मैं प्यार करती हूँ
हाँ हाँ तुमसे
शरीर की परिधि से परे
गहरे
मन की प्रत्यंचा पर
साधती हूँ अपने सपने
…… लक्ष्य - प्रेम
यानि तुम
और भर उठता है प्रेम उद्यान
ख्याल,विश्वास की गरिमा से !
प्रेम उद्यान में शरीर एक नश्वर भाग है
जिसमें मन की साँसों से
प्राण-संचार होता है
तो यह मन करता है प्यार
देखता है निर्विघ्न -
तुम्हारी आँखों में
आँखों की सीढ़ियाँ उतर
तुम्हारे मन की दीवारों पर लिखे अपने ही नाम को
छूता है हौले से
डर तो लगता है न
कि कहीं मिट न जाए
……
मन तुम्हारे मन की ऊँगली थाम
भीड़ की आँखों से अदृश्य
अपने और तुम्हारे मन की पवित्र प्रतिमा की
करता है परिक्रमा
आँखों से निःसृत होती है शंख ध्वनि
हौले से जो मैं कहती हूँ
तुम कहते हो
मैं सुनती हूँ
तुम सुनते हो
वह मंत्र सदृश्य सत्य शिव सा सुन्दर होता है
प्रेम अश्रु बन जाता है प्रसाद
और साथ साथ चलते
बनते हैं शाश्वत निशाँ
हमारे …
वाह बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंपर कहे बिना भी कहाँ रहा जाये
साधना से प्यार
को साध लेना
और शिव की जटा
से निकलती
धारा हो जाना
सत्यम शिवम
सुंदरम में बह जाना
सुनने में ही
ऐसा प्रतीत होना
जैसे समुद्र में
मिले बिना ही
विशाल सागर
एक हो जाना !
मन. की दीवार पर लिखा नाम और यह शाश्वत निशान शाश्वत प्रेम ही हो सकता है ... बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमन से मन की होती है बातें
जवाब देंहटाएंमन से मन की होती है मुलाकातें
शारीर का मोह छूट जाता है तब
मन मंदिर में हम दोनों रहते l
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हौले से जो मैं कहती हूँ
जवाब देंहटाएंतुम कहते हो
मैं सुनती हूँ
तुम सुनते हो
वह मंत्र सदृश्य सत्य शिव सा सुन्दर होता है
....यही तो शाश्वत प्रेम है...बहुत उत्कृष्ट रचना...
आँखों की सीढ़ियाँ उतर
जवाब देंहटाएंतुम्हारे मन की दीवारों पर लिखे अपने ही नाम को
छूता है हौले से
डर तो लगता है न
कि कहीं मिट न जाए
बहुत ही कोमल एवँ पावन अनुभूति ! जिस प्यार में इतनी गहराई हो, पवित्रता हो और स्थायित्व हो उसके निशाँ तो शाश्वत होंगे ही जो युग युगान्तर तक औरों के लिये प्रेरणा बन सकेंगे ! बहुत सुंदर !
तुम कहते हो
जवाब देंहटाएंमैं सुनती हूँ
तुम सुनते हो
वह मंत्र सदृश्य सत्य शिव सा सुन्दर होता है
प्रेम अश्रु बन जाता है प्रसाद
और साथ साथ चलते
बनते हैं शाश्वत निशाँ
हमारे ---------
प्रेम की अद्भुत रचना
सादर----
बेहद गहरे अर्थों से लबरेज़ रचना..प्रेम की विभिन्न परतों का पोस्टमार्टम करती हुई हर एक पंक्ति..आभार आपका....
जवाब देंहटाएंप्रेम नश्वर शरीर का अशरीरी भाव है।
जवाब देंहटाएंअब इससे आगे क्या !
प्रेम नश्वर शरीर का अशरीरी भाव है।
अब इससे आगे क्या !
प्रेम की अनगिन परिभाषाओं से उकताया मन यहाँ आकर नत हुआ /स्थिर हुआ !
प्रेम नश्वर शरीर का अशरीरी भाव है।
जवाब देंहटाएंअब इससे आगे क्या !
प्रेम नश्वर शरीर का अशरीरी भाव है।
अब इससे आगे क्या !
प्रेम की अनगिन परिभाषाओं से उकताया मन यहाँ आकर नत हुआ /स्थिर हुआ !
शाश्वत और निश्वार्थ प्रेम ... बहुत सुंदर ...!!
जवाब देंहटाएंजब प्रेम को शाश्वत की पहचान होने लगे तो
जवाब देंहटाएंअश्रु प्रसाद ही तो बन जाते है, जिसने इस प्रसाद को चखा धन्य हुआ जीवन
समझिये ! बहुत सुन्दर शब्द और भाव संयोजन है !
प्यार को साधने की कलात्मकता या अथाह श्रम, न जाने क्या आहुति माँगे प्रेम
जवाब देंहटाएंशाश्वत प्रेम मन के भी पार है...कण-कण में छिपा जिसका आधार है
जवाब देंहटाएंबहुत गहन और सुन्दर परिभाषा प्रेम की |
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण परिभाषा ..... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंकमेंट में क्या लिखूँ
जवाब देंहटाएंप्यार पर कुछ लिख पाना
मेरे लिए कहाँ आसान
प्रेम तो ऐसा ही होना चाहिए .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
शाश्वत प्रेम की उत्कृष्ट रचना... बहुत सुंदर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है
प्रेम शरीर से परे एक अनुभूति है! और जब इसे आप व्यक्त करती हैं तो भाव्नाओं को एक नई उड़ान मिल जाती है और अभिव्यक्ति को पर!! आज इस कविता को पढ़ते हुए मन से आवाज़ आई - सिर्फ एहसास है ये/रूह से महसूस करो!!
जवाब देंहटाएंसत्यम, शिवम् , सुंदरम …समय की रेत पर प्रेम के शाश्वत निशाँ.....
जवाब देंहटाएंवह मंत्र सदृश्य सत्य शिव सा सुन्दर होता है
जवाब देंहटाएंप्रेम अश्रु बन जाता है प्रसाद
और साथ साथ चलते
बनते हैं शाश्वत निशाँ
हमारे … ....
एक दिव्य अनुभूति ....बहुत सुंदर रचना ...!!
प्रेम ही अदबुद्ध परिभाषा ...अनुपम भाव संयोजन दी ...:)
जवाब देंहटाएंप्रेम हर परिधि से बाहर शाश्वत हो जाता है
जवाब देंहटाएंजब प्रेम की पूजा में प्रेम पुष्प अर्पित होते हैं
सादर !
मैं सुनती हूँ
जवाब देंहटाएंतुम सुनते हो
वह मंत्र सदृश्य सत्य शिव सा सुन्दर होता है
प्रेम अश्रु बन जाता है प्रसाद
और साथ साथ चलते
बनते हैं शाश्वत निशाँ
हमारे …
.. बहुत सुन्दर प्रेम का गम्भीर चिंतन..
bahut sundar
जवाब देंहटाएंप्रेम को बहुत गहरे में महसूस कर के लिखी है जैसे ये रचना ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंसूंदर प्रस्तुति।।।
जवाब देंहटाएंहौले से जो मैं कहती हूँ
जवाब देंहटाएंतुम कहते हो
मैं सुनती हूँ
तुम सुनते हो
वह मंत्र सदृश्य सत्य शिव सा सुन्दर होता है
नि:शब्द करती लेखनी ......
............ मौन के साये में यह पंक्तियां कहीं गहरे उतरती चली जाती हैं