यह ताना-बाना अपने पूरे शबाब के साथ मुझे बहुत पहले मिला, यूँ लगा था किसी ने भावों का भावपूर्ण गुलदस्ता सजाकर मुझे कुछ विशेष वक़्त के मोड़ पर ले जाने को सज्य किया है । वक़्त के खास लम्हों में मुझे बांधने का अद्भुत प्रयास किया उषा किरण ने ।
उषा किरण, सिर्फ एक कवयित्री नहीं, रेखाओं और रंगों की जादूगर भी हैं । एक वह धागा, जो समय,रिश्ते,भावनाओं को मजबूती से सीना जानता है,उसे जीना जानता है । यह संग्रह उन साँसों का प्रमाण है, जिसे उन्होंने समानुभूति संग लिया । ऐसा नहीं कि विरोध के स्वर नहीं उठाए, ... उठाए, लेकिन धरती पर संतुलन बनाते हुए ।ॐ गं गणपतये नमः की शुभ आकृति के साथ अनुक्रम का आरम्भ है, तो निर्विघ्न सारी भावनाएं पाठकों के हृदय तक पहुँची हैं । परिचय उनके ही शब्दों में
,"क्या कहूँकौन हूँ ?
...उड़ानें बिन पंखों के जाने कहाँ कहाँ ले जाती हैं
...कौन हूँ ?"
क्या कहूँ ? परी या ख्वाब, दूब या इंद्रधनुष, ध्रुवतारा या मेघ समूह, ओस या धरती को भिगोती बारिश या बारिश के बाद की धूप ... पृष्ठ दर पृष्ठ जाने कितने रूप उभरते हैं । उषा का आभास सुगबुगाते हुए नए दिन का आगाज़ करता है, मिट्टी से लेकर आकाश की विशालता का स्पर्श करता है, अनदेखे,अनसुने,अनछुए एहसासों का प्रतिबिंब बन हृदय से कलम तक की यात्रा करता है और कुछ यूँ कहता है,
"सुनी है कान लगाकर
उन सर्द, तप्त दीवारों पेदफ़न हुई पथरीली धड़कनें ..."
शायद तभी,"हैरान, परेशान होकर पाँव ज़मीन पर रख..
."एक मन-ढूंढने लगता है स्लीपर, ... ताकि बुन सके क्रमिक ताना बाना
क्रमशः
जारी रखें। बुनना जारी रहे।
जवाब देंहटाएंओह ! रश्निप्रभा जी ...निश्शब्ट हूँ फिलहाल....जैसे आपके शब्दों को पढ़ते बादलों की नमी से गुजर रही हूँ...प्यार आपको 🥰😘...आगे का इंतजार है🙏
जवाब देंहटाएंउन सर्द, तप्त दीवारों पे दफ़न हुई पथरीली धड़कनें ..." वाह! सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअच्छा बुना है ताना-बाना।
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली लेखन
जवाब देंहटाएंसशक्त अभिव्यक्ति मैम !
जवाब देंहटाएं