05 सितंबर, 2012

परिस्थितियों का क्षोभ ना हो तो सीखना मुमकिन नहीं !



शब्दों की यात्रा में
सिर्फ एहसासों का आदान प्रदान नहीं होता
रास्तों के नुकीले पत्थर भी चुभते हैं
ठेस लगती है
पर बंधु - यह यात्रा
आत्मा परमात्मा के दोराहों को एक करती है ...
तो थकान हो
पानी ना मिले
कोई छाँव न हो ....
तब भी यात्रा करो
बिना चले मंजिल नहीं मिलती !!!
क्या हुआ यदि तुम्हारे सामर्थ्य के आगे
किसी ने जलते अंगारे बिछा दिए
तुम्हारे नाम की चिन्दियाँ उड़ा दीं
..........
समझो , मानो -
वह दुश्मन होकर भी दुश्मन नहीं
क्योंकि तुम्हारी पोटली को फाड़ने के उपक्रम में
उसने तुम्हारी पोटली से
कई विषैलों को बेनकाब कर
बाहर कर दिया
.....
स्वर्ण प्याले में परोसने से
पानी अमृत नहीं होता
भगवान् का नाम जपने से
कोई भक्त नहीं होता
मिट्टी की अहमियत बताने को
भक्त के खामोश आंसुओं को दिखलाने के लिए
ईश्वर यह दृश्य भी दिखाता है
एक नहीं कई बार दिखाता है !

सच , ईमान ,
परिस्थितियों की आँधियों के मध्य
हताश क्यूँ होना ?
न सच बदलता है
न ईमान
और परिस्थितियों का क्षोभ ना हो
तो सीखना मुमकिन नहीं !
बहुत अधिक पीड़ा तो ईश्वर को भी होती है
तभी तो एक मूलमंत्र उसने दिया -
तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो !!!

37 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अधिक पीड़ा तो ईश्वर को भी होती है
    तभी तो एक मूलमंत्र उसने दिया -
    तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो !!!

    ....बहुत गहन चिंतन...गीता का सार कुछ ही शब्दों में..नमन है आपके उत्कृष्ट लेखन को..

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  2. तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो !!!
    अब तो कुछ कहने को शेष नहीं ... यहां तो आपने नि:शब्‍द कर दिया ... आपको और आपकी लेखनी को सादर नमन ...नमन... नमन

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  3. प्रणाम दीदी !


    शिक्षक दिवस पर विशेष - तीन ताकतों को समझने का सबक - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  4. क्योंकि तुम्हारी पोटली को फाड़ने के उपक्रम में
    उसने तुम्हारी पोटली से
    कई विषैलों को बेनकाब कर
    बाहर कर दिया

    जीवन दर्शन को कहती सार्थक पोस्ट ...

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  5. क्योंकि तुम्हारी पोटली को फाड़ने के उपक्रम में
    उसने तुम्हारी पोटली से
    कई विषैलों को बेनकाब कर
    बाहर कर दिया

    तभी कहा गया है...जो होता है अच्छे के लिए होता है, व्यथित होना मानव स्वभाव है|

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  6. तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो,,,,
    गहन उत्कृष्ट लेखन के लिये आपका जबाब नही,,,,
    शुभकामनाए,,,,

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  7. बात तो आपने बहुत सही लिखी की तकलीफ़ तो ईश्वर को भी बहुत होती है तभी तो उसने यह मूल मंत्र दिया की "तुम्हारा क्या गया जो रोते हो"मगर यह मूल मंत्र बहुतों को तो समझ ही नहीं आता और जिन्हें आता है, वो समझ कर भी समझ नहीं पाते या फिर समझना ही नहीं चाहते। यही फर्क है शायद एक आम इंसान और भगवन के बीच का...जीवन दर्शन दिखलाती गहन भावभिव्यक्ति साथ ही शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें....

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  8. .बहुत गहन चिंतन.. सार्थक पोस्ट ...

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  9. और परिस्थितियों का क्षोभ ना हो
    तो सीखना मुमकिन नहीं !
    शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

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  10. bahut gahan chintan... paristhiti vichar utpanna karta hai aur shikhata deta hai. shikshak divas par dadhai

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  11. आह ! जैसे लगा आपने संबल दे दिया सबको ...

