01 जून, 2011

ख़ामोशी



तुम जब कुछ कहते हो
तो अनायास वह संवाद तुम्हारा
तुम्हारे स्व से होने लगता है
कथ्य भी तुम
जवाब भी तुम !
आश्चर्य की बात नहीं
बिल्कुल सहज बात है
तुम्हें भी पता है सही गलत
तुम जानते हो मेरी भी दृढ़ता
और अचानक तुम्हारे अन्दर
कुछ गिरने लगता है
वह कुछ तुम्हारा ही स्वत्व ....
मैं सहजता के लिए खामोश रहती हूँ
फिर मोड़ देती हूँ बातों की दिशा
क्योंकि मुझे अच्छा नहीं लगता
तुम्हारा खुद को खुद से सफाई देना !
तुम्हारी कमजोरी मुझे मालूम है
तुम्हारे हर बदलते तेवर की पहचान भी मुझे है
.... मुझे मालूम है विचलित शब्दों की
अन्यमनस्क दशा
तो मुझे सही लगता है अपना मौन
क्योंकि अगर कुछ भी कहा ..
तो तुम्हारे मन की ही शक्ल ले लूँगी
और तब बुरा होगा !
मन तो अन्दर ही अन्दर सवाल खड़े करता है
मन के लिबास में मैं
सुनाई देने लगूंगी
और तब तुम सारी चीजें पलट दोगे
गतांक से तुलना करने लगोगे
और मैं ... एक कतरा और खो जाऊँगी
क्योंकि मेरे किसी गतांक में तुम नहीं
तो मैं भी नहीं ...
.............
हमारे हिस्से तो महज पगडंडियाँ थीं
जिन्हें हम अर्थ नहीं दे सके
रास्ते बनाना मुमकिन नहीं हुआ ...
लेकिन पगडंडियों पर 'उसकी' कृपा रही
तभी
'वह ' अपनी हथेली की लकीरों में
उन पगडंडियों को लेकर आया
अब हमें उन लकीरों को रास्ते बनाने हैं
यानि 'उसकी' हथेली पर चलना है !
मेरे भीतर कोई सवाल नहीं
स्पष्ट हैं दिशाएं
प्रयोजन तो 'उसने' खड़े किये हैं
तर्क कैसा और किससे ?
तो अच्छी लगने लगी है
फिर ये ख़ामोशी .......
रास्ते बने तो बेहतर
वरना पगडंडियाँ तो आज भी अपनी ही हैं !!!


38 टिप्‍पणियां:

  1. क्योंकि मेरे किसी गतांक में तुम नहीं
    तो मैं भी नहीं ...

    ye rishte... bahut khoob

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  2. रास्ते बने तो बेहतर
    वरना पगडंडियाँ तो आज भी अपनी ही हैं !!!

    बस यही सत्य है………अपनी अपनी पगडंडी पर चलते रहना।

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  3. तर्क कैसा और किससे ?
    यह जीवन में जितनी जल्दी स्वीकार लें .............उतना बढ़िया रहता है......
    रास्ते बने तो बेहतर
    वरना पगडंडियाँ तो आज भी अपनी ही हैं !!!

    ये बहुत सकारात्मक विचार है.......
    बहुत ही अच्छी रचना !

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  4. स्पष्ट हैं दिशाएं
    प्रयोजन तो 'उसने' खड़े किये हैं
    तर्क कैसा और किससे ?
    सच कहा है ... बेहतरीन ।

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  5. रास्ते बने तो बेहतर
    वरना पगडंडियाँ तो आज भी अपनी ही हैं !!!

    फिर कैसे सवाल कैसे तर्क ...
    लाजवाब !

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  6. Rashmi ji! sarvpratham mera abhivadan swikaar karen... kafi samay baad blog me vapas aayi hun aur Deshboard par aapki rachnaa padh kar meri shuruvaaat behad sundar rahi ..kyoonki aapki rachnaa me hai hee khaas baat ... behad sundar aur bahut sashkt lekhan

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  7. आपकी सुन्दर प्रस्तुति गहन चिंतन को प्रेरित करती है.आपकी अभिव्यक्ति का अंदाज निराला है.

