30 नवंबर, 2017

मैं .......




....
मैं एक माँ हूँ
जिसके भीतर सुबह का सूरज
सारे सिद्ध मंत्र पढता है
मैं प्रत्यक्ष
अति साधारण
परोक्ष में सुनती हूँ वे सारे मंत्र  ...
ॐ मेरी नसों में
रक्त बन प्रवाहित होता है
आकाश के विस्तार को
नापती मापती मैं
पहाड़ में तब्दील हो जाती हूँ
संजीवनी बूटियों से भरा पहाड़ !
मेरी ममता शांत झील सी
कब सागर की लहरें बन जाती हैं
पता ही नहीं चलता  ...
शिव जटा से गिरती मैं
मोक्ष का कारण बनती हूँ
ब्रह्माण्ड बनी मैं
परिवर्तन के धागे बुनती हूँ !
रक्षा के षट्कोण बनाती हूँ
दीप प्रज्ज्वलित करती हूँ
शुभ की कामना लिए
दसों दिशाओं में
मौली बाँधती हूँ
आँचल के पोर पोर में
आशीर्वचन लिखती हूँ
... घुमड़ते हैं बादल भी कभी कभी
होती है बारिश
इंद्रधनुष थिरकता है
ख्वाब पनपते हैं

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 01 दिसम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. माँ होना ही अपने आप में सब कुछ है।

    बहुत सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. आइये माँ को नज़र भर देखिये
    कौन कहता है,खुदा होते नहीं !

    जवाब देंहटाएं
  5. अत्यंत सुन्दर भावनायें ! बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. माँ के आगे सभी सभी शब्द गौण हो जाते हैं ... कुछ पवित्र है तो बस माँ ...सादर

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...