20 जुलाई, 2020

ताना - बाना - मेरी नज़र से - 6
















ताना-बाना
उषा किरण
शिवना प्रकाशन 






रास्ते मुड़ सकते हैं
हौसले नहीं
वादे टूट सकते हैं
हम तुम नहीं ....
कोई ना थी मंजिल
न था कारवां
अजनबी सा लगता रहा
सारा जहाँ
कारवां खो सकता है
मंजिलें नहीं
राहें रुक सकती हैं
हम तुम नहीं ...
रात भर दर्द रिसता रहा
मोम की तरह पिघलता रहा
तुम जो आए जीने की चाह जग उठी
नाम गुम हो सकता है
आवाजें नहीं
रिश्ते गुम हो सकते हैं
हम तुम नहीं ...! ...
महीनों का फ़लसफ़ा रहा यह ताना-बाना मेरी कलम से । टुकड़े टुकड़े पढ़ती गई, जीती गई - शब्द शब्द भावनाओं को, रेखाओं को ।
निःसंदेह, किसी एक दिन का परिणाम नहीं यह ताना-बाना । बचपन,यौवन,कार्य क्षेत्र, सामाजिक परिवेश, रिश्तों के अलग अलग दस्तावेज,क्षणिक विश्वास, स्थापित विश्वास, और आध्यात्मिक अनुभव है यह लेखन ।
कई बार ज़िन्दगी घाटे का ब्यौरा देती है और कई बार सूद सहित मुनाफ़ा -
"बेटी तो आज भी
उतनी ही अपनी थी,
ब्याज में एक बेटा..."
कुछ भी यूँ ही नहीं होता" प्रयोजन जाने बग़ैर हम अशांत हो उठते हैं, लेकिन कोई भी प्रयोजन एक मार्ग निश्चित करता है । जैसे कवयित्री का मार्ग दृष्टिगत है ...
"हवा का झोंका
हौले से छूकर गुजर गया
...
सौगातें छोड़ गया"
क्रमशः



8 टिप्‍पणियां:

  1. क्या कहूँ...रोज सुबह उठ कर सोचती हूँ जाने आज क्या लिखेंगी आप...जैसे बच्चे सोचते हैं जब उनके एग्जाम की कॉपी चैक होती है कुछ वैसी सी ही अनुभूति ...पढ़ कर फिर मन मोरा .....मोर सा 🦚

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21 -7 -2020 ) को शब्द ही शिव हैं( चर्चा अंक 3769) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  3. छुक छुक चलती रेल जैसे ताने बानों की। लाजवाब।

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  4. सुदृढ़ ताने-बानों से बुनी गई चदरिया ! वाह

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  5. ये ताने बाने जीवन में नाज़ुक कहाँ होते हैं जो गुनगुनाते हैं समय की पगडंडी पर ...
    लाजवाब ...

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...