29 अप्रैल, 2018

कुछ यूँ महसूस होता है ...



खींचता है मुझे अपनी तरफ
वो ब्लैक एंड व्हाइट का ज़माना
गीत, तस्वीरें
वो अल्हड़पन  ...
जाने कब तक सुनती जाती हूँ कोई खोया खोया
अधजगा सा गीत
प्यास,उदासी,मिट्टी, इंतज़ार के !
रंगीन तस्वीरों को
ब्लैक एंड व्हाइट करती जाती हूँ
और  ... बात ही बदल जाती है !

कविता सुनते हुए
शायद कविता से भी अधिक खूबसूरत, मोहक
मुझे  ब्लैक एंड व्हाइट में उभरते पात्र लगते हैं
उनकी घूमती नज़रें
उनका बेफ़िक्र सा अंदाज़
लगता है,
कुछ यूँ महसूस होता है,
जैसे किसी ने मुझे बाँधकर बैठा दिया है !
सपनों के ब्लैक एंड व्हाइट बादल उमड़ते हैं
और,
एक प्याली चाय के संग मैं गुनगुनाने लगती हूँ
"ऐसे में कहीं कोई मिल जाए"
एक तितली मेरे कंधों पर आकर बैठ जाती है
काले मेघ रिमझिम बरसने लगते हैं,
चेहरे पर समेटने लगती हूँ मैं
-बारिश की बूँदों को,
वक़्त प्यानो बजाने लगता है
मैं धीरे से कहती हूँ,
"मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं"(अमृता प्रीतम)
सुनाई देती है उसकी चिर परिचित आवाज़
....
"बाँध दिए क्यों प्राण प्राणों से!
तुमने चिर अनजान प्राणों से!
यह विदेह प्राणों का बंधन,
अंतर्ज्वाला में तपता तन,
मुग्ध हृदय सौन्दर्य ज्योति को,
दग्ध कामना करता अर्पण,
नहीं चाहता जो कुछ भी आदान प्राणों से! "
( सुमित्रानंदन पंत)







6 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर। खूबसूरत रंगो से मिलकर ही बन जाता है कब काला और सफेद कौन समझता है?

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  2. बेहद प्यारी सी कविता..श्वेत-श्याम फिल्म की नायिका की तरह..

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  3. जैसे कि वक्त ठहर जाता है उसी श्वेत श्याम वाले समय में...
    इस रिमझिम बारिश में भीगे हम भी....एक कप चाय हो जाये!

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  4. ये बेफ़िक्र सा अंदाज बेहद खूबसूरत है । जैसे बाँध लिया हो मोहक जाल में ....

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  5. सुंदर रचना...
    रंगीनियाँ चल रही होती है आँखों के सामने लेकिन असल में हम तो डूबे होते है अपने ही किसी ब्लैक एंड वाइट दृश्य में



    आपका स्वागत है मेरे यहाँ -----> खैर 

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  6. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पहली भारतीय फीचर फिल्म के साथ ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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