24 अप्रैल, 2011

प्यार है ... नहीं है



प्यार और व्यवहारिकता
दो अलग आयाम !
प्यार में व्यवहारिकता की
गुंजाईश नहीं होती
प्यार नंगे पाँव
अनंत दिशा में दौड़ता है
और बस कहता जाता है ...
भीग लो रिमझिम बारिश में
गर्म चाय की भाप के संग
हर निगाह से परे
पानी में छप छप दौड़ते
बेपरवाह गीत गाते
ठहाके लगाते
धरती से आकाश तक
सब हमारा है...
....
प्यार व्यवहारिक हो गया
तो फिर प्रश्न कैसा?
शिकायत कैसी ?
इंतज़ार कैसा ?
.... और यकीनन
वह प्यार नहीं !
...
प्यार तो बेमौसम बसंत होता है
उसके आगे तर्क क्या !
उसकी मर्जी
वह बादलों से पाजेब बनाता है
ओस से श्रृंगार करता है
तपती धूप में
पसीने में राग ढूंढ लेता है
प्यार व्यवहारिकता के लिबास से
सर्वथा अपरिचित होता है !
...
प्यार में खोना
खुद को पाना है
वह ना समझौता चाहता है
ना समझौता करता है
प्यार !
गन्दी नाली में नहीं बहाया जा सकता
ना अपशब्दों से नवाज़ा जाता है
इसकी उंचाई .....
हर कोई बचेंद्री पाल नहीं हो सकता है !
.......
प्यार शब्दों का खेल नहीं
और कटघरा तो बिल्कुल नहीं
जहाँ 'क्यूँ' आया
फिर ना घर तेरा ना घर मेरा सा सन्नाटा होता है
ताश के पत्तों की तरह सारी सोच
भरभराकर गिर जाती है
ज़िन्दगी होती ही कितनी लम्बी है !!!
प्यार है तो है
नहीं तो नहीं .... चाहे जितनी लम्बी हो !

40 टिप्‍पणियां:

  1. chahe kitani bhi lambi jindagi ho, pyar ke bina bemani hai...dil aur dimag ki kashmakash chalti hi rahti hai...par dhai aakhar ka ye shabd duniya badal deta hai...sarthak rachna...

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  2. प्यार नंगे पाँव
    अनंत दिशा में दौड़ता है
    और बस कहता जाता है ...
    भीग लो रिमझिम बारिश में
    गर्म चाय की भाप के संग
    हर निगाहों से परे
    पानी में छप छप दौड़ते
    बेपरवाह गीत गाते
    ठहाके लगाते
    धरती से आकाश तक
    सब हमारा है...
    ....


    प्यार व्यवहारिक हो गया
    तो फिर प्रश्न कैसा?
    शिकायत कैसी ?
    इंतज़ार कैसा ?
    .... और यकीनन
    वह प्यार नहीं !
    वाह वाह वाह

    रश्मि जी,
    आपकी रचना की एक विशेषता ये देखने को मिलती है, कि विषय कोई भी हो, शब्द हमेशा गरिमा से महकते हुए आते हैं.

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  3. बहुत सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है आपने प्यार के जज्बात को
    यह बिलकुल ऐसा नहीं कि 'हम तुम एक कमरे में बंद हों और चाबी खो जाये'

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  4. एक याद रखने लायक रचना ! शुभकामनायें !!

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  5. बहुत उत्कृष्ट भाव लिये गुढ़ तथ्य को समझाती बेहतरीन रचना...।

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  6. प्यार तो बेमौसम बसंत होता है
    उसके आगे तर्क क्या !
    उसकी मर्जी
    वह बादलों से पाजेब बनाता है
    ओस से श्रृंगार करता है
    तपती धूप में
    पसीने में राग ढूंढ लेता है
    प्यार व्यवहारिकता के लिबास से
    सर्वथा अपरिचित होता है !

    कविता बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है।

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  7. रश्मि जी , आप से पूर्णतया सहमत हूं
    बहुत सच्ची परिभाषा दी है आप ने ,,,,, व्यवहारिकता प्रेम पर लगने वाला वो ज़ख़्म है जो समय के साथ भरता नहीं बल्कि संबंधों में दूरी ला देता है ,,,
    बहुत बढ़िया !

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  8. bilkul ahi kaha aapne.... pyaar hai to hai nahi to nahi.... chahe kitni lambi ho..............

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  9. व्यवहारिकता के साथ प्रेम कहन टिक सकता है ...
    सच !

