22 जून, 2011

'सत्यमेव जयते '



पीछे मुड़कर मत देखो
कि क्या सोचा क्या किया क्या खोया ...
जो पाया , उस पर गौर करो
जो खोया उस पर चिंतन करो !

खोने के पीछे हमारी अपनी सोच होती है
हम पूरी टोली को साथ लिए चलते हैं ...
निर्माण में देखा है देवताओं को
असुरों के संग चलते ?

हमें पता है कि
असुर छद्म रूप ले
देवताओं सा आचरण कर
दो कदम ही चल पाते हैं
पर हम ही उन्हें अपने साथ घसीटते जाते हैं
'अतिथि देवो भवः ' कहकर
या रिश्तों की महत्ता बताकर !!!
असुर को अतिथि बनाकर पूजते रहना
गले हुए रिश्तों को ढोना
कभी देवता ने नहीं कहा
'कर्म की गति' कहकर
हमने खुद को जीवंत नरक में धकेल दिया !

हम बड़ी बेचारगी से कहते हैं
'जो बुरा करता है
वही खुश रहता है ....'
रहेगा ही न
वह वही करता है
जो वह चाहता है
और हम --------
संस्कारों को रुसवा करते हुए
उसे मरहम देते हैं
कीमती मुस्कान देते हैं
और अपने दिल को तसल्ली - 'सत्यमेव जयते '

39 टिप्‍पणियां:

  1. सत्यमेव जयते तो सत्य ही है लेकिन राक्षसों की देवताओ के साथ चलने वाली प्रवृति कम हो गई है , वो इसलिए की देवत्व ही कहा बचा .

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  2. बहुत सुंदर आंटी...."सत्यम शिवम सुंदरम"

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  3. 'अतिथि देवो भवः ' कहकर
    या रिश्तों की महत्ता बताकर !!!
    असुर को अतिथि बनाकर पूजते रहना
    गले हुए रिश्तों को ढोना
    कभी देवता ने नहीं कहा
    'कर्म की गति' कहकर
    हमने खुद को जीवंत नरक में धकेल दिया !

    आपकी हर रचना में छिपा सन्देश होता है ..सही गलत का फर्क करना हमारी खुद की क्षमता पर निर्भर है .. और उसने अनुसार सही आचरण करना भी ... प्रेरणादायी रचना ..

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  4. sataye mave jayte... apki har rachna ki tarah ek sandesh deti rachna...

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  5. अभी के दौर में ये मेरे लिए काफी मायने रखते हैं -
    छे मुड़कर मत देखो
    कि क्या सोचा क्या किया क्या खोया ...
    जो पाया , उस पर गौर करो
    जो खोया उस पर चिंतन करो !

    :)

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  6. पीछे मुड़कर मत देखो
    कि क्या सोचा क्या किया क्या खोया ...
    जो पाया , उस पर गौर करो
    जो खोया उस पर चिंतन करो !प्रेरणादायी सुन्दर रचना....

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  7. वह वही करता है
    जो वह चाहता है
    और हम --------
    संस्कारों को रुसवा करते हुए
    उसे मरहम देते हैं
    कीमती मुस्कान देते हैं
    और अपने दिल को तसल्ली - 'सत्यमेव जयते '
    ........
    एक सुलगता सत्य..... तीखा सन्देश...
    सादर.....

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  8. वह वही करता है
    जो वह चाहता है
    और हम --------
    संस्कारों को रुसवा करते हुए
    उसे मरहम देते हैं
    कीमती मुस्कान देते हैं
    और अपने दिल को तसल्ली - 'सत्यमेव जयते '
    बिलकुल सही लिखा है आपने ..
    मेरी समझ से तो हमें अपनी चुनी हुई राह पर ..बेबाक चलते रहना चाहिए ...!!
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.

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  9. और हम --------
    संस्कारों को रुसवा करते हुए
    उसे मरहम देते हैं
    कीमती मुस्कान देते हैं
    और अपने दिल को तसल्ली - 'सत्यमेव जयते '
    kya baat hai.......wah.

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  10. कामना तो यही होती है कि सदा सत्‍य की जीत हो।

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  11. अतिथि धर्म निभाते ...हम गले हुए रिश्तों को ढोते हैं ...

    निर्माण में देखा है देवताओं को असुरों के साथ चलते ??

    गहन सन्देश और निर्देश है आपकी कविता ...विचार कर रही हूँ इस पर ...

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  12. हमें पता है कि
    असुर छद्म रूप ले
    देवताओं सा आचरण कर
    दो कदम ही चल पाते हैं
    पर हम ही उन्हें अपने साथ घसीटते जाते हैं..

    .......हम बड़ी बेचारगी से कहते हैं
    'जो बुरा करता है
    वही खुश रहता है ....'
    रहेगा ही न
    वह वही करता है
    जो वह चाहता है
    और हम --------
    संस्कारों को रुसवा करते हुए
    उसे मरहम देते हैं...

