02 अप्रैल, 2011

कल्पनाशील इन्सान



जब दिशाएं खामोश होती हैं
दूर दूर तक
कोई नज़र नहीं आता
तो इच्छा शक्ति
सरगम के बोल तैयार करती है
और हर दिशा से
खुद गाती है ...
कल्पनाशील इन्सान
कितना भी अकेला क्यूँ न हो
जानवर नहीं बनता
उसकी कल्पनाएँ उसे अदभुत बना देती हैं !

50 टिप्‍पणियां:

  1. कल्पनाशीलता ही मानव को अन्य जीव से अलग करती है . इक्षाशक्ति शायद इच्छा शक्ति होना चाहिए .आभार

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  2. 'कल्पनाशील इंसान

    कितना भी अकेला क्यूँ न हो

    जानवर नहीं बनता '

    **************

    सत्य वचन ....सुदर रचना

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  3. बहुत सुंदर भाव -
    जन्म जन्मान्तर से जो हमारी आत्मा आत्मसात करती चली आ रही है वो सगुन संस्कारों के रूप से हमारे साए की तरह हमारे साथ साथ चलता है और उसी के रहते हम स्वयं अपना मार्ग चयन करते हैं -
    अच्छा या बुरा करना तो अपने हाथ में ही है .
    सुंदर रचना .

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  4. कल्पनाशील इन्सान
    कितना भी अकेला क्यूँ न हो
    जानवर नहीं बनता
    उसकी कल्पनाएँ उसे अदभुत बना देती हैं !

    एकदम सच !
    अद्भूत !

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  5. दूर दूर तक
    कोई नज़र नहीं आता
    तो इच्छा शक्ति
    सरगम के बोल तैयार करती है

    एक सच है यह भी ...हर परिस्थिति में इच्‍छाशक्ति ही हमारा मार्ग प्रशस्‍त करती है ...।

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  6. कल्‍पनाशीलता ही शायद हमें इंसान बने रहने के लिए उकसाती रहती है।

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  7. कल्पनाशील होना कितना सुखद है ..बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  8. ** प्रत्येक व्यक्ति में अनेक कल्पनाएं छुपी होती है,जिन्हें जागृत करके ही व्यक्ति का जीवन सफल और सार्थक बन सकता है!!

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  9. बहुत सच्ची बात कही आप ने रश्मि जी
    मुझे अपना एक शेर याद आ गया कि

    तख्य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
    परिन्द जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं

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  10. स्तब्धता अद्भुत विचारों को जन्म देती है।

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  11. उसकी कल्पनाएँ उसे अदभुत बना देती हैं !

    अद्भुत बनना आसन है ..लेकिन कल्पना का प्रयोग सार्थक दिशा में किया जाना चाहिए ...आपका आभार

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  12. क्या खूब लिखा है…………कल्पनाये इंसान को कभी अकेला महसूस होने नही देतीं।

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  13. मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।

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  14. kalpnashakti , aatm-shakti hai aur param-shakti yani parmatma ki shakti ka hi swaroop hai ,bahut achha likha hai rashmi ji

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  15. कल्पनाये हलाकि शास्वत नहीं होती , मगर इंसान होने का सुबूत जरूर है... बेहतरीन शब्दांकन एवं अद्भुत भावनाएं बधाई

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  16. कल्पनाशील इन्सान
    कितना भी अकेला क्यूँ न हो
    जानवर नहीं बनता
    उसकी कल्पनाएँ उसे अदभुत बना देती हैं !

    कल्पना के संसार में अधिक समय तक जीना भी मुश्किल है. जब चीजें हकीकत के धरातल पर आती हैं तो सारे भ्रम तोड़ देती हैं.

    सुंदर कविता.

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  17. इस नज़्म का सन्देश...इच्छाशक्ति ही इंसान की सबसे बड़ी ताक़त होती है....यही जीने के बहाने ढूंढती है... निराशाओं से उबारती है...बहुत खूब!
    ---देवेंद्र गौतम

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  18. कल्पनाशील इन्सान
    कितना भी अकेला क्यूँ न हो
    जानवर नहीं बनता
    उसकी कल्पनाएँ उसे अदभुत बना देती हैं !
    ...bilkul sach kaha aapne..

