.सामान्य,आम,शब्दों के हेर फेर करके कविता का रूप दे देने वाले आम कवियो की रचनाओ सी रचनाएँ थी. जिन्हें इतना क्लिष्ट कर दिया गया था कि भावों की खूबसूरती जाने कहाँ खो जाती थी .
    आती ,पढ़ती पर लोंगों के व्यूज़ पढ़ कर देखा किसी ने सच नही बोला.
    पिछले दिनों आपकी रचनाओं में'रश्मिप्रभा' की छाप नही थी,इसलिएबिना कुछ बोले चली जाती थी.
    ब्लॉग,कलम और लिखने की आजादी के नाम पर जो कुछ हो रहा है उससे डरती भी थी कि फिर मेरे विरुद्ध भी पोस्ट बना दी जायेगी,चाटुकार लोग बिना गहराई में गए कैसे २ कमेन्ट करने लग जायेंगे.
    बहुत विचलित हो जाती हूँ ये सब देख कर,पर आपको एक बार अवश्य कहूँगी-'रश्मिजी!बड़े बड़े साम्राज्य केवल इसीलिए नष्ट हो गए क्यों कि-सम्राट ये समझ ही नही पाते थे कि उसके इर्द गिर्द उसके शुभचिन्तक है या चाटुकार लोग ?
    आप चाहे तो इसे पोस्ट ना करें.
    प्यार
    इंदु

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  14. आपको जान लेने के बाद ये कविता बहुत सुन्दर लग रही है ....
    नजर से बचाने के लिए चेहरा छुपाने की जरुरत नहीं ...आपके इतने शुभचिंतक और एक " मैं हूँ " कभी नजर लगने ही नहीं देंगे ....

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  15. बहुत सुन्दर भावनाएं और उतनी ही सुन्दर अभिव्यक्ति ... रिश्ते में मनमुटाव. झगडे, और फिर प्यार ... ये तो होता ही है ... पर आपने उसे बड़े सुन्दर ढंग से कविता में ढाला है !

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  16. बहुत सुन्दर पोस्ट!
    कभी हमारे यहाँ भी पधारें
    और अपनी उपस्थिति से धन्य करें!

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  17. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति

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  18. बेहद ख़ूबसूरत कविता है रश्मि जी,
    बार बार पढने को जी चाहता है.

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  19. मनभावन कविता के लिए आभार.
    आनंद आ गया पढ़कर.

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  20. उम्दा और सार्थक सोच की प्रस्तुती के लिए धन्यवाद /

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  21. बहुत ढूंढा उन पन्नों को
    जिस पर हमने अपनी हथेलियों के
    मासूम चित्र उकेरे थे
    कुछ गीत गुनगुनाये थे
    एक दूसरे की आँखों की ख्वाहिशें चित्रित की थीं

    भटकन इतनी बढ़ी कि
    मन विरक्त हो चला
    लोगों के चेहरे उबाने लगे

    ...........ये रचना लाजवाब है ....तारीफ़ करना मुश्किल है ...एक शब्द में कहूं तो कहूँगा 'अविस्मरनीय'....सम्पूर्ण रचना सुव्यवस्थित ....कई बार पढ़े तो भी रूचि कम ना होगी

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  22. हृदय की भावनाएं सटीक शब्दों में ढालकर पेश की जाये, तो ऐसी ही खूबसूरत बन जाती है.

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  23. छुपा लीजिये... इस बार नज़र मत लगने दीजियेगा... वक़्त हर किसी को दोबारा मौका नहीं देता... रूठे हुए लोग यूँ इगो भुला कर कम ही वापस आते हैं...
    वो गुलज़ार साब ने एक बार कहा था ना
    उन्हें ये ज़िद थी के हम बुलाते
    हमें ये उम्मीद वो पुकारें
    है नाम होंठों पे अब भी लेकिन
    आवाज़ में पड़ गयीं दरारें

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  24. ईगो ... सच में प्रेम के साथ साथ ही आता है ... ख़ास कर जिससे आप प्रेम करे हो ... इसको लाड ... मनुवार कुछ भी कहो ... पर प्यार करने वाले के साथ आ ही जाता है ...

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  25. जाने कब इस हार की रुनझुन ने
    कानों में धीरे से कहा - 'इसे प्यार कहते हैं'
    _____________________________________

    अत्यंत सुन्दर रचना !