    द्ढता से अपने पथ पर चलने का सन्देश देती इस कविता से किम्कर्त्व्य विमूढ़ को प्रेरणा मिल रही है

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  13. पीछे मुड़कर मत देखो
    कि क्या सोचा क्या किया क्या खोया ...
    जो पाया , उस पर गौर करो
    जो खोया उस पर चिंतन करो !
    ये पंक्तियां एक संदेश दे रही हैं .. आपकी हर रचना की तरह आभार - 'सत्यमेव जयते 'की सीख लेकर हम हर बुराई से लड़ने की ऊर्जा प्राप्‍त करते हैं ..।

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  14. रश्मि जी
    संस्कारों को रुसवा करते हुए
    उसे मरहम देते हैं
    कीमती मुस्कान देते हैं
    और अपने दिल को तसल्ली - 'सत्यमेव जयते '

    सार्थक तस्वीर इस कविता के महत्त्व को और बाधा देती है

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  15. सन्देशयुक्त यथार्थपरक रचना....
    हार्दिक बधाई।

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  16. आज जो देश के हालात है सब इस कविता मे परिलक्षित हो रहे है और जब तक जनता जागृत नही होगी हमेशा भुगतती ही रहेगी……………अति उत्तम रचना।

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  17. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच

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  18. असुर को अतिथि बनाकर पूजते रहना
    गले हुए रिश्तों को ढोना
    कभी देवता ने नहीं कहा
    'कर्म की गति' कहकर
    हमने खुद को जीवंत नरक में धकेल दिया !...

    बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना....

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  19. फिर एक बार गहन सन्देश से भरी प्रेरक कृति सारे मन मस्तिस्क को झकझोर देती है . अभिवादन

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  20. 'सत्यमेव जयते ' इस कलियुग का सन्देश नहीं बन सकता है . सत्य के मुँह पर असत्य ने कई बार कालिख पोती है और वह उपहास का पात्र बन सर झुकाए खड़ा रहा. फिर किस पर विश्वास करें? ये मूल्य और नैतिकता तब कहाँ दिलासा दे पाते हैं? सन्देश तभी अच्छा लगता है जब उसे साक्षात् होते देखाजाय.

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  21. मैंने सत्यमेव जयते का सन्देश नहीं दिया है, मैंने कहा ही है कि हम गलत करते हैं ( अच्छाई भी गलत होती है ) और रट्टू तोते की तरह कहते हैं सत्यमेव जयते

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  22. आपने सही कहा ... हम सत्यमेव जयते कह कर अपने दिल को तस्सली देते है कि कभी तो अच्छा होगा ... किन्तु कलयुग में ऐसा नहीं ...बहुत सही सन्देश देती आपकी कविता जबरदस्त है... सादर

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  23. विचारणीय !!!

    सही गलत का विवेक मनुष्य होने भर से थोड़े ही न आ जाता है...

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  24. कवियत्री की विवशता साफ़ झलकती है...सत्यमेव जयते...दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है...

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  25. सत्य कहना और सत्य सुनना
    'सत्यमेव जयते '
    सत्य की जीत निश्चित है
    मगर सत्य कहना उतना ही मुश्किल है
    सत्य कहने के लिए ,
    हिम्मत और होंसला तो चाहिए
    साथ ही प्रतिरोध और विरोध के लिए भी
    तैयार रहना चाहिए
    सत्य कहने से पहले
    सत्य सुनने की शक्ती भी आवश्यक है
    या कहिये सत्य कहने से
    सत्य सुनना ज्यादा कठिन होता है
    जो सत्य सुन सकता है
    वही सत्य कहने का अधिकारी है
    सत्य कहना और सुनना
    निरंतर परिश्रम या अभ्यास से नहीं आता
    मन का निश्चल और दुर्भावना रहित
    होना आवश्यक है
    23-06-2011
    डा राजेंद्र तेला,"निरंतर"

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  26. सत्यमेव जयते' लेबल बनकर असत्य की छत्रछाया न बने

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  27. sab pata hai hame..par fir bhi vo hi karte hai...bahoto ki galat bato me ha me ha milate hai..na bolne ki takat hamme nahi hai...

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  28. 'जो बुरा करता है
    वही खुश रहता है ....'
    रहेगा ही न
    वह वही करता है
    जो वह चाहता है
    और हम --------
    संस्कारों को रुसवा करते हुए
    उसे मरहम देते हैं
    कीमती मुस्कान देते हैं
    और अपने दिल को तसल्ली - 'सत्यमेव जयते '


    हम समाज की खातिर वो नि कर पाते जो हम करना चाहते हैं
    दिखावा ही रह जाता है

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  29. कीमती हैं मरहम ..'सत्यमेव जयते'की

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 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...