14 अप्रैल, 2018

सब सही है




हर मृत्यु के बाद
रोज़मर्रा की साँसे
ले ही लेता है इंसान !
खाते हुए,
सोते हुए देखकर
लगता तो यही है
पर,
!!!
साँसें
किसी संकरे नाले से
गुजरती हुई सी लगती है !
पूछने से तो यही जवाब मिलेगा
कि
सब ठीक है
....
क्या सचमुच सब ठीक होता है ?!

चिड़िया भी रोज चहक लेती है
लेकिन चहक में वो बात नहीं होती
वह गा रही है
या रो रही है
कौन समझता है चिड़िया की भाषा
उसे तो दिखता है
उसका फुदकना
चोंच खोलना
और सुनाई देती है चीं चीं
गीत है या रुदन
किसे पता !

वह बच्चा रो रहा है
उसे चुप कराना है
वह भूखा है
उसे खाना देना है
एक तरफ
ज़रूरतें मुँह बाये खड़ी हैं
दूसरी तरफ दिनचर्या
समझ से परे है
अपनेआप को भी समझ पाना
साँसों का क्या है
जब तक चलना है
चलेंगी ही  ...
कैसे का कोई जवाब नहीं
हम - आप जो समझ लें
सब सही है
!!!

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन डॉ. भीमराव अंबेडकर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया देवी नागरानी जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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  3. सब ठीक है के अलावा कुछ बोलो तो लोग कहाँ समझते हैं ...
    S तक समझने आने की किसे फ़ुर्सत है ...
    लाजवाब रचना ...

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  4. जीवन एक नदी की धारा की तरह बहता ही जाता है..उसे कितना भी रोकें चट्टानें अथवा बाँध, वह कोई न कोई रस्ता खोज ही लेता है..बच्चे तो बहाना हैं, यदि कोई न भी हो आत्मा का स्वभाव है सुख की तलाश..क्योंकि वह बनी ही आनन्द से है, कितना भी बड़ा दुःख हो वह हार जायेगा और मन फिर जीवन तलाशेगा..किसी न किसी बहाने से ही सही..

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  5. बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं।
    भावों को शब्दों में पिरोना कोई आपसे सीखे।

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