03 अक्तूबर, 2012

खुद से विमुख खुद की जड़ें ढूँढने लगती हूँ ...



सबको आश्चर्य है
शिकायत भी
दबी जुबां में उपहास भी 
कि बड़े से बड़े हादसों के मध्य भी
मैं सहज क्यूँ और कैसे रह लेती हूँ !!!
चिंतन तो यह मेरा भी है 
क्योंकि मैं भी इस रहस्य को जान लेना चाहती हूँ ...
क्या यह सत्य है 
कि मुझ पर हादसों का असर नहीं होता ???

यह तो सत्य है कि 
जब चारों तरफ से प्रश्नों 
और आरोपों की अग्नि वर्षा होती है
तो मेरे शरीर पर फफोले नहीं पड़ते 
जबकि कोई अग्निशामक यन्त्र नहीं है मेरे अन्दर ...!
जब अमर्यादित शब्दों से 
कोई मुझे छलनी करने की चेष्टा करता है 
तो मैं कविता लिखती हूँ
या किसी पुस्तक का संपादन 
अन्यथा गहरी नींद में सो जाती हूँ !
हाँ...मुझे यथोचित ... 
और कभी कभी अधिक 
भूख भी लगती है - 
तो मैं पूरे मनोयोग से अच्छा खाना बनाती हूँ 
खिलाती भी हूँ 
खा भी लेती हूँ ...
बीच बीच में फोन की घंटी बजने पर
अति सहजता से उसे उठाती हूँ 
हँसते हुए बातें करती हूँ 
वो भी जीवन से जुडी बातें ...

लोगों का आश्चर्य बेफिज़ुल नहीं 
मैं खुद भी खुद को हर कोण से देखती हूँ 
हाँ देखने के क्रम में 
उस लड़की .... यानि स्त्री को अनदेखा कर देती हूँ 
जो समय से पूर्व अत्यधिक थकी नज़र आती है 
जो शून्य में अपना अक्स ढूंढती है
सुबह की किरणों के संग सोचती है
'ओह...फिर दिनचर्या का क्रम'
रात को बिस्तरे पर लेटकर एक खोयी मुस्कान से
खुद को समझाती है
'नींद आ जाएगी'...
अपने उत्तरदायित्वों से वह जमीन तक जुड़ी है
हारना और हार मान लेना दो पहलू हैं 
तो.... वह हार नहीं मानती 
एक सुनामी की आगोश में
अपनी सिसकियों के संग 
गीत भी सुनती है 
......
लोग !!!
सिसकियाँ सुनने की ख्वाहिश में 
जब गीत सुनते हैं
तो उनका आक्रोश सही लगता है
और मैं भी खुद से विमुख 
खुद की जड़ें ढूँढने लगती हूँ ...

39 टिप्‍पणियां:

  1. ये बात ...
    हर एक बस का कहाँ है यह कर पाना.

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  2. तो.... वह हार नहीं मानती
    एक सुनामी की आगोश में
    अपनी सिसकियों के संग
    गीत भी सुनती है
    सशक्‍त भाव लिए सशक्‍त रचना सशक्‍त व्‍यक्तित्‍व ...
    सादर

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  3. सुंदर रचना ! सीधी-सादी बात की अति सुंदर अभिव्यक्ति !
    गीतों में ...दुखों को रुलाने की भी शक्ति है, उन्हें सहलाने की भी...और थोड़ी देर को उन्हें भुलाने की भी ! अक्सर मरहम का काम करते हैं गीत...!
    ~सादर !!!

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  4. बस आप जैसे हैं वैसे ही बनी रहें ............सबका अपना अपना नजरिया होता हैं ..........और कुछ लोग सिसकियो को तरजीह देते हैं .जबकि सकारात्मक कहकहे आपके लफ्जों से अक्सर सुनाई देते हैं ....... बस आप जैसे हैं वैसे ही रहे .

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  5. इसीलिए कहता हूं कि रश्मि दी आप को जानना आसान नहीं है, आप को वही जान सकता है जो मानव स्वभाव को पढना जानता है। पढना भी आसान नहीं है, क्योंकि लोग पढते आपको हैं, पर अपने अपने नजरिए से, इसलिए बहक कर कहीं दूर निकल जाते हैं।

    जब अमर्यादित शब्दों से
    कोई मुझे छलनी करने की चेष्टा करता है
    तो मैं कविता लिखती हूँ
    या किसी पुस्तक का संपादन
    अन्यथा गहरी नींद में सो जाती हूँ !
    हाँ...मुझे यथोचित ...
    और कभी कभी अधिक
    भूख भी लगती है -
    तो मैं पूरे मनोयोग से अच्छा खाना बनाती हूँ
    खिलाती भी हूँ
    खा भी लेती हूँ ...
    बीच बीच में फोन की घंटी बजने पर
    अति सहजता से उसे उठाती हूँ
    हँसते हुए बातें करती हूँ
    वो भी जीवन से जुडी बातें ...

