हाय क्या दिन थे वो भी क्या दिन थे ...
बचपन कहते हम पाँच भाई बहनों की शरारती चुलबुली आँखें दबे पाँव ढेर सारे किस्से लिए पास आ बैठती
हैं , टप टप पलकें झपका पूछती हैं - कौन सी कहानी सुनाऊं ? और होठों पर एक लम्बी सी शरारती मुस्कान
फ़ैल जाती है .
गर्मी की कहानी ? कौन सी गर्मी ? सावन के अंधे बचपन को सब हरा ही नज़र आता है . तो हमें भी सिर्फ हरियाली
नज़र आती थी , चिलचिलाती मीठी धूप जन्नत जैसी लगती थी. रहता था इंतज़ार पापा माँ के सोने का (खासकर पापा का ),
और हम पीछे के दरवाज़े से बाहर निकल जाते थे . अमरुद के पेड़ पर हम बन्दर की तरह बैठे बस अमरुद की शक्ल लिए अमरुद
को तोड़ खाते और चेहरे पर ऐसा भाव होता कि इससे मीठा अमरुद न कभी हुआ न होगा . कसैलेपन में भी गजब की मिठास होती
थी , नंगे पाँव जलते नहीं थे , पसीने की बूंदों में कमाल का सौन्दर्य दिखता था .
हमारी सबसे प्यारी जगह कौन सी थी , ये भी पता नहीं .... समझिये इस गाने में भी सार्थकता थी - 'जहाँ चार यार मिल जाएँ वहीँ रात हो
गुलज़ार ...' और हम तो पाँच थे . आँगन , अमरुद का पेड़ , पेड़ से छत , गोलम्बर पर चकवा चकिया ....... पापा जब लाल आँखें दिखाते
तो कुप्पा किये गाल से हँसी फूटती थी और बढ़ता था पापा का गुस्सा और हमें लगता - पापा को समझ कम है ! हाहाहा
वाकया सुनाती हूँ अपना -
गर्मी की सुबह की मीठी शीतल हवा में क्या मज़े की नींद आती थी ..................... और पापा , मुर्गे की बांग के साथ उनकी आवाज़ सबको हिलाती ,
'उठो उठो , सुबह को देखो ' अरे क्या देखूं सुबह ! सब धीरे धीरे उठ जाते , पर मुझे तो बन्द आँखों के सपनों से प्यार था तो कोई आवाज़ तब तक नहीं
सुनाई देती थी, जब तक उसमें कठोरता न आ जाए , वैसे उसका भी कोई ख़ास डर नहीं था , सबसे छोटी जो थी - खैर ! पापा उठाते , मैं बरामदे में जाकर लम्बी कुर्सी पर सो जाती , उन्हें लगता मैं उठ गई हूँ और मैं सपनों में सूरज को भी चाँद बना उसके पास घूमती . एक दिन हमेशा की तरह पापा ने उठने का सम्मन जारी किया और मैं बाहर की कुर्सी पर .... ओह लेटते मेरी चीख निकल गई - अम्माआआआआआआआआआअ ! बिढ्नी थी कुर्सी पर और उसने मुझे काट लिया था , मैं आंसुओं से सराबोर और अब बारी थी पापा की ... हंसकर बोले , 'ठीक हुआ ' .... सच कहूँ , बहुत गुस्सा आया था .
पर अंत में भी यही कहूँगी - हाय क्या दिन थे वो भी क्या दिन थे !
:) :) वाकयी क्या दिन थे वो भी ... और जब अब अपने बच्चे देर से उठते हैं तो भूल जाते हैं कि हम भी ऐसा ही किया करते थे :):)
जवाब देंहटाएंवो ऐसे दिन थे जिनको याद कर आप अभी भी उन दिनों में खो सी जाती हैं.तभी उन यादों को यहाँ भी साझा किया है.
जवाब देंहटाएंमज़ा आया पढ़ कर.
सादर
"बचपन के दिन भी क्या दिन थे ..
जवाब देंहटाएंउड़ते फिरते तितली बन ..."
सच में वो दिन जिन्दगी में कभी लोट के नही आ सकते
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सचमुच.....हाय क्या दिन थे वो भी क्या दिन थे !
जवाब देंहटाएंबचपन याद दिला दिया आपने.
दी,बचपन के दिन भी क्या दिन थे उड़ते फ़िरते तितली बन .......:)
जवाब देंहटाएंसादर !
बचपन होता ही है प्यारा और मस्ती भरा। हम अपने अतीत की तमाम यादें भुला सकते हैं, लेकिन बचपन की यादों को भुला पाना नामुमकिन है।
जवाब देंहटाएंbaikul sahi kha prabha ji..bachpan laut kar kabi nahi aata....
जवाब देंहटाएंबहुत शौक था बड़ा होने का
जवाब देंहटाएंपहले खबर होती कि
इतने याद आएंगे मुझे वो दिन
तो थोड़ा धीरे धीरे बड़ा हुआ होता ...
काश, वे दिन लौट कर आ पाते...
जवाब देंहटाएं---------
हॉट मॉडल केली ब्रुक...
लूट कर ले जाएगी मेरे पसीने का मज़ा।
koi lauta de mujhe vo bite huye din.....
