मैं तो ज़िंदा हूँ
फिर खाली हो गए कमरे सा
मेरा अंदरूनी हिस्सा गूंज क्यूँ रहा है !
भूलभुलैये सा बन गया मस्तिष्क
जाने किन बातों के जाल में
खो सा गया है !
...
ढूँढ रहा है मुझे
मेरे नाम को
मेरी मेडल सी हँसी को
पीछे से एक अपनी सी आवाज़ गूँजती है
... सेल्फ रेस्पेक्ट को दाव पर मत लगाओ
... सन्न सा मन
एक नज़र सेल्फ रेस्पेक्ट पर डालता है
फिर ताखे पर रखे मोहबंध पर
जाने मन बड़बड़ाता है
या ज़ुबान से कुछ सुलझे-उलझे शब्द निकल रहे हैं !
जो भी हो,
इसे हार नहीं कहते
जीते हुए के साथ
जो बाज़ी खेली है दूसरों ने
वह सरासर बेईमानी है !
आज ईमानदारी
जवाब देंहटाएंसबसे बड़ी
बेईमानी सिद्ध
कर दी जाती है
बेईमानों के लिये
एक हथियार
हो जाती है ।
बहुत सुन्दर ।
अपने अंदर का खालीपन और उस खालीपन को ताकत बनाकर अपना आत्मसम्मान बनाए रखना... वही जीतने वाला सिकंदर है! भावनाओं में लिपटी एक बेहद संवेदनशील रचना!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंजो खाली है वही भरा है..इस खालीपन को प्रेम करना जो सीख जाये वही एकांत को पाता है
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-09-2016) को "हिन्दी का सम्मान" (चर्चा अंक-2463) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत कठिन है डगर...
जवाब देंहटाएंजिंदगी की मुश्किल राहों पे एकांत अक्सर कहता रहता है कुछ ...
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