आदमकद शीशे सा उसका व्यक्तित्व
और तार तार उसकी मनःस्थिति !
मैं मौन उसे सुनती हूँ
आकाश में प्रतिविम्बित उसका अक्स
घने सघन मेघों सा बरसता जाता है
धरती सी हथेली पर !
नहीं हिलने देती मैं हथेलियों को
नहीं कहती कुछ...
कैसे कहूँ कुछ
जब वह आकाश से पाताल तक
अपने सच को कहता है !
ओह ... सच की सिसकियाँ
मेरे मौन की गुफा में
पानी सदृश शिवलिंग का निर्माण करती हैं
........
अदभुत है यह संरचना
सबकुछ निर्भीक
शांत
स्व में सुवासित होता !
गंगा आँखों से निःसृत होती है
त्रिनेत्र से दीपक प्रोज्ज्वलित होता है
अपने ही संकल्प परिक्रमा करते हैं
निर्णय मंदिर की घंटियों में
उद्घोषित होते हैं
द्वार पूर्णतया खुले होते हैं
पर दर्शन वही कर पाता है
जो सत्य के वशीभूत होता है !
गंगा आँखों से निःसृत होती है
जवाब देंहटाएंत्रिनेत्र से दीपक प्रोज्ज्वलित होता है
अपने ही संकल्प परिक्रमा करते हैं
निर्णय मंदिर की घंटियों में
उद्घोषित होते हैं
द्वार पूर्णतया खुले होते हैं
पर दर्शन वही कर पाता है
जो सत्य के वशीभूत होता है !
कितनी गहराई से प्रत्येक शब्द में हर भाव को समेटकर इस रचना में आपने एक सच कहा है ...और इसके आगे मैं नि:शब्द हूं ... ।
द्वार पूर्णतया खुले होते हैं
जवाब देंहटाएंपर दर्शन वही कर पाता है
जो सत्य के वशीभूत होता है !
मानो तो गंगा माँ हूँ न मानो तो बहता पानी , प्रश्न आस्था का है बात बेहद सटीक और सारगर्भित
अन्तर्मन को सार्थक बिंब से साकार कर दिया।
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना!! आभार!!
पर दर्शन वही कर पाता है
जवाब देंहटाएंजो सत्य के वशीभूत होता है !
यही जीवन सत्य है………सुन्दर अभिव्यक्ति।
SATIK OR ACHI RACHNA LIKHI HAI MAM. . . .
जवाब देंहटाएंJAI HIND JAI BHARAT
कुछ कुछ कहती हैं ये पंक्तियाँ .बेहतरीन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंनिर्णय मंदिर की घंटियों में
जवाब देंहटाएंउद्घोषित होते हैं
द्वार पूर्णतया खुले होते हैं
पर दर्शन वही कर पाता है
जो सत्य के वशीभूत होता है !
सहजता से कह दी है सत्यता की बात ...सुन्दर अभिव्यक्ति
bimbon ka sundr prayog..
जवाब देंहटाएंbehatreen kavita..
badhai..
बहुत सुन्दर कविता... मन की स्थिति का सुन्दर चित्रण....
जवाब देंहटाएंरश्मिप्रभा जी...........बहुत सुन्दर...सच,दर्शन उसे ही हो पाते हैं जो सत्य के वशीभूत होता है...........मुझे स्व में सुवासित होना की परिकल्पना बहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंनिर्णय मंदिर की घंटियों में
जवाब देंहटाएंउद्घोषित होते हैं
द्वार पूर्णतया खुले होते हैं
पर दर्शन वही कर पाता है
जो सत्य के वशीभूत होता
aksar yahi hota hai, hum satya dekhna hi nahi chahte....
bahut achhi rachna....
द्वार पूर्णतया खुले होते हैं
जवाब देंहटाएंपर दर्शन वही कर पाता है
जो सत्य के वशीभूत होता है !
जीवन के सत्य को परिभाषित करती बेहतरीन अभिव्यक्ति..... बहुत सुन्दर..
सत्य वचन...दर्शन का पात्र भी वही है...
जवाब देंहटाएंपर दर्शन वही कर पाता है
जवाब देंहटाएंजो सत्य के वशीभूत होता है !
मन:स्थिति की सूक्ष्मता ..
bahut he sundar,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत ही मर्म स्पर्शी दार्शनिक रचना ..सत्य की खोज रत मन का चिंतन....अपार शुभ कामनाएं...
जवाब देंहटाएंantarman ki gahraayi se shabdo ko piro diya....
जवाब देंहटाएंantarman ki gahraayi ko shabdo me piro diya apne... bhut khubsurat...
जवाब देंहटाएंसच की राह कठिन है प्राणी।
जवाब देंहटाएंपर दर्शन वही कर पाता है जो सत्य के करीब हो ...
जवाब देंहटाएंनिर्भीक सत्य !
sankalp nirny ke madir ka parikrma karte hai...Vaah Rashmi ji ....behad umda soch aur khyaal...
जवाब देंहटाएंसंकल्प की नाव ..... सत्य की पताका..... मौन की नदी में.... सफ़र स्वयं से स्वयं तक का.....! :)
जवाब देंहटाएंअद्भुद ...! :)
गंगा आँखों से निःसृत होती है
जवाब देंहटाएंत्रिनेत्र से दीपक प्रोज्ज्वलित होता है
अपने ही संकल्प परिक्रमा करते हैं
कैसी अनोखी है यह पूजा ! बहुत सुंदर !
ओह ... सच की सिसकियाँ
जवाब देंहटाएंमेरे मौन की गुफा में
पानी सदृश शिवलिंग का निर्माण करती हैं
एक दम नयी बात....अद्भुत दिव्य..अपना एक शेर याद आ गया
"इक गुफा सी है मन में मेरे
जिसमें बैठा है तू ध्यान में"...
सादर
द्वार पूर्णतया खुले होते हैं
जवाब देंहटाएंपर दर्शन वही कर पाता है
जो सत्य के वशीभूत होता है !
....बहुत सटीक और गहन सत्य..आभार
bahut achcha likhi hain.......
जवाब देंहटाएंसच्चाई की राह .. सच्चाई की बातों में आपका कोई सानी नहीं ...आपकी सोच को मेरा नमन है...
जवाब देंहटाएंपर दर्शन वही कर पाता है
जवाब देंहटाएंजो सत्य के वशीभूत होता है !
...बिलकुल सत्य ....
सच का जीवन दर्शन कराती सुन्दर रचना के लिए आभार
पर दर्शन वही कर पाता है
जवाब देंहटाएंजो सत्य के वशीभूत होता है !
sahi kaha mausi....
bahut badhiya rachna .........
जवाब देंहटाएंरश्मिप्रभा जी,
जवाब देंहटाएंचिंतन के सनातन बोझ से मुक्त करती हुई सत्य के शास्वत स्वरूप से अंत्अर्निहित साक्षात्कार से संवाद कराती हुई कविता अपने प्रतीकों से नई ऊँचाईयाँ पाती है।
आपकी लेखनी को नमन.....
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत गहरे उतर कर लिखा है अध्यातम और दर्शन का अद्भुत मिलन
जवाब देंहटाएंआभार