    ये गुण सब में कहां। लोग तो ईंट का जवाब पत्थर से देने के चक्कर में ..... अब क्या कहूं..

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  6. आत्म आलोचना या आत्म दर्शन आसान कम नहीं विरले ही कर पाते हैं.

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  7. लोग !!!
    सिसकियाँ सुनने की ख्वाहिश में
    जब गीत सुनते हैं
    तो उनका आक्रोश सही लगता है
    और मैं भी खुद से विमुख
    खुद की जड़ें ढूँढने लगती हूँ ...

    कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना…………बस सकारात्मकता बनी रहे और जीवन चलता रहे अपनी ऊर्जा के साथ बस काफ़ी है जीने के लिये

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  8. मैनें आपकी रचना को फिर से पढ़ा ! अक्सर देखा है, आपकी रचनाओं में.. आप अपने अपने आप को तौलतीं हैं, अपना अवलोकन करतीं हैं , मानो, खुद से खुद की पहचान कराती हैं ! और मैनें महसूस किया है... "कि आप में बहुत शक्ति है, सकरात्मक शक्ति !"
    आपको मेरा नमन !:)
    ~सादर !

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  9. रश्मि जी आप को पढ़ना जीवन को पढ़ना है..आप को समझना पूरे जीवन को समझना है ..अभी समय लगेगा.आभार

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  10. पेड़ की जड़े जमीन में जितनी गहरी फैली होती है पेड़ उतनाही मजबूत होता है !
    जीवन की जड़े आत्मा मै फैली होती है जितनी ज्यादा समझ उतना मजबूत जीवन का पेड़ !
    फिर कैसे छोटे छोटे तूफानों से धराशाही हो सकता है ? वह तो तूफानों के अनुकूल खुद को बना लेता है !
    बड़ी अच्छी रचना सबके लिये प्रेरक ....

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  11. lauh purshon ke bhee mom kaa dil hotaa hai,kabhi kabhi bhaavnaayein umadne lagtee hein,khud se prashn karne lagtee hein ,prashn kaa uttar nahee milne par vyathaa badhne lagtee hai,par aisaa insaan muskaaraanaa nahee chhodtaa ,hans kar phir jeevan se ladne lagtaa

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  12. कई बार हँसा हूँ
    कई बार रोया हूँ
    कई बार जला हूँ
    कई बार बुझा हूँ
    चोट खाता रहा हूँ
    सहता रहा हूँ
    फिर भी जीता
    रहा हूँ
    किस्मत से लड़ता
    रहा हूँ
    टूटा हूँ मगर थका
    नहीं हूँ
    नाउम्मीद अब भी
    नहीं हूँ
    अब भी नए लोगों से
    मिलता हूँ
    नए दोस्त बनाता हूँ
    14-01-2012
    40-40-01-12

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  13. मुझे नहीं लगता। कवि तो हर छोटी-छोटी बातों से आहत होता है। आपकी संवेदनाएं बता रही हैं कि फर्क पड़ता है। हाँ, यह हो सकता है कि हम आहत होकर भी जमाने को यह बताते रहते हैं कि आहत नहीं होते।

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  14. सच में आपकी रचनाएँ जीवन का सार बताती
    है,जो घटित होता है वही सब कहती है आप...एकदम वास्तविकता से सम्बंधित...
    अभिभूत हूँ आपकी बातों से..
    बेहतरीन रचना....
    :-)

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  15. दी मुझे भी ऐसा ही लगता है....
    स्वयं को बहुत ताकतवर समझती हूँ भीतर से...
    दिखाती भी ऐसा ही हूँ...
    मगर कभी कभी टूट जाने को जी करता है...
    :-(

    सादर
    अनु

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  16. कोई मुझे छलनी करने की चेष्टा करता है
    तो मैं कविता लिखती हूँ
    या किसी पुस्तक का संपादन
    अन्यथा गहरी नींद में सो जाती हूँ !wah.....bahut achcha karti hain.

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  17. यह तो सत्य है कि
    जब चारों तरफ से प्रश्नों
    और आरोपों की अग्नि वर्षा होती है
    तो मेरे शरीर पर फफोले नहीं पड़ते
    जबकि कोई अग्निशामक यन्त्र नहीं है मेरे अन्दर ...!
    जब अमर्यादित शब्दों से
    कोई मुझे छलनी करने की चेष्टा करता है ..........



