जी गई कहानियों की पांडुलिपि
हर किसी के मन में होती है
कोई सुना देता है
कोई छुपा लेता है
कोई बीच के पन्ने फाड़ देता है ...
पृष्ठभूमि सबकी
लगभग एक सी होती है
हादसे,रिश्ते, ...
बस पृष्ठ की किस संख्या पर वह दर्ज है
इसीका फर्क होता है
आस्तिक नास्तिक हो जाता है
नास्तिक आस्तिक
जीवन चक्र सारे खेल दिखाता है !
गलत कौन होता है भला
अपनी जगह पर सब सही होते हैं
सारे दृश्यों के कान उमेठ दो
तो सबकुछ अपने पक्ष में होता है
तर्क,कुतर्क का महाजाल है
जितना बोलोगे
उतना फँसोगे ...
बस मानकर चलो
कि होनी का पासा सबके लिए होता है
ईश्वर भी मजबूर
किंकर्तव्यविमूढ़
क्रोध में होता है
शिव का तांडव यूँ ही नहीं होता !!!
सच गलत कोई नहीं होता है :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 03 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंतर्क कुतर्क के साथ सब अपने को सही ही समझते हैं ...
जवाब देंहटाएंसब कोई अपनी बुद्धि के अनुसार ही व्यवहार करते हैं, इस हिसाब से देखा जाये तो कोई गलत नहीं है, क्योंकि जिसके पास जितना होगा उतना ही तो बरतेगा..
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