माँ कमज़ोर नहीं होती
लेकिन माँ माँ होती है
एक तरफ मोम सी आँखें पिघलती हैं ज़रूर
पर यकीनन वह अँधेरे से लड़ती है ... !
डर जाना
डर लगना तो एक आम बात है
लेकिन आग के दरिया को
वह हर हाल में पार करती है
...
माँ अपने आप में दुआओं का धागा है
मन्नत पूरा करनेवाला वृक्ष भी स्वयं
बाँध देती है अपने आप को
हर तने से
अधूरे मन्त्रों का जाप
वह इतनी निष्ठा से करती है
कि सरस्वती खुद
साथ साथ मंत्रोच्चार करती हैं
माँ ध्यानावस्थित होती है
चलायमान दिखती है
महिषासुर का वध करती है
गणेश की रचना करती है
माँ प्रकृति के कण कण से
आशीषों का शंखनाद करती है
.... बावजूद इसके
वह दिखती है कई बार काँपती हुई
लेकिन गौर करना -
हर कम्पन में रक्षा मन्त्र होता है
तभी तो
वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की आदिशक्ति है।
माँ माँ होती है इसके आगे कहने के लिये कुछ नहीं होता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।
हर कम्पन में रक्षा मन्त्र होता है...बाँध देती है,बिलकुल सही
जवाब देंहटाएंमाँ शक्ति स्वरूपा है ...उसके हर क्रियाकलाप में रक्षा सूत्र पिरोया होता है .
जवाब देंहटाएंमाँ तो बस माँ होती है! फिर तो जितने भी गुणों का बखान कोइ करे, सब उसमें ही हैं!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-10-2016) के चर्चा मंच "आदिशक्ति" (चर्चा अंक-2482) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंशारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदिशक्ति को शतशत नमन..नवरात्रि के शुभ अवसर पर सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भाखड़ा नंगल डैम पर निबंध - ब्लॉग बुलेटिन“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंमाँ क्या होती है और अपने बच्चों के लिए क्या - क्या हो सकती है यह कल्पना से परे है ! आदि शक्ति माँ को - शत शत प्रणाम ! नव रात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं आपको भी और सभी पाठकों को भी ! बहुत ही सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंमाँ जब रचती-सँवारती है तो उसकी दृढ़ता भी वात्सल्य की कोमलता से भर जाती है. सुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअचिन्तयरूपा बस माँ ही हो सकती हैं ।
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