    जवाब देंहटाएं
  8. तुम्हारी कमजोरी मुझे मालूम है
    तुम्हारे हर बदलते तेवर की पहचान भी मुझे है
    .... मुझे मालूम है विचलित शब्दों की
    अन्यमनस्क दशा

    तो मुझे सही लगता है अपना मौन

    सटीक पहचान!! अद्भुत गहरी थाह!!

    जवाब देंहटाएं
  9. रास्ते बने तो बेहतर
    वरना पगडंडियाँ तो आज भी अपनी ही हैं !!!

    गहनचिंतन से परिपूर्ण अद्भुत प्रस्तुति..आभार

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  10. एक और गहरे भावो को सहजता से प्रस्तुत करती रचना....



    कुँवर जी,

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  11. अद्भुत प्रस्तुति......बेहतरीन अंदाज

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  12. मन में घटती उथल पुथल का सहज चित्रण।

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  13. आपकी रचना ने एक बार फिर मुझे अपने अन्दर झाँकने पर मजबूर कर दिया है

    जवाब देंहटाएं
  14. मुझे मालूम है विचलित शब्दों की
    अन्यमनस्क दशा
    तो मुझे सही लगता है अपना मौन
    क्योंकि अगर कुछ भी कहा ..
    तो तुम्हारे मन की ही शक्ल ले लूँगी

    क्योंकि मेरे किसी गतांक में तुम नहीं
    तो मैं भी नहीं ...

    रास्ते बने तो बेहतर
    वरना पगडंडियाँ तो आज भी अपनी ही हैं !!!

    पगडंडियों पर चल कर भी मंजिल मिल जानी है ...गहन अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  15. भावों का सघन अरण्य बुनती है दी, आपकी खामोशी.... लेकिन सघनता के बावजूद अरण्य भटकाता नहीं बल्कि तमाम लफ्ज़ स्वयम राहनुमाई करते हुए चलते हैं...
    खूबसूरती से बुनी हुई रचना.... सादर....

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  16. हमारे हिस्से तो महज पगडंडियाँ थीं
    जिन्हें हम अर्थ नहीं दे सके
    रास्ते बनाना मुमकिन नहीं हुआ ...
    लेकिन पगडंडियों पर 'उसकी' कृपा रही
    तभी
    'वह ' अपनी हथेली की लकीरों में
    उन पगडंडियों को लेकर आया
    अब हमें उन लकीरों को रास्ते बनाने हैं
    यानि 'उसकी' हथेली पर चलना है !

    हथेलियों की पुश्त पर लिखे भविष्य को कौन जानता है...मगर जो एहसास आपने पिरोये हैं, एकदम नगीने हैं. एक बार फिर बेहतरीन कविता. आभार .

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  17. पगडंडियां हमे हमारी मंजिल तक पहुंचा ही देती हैं क्योंकि उनपर दोराहे-चौराहे नहीं होते।

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  18. वरना पगडंडियाँ तो आज भी अपनी ही हैं
    बस इतना ही काफी हैं ..है न...
    बहुत ही सुन्दर बात बहुत सुन्दर शब्दों में.

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  19. कथ्य और कथाकार को लेकर आपने सुन्दर अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है!

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  20. प्रयोजन तो 'उसने' खड़े किये हैं
    प्रयोजन? कोई नहीं खड़े कर सकता
    अपना ही मन है जो टूटते टूटते इससे बाहर निकलेगा

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  21. .... मुझे मालूम है विचलित शब्दों की
    अन्यमनस्क दशा
    तो मुझे सही लगता है अपना मौन
    क्योंकि अगर कुछ भी कहा ..
    तो तुम्हारे मन की ही शक्ल ले लूँगी
    और तब बुरा होगा !

    बहुत खूब...अभिव्यक्ति का निराला अंदाज़

    ------देवेंद्र गौतम

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  22. रश्मि जी क्या कहूँ? आपकी कलम पर माँ सरस्वती का वास है...ऐसी अप्रतिम रचनाएँ बह निकलती हैं के मन आनंदित हो जाता है...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  23. तर्क कैसा और किससे ?
    तो अच्छी लगने लगी है
    फिर ये ख़ामोशी .......