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  12. दुख तो हुआ होगा
    विभु को भी.....
    उसने थे इंसान बनाए
    मृत्यु लोक मे
    दानव राज कहाँ से आया
    मन मे सदाचार था
    घोला...
    फिर मनु ने क्यूँ
    विष का भोग लगाया।?
    सुंदर रश्मि जी आपने तो गीता का एक सबक सीखा दिया... जो हम सब भूल जाते हैं।

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  13. सच कहा, सत्य स्वीकार कर लेना ही पहली कड़ी हो।

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  14. स्वर्ण प्याले में परोसने से
    पानी अमृत नहीं होता.....theek to.....

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  15. किसी ने जलते अंगारे बिछा दिए
    तुम्हारे नाम की चिन्दियाँ उड़ा दीं
    ..........


    koi bat nahi sabra karo bhai aaj hamari to kal tumhari bhi chindhiya udegi hi...par yakin rakhna vo kam hum nahi vo kam uparvala karega... sabka turn aata hai..

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  16. "कितनी भी मुश्किल क्यों ना हो चलते रहना है, क्योंकि बिना चले मंज़िल नहीं मिलती और और परिस्थितियों का क्षोभ ना हो तो सीखना मुमकिन नहीं !" ये भी मूल मंत्र कम थोड़े न है...

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  17. सार्थक और गहन चिंतन.
    उत्कृष्ट प्रस्तुति.
    आभार.

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  18. बहुत ही सुंदर बात कही आपने....दर्द ईश्‍वर को भी होता है....

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  19. kabhi suabhagya mila apse milane ka to apke samane mera sar hoga asirwad ke liye ..........kavitaye hamesha hi hausala badhati hai........naman

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  20. कई विषैलों को बेनकाब कर
    बाहर कर दिया
    और परिस्थितियों का क्षोभ ना हो
    तो सीखना मुमकिन नहीं !
    आप ,मेरी ~~~गुरु ~~~आदर्श ~~~ हैं

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  21. प्रेरित करती हुई, निराशा से आशा की तरफ ले जाती हुई सुन्दर रचना...
    सादर

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  22. बहुत अधिक पीड़ा तो ईश्वर को भी होती है
    तभी तो एक मूलमंत्र उसने दिया -
    तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो !!!


    बहुत सही कहा

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  23. ईश्वर दुःख देता है सहनशक्ति बढ़ाने के लिए या परखता है दुष्ट इंसान के विष को ...
    कभी समझना मुश्किल हो जाता है !
    आपके शब्द सांत्वना देते हैं सबको !

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  24. न सच बदलता है
    न ईमान
    और परिस्थितियों का क्षोभ ना हो
    तो सीखना मुमकिन नहीं !
    बहुत अधिक पीड़ा तो ईश्वर को भी होती है
    तभी तो एक मूलमंत्र उसने दिया -
    तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो !!

    एक बहुत ही उत्कृष्ट रचना रश्मिप्रभा जी ! बहुतों के घायल मर्म को सहलाने में और अनेकों मतिभ्रष्ट लोगों के ज्ञान चक्षु खोलने में पर्याप्त रूप से सक्षम ! सशक्त लेखन के लिये आपको बधाई !

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  25. तारीफ में क्या कहूँ आंटी जी..
    यह रचना नहीं..हिम्मत है .....
    एक एक शब्द में सच्चाई है
    जिंदगी की सच्चाई..
    नमन है आपको...
    :-)

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  26. तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो !!!
    aapko padh kar bas hamesha aisa hi lagta hai ki haan yahi to sach hai...beautiful as always :)

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  27. किसी को अपना मन लेना ही तो गुनाह हो जाता है यहाँ वही से दर्द की शरुआत होती है....गहन और सुन्दर पोस्ट।

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  28. बहुत सुंदर रचना:

    जाने के बारे में नहीं सोचता है
    आने के बारे में सोचता है
    खुश रहता है नहीं रोता है वो !

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  29. सच , ईमान ,
    परिस्थितियों की आँधियों के मध्य
    हताश क्यूँ होना ?
    न सच बदलता है
    न ईमान .................एक दम सत्य ..यूँ ही हर पथ पर आप अडिग रहे ...सादर

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