02 जून, 2011

मामला गंभीर है



काम से थककर चूर
कर्तव्यों की बलिवेदी पर
जब एक एक करके कई मौत हुई
...
कानून के अंधेपन के आगे
जब कई घरों से विलाप के स्वर
त्रिनेत्र बने
........
तो डरी सहमी लड़कियां सजग होने लगीं
माता पिता ने उन्हें हर शिक्षा देने की ठानी
कानून ने भी कई रास्ते खोल दिए ....
....
पर जो घुट घुटकर जीते हैं
वे उन रास्तों को पार करने से पहले भी
सौ बार सोचते हैं
पैसा ससुरालवाले को दहेज़ में दें
या क़ानूनी दावपेंच को
इस दुविधा में वे आज भी गुमनाम होते हैं !

आरक्षण , कानून , शिक्षा , आर्थिक मामले में
स्त्रियों का जो वर्ग उभरकर नारे लगा रहा है
उनके साथ अन्याय करने की
किसी सहमे पुरुष में हिम्मत नहीं
वह हतप्रभ ... एक कप चाय मांगने पर
अन्यायी बन बैठा है
माँ बहनों के लिए दायित्व निभाता
पत्नी की नज़र में नपुंसक , या क्रूर हो चला है

वैसे यह स्थिति पहले भी थी , कि -
'मैं इधर जाऊँ या उधर जाऊँ ...'

अब तो हर तरफ नारी का वर्चस्व है !
नारी भ्रूण हत्या का मामला जितना गंभीर है
उतना ही गंभीर है लड़कों का आगत से डरना !

यातनाओं के सुलगते दर्द मध्यमवर्गीय परिवार के थे
पर कमान उच्च वर्गीय महिलाओं के हाथ में है ...
पेज 3 के परिधान में भाषण देती
वे कितनी हास्यास्पद लगती हैं
एक बार नम्र होकर पूछें तो सही ...

किटी पार्टी में रोक
नशे में कम कपड़ों में डगमगाने से रोक
पुरुषों के बीच उनके ग्रुप के हास्य में बैठने से रोक
संभ्रांत पुरुषों के ऊपर फंदा बनकर झूलता है

जितनी भी संस्थाएं हैं नारी उत्थान की
वे पैसा खाती हैं
और जिन स्त्रियों को देख ब्रम्हा भी डर जाएँ
उनके लिए नारे लगाती हैं !
जुल्म की शिकार जिस तरह रामायण में शूर्पनखा थी
वही हाल आज ७५ प्रतिशत शहरों में है ....

किसी स्वर्ण मृग का सवाल नहीं
लक्ष्मण कोई रेखा खींचे
मजाल नहीं
अब तो रावण को तथाकथित सीता सावित्री हर लेंगी
प्राण यमराज क्या लेगा
अब तो कानून के आगे
नारी यमराज की कुर्सी लिए बैठी है

मामला हंसने का नहीं बंधु
बहुत गंभीर है
आजकल की लड़कियां अच्छे भले लड़कों को
मानव बनना सिखाती हैं
फिर मानव से महामानव
और देखते देखते वह महामानव
एक बिचारे इन्सान में तब्दील हो जाता है
शिकायती पुलिंदे का सरताज !
..............................

50 टिप्‍पणियां:

  1. अक्षरश: सच लिखा है ... हालात इन दिनों कुछ ऐसे ही हैं ... सटीक एवं सार्थक प्रस्‍तुति ।

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  2. दीदी इस पूरे मसले पर आपने बहुत गंभीरता से सोंचा है ...आप ही इस तरह नीर क्षीर विवेक के साथ सोंच भी सकते थे ....
    कृपया इसे मात्र एक याचना तक ना रखकर एक सार्थक बहस कि टफ मूदिये दीदी...आप ऐसा कर सकते हो इस लिए ऐसा कह रहा हूँ मैं ...!
    सादर प्रणाम !

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  3. और जिन स्त्रियों को देख ब्रम्हा भी डर जाएँ
    उनके लिए नारे लगाती हैं !

    सटीक ...

    आज तो स्थिति यह भी हो गयी है की नारी ऐसे कानूनों का दुरुपयोग भी कर रही है ... सच में मामला गंभीर है .. आज कर्तव्य से ज्यादा अधिकार की बात होती है ..

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  4. गलती दोनों तरफ की है ... इसलिए कानून को निरपेक्ष होना है, वरना कानून के आड़ में अन्याय करने वाली भी होती हैं ...
    खैर बात केवल अन्याय की नहीं होती है ... एक सामाजिक संतुलन भी चाहिए जो आजकल खोते जा रहा है ...
    या तो अबला नारी पर अत्याचार होता है या फिर कोई नारी ही अपनी गन्दी मानसिकता से घर को बर्बाद करने पे तुल जाती है ...

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  5. बिल्कुल अलग अन्दाज़ की कविता।

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  6. धीर गम्भीर!! वास्तविकताओं की तह खंगालती रचना!! सुदृष्ट सोच से परिपूर्ण!! प्रवाह में बहने के बजाय इसी तरह सम्यक् विश्लेषण होना चाहिए!!