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  26. तभी हवा कानों में कह गई
    'मैं हूँ' .... ये तुम थे
    और देखते - देखते मेरे सारे खोये सपने
    मुझसे खेलने लगे
    और गुरुर से भरे अपने चेहरे को
    मैंने छुपा लिया
    --- इस बार किसी की नज़र नहीं लगने दूंगी ........bahut sundar. laajabaab.

    जवाब देंहटाएं
  27. 'तभी हवा कानों में कह गई
    'मैं हूँ' .... ये तुम थे
    और देखते - देखते मेरे सारे खोये सपने
    मुझसे खेलने लगे....
    सहज शब्दों का नया प्रयोग, नए vimb rach jaati hain aap aur kai kai sandarbh arth aapki kavita kehti hain... sunder rachna...

    जवाब देंहटाएं
  28. इस बार किसी की नज़र नहीं लगने दूंगी
    इन पंक्तियों मे रचना का सारा भाव सिमट आया है………………बहुत ही प्यारी दिल को छू लेने वाली रचना।

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  29. सुन्दर भावनाओं के साथ लाजवाब रचना ।

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  30. जिद उस उम्र की
    इगो का प्रश्न था
    हार कौन माने !
    ......कम शब्द मनोभावों की गहरी चित्रमय प्रस्तुति के लिए आभार

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  31. तभी हवा कानों में कह गई
    'मैं हूँ' .... ये तुम थे
    और देखते - देखते मेरे सारे खोये सपने
    मुझसे खेलने लगे
    और गुरुर से भरे अपने चेहरे को
    मैंने छुपा लिया
    --- इस बार किसी की नज़र नहीं लगने दूंगी

    बहुत प्यारी नज़्म.....बहुत पसंद आई

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  32. uss Jidd me bhi kahin pyar chhupa tha......:)

    tabhi to kisi ki naraj nahi lagne dene ki pukar ho rahi hai....:)

    sashakt rachna di!!

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  33. रश्मि जी,पहले तो सुन्दर प्रस्तुति की बधाई!
    मेरी समझ में "सच में" पर ऐसा कुछ भी नही हुआ कि आपके स्नेह से यह वंचित रहे!आपको पुनः आमंत्रण है, ’सच में’ पर www.sacmein.blogspot.com.
    सादर!_Ktheleo

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  34. कानों में धीरे से कहा - 'इसे प्यार कहते हैं

    Many times life has told this....but little too late. Anger has left stains on portrait of soul.

    And tears have not been bale to wash it clean.

    A beautiful poem. Thanks.

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  35. जिद उस उम्र की
    इगो का प्रश्न था
    हार कौन माने !
    i'm speechless .......y jid hi to hai ............... hai na ........ hats off

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  36. तुझ पर ही ख़त्म
    सारी काएनात होगी
    फिर ना कभी
    अब ये ज़लालत होगी....

    करेंगे ज़िक्र अबके
    कुछ इस अदा से तेरा
    ना तुझे ज़हमत होगी
    ना ज़माने को शिकायत होगी....

    खुद से ही किया करेंगे बातें
    होंगे जब तुझसे रु-बा-रु
    अलहदा समझने की तुझको
    अबके ना हमसे हिमाक़त होगी....

    ग़म हो या हो ख़ुशी
    बनाये रखेंगे एक-सी दुरी
    एक के नाम पर अबके
    ना दुसरे की शहादत होगी....

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  37. --- इस बार किसी की नज़र नहीं लगने दूंगी !...तब तो काला-टीका लगाना ही पड़ेगा..बेहतरीन प्रस्तुति..साधुवाद. सप्तरंगी प्रेम पर भी आपकी कविता पढ़ी...अद्भुत !!
    ___________
    'शब्द सृजन की ओर' पर आपका स्वागत है !!

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  38. आज एक अंतराल के बाद आया तो ब्लौग का नया कलेवर खूब भाया।

    इंदु जी की बातें गौर-तलब हैं मैम....

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  39. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना, अनुपम प्रस्‍तु‍ति ।

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  40. हर बार की तरह इस बार भी पढ़ कर चुप रह जा रहा हूँ !
    अदभुत !

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  41. बहुत ही ख़ूबसूरत, लाजवाब और मनमोहक रचना! बधाई!

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  42. पानी के कागजो जैसे चित्र बस ये झिलमिला से गए ....भाव पूर्ण सवेंदनशील रचना

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...