15 नवंबर, 2017

मैं तुमसे कभी नहीं मिलना चाहूँगी




मैं तुमसे कभी नहीं मिलना चाहूँगी
फिर भी,
गर मिल गए
तो मेरी खामोश नफरत को कुरेदना मत
क्योंकि उससे जो आग धधकती है
उस चिता में
तुम्हारे संग
 कुछ आत्मीय चेहरे भी
झुलसने लगते हैं
उन चेहरों को निकालते हुए
मेरा हृदय छालों से भर जाता है
फिर ...

जिस किसी ने भी
यूँ ही सही
तुम्हारा हाल पूछा है
जवाब देते हुए मैंने
एकलव्य की तरह बाण चलाये हैं
द्रोणाचार्य को बेबसी से देखा है
उस क्षण भूल गई हूँ
एक शिष्य का कर्तव्य !
बात दक्षिणा की नहीं
श्रद्धा, सम्मान की है
जब जब तुम्हारा ज़िक्र हुआ है
मेरे संतुलित संस्कार नष्ट हो गए हैं !!!

मेरी सहजता ने सच कहा सबसे
बताया मेरी नफरत का अर्थ विस्तार से
लेकिन
आह! करके
वे तथाकथित अपने
निर्विकार होकर तुम्हारी बातें करने लगे
बात बुरा लगने की नहीं थी
बात थी मेरी उन हत्याओं की
जो कई स्थलों पर
कई बार हुई ...
बिल्कुल जलियाँवाला बाग़ की तरह !

यद्यपि
ये सारे निर्विकार अबोध
अपनी छोटी सी बात पर
दुःशासन बन जाते हैं
कहीं भी
कभी भी
अपमानित करने से नहीं चुकते
पर,
जहाँ मौन रहना चाहिए
या एक सत्य की रक्षा में
झूठ बोलना चाहिए
वहाँ सूक्तियाँ बोलते हैं !

यदि ऐसा करना
इनका इठलाना है
तो ज़रूरी है ये जानना
इठलाते हुए
अनाप शनाप बोलते हुए
ये खुद को हास्यास्पद बनाते हैं
अपने इर्द गिर्द नकारात्मकता फैलाते हैं  ...

खैर,
मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ
कि
मैं तुमसे कभी नहीं मिलना चाहूँगी
फिर भी,
गर मिल गए
तो मेरी खामोश नफरत को कुरेदना मत !!!

10 टिप्‍पणियां:

  1. जब जब तुम्हारा ज़िक्र हुआ है
    मेरे संतुलित संस्कार नष्ट हो गए हैं !!!
    कितनी सशक्त बात कहती है लेखनी .....सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. नफरत की आग में इन्सान खुद ही झुलसता है इस बात को जानते हुए भी..

    जवाब देंहटाएं
  3. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 16 -11-2017 को प्रकाशनार्थ 853 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत शानदार कविता,भावपूर्ण मनोभावों का अति सशक्त चित्रण..वाह्ह्ह👌👌

    जवाब देंहटाएं
  5. पाठक को प्रभावित करने वाले सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!!!
    बहुत सुन्दर खामोश नफरत....

    जवाब देंहटाएं
  7. फिर भी,
    गर मिल गए
    तो मेरी खामोश नफरत को कुरेदना मत !!!

    वाह बहुत सुंदर रचना। दिलकश बेबाकी।

    जवाब देंहटाएं
  8. सशक्त चित्रण निशब्द... :) just want to say hats of to you mam.....

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...