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  10. प्यार शब्दों का खेल नहीं
    और कटघरा तो बिल्कुल नहीं
    जहाँ 'क्यूँ' आया
    फिर ना घर तेरा ना घर मेरा सा सन्नाटा होता है
    ताश के पत्तों की तरह सारी सोच
    भरभराकर गिर जाती है
    ज़िन्दगी होती ही कितनी लम्बी है !!!
    प्यार है तो है
    नहीं तो नहीं .... चाहे जितनी लम्बी हो !



    बहुत सुन्दरता से परिभाषित किया है प्यार को ...!!
    लेकिन ये प्यार का पावन रूप ....बहुत कम लोग इतनी गहराई तक जा पाते हैं |
    सतही जीवन बिताते हैं ....
    क्यूँ आये हैं ...
    क्या देना है ..क्या लेना है ...क्या करना है ...कुछ पता नहीं|
    ऐसे अन्धकारमयी वातावरण में आपकी ये रचना एक उज्जवल प्रकाश की तरह है ...!!

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  11. बहुत सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है आपने प्यार के जज्बात को

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  12. जहाँ 'क्यूँ' आया
    फिर ना घर तेरा ना घर मेरा सा सन्नाटा होता है
    ताश के पत्तों की तरह सारी सोच
    भरभराकर गिर जाती है
    sahi kaha mausi...
    aabhar

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  13. प्यार जब जागता है, पूरा विश्व समाहित कर लेता है अपने अन्दर।

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  14. पूरी कविता के साथ ही अंतिम पैरा बहुत ज्यादा प्रभावित करता है.

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  15. प्यार और व्यवहारिकता सही में दो अलग अलग आयाम हैं..

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  16. प्यार तो बेमौसम बसंत होता है
    उसके आगे तर्क क्या !
    pyar ki itni sundar paribhasha.....kya baat hai.

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  17. प्यार तो बेमौसम बसंत होता है
    उसके आगे तर्क क्या !
    उसकी मर्जी
    वह बादलों से पाजेब बनाता है
    ओस से श्रृंगार करता है
    तपती धूप में
    पसीने में राग ढूंढ लेता है
    प्यार व्यवहारिकता के लिबास से
    सर्वथा अपरिचित होता है !....
    ..
    दीदी चीज़ों के देखने का आपका नजरिया कितना साफ़ है..
    एकदम आर पार...और स्पष्ट !
    सोंचता हूँ क्या कभी ऐसी बात मैं भी कह सकूंगा ?
    सच में दी प्यार तो बस प्यार ही होता है ...
    ..
    प्यार शब्दों का खेल नहीं
    और कटघरा तो बिल्कुल नहीं
    जहाँ 'क्यूँ' आया
    फिर ना घर तेरा ना घर मेरा सा सन्नाटा होता है
    ताश के पत्तों की तरह सारी सोच
    भरभराकर गिर जाती है ....
    हाँ दीदी आज फिर सोचूंगा...आपकी सोंच के साथ-साथ.!

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  18. प्यार नंगे पाँव
    अनंत दिशा में दौड़ता है
    और बस कहता जाता है ...
    भीग लो रिमझिम बारिश में

    सच ... और हमेशा दौड़ता ही रहता ... वाह बहुत खूब लिखा है आपने हर शब्‍द जीवंत कर दिया ।

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  19. प्यार और व्यावहारिकता का सुन्दर चित्रण किया है……॥

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  20. प्यार शब्दों का खेल नहीं
    और कटघरा तो बिल्कुल नहीं
    जहाँ 'क्यूँ' आया
    फिर ना घर तेरा ना घर मेरा सा सन्नाटा होता है
    ताश के पत्तों की तरह सारी सोच
    भरभराकर गिर जाती है
    ज़िन्दगी होती ही कितनी लम्बी है !!!
    प्यार है तो है
    नहीं तो नहीं .... चाहे जितनी लम्बी हो !

    प्रेम का सुन्दर और गरिमामय प्रस्तुतीकरण... अंतिम पंक्तियाँ तो बेमिसाल हैं...

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  21. जहाँ 'क्यूँ' आया
    फिर ना घर तेरा ना घर मेरा सा सन्नाटा होता है
    ताश के पत्तों की तरह सारी सोच
    भरभराकर गिर जाती है


    sunderrachna hai....