    तन भले ही छलनी नहीं होता
    पर मन तो बार बार छलनी
    हो कर ...दर्द का चीत्कार करता है
    ये अविशवास का दौर ,सिर्फ अपनों के
    साथ ही क्यों होता है ...
    हम एक नई सोच लेकर
    क्यों आगे बड जाते हैं ????
    अनेक सवाल इस नन्हे से मन के
    पर उसका जवाब कोई नहीं ??????

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  18. अनगिनत तारे
    आकाश गंगा के
    चमकते सब हैं
    दिखते सब हैं
    एक चमक अपने
    जल से दिखाता है
    दूसरा जलता है
    और चमक जाता है !

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  19. दी संवेदना न हो तो लेखक महसूस कैसे करेगा ...??बस बुद्धि ,विवेक उस संवेदना को सँजो कर रखें ...यही तारीफ की बात है ...!!
    आप पर प्रभु कृपा है ...आपका ज्ञान आपका सारथी है ...आपके शब्द आपके सारथी हैं ...
    आप अकेली ही कब होती हैं ...आप के पास तो खजाना है ...शब्दों का ...प्यार का ...:))...

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  20. सशक्त भावों की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..नमन आपके व्यक्तित्व व कृतित्व को...

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  21. जो ठान ले ,उसे जिताती है जिंदगी ....

    एक को नहीं ,सबको आजमाती है जिंदगी ....

    आजमाने में बड़ा लुफ्त उठाती है जिन्दगी ....

    लुफ्त उठाने में हद पार कर गई जिन्दगी ....

    हम जो जाऐं जीत ,मुहं बिसूरती है जिन्दगी ....

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  22. साधरण समझता हूँ ,साधरण लिखता हूँ
    बस आप को पढता हूँ ,समझने की कोशिश
    करता हूँ .......
    शुभकामनाएँ!

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  23. जो अपनी ज़मीन से जुड़ा होता है, उसे अपनी जड़ की मज़बूती का अहसास भी ओता है। इसलिए उसे किसी आंधी तूफान से कोई परेशानी नहीं होती।

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  24. "हारना और हार मान लेना दो पहलू हैं"
    ये सही बात है. कुछ लोग हारते हैं और फिर लड़ते हैं, तो कुछ लोग हार मानकर बैठ जाते हैं. आप हार न मानने वालों में से है और ये सबके बस की बात भी नहीं.
    जिसके अंदर आत्मबल होता है वो टक्करों से टूटता नहीं मजबूत बनता है. मैं भी ऐसी ही हूँ, हर टक्कर मुझे मजबूत बनाती है...
    लोगों का क्या है? लोग औरतों को रोते-धोते देखना चाहते हैं, जिससे उन्हें रोने के लिए अपना कंधा आगे करने का मौका मिले. हँसती हुयी औरत बहुत कम लोगों को पसंद आती है. लेकिन कुछ साथी हैं, जो आपकी हँसी को देखकर खुश भी होते हैं और यही बात हौसला बनाए रखती है.

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  25. ज़िंदगी जीने के लिए...जिंदादिली से....
    ज़रूरी है अपनी जड़ें खोजना .अच्छा लगा आत्म विश्लेषण .

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  26. मन तो आहात होता है पर उसका उपचार भी स्वयं को मजबूत कर देना होता है जो सबके वश की बात नहीं .... आत्मचिंतन सा करती खूबसूरत रचना

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  27. कुछ रहस्य को न ही भेदना ज्यादा सुखद होता है . अपनी आभा बिखेरती सुन्दर रचना..

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  28. apko apni jaden dhoondhne ki jarurat hi nahi hai....sab to apke khud k hath me hai to ashchary kyu ? aur agar aisa he to means aap abhi swayam ko hi poorn roop se nahi janti..... ?

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  29. कितनी हिम्मत है न उसमे, कभी हार नहीं मानती, खुद को समझाती है, अपनी सिसकियों के संग गीत सुनना हर किसी के बस की बात नहीं...

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  30. हारना और हार मान लेना दो पहलू हैं ...

    सबकुछ कह दि‍या

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  31. हारना और हार मान लेना दो पहलू हैं ...

    सबकुछ कह दि‍या

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  32. जिसके लिए कोई दूसरा नहीं रह जाता व्ही असंग रह पाता है..

    जवाब देंहटाएं
  33. लोग !!!
    सिसकियाँ सुनने की ख्वाहिश में
    जब गीत सुनते हैं
    तो उनका आक्रोश सही लगता है
    और मैं भी खुद से विमुख
    खुद की जड़ें ढूँढने लगती हूँ ...
    bahut khoob
    rachana

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  34. बहुत अच्छे भाव. कविता की गहराई बहुत ज्यादा है.

    हारना और हार मान लेना दो पहलू हैं
    तो.... वह हार नहीं मानती

    बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ.

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  35. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...