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  7. कविता के माध्यम से आपने बहुत सही बात उठाई है.
    इन्द्रनील सर की बात भी काबिलेगौर है.

    सादर

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  8. bahut sahi kaha....aadhunikta ki andhi daud me kuchh naarion ne apna naaritwa kho diya hai.....drugs, drinks,night parties, disco, bar many more.....

    khuda jaane kab fir se saarthak hoga.."yatra naryah pujyate, ramante tatra devta"......

    bahut sunder, sateek, saarthak rachna.....is rachna ko to har bhavi naari tak pahuchna chahiye...

    gambheer chintan ke liye aabhar!!!!

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  9. मजाल नहीं
    अब तो रावण को तथाकथित सीता सावित्री हर लेंगी
    प्राण यमराज क्या लेगा
    अब तो कानून के आगे
    नारी यमराज की कुर्सी लिए बैठी है
    :)सच ही लिखा है आपने !आज आपने अधिकारों का गलत ढंग से उपयोग करने से भी नहीं झिझकती कुछ लडकियां !!
    and love to be called MORDERN GIRLS OF MORDERN SOCIETY.But they have really forgotten that a girls real beauty is to be-"A traditional girl"

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  10. नारी मुक्ति के नाम पर विसंगतियों को रेखांकित करती सार्थक रचना

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  11. बहुत बार हालात ऐसे भी होजाते हैं ... पर कभी कभी लगता है पुरुष ही ज़िम्मेवार है इसके लिए ... सटीक रचना ...

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  12. कई ज्वलंत प्रश्न उठाती कविता...

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  13. प्रताड़ितों की व्यथा एक सी है , स्त्री हो या पुरुष !
    इस पर भी विचार करना इतना ही आवश्यक है ...
    यही निष्पक्ष दृष्टिकोण होना चाहिए ...
    आभार !

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  14. मैं आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ ..!!बहुत ही कटु सत्य लिखा है आपने ..!!बहुत भयावह सी लगती है नारी अगर कोमलता न हो ,एक संतुलन की नितांत आवश्यकता है |
    अनूठी ,बहुत सुंदर कविता..!!

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  15. जीवन में संतुलन जरूरी है नहीं तो मामला अत्यंत गंभीर हो सकता है.दीदी ,आपकी अनुभवजन्य सोच से बाहर आई रचना वाकई संदेशप्रद है.सुन्दर

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  16. सहमत हे आप के विचारो से.बहुत सुंदर कविता

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  17. और जिन स्त्रियों को देख ब्रम्हा भी डर जाएँ
    उनके लिए नारे लगाती हैं !

    सटीक.
    बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने .निष्पक्ष ..

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  18. समय के अनुरुप कविता लेकिन इसमें अभी ये निर्णय लेना शेष है की कितनी प्रतिशत इस सीमा में आती हैं क्योंकि अधिकतर तो अभी स्थिति से दूर ही हैं. डर असल आज भी जो नारी के अधिकांश भाग का प्रतिनिधित्व करती है वह हैं निम्न मध्यम वर्ग की नारी और लड़कियों. जोवाकई संघर्ष कर रही हैं. वे जो बहुत हाई फाई है उनके लिए तो कोई समस्या ही नहीं है.

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  19. असंतुलन यहाँ भी साफ़ दिखता है.... शक्ति तो आई है पर उस शक्ति को संभालने में कुछ लोग असमर्थ साबित हो रहे है

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  20. सामयिक रचना। मौकापरस्त हर मौका हथियाकर उसका दुरुपयोग कर लेते हैं। ज़रूरत है सक्षम, त्वरित और ईमानदार न्याय व्यवस्था की। लिंगभेद से ऊपर उठकर एक जेन्युइन समस्या को उठाने का धन्यवाद!

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  21. Dono taraf ki striyon ko yaad karne ke liye dhanyawaad... yeh jo chhote kapdon waali hain, inme se kai shoshan ki bhi shikaar hain...

    magar aapki baat sach hai kaanoon ke naam pe ya takat ke naam pe kisi ke saath annyaaye nahi hona chahiye chahe mard ho ya aurat.

    bahut achchi rachna!!!

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  22. बहुत सही कहा है...यह भी सिक्के का एक पहलू है...

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  23. आपकी सोच ...कविता का एक एक शब्द सच से भरपूर

    आज ऐसे ही हालत सब जगह है ...निर्दोष नर .......हर जगह से हर चुका है
    सच में ये मुद्दा समाज में उठने के काबिल है कि आज कल लडकियों कि सोच क्यों बदलती जा रही है
    वो घर समजा पर क्यों खुद को हावी करने पर तुली है ......