    :-) khamoshi bhi asi vaisi nahi 'muskurati hui' khamoshi... bahut sunder!!!

    जवाब देंहटाएं
  24. एक अति सुंदर ओर लाजवाब प्रस्तुति!!

    जवाब देंहटाएं
  25. मेरे भीतर कोई सवाल नहीं
    स्पष्ट हैं दिशाएं
    प्रयोजन तो 'उसने' खड़े किये हैं
    तर्क कैसा और किससे ?
    तो अच्छी लगने लगी है
    फिर ये ख़ामोशी .......
    रास्ते बने तो बेहतर
    वरना पगडंडियाँ तो आज भी अपनी ही हैं !!! kya khu shabd nhi hai sayad main bhi kuch aisa hi likhna chahti thi par mujhe shabd nhi mile..apki rachna padne ke baad pta chala kyu nhi mile. kyu ki jo apne likha hai vo anubhav hai jiven ka.. jise mujhe samjhne me bhut waqt lagega... koi comments nhi mere pas.. universal panktiyta...

    जवाब देंहटाएं
  26. और मैं ... एक कतरा और खो जाऊँगी
    क्योंकि मेरे किसी गतांक में तुम नहीं
    तो मैं भी नहीं ... क्या करें, कमेंट्स के लिए शब्द ही नहीं मिलते.. बस यही कहता हूँ... अति सुंदर ओर लाजवाब रचना !

    जवाब देंहटाएं
  27. हथेली पर पगडंडियाँ उसकी ही बनाई हैं...तो राह भी वो ही दिखायेगा...

    जवाब देंहटाएं
  28. दी, लगता है मेरे मन में झाँक कर ही लिखा है ........ सादर !

    जवाब देंहटाएं
  29. रास्ते बने तो बेहतर
    वरना पगडंडियाँ तो आज भी अपनी ही हैं !!
    तो मुझे सही लगता है अपना मौन
    क्योंकि अगर कुछ भी कहा ..
    तो तुम्हारे मन की ही शक्ल ले लूँगी
    bahut sundar baaten hain aapki is rachna me

    जवाब देंहटाएं
  30. तर्क कैसा और किससे ?
    तो अच्छी लगने लगी है
    फिर ये ख़ामोशी .......
    रास्ते बने तो बेहतर
    वरना पगडंडियाँ तो आज भी अपनी ही हैं !!!

    आज की कविता में मन और बुद्धि दोनों का मिश्रण है |इसलिए बेमिसाल बन गयी है |बहुत सुंदर तर्क हैं ...!!बहुत अच्छी रचना .

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  31. तो तुम्हारे मन की ही शक्ल ले लूँगी
    और तब बुरा होगा !


    हम्म, बहुत गहरी बात है ये ... किसी के लिए भी यह बहुत बड़ी बात हो जायेगी ...

    जवाब देंहटाएं
  32. मुझे मालूम है विचलित शब्दों की
    अन्यमनस्क दशा
    तो मुझे सही लगता है अपना मौन
    क्योंकि अगर कुछ भी कहा ..
    तो तुम्हारे मन की ही शक्ल ले लूँगी
    और तब बुरा होगा !bahut achche bhaav ukere hain aapne is rachna me.kabhi kabhi khaamoshi hi sab kuch kah jaati hai.atiuttam rachna.

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  33. मुझे लगता है अप कवयित्री होने के साथ-साथ एक मनोवैज्ञानिक भी हैं, मन के हर कोने को खंगाल कर कैसे खोज लती हैं उन प्रश्नों के उत्तर जो हमने कभी पूछे भी नहीं थे पर पढ़कर भीतर से निकलता है, हाँ !

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  34. बहुत दिलचस्प .... बहुत रोचक ....

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  35. एक ऐसी अभिव्यक्ति जो र्वामान में अतीत को ढूँढने पर मज़बूर कर दे। बहुत अच्छा

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  36. एक और भावुक करती सुंदर अभिव्यक्ति |बधाई
    आशा

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  37. अद्भुत प्रस्तुति............|बधाई

    जवाब देंहटाएं

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