जवाब देंहटाएंवो ऐसे दिन थे जिनको हम कभी नहीं भूल सकते...
जवाब देंहटाएंबचपन के दिन भी क्या दिन थे........
खूबसूरत प्यारी सी मासूम यादें...
आपके साथ आपके बचपन में खोना ...अच्छा लगा दीदी ...
जवाब देंहटाएंउस एक दिन की आवारगी पर दस पर्यटन न्योछावर।
जवाब देंहटाएंकोई लौटा दे वही बीते हुए दिन...
जवाब देंहटाएंbachpan kee yaad dila di...
जवाब देंहटाएंबचपन की यादें तो कही दूसरी दुनिया सी लगती हैं.
जवाब देंहटाएंकोई लौटा दे मुझे,
जवाब देंहटाएंबीते हुए दिन!
कहाँ खो गया वह मासूम बचपन?
जवाब देंहटाएंबचपन याद दिला दिया आपने !!
जवाब देंहटाएंबचपन की एक एक याद अनमोन खजाना है।
जवाब देंहटाएंबचपन के दिन भी क्या दिन थे...साल भर आराम से और छुट्टियों में पौ फटते ही...उठ जाना...शाम को जमीन की तरी और रात आँगन में चारपाई डाल के चादरों के ठन्डे होने का इंतज़ार...भरी दोपहरी में सेमल की रुई के पीछे भागना...बहुत कुछ याद दिला दिया...
जवाब देंहटाएंohh..bidhni ne kat lia tha aapko...waise bachpan ke din bakai ajib hote hai ek dam masti bhare..waise papa ki kya galti thi..aapko dekh ke baithna tha na...
जवाब देंहटाएंबचपन के याद, वाह,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
bachpan ke dinon ko bari rochakta ke saath likhi hain.....
जवाब देंहटाएंbua bahut achchha laga padh kar.. aur maza bhi aaya :)
जवाब देंहटाएंमैंने भी नानी के घर पेड़ पर चढ कर खूब आम और अमरुद तोड़ कर खाए हैं.......मासी के सारे बच्चे ....सब कि याद दिला दी.......आजकल के ए .सी .में रहने वाले बच्चे क्या जाने..........ये सब!क्या-क्या याद दिला दिया आपने .रश्मिप्रभा जी .
जवाब देंहटाएंसावन के अंधे बचपन को सब हरा ही नज़र आता है . तो हमें भी सिर्फ हरियाली
जवाब देंहटाएंनज़र आती थी , चिलचिलाती मीठी धूप जन्नत जैसी लगती थी. रहता था इंतज़ार पापा माँ के सोने का (खासकर पापा का ),
sachchi baat ,jagjit ji ki gazal yaad aa gayi -ye daulat bhi lelo ......bade hone par bachpan ki kami khalti hai .bahut kuchh yaad aa gaya .badhiya .
kitina sunder lekh, maza aa gaya... aur ek secret bataaoon, bachpan to abhi bhi dli mein kahin chupa hai... jab jab dil ki parton se jhaanke to jee lena pal do pal :-) :-)
जवाब देंहटाएंवाकई वे भी क्या दिन थे ...जी भर कर खेलने के बाद भी कितना समय बचता था ..आज बच्चों को दोपहर में बहार नहीं निकलने की सीख देते हुए हम भूल जाते हैं की हम तो खेलने के लिए इसी दोपहर का इन्तजार करते थे ....अमरुद , फालसा , कैरियां पेड़ से तोड़कर खाने में जो मजा है , वो खरीदने में कहाँ ..
जवाब देंहटाएंमधुर स्मृतियाँ !
आज सबसे सुखद पल होते है जब बचपन के दिनों को याद करते हैं आपने बड़ी ख़ूबसूरती से अपने बचपन की सैर करवाई ...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंओह्ह दीदी, आपने भी क्या याद दिलाई बचपन के दिनों की ... सच ! क्या दिन थे वो भी ...
जवाब देंहटाएंMere dil k kisi kone me,ek masum sa bachha h,bado ki dekh kar duniya,
जवाब देंहटाएंbada hone se dar lagta h..!!!
Yes. life is a search for that innocence. Great success may fall on feet, yet a corner of heart will long for that innocence.
जवाब देंहटाएंSo well put in this poem.
बचपन के दिन ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
बचपन की यादों में डूबना कितना अच्छा लगता है!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे शब्दों का खजाना खोला है आपने बचपन ...सबको अपना बचपन याद आ गया और साथ ही कोई मीठी सी याद भी....आप की यह लेखनी यूं ही चलती रहे ...।
जवाब देंहटाएंवो बचपन की यादें...
जवाब देंहटाएंवो बेफिक्री सी बातें
क्या क्या याद दिला दिया आपने
Beeti baaten hamesha dil ko gudgudaati hain ...
जवाब देंहटाएंkahin se bachpan waapas nahi laaya jaa saktaa
जवाब देंहटाएंप्रत्येक शब्द बचपन की याद दिलाता हुआ ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...।
बचपन के दिन...बचपन के दिन भी क्या दिन थे उड़ते फिरते तितली बन...बचपन...
जवाब देंहटाएंनीरज
sach mausi...bachpan bachpan hi hota hai...bahut khoob....
जवाब देंहटाएंबचपन तो बचपन ही होता है..... सुंदर
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