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  22. didi,

    namaska r
    prem par aapne bahut hi acchi kavita likhi hai .. bahut se dimensions ko aapne isme shaamil kiya hia ..


    badhayi

    मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html

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  23. प्यार और व्यवहारिकता दोनों अलग-अलग धरातल पर फैले दो अलग आयाम हैं..........बहुत ही सुन्दर रचना.........

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  24. प्यार शब्दों का खेल नहीं
    और कटघरा तो बिल्कुल नहीं
    जहाँ 'क्यूँ' आया
    फिर ना घर तेरा ना घर मेरा सा सन्नाटा होता है.

    aaj to pyar me kyu ke alava kuch bhi nahi hai...

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  25. गज़ब की रचना...शब्द और भाव दोनों अद्भुत...
    नीरज

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  26. "प्यार तो बेमौसम बसंत होता है
    उसके आगे तर्क क्या !
    प्यार में खोना
    खुद को पाना है"
    दीदी,प्रणाम.
    बहुत सही कहा आपने प्यार तो पतझड़ में भी बाहर ले आता है.बस इसमें दूब जाने का साहस चाहिए.बहुत ही गूढ़ बात कही है आपने .इसे समझने तो कई युग बीत जाते हैं.

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  27. सार्थक!!

    प्यार है तो है
    नहीं तो नहीं .... चाहे जितनी लम्बी हो !

    सुज्ञ: भगवान रिश्वत लेते है?

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  28. प्यार शब्दों का खेल नहीं
    और कटघरा तो बिल्कुल नहीं
    जहाँ 'क्यूँ' आया
    फिर ना घर तेरा ना घर मेरा सा सन्नाटा होता है
    ताश के पत्तों की तरह सारी सोच
    भरभराकर गिर जाती है
    ज़िन्दगी होती ही कितनी लम्बी है !!!
    प्यार है तो है
    नहीं तो नहीं .... चाहे जितनी लम्बी हो !
    sunder bhav
    bahut hi achchhi kavita

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  29. प्यार तो बेमौसम बसंत होता है
    उसके आगे तर्क क्या !

    सही ज़िन्दगी जीने का सारा फलसफा बता दिया रश्मि जी ...
    काश ये फलसफा हर कोई जान ले ....

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  30. प्यार ना समझता रोटी की भूख
    प्यार ना जाने विरह की धूप
    प्यार जो कर ले एक बार
    वो इस जग से निराला हो गया ..
    ना वो तेरा ...ना मेरा
    वो बस प्यार को हो गया ................(अंजु....(अनु )

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  31. Letter by letter aapse agree hoon...samajh nahi aa raha kaise react karoon...bahut pyaari post

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  32. प्यार के फलसफे को कितने सही शब्दों में बंधा है ...बहुत अच्छी रचना ...

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  33. गर्म चाय की भाप के संग
    हर निगाहों से परे....


    bahut pyari rachna.

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  34. bahut sunder rachana....
    pyar ko sahee artho me paribhashit kartee..
    ....
    ताश के पत्तों की तरह सारी सोच
    भरभराकर गिर जाती है........ ati sunder abhivykti.

    aabhar

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  35. प्यार है तो है
    नहीं तो नहीं .... चाहे जितनी लम्बी हो !
    sach hai pyar hai to bas hai, kahna kya bas jina hai chaahe pal bhar hin sahi. par ab vyavahaarikata... bahut achhi rachna, badhai rashmi ji.

    जवाब देंहटाएं
  36. प्यार शब्दों का खेल नहीं
    और कटघरा तो बिल्कुल नहीं
    जहाँ 'क्यूँ' आया
    फिर ना घर तेरा ना घर मेरा सा सन्नाटा होता है
    ताश के पत्तों की तरह सारी सोच
    भरभराकर गिर जाती है
    ज़िन्दगी होती ही कितनी लम्बी है !!!
    प्यार है तो है
    नहीं तो नहीं .... चाहे जितनी लम्बी हो !kya kahu? bhut gahraayi hai...

    जवाब देंहटाएं
  37. प्यार तो बेमौसम बसंत होता है
    उसके आगे तर्क क्या !
    उसकी मर्जी
    वह बादलों से पाजेब बनाता है
    ओस से श्रृंगार करता है
    तपती धूप में
    पसीने में राग ढूंढ लेता है
    प्यार व्यवहारिकता के लिबास से
    सर्वथा अपरिचित होता है !

    बहुत सुन्दर परिभाषित किया है प्यार को ।
    अति सुन्दर रचना ।

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...