26 मार्च, 2011

तुम्हारे लिए !



वह सन्नाटा
जो तेरे दिल में नदी की तरह बहता है
उसके पानी से मैं हर दिन
अपने एहसासों का घड़ा भरती हूँ
उस पानी की छुवन से
मिट्टी से एहसास नम होते हैं
और तेरे चेहरे की सोंधी खुशबू
उस घड़े से आती है ...

दूर दूर तक खाली तैरती
तुम्हारी पुतलियों को
अक्सर मैंने छुआ है यह सोचकर
कि कुछ ना सही
मेरे स्पर्श की लोरी तो तुम्हें मिल जाये !

वो जिन यादों की पोटली खोल
तुम मुस्कुराते हो
उस मुस्कान को
और देर तक रखने की ख्वाहिश में
मैं धीरे से कुछ यादें
उस पोटली में छुपा आती हूँ ...

जब जब तुम्हें लगता है
तुम बदल गए हो
मैं बचपन की मोहक गलियों से
वह सारे सपने ले आती हूँ
जिनको मैंने जागकर बुने थे - तुम्हारे लिए !

पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे ..

सोचो यह कितनी बड़ी बात है
अकेले में इस जादू को
बस तुम देख सकते हो ...!!!

53 टिप्‍पणियां:

  1. पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
    प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
    तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
    और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे ..

    सोचो यह कितनी बड़ी बात है
    अकेले में इस जादू को
    बस तुम देख सकते हो ...!!!

    हर शब्‍द मां के दिल की आवाज ...और इस अनुपम रचना के लिये आभार ।

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  2. बहुत खूब रश्मि गुलजार जी की पंक्तियाँ याद आ गईं.. सुरीली अँखियों वाली...

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  3. बहुत भावपूर्ण रचना हमेशा की तरह...

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  4. पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
    प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
    तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
    और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे ..


    अद्भुत रश्मि जी..... बेमिसाल पंक्तियाँ

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  5. मन भीग गया ...
    मचल कर कहने का मन कर रहा है ...सिर्फ पुकारोगे क्यों , पुकारोगी क्यों नहीं !!..

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  6. सोचो यह कितनी बड़ी बात है
    अकेले में इस जादू को
    बस तुम देख सकते हो ...!!!bhut bari baat kahi hai aapne rashmi ji.....dil ko chhu gai aapki rachnaye....badhai

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  7. क्योंकि दोनों भाव हैं इसमें वाणी जी ... इसलिए बहुवचन है

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  8. माँ के दिल के भावो का सुन्दर चित्रण किया है।

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  9. माँ के हृदय को उड़ेल कर रख दिया है ....बहुत सुन्दर रचना

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  10. वह सन्नाटा
    जो तेरे दिल में नदी की तरह बहता है
    उसके पानी से मैं हर दिन
    अपने एहसासों का घड़ा भरती हूँ


    क्या बात है ... बेहतरीन कविता और कितने सुन्दर नरम एहसासों से सजी ...वाह !

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  11. पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
    प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
    तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
    और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे ..

    बहुत ही सुंदर और दिल को छू लेने वाली कविता |

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  12. पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
    प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
    तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
    और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे ..

    वाक़ई नायाब रचना.

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  13. जब जब तुम्हें लगता है
    तुम बदल गए हो
    मैं बचपन की मोहक गलियों से
    वह सारे सपने ले आती हूँ
    जिनको मैंने जागकर बुने थे - तुम्हारे लिए !... bhut hi acchi kavita hai...

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  14. आदरणीय रश्मि प्रभा जी
    नमस्कार !
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  15. पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
    प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
    तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
    और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे

    नायाब रचना.

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  16. उस मुस्कान को
    और देर तक रखने की ख्वाहिश में
    मैं धीरे से कुछ यादें
    उस पोटली में छुपा आती हूँ ...
    kitna achcha lagta hoga potli kholte men......akalpniye.

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  17. पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
    प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
    तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
    और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे
    ममता से लबरेज रचना.

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  18. पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
    प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
    तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
    और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे ..

    एक अद्भुत अनुभूति के लिए दिशा - इस शब्द से ही आत्मा जुड़ी होती है . ममता के इस स्वरूप के वर्णन के लिए बधाई.

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  19. rashmi ji,
    kaya kahun shabd nahi hai mere pas ...........bahut hi sunder.

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  20. बहुत सुंदर ओर भाव पुर्ण कविता जी, धन्यवाद

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  21. वह सन्नाटा
    जो तेरे दिल में नदी की तरह बहता है
    उसके पानी से
    मैं हर दिन अपने एहसासों का घड़ा भरती हूँ
    उस पानी की छुवन से मिट्टी से एहसास नम होते हैं
    और तेरे चेहरे की सोंधी खुशबू
    उस घड़े से आती है.

