जहाँ भी उम्मीद की छाया दिखती है
साँकल खटखटा ही देती हूँ
सोचती हूँ एक बार
खटखटाऊँ या नहीं
लेकिन अब पहले जैसी दुविधा देर तक नहीं होती
उम्र की बात है - !
यौवन की दहलीज़ पर
होठ सिल ही जाते हैं
भय भी होता है
... जाने क्या हो !
"ना"
या कोई भी जवाब नहीं मिलना
मन को कचोटता है
खुद पर विश्वास कम होता है !
उम्र की बरगदी जड़ें
अब भयभीत नहीं करतीं
मेरे अंदर कुछ पाने की धुन है
और कब कहाँ से
कौन सी धुन
मेरी जिजीविषा की प्यास बुझा दे
सोचकर
हर दिन कोई अनजान साँकल खटखटा देती हूँ
उम्मीद ज़िंदा है
कब अमर हो जाए
क्या पता ...
उम्मीदें
जवाब देंहटाएंजिंदा
रहें
फुलें
फलें
बिखरें
बिखेरें
खुश्बुएं ।
उम्र की बात .... अनुभव का साथ
जवाब देंहटाएंलाजवाब लेखन !
इंसान के साथ हर पल उम्मीद रहती ही है... बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहम जैसे प्रतीक्षित भी
जवाब देंहटाएंउम्मीद ज़िंदा है
जवाब देंहटाएंकब अमर हो जाए
क्या पता ...
बहुत सुंदर ....
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-10-2016) के चर्चा मंच "डाकिया दाल लाया" {चर्चा अंक- 2500} पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंकरवाचौथ की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उम्र की बरगदी जड़ें
जवाब देंहटाएंअब भयभीत नहीं करतीं
मेरे अंदर कुछ पाने की धुन है
और कब कहाँ से
कौन सी धुन
मेरी जिजीविषा की प्यास बुझा दे
सोचकर
हर दिन कोई अनजान साँकल खटखटा देती हूँ
उम्मीद ज़िंदा है
कब अमर हो जाए
क्या पता ...
बहुत सुन्दर
उम्र के साथ तजुर्बा बढ़ जाता है असमंजस भी नहीं रहता
.. उम्मीद पर दुनिया कायम है ..
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंयौवन की दहलीज़ पर
जवाब देंहटाएंहोठ सिल ही जाते हैं
भय भी होता है
... जाने क्या हो !
"ना"
या कोई भी जवाब नहीं मिलना
मन को कचोटता है
खुद पर विश्वास कम होता है !
यौवन के दौर में अंतर्द्वंद्व कुछ अधिक होता है, कठिन होता है स्थिति को समझ पाना.
सांकल का खटखटाया जाना ही ज़रूरी है... बहुत सुन्दर बात कही है दीदी!!
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने पढ़कर लगा कि उम्मीद जिन्दा है!
जवाब देंहटाएंबहुत ही वास्तविक सोच. Congrats!
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