13 सितंबर, 2016

मन की विक्षिप्तता परिवर्तन की स्थिति है



जब जहाज डूबने का मंज़र होता है
तो निश्चेष्ट मन शरीर से गतिशील होता है
एक नहीं
खुद पर आश्रित कई यात्रियों को बचाता है
क्योंकि और कोई हो न हो
देवता साथ होते हैं
उनके साथ भी जो बचाते हैं
और उनके साथ भी जो बच जाते हैं !

मन की तूफानी स्थिति में
कुछ भी बेकार नहीं होता
हर दबी हुई चीख
जम गई धूल को
 करीने से साफ़ करती है
खिड़की दरवाजों को
बेबस होकर ही सही
सख्ती से बन्द करती है
फिर अँधेरे कमरों में
हौसलों के दीप प्रज्ज्वलित करती है  ...

हमें लगता है -
"हम पागल हो रहे हैं"
पर दरअसल हम
पागलपनी से बाहर निकल रहे होते हैं !
अच्छी भावनाओं के अतिरेक पर
नियंत्रण ज़रूरी होता है
और यह तभी होता है
जब हम औंधे मुँह गिरते हैं
आश्चर्य का रक्त तेजी से प्रवाहित होता है
प्रश्नों का प्रलाप होता है
सबकुछ व्यर्थ लगता है
लेकिन सुबह का सूरज
तभी अँधेरे को चीरकर निकलता है !!

जुगनू राह दिखाता है
विनम्रता सुकून देती है
लेकिन अँधेरे को दूर करने के लिए
सूरज का आना ज़रूरी है
अपमान के आगे विनम्रता
महज कायरता है !

जब तक रहे श्री कृष्ण संधि प्रस्ताव लिए
दुर्योधन ने उनको बाँधने की धृष्टता दिखाई
एक विराट स्वरुप के आगे
पूरी सभा सकते में आई
...
कुरुक्षेत्र एक तूफ़ान था
अर्जुन के मन के हर उथलपुथल के आगे
कृष्ण खड़े थे
विश्वास रहे
तूफ़ान,
मन की विक्षिप्तता
 परिवर्तन की स्थिति है
बन्द रास्तों की चाभी इसी तरह मिलती है  ...

7 टिप्‍पणियां:



  1. तूफ़ान,
    मन की विक्षिप्तता
    परिवर्तन की स्थिति है
    बन्द रास्तों की चाभी इसी तरह मिलती है ...

    प्रलय के बाद ही नई सृष्टि होती है

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  2. बहुत सुन्दर ।
    देवता भी जरूरी हैं
    चाभी ढूँढते समय
    समय भी जरूरी है
    साथ देने के लिये ।

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  3. मन की उहापोह को उकेरती सुंदर पंक्तियाँ !

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2466 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. विश्वास रहे
    तूफ़ान,
    मन की विक्षिप्तता
    परिवर्तन की स्थिति है
    बन्द रास्तों की चाभी इसी तरह मिलती है ...
    अत्यंत गहन बात ...

    जवाब देंहटाएं

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