    रश्मि जी,आपकी लेखनी में जादू है....
    आपकी कविताएं मन को छूने में कामयाब रहती हैं |
    बधाई और शुभकामनाएं |

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  22. सोचो यह कितनी बड़ी बात है
    अकेले में इस जादू को
    बस तुम देख सकते हो ...!!!

    hameshaa ki tarah aapko namaskaar.. bahut badhiyaa..

    जवाब देंहटाएं
  23. दूर दूर तक खाली तैरती
    तुम्हारी पुतलियों को
    अक्सर मैंने छुआ है यह सोचकर
    कि कुछ ना सही
    मेरे स्पर्श की लोरी तो तुम्हें मिल जाये !

    माँ के मन की भावनाओं का बहुत संवेदनशील चित्रण..बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  24. पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
    प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
    तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
    और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे ..
    bahut khoob

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  25. ha sach kaha yeh adbhut abhivyakti ka jaadu dekhna bahut badi baat hai... ILu ...!!!

    जवाब देंहटाएं
  26. पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
    प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
    तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
    और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे ..

    सोचो यह कितनी बड़ी बात है
    अकेले में इस जादू को
    बस तुम देख सकते हो ...!!!
    dil khush kar diya is rachna ne ,bhav vibhor ho uthi ,kitni anmol hai ye ........waah

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  27. अद्भुत भावों को प्रस्तुत करती अद्वितीय रचना...
    पढ़ते वक़्त न सिर्फ माँ कि बल्कि उन सारी बड़ी जनों के चेहरे सामने आ गए जिन्होंने कभी-न-कभी प्यार जताया, सर पर हाथ रखा, अपने आँचल में जगह दी...
    आपको हार्दिक धन्यवाद...
    thank you so much badi maa... :)

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  28. ईश्वर का सबसे बड़ा जादू "माँ" ही हैं....बहुत उम्दा...

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  29. वात्सल्य रस में डूबी अंतस भिगोती हुई ,बहुत खूबसूरत रचना -
    बहुत अच्छी लगी -

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  30. वह सन्नाटा
    जो तेरे दिल में नदी की तरह बहता है
    उसके पानी से मैं हर दिन
    अपने एहसासों का घड़ा भरती हूँ.

    क्या बात है. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति.

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  31. माँ का एहसास ही अपने आप में परिपूर्ण है --बहुत सुंदर !

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  32. पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
    प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
    तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
    और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे ..

    बहुत सुंदर !

    .

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  33. हमें सदा से ही आपकी रचनाओ से कुछ मिल जाता है जिसे मई धरोहर की तरह रख लेता हूँ, एल बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए आप प्रशंसनीय है, वन्दनीय भी

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  34. आदरणीया रश्मि जी बहुत ही सुंदर सुकोमल भावों से लिखी गयी कविता के लिए बधाई |

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  35. आदरणीया रश्मि जी
    नमस्कार !
    उसके पानी से मैं हर दिन
    अपने एहसासों का घड़ा भरती हूँ.

    क्या बात है....बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति.

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  36. दूर दूर तक खाली तैरती
    तुम्हारी पुतलियों को
    अक्सर मैंने छुआ है यह सोचकर
    कि कुछ ना सही
    मेरे स्पर्श की लोरी तो तुम्हें मिल जाये !

    एक जीवनदायनी आशा का संचार ...आपका आभार

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  37. बहुत मनमोहक कविता, सभी माँ के मन की बात लिख दी आपने, बधाई.

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  38. वो जिन यादों की पोटली खोल
    तुम मुस्कुराते हो
    उस मुस्कान को
    और देर तक रखने की ख्वाहिश में
    मैं धीरे से कुछ यादें
    उस पोटली में छुपा आती हूँ ....

    कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ! ऐसी जादूभरी पोटली की दौलत सदैव बढ़ती रहे और बच्चों के चेहरों की मुस्कान कभी मंद ना हो यही प्रार्थना है ! इतनी अनुपम, अनूठी, अद्वितीय रचना के लिये बहुत बहुत बधाई रश्मि जी ! हार्दिक शुभकामनायें !

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  39. Rashmi ji.. aankh bheeg aayi... bahut sundar likha hai... man kar raha hai aisa pahaad mil jaye jahan jaa kar me itni jor se maaN kahun kee pratidhvaniya charo dishaon me gunj pade...aapka aabhaar is sundar rachnaa ke liye..

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  40. Rashmi ji.. aankh bheeg aayi... bahut sundar likha hai... man kar raha hai aisa pahaad mil jaye jahan jaa kar me itni jor se maaN kahun kee pratidhvaniya charo dishaon me gunj pade...aapka aabhaar is sundar rachnaa ke liye..

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  41. अद्भुत रचना के लिये बहुत बहुत बधाई... आभार

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...