दूसरों के हादसे
शब्द शब्द आँखों से टपकते हैं
उसे कहानी का नाम दो
रंगमंच पर दिखाओ
या तीन घण्टे की फिल्म बना दो ... !
नाम,जगह,दृश्य से कोई रिश्ता बन जाए
ये अलग बात है !
पर हादसे जब अपने होते हैं
तो उसे कहने के पूर्व
आदमी एक नहीं
सौ बार सोचता है
एक पंक्ति पर
सौ अनुमान
सौ प्रश्न उठते हैं
हादसे सिमटकर एक कोने में होते हैं !
सच के आगे
अनगिनत शुभचिंतकों की रेखा होती है
कि उसे ना कहा जाए !
हादसे व्यक्तिगत होते हैं
उन्हें सरेआम करना सही नहीं !!
अनजान हादसों को कहना-सुनना
अलग बात है
!!!
कितनी अजीब बात है
लेकिन सच यही है -
कि
आत्मकथा को कितने लोग निगल पायेंगे
यदि उसमें एक चेहरा उनका भी हो तो !
सच जो घर परिवार हादसों का शिकार होता है उस पर क्या गुजरती है वही समझ सकता है। .
जवाब देंहटाएंबहुत सही
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 09 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सटीक ।
जवाब देंहटाएंअपने साथ हुए हादसे जितनी बार दोहराए जाएँ उतनी बार यातना देते हैं... बहुत दुरुस्त कहा है आपने दीदी!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की विजयदशमी विशेषांक बुलेटिन, "ब्लॉग बुलेटिन परिवार की ओर से विजयादशमी की मंगलकामनाएँ “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंखुद को दोहराना आसान तो नहीं होता ...
जवाब देंहटाएंदूसरों के जैसे खुद की बयानगी मुश्किल..।
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