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  19. संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...

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  20. absolutely Right! Fantasy ki duniya hi alag hoti hai ...Akelapan bhi rachnatmakta ko janm deta hai...is se khoobsoorat baat kya ho sakti hai

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  21. सन्देशप्रद रचना केलिए बधाई रश्मि जी.

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  22. कल्पनाशील इन्सान
    कितना भी अकेला क्यूँ न हो
    जानवर नहीं बनता
    उसकी कल्पनाएँ उसे अदभुत बना देती हैं !
    han...han....ekdam man ki baat kah di aapne ....

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  23. कल्पनाशील इन्सान
    कितना भी अकेला क्यूँ न हो
    जानवर नहीं बनता
    उसकी कल्पनाएँ उसे अदभुत बना देती हैं !

    बहुत दमदार बात.

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  24. हाँ...ये सच है की
    कल्पनाओं से इंसान जानवर नहीं बनता
    पर अधुरा है ये सच
    क्योंकि ये भी उतना ही सच है की
    कल्पनाओं से इंसान शैतान भी है बनता...
    हैवान जैसा है वैसा है
    वो ना शैतान बनता ना इंसान बनता
    और
    ना ही भगवान् बनने की फ़िक्र में है पड़ता...

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  25. कल्‍पनाशीलता ही शायद हमें इंसान बने रहने के लिए उकसाती रहती है... सुंदर कविता....

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  26. कल्पनाशील इन्सान
    कितना भी अकेला क्यूँ न हो
    जानवर नहीं बनता...
    रश्मि जी,
    ऐसी रचना की कल्पना...
    हम तो कायल हो गए आपकी कल्पनाशीलता के.

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  27. कल्पनाशील इन्सान
    कितना भी अकेला क्यूँ न हो
    जानवर नहीं बनता
    उसकी कल्पनाएँ उसे अदभुत बना देती हैं !

    bilkul sahi...sundar rachna

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  28. sach kha mam...veh insan hi kya jo jivan ki raah mei haar jaye...
    bahut shoobsurat...aabhar

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  29. उसकी कल्पनाएँ उसे अदभुत बना देती हैं !

    सच कहा .....बहुत सुंदर

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  30. हाँ, सही है..
    कल्पनाशील इंसान कभी तनहा नहीं रहता,

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  31. सच है अकेलेपन में भी इंसान की कल्पनाशक्ति संगीत खोज लेती है ...

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  32. कल्पनाशील इन्सान
    कितना भी अकेला क्यूँ न हो
    जानवर नहीं बनता

    बिलकुल सही कहा आपने दीदी ... कल्पनशील इंसान का मन कोमल होता है ... उसे जानवर बन्ने से रोकता है

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  33. वाह वाह वाह क्या बात अखी है आज तो..गज़ब..

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  34. उसकी कल्पनाएँ उसे अदभुत बना देती हैं
    Bahut khoob

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  35. क्यों मै खुद को अकेली मानूँ...मै तो खुद में
    परिपूर्ण हूँ ....खुद की विचारो की आंधियो में
    खुद से चरपरिचित...

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  36. kalpana ki koi seema nahi hoti.... kisi ko acha va bura uski soch bana beti hai varna hai toh sabhi bhagwaan ke bande... adbhut rachna jo prerna deti hai kuch acha karne ki... kuch acha sochne ki....

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  37. रश्मि जी बहुत सुन्दर कहा आप ने निम्न बधाई हो छोटी रचना किन्तु भाव भरी


    कल्पनाशील इन्सान
    कितना भी अकेला क्यूँ न हो
    जानवर नहीं बनता...

    शुक्ल भ्रमर ५

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  38. kalpnaa saty jeevan kaa
    kalpnaa sahaaraa jeevan kaa
    kalpnaa bimb hrdya kaa
    kalpnaa bin jeevan adhooraa
    nirantar bahaana jeene kaa

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  39. kalpnaayein hee naye raste dikhaatee
    nirantar jajbaa aur honslaa banaaye rakhtee
    binaa kalpnaaon ke insaan khud mein simat jaayegaa
    dheere dheere haad maas kaa putlaa bhar ho jaayegaa

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