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  24. वाह गंभीर चिंतन से ओतप्रोत आज के समय को परोसती पंक्तियाँ , इस चिंतन का असर जरूर होगा, इन्ही भावनाओ के साथ अभिवादन

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  25. दुःख तो इस बात का है कि बाहर काम करना उनके लिए ज्यादा ओह्दापूर्ण और ज़िम्मेदारी वाला हो गया है..
    घर संभालना उन्हें नाकारा लगता है जबकि सच्चाई यह है कि एक पुरुष घर जैसी भारी जिम्मेवारी का पालन कभी नहीं कर सकता...
    पर बहुत अफ़सोस है कि आजकल की नारी-शक्ति कुछ विपरीत ही सोचने लगी है..

    हमारे बुज़ुर्ग ने समाज का जो ढांचा बनाया था, उसे पश्चिमी सभ्यता ने बर्बाद कर दिया है पर अभी शायद विनाश होना बाकी है...

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  26. इस विषय पर नारी की तरफ से पहली बार गुहार सुनाई दी है । प्रिताडित नारी हो या पुरुष , समाज के लिए तो एक कलंक ही है । इन्सान की कुंठित सोच को दर्शाती है ।

    एक अलग रचना , समाज की विषमताओं पर ।

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  27. बहुत ही सुंदर ....आज के दौर के हालातों का सटीक चित्रण .....

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  28. यथार्थ का सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...
    हार्दिक शुभकामनायें।

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  29. एक विचारोत्तेजक कविता जिसमें कई ज्वलंत प्रश्नों को उठाया गया है।

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  30. एकदम सटीक और सही बात..

    बहुत उम्दा रचना.

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  31. is poore saamjik vyavastha ko prashnchinhit karti rachnaa!!

    Kaash ek samanjasya sthaapit ho paye aur aisi koi sthiti hi na ho. warna abhi ya to striya pratarit ho rahi hoti hai ya fir kahi stri pratadna ki aad me purush.

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  32. ek samay tha jab striya ghar sambhalti thi aur purushe bahar kama ke paise leke aate the..aahista aahista ye hua ki purusho jo kama kar lata tha vo juve aur sharab me uda ke aata tha..ghar me biwi bachche use yad nahi rahete the..isliye salo pahele se ghar me jadu bartan sab kam mahilao ne shuru kiye aur vo karke apne bachcho ko khana dene lagi...agar purush sach me purush hota to vo kah deta ki mat kamane jao mai khilaunga..jisme jo kala thi us hisab se aurato ne kam karna shuru kiya..aaj ye din aa gaya hai ki ab betiya kamati hi hai...aur koi purush ye nahi kaheta ki tum ghar me baitho shanti se mai tumhare bhag ka bhi kamake le aaunga..use bhi paise aate hai vo achche hi lagte hai...aur uske liye vo biwi ko bartan bhi dula leta hai ghar me jadu fatka bhi mar deta hai..jab purush purush na raha tab striyo ko himmat karke kam karna pada...
    ye mera manna hai..

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  33. aajkal ke halaton ki saty kahani bahut sunder sarthak rachna ........

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  34. जिन्हें देख कर ब्रह्मा डर जाये....
    अब तो रावन ही हर लिया जाएगा...

    वाकई पारिहासिक होते हुए भी गंभीर चर्चा दी...
    सादर...

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  35. मसला नारी या नर का नहीं है
    मसला है की सदियों से दबाई जा रही नारी को जब अचानक छूट, अधिकार, space, freedom and new platform मिला तो शायद हज़म नहीं कर पाई
    ये किसी भी व्यक्ति के साथ हो सकता है (irrespective of gender, its more of a psychological effect) अगर परवरिश balanced नहीं है तो. छूट, अधिकार, space, freedom और new platform ये सब स्वयं और समाज की बेहतरी के लिए हैं, एक तरफ़ा सोच के लिए नहीं. पर कुछ व्यक्ति (नर और नारी) इस opportunity का गलत फायदा उठा रहे हैं और औरों के लिए अपने रंग-ढंग के कारण मुश्किलें बढ़ा रहे हैं

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  36. आपकी कविता ने मुझे प्रेरित किया है कि मै भी आपने दिल बयां करूँ. जल्द ही इक सच्चाई प्रस्तुत होगी. शुक्रिया

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  37. आपकी कविता ने मुझे प्रेरित किया है कि मै भी आपने दिल बयां करूँ जल्द ही इक सच्चाई प्रस्तुत होगी. शुक्रिया

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  38. नारी को नर(भक्षी) तो नर ने ही बनाया है | फिर नरों को दुःख-दर्द हो तो उनके अपने या पूर्वजों के कर्मो का फल ही है|

    हाँ, आज की किटी पार्टी और पेज ३ की नारी कानूनी सह पाकर निरंकुश होती जा रही है और उसी रास्ते चल पड़ी है जो पहले नरों का था | यही चिंता का विषय है और आपने इसको बहुत ही अच्छे शब्दों में रचा है|

    चंद शब्दों में कहूँगा:

    आसमान से उनको गिरते देखकर
    पंछी सा उड़ता देख कर
    मैंने सोचा उड़ना अच्छा होता होगा
    सुनाई दी चीख तभी जमीं पर |

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  39. गहन भाव का सम्प्रेषण करती कविता

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  40. गहरी बात.......बहुत खूबसूरत

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...