तुम अटल पर्वत
मैं धरती ...
जब पानी वेग के साथ
चोट पहुंचाती
धृष्टता से
मेरी मिट्टियों को बहाने लगती है
मेरी आँखें निर्निमेष
तुम्हें देखती हैं ...
वही वेग तो तुम्हारे ऊपर भी है ...
पर तुम !
शांत स्थिर
आँखें मूंदे
अभिषेक की मुद्रा में
उस वेग की तीव्रता को
मुझतक नहीं पहुँचने देते
शिव की जटा सदृश्य
उसे अपनी अदृश्य जटाओं में
भर लेते हो ! -
मैं तो स्वतः
धरती से गंगा की पावनता में
ढल जाती हूँ
सागर की यात्रा पूरी करती हूँ
....
सागर के मध्य
तुम्हारे ही पदचिन्ह मुझे मिलते हैं
जिनको छूकर यात्रा पूरी होती है
जीवनक्रम की ....
सच है ऐसे ही पुरी होती है जीवन यात्रा,
जवाब देंहटाएंसच है ऐसे ही पुरी होती है जीवन यात्रा,
जवाब देंहटाएंजीवन यात्रा का बहुत बढ़िया शब्द चित्र.
जवाब देंहटाएंसादर
जीवनक्रम को सुंदरता से परिभाषित किया है ...लेकिन पर्वत भी तो पानी के वेग से टूटते हैं ...और बनते हैं रेत ...
जवाब देंहटाएंउनके अवशेष ही तो समुद्र में बनते हैं पदचिन्ह ! पर्वत होते हैं अडिग अविचल ही
जवाब देंहटाएंएक पूरी बहती यात्रा।
जवाब देंहटाएंसागर के मध्य
जवाब देंहटाएंतुम्हारे ही पदचिन्ह मुझे मिलते हैं
जिनको छूकर यात्रा पूरी होती है
जीवनक्रम की ....
आध्यात्मिकता से पूर्ण बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति |
वाह! क्या सुन्दर चिंतन है.पर्वत और पृथ्वी के बीच क्या अटूट रिश्ता है.
जवाब देंहटाएंमैं धरती से गंगा की पावनता में ढल जाती हूँ ...
जवाब देंहटाएंधरती के क्षरण को रोकने के लिए पहाड़ जैसी दृढ़ता ही तो चाहिए !
पहाड़ बिखरता भी है तो उसके अवशेष पदचिन्ह बन समंदर में मौजूद होते हैं ...
अनूठे बिम्ब !
parvat ka bahut sunder chitran
जवाब देंहटाएंyahi to jiwan yatra hai...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक लिखी गयी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी अद्भुत है.....
जवाब देंहटाएंबिलकुल नयी खनक है. कविता की सुंदरता देखते ही बनती है, अंग-अंग तराशा हुआ है और प्रभाव चोटी से लेकर तलहटी तक. कविता की अंतिम पंक्तियाँ विश्व की सारी कोमलता और विनम्रता समेटे हुए है.
जवाब देंहटाएंसागर के मध्य
जवाब देंहटाएंतुम्हारे ही पदचिन्ह मुझे मिलते हैं
जिनको छूकर यात्रा पूरी होती है
जीवनक्रम की ....
जीवन कथा कहती हुई ...बहती हुई ...आध्यात्मक अनुभूति से भरी अनुपम रचना ....!!
बहुत सुंदर |
rashmi di
जवाब देंहटाएंbahut hi gahan abhivykti
सागर के मध्य
तुम्हारे ही पदचिन्ह मुझे मिलते हैं
जिनको छूकर यात्रा पूरी होती है
जीवनक्रम की ....
sateek avam sarthak is prastuti ke
liye aapko hardik abhnandan
avam badhai
poonam
bahut sundar hai
जवाब देंहटाएंसागर के मध्य
तुम्हारे ही पदचिन्ह मुझे मिलते हैं
जिनको छूकर यात्रा पूरी होती है
जीवनक्रम की ....
जीवनयात्रा को बहुत सुन्दरता से परिभाषित किया है।
जवाब देंहटाएंआध्यात्मक अनुभूति से भरी अनुपम रचना ....!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !!
प्रतीकात्मक रूप में बहुत गहरी बातें कह दीं। बधाई।
जवाब देंहटाएं---------
भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?
kya pahad, kya nadi, aky samnunder sab dharti per hi to khade hain...isliye dharitri per hi saari yatrayein poori honi hain...chahe kahin se chalein...shabdon ka sundar prayog...
जवाब देंहटाएंhats off to you...
जवाब देंहटाएंयही तो है जीवन-क्रम...
sahi kha jeevan kram aise hi chalta hai...
जवाब देंहटाएंयह जीवन पथ कुछ ऎसा ही हे, बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपर्वत से धरती का मिलन अद्भुत लगा. भावों का सुंदर निरूपण. जीवन दर्शन समेटे कोमल प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसागर के मध्य
जवाब देंहटाएंतुम्हारे ही पदचिन्ह मुझे मिलते हैं
जिनको छूकर यात्रा पूरी होती है
जीवनक्रम की ....
इन शब्दों में ढली यह पंक्तियां ...जीवन यात्रा को
परिभाषित करती हुई ...अनुपम प्रस्तुति ।
सागर के मध्य
जवाब देंहटाएंतुम्हारे ही पदचिन्ह मुझे मिलते हैं
जिनको छूकर यात्रा पूरी होती है
जीवनक्रम की ....
बहुत गहन चिंतन...सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
सागर के मध्य
जवाब देंहटाएंतुम्हारे ही पदचिन्ह मुझे मिलते हैं
जिनको छूकर यात्रा पूरी होती है
जीवनक्रम की ....
kitna gehra prem! bahut hi sunder rachna
सागर के मध्य
जवाब देंहटाएंतुम्हारे ही पदचिन्ह मुझे मिलते हैं
जिनको छूकर यात्रा पूरी होती है
जीवनक्रम की ....
जीवन की यात्रा क्या कभी पूरी होती है ... अंत तक मन ये कहता रहता है कुछ देर और कुछ साँसें और ...
यही है सार्थक जीवन यात्रा।
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