11 अक्तूबर, 2009

हम....यानि मैं और तुम !




हम साथ चले.....
एक धरती तुम्हें मिली
एक मुझे !
एक आकाश तुम्हे मिला
एक मुझे !
.....मैंने अपनी पूरी धरती को
स्नेहिल कामनाओं से सींचा
प्यार के खाद से
उसे उर्वरक बनाया.......
अपनी पसंद से अधिक
तुम्हारी पसंद का ख्याल किया !
फसल हुई
तो बराबर का हिस्सा किया....
फसल देते वक़्त
उम्मीद भरी नज़रों से
मैंने तुम्हे देखा....
तुम मुंह बिचकाए
मेरे जाने के इंतज़ार में थे !
मैंने तुम्हारी धरती की तरफ देखा
सारी फसल तुम्हारी थी !
मैं कीमत का आकलन करने में
असमर्थ रही
तुम धनाढ्य लोगों में गुम रहे !
यादों को
रिश्तों को
सिर्फ मैंने जीया
तुम तो वर्तमान की पुख्ता धरती पर
'स्व' तक सीमित रहे
मैंने खोया
तुमने पाया !..........
जीवन की शाम है
धरती का एक टुकडा मुझे मिलेगा
तो निःसंदेह
तुम भी एक टुकड़े के ही भागीदार होगे
पर तुम -
अकेले रहोगे,
मेरे साथ -
मेरे सुकून के आंसू होंगे !


34 टिप्‍पणियां:

  1. भोगे हुए यथार्थ का सार्थक चित्रण.
    संत्रास भी बखूबी परिलक्षित है

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  2. बहुत ही भावुक रचना लिख दी है आज आपने ..

    तुम तो वर्तमान की पुख्ता धरती पर
    स्व तक सीमित रहे ...
    और आंसुओं का साथ ....सुन्दर अभिव्यक्ति...मन को छू गयी ये रचना...बधाई

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  3. kabhi kabhi doosre ki khushi me hi khushi milti hai..uski jeet ke liye khud ko haar jana achha lagta hai....apne liye ansu bahut hai..rone me hi sakoon hai par dua hai ki wo kahi bhi rahe tanha magar na rahe....apki kavita ik poori kahani kah gyee...

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  4. हम साथ चले.....
    एक धरती तुम्हें मिली
    एक मुझे !
    एक आकाश तुम्हे मिला
    एक मुझे !
    .....मैंने अपनी पूरी धरती को
    स्नेहिल कामनाओं से सींचा
    सुन्दर अभिव्यक्ति
    भावुक रचना

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  5. मन को छू गयी......... बहुत अच्छा लिखती हैं आप.. आपकी सुन्दर रचनाओं का इंतज़ार रहेगा... शुभकामनायें!!!

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  6. बहुत ही मार्मिक कविता है......यथार्थ के करीब
    ''पर तुम
    अकेले रहोगे
    मेरे साथ
    मेरे सुकून के आंसू होंगे''
    नारी यह भी नहीं कर पाती...अपने उस टुकड़े को फिर से अर्पित कर देती है.

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  7. पर तुम अकेले रहोगे --मेरे साथ मेरे सुकून के आंसू होंगे. आपने सच्चे साहित्यकार की नियति को भी इस बहाने सटीक रेखांकित किया है. बधाई

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  8. yatharth ko darshati ek marmik , bhavuk rachna hai..........aakhir koi kab tak tukdon mein bante aur jiye.

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  9. बहुत ही अद्भुत रचना लगी आपकी यह ..सुन्दर भाव और मन को छु लेने वाली रचना है यह शुक्रिया

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  10. हम साथ चले.....
    एक धरती तुम्हें मिली
    एक मुझे !
    एक आकाश तुम्हे मिला
    एक मुझे !
    बहुत सुंदर.
    धन्यवाद

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  11. कमाल के प्रतिकों को बुना है मैम...

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  12. जीवन की शाम है
    धरती का एक टुकडा मुझे मिलेगा
    तो निःसंदेह
    तुम भी एक टुकड़े के ही भागीदार होगे
    पर तुम
    अकेले रहोगे,
    मेरे साथ -
    मेरे सुकून के आंसू होंगे |

    इतना दर्द आपकी कविता से टपक रहा जो किसी को भी द्रवित कर दे | सही एक वो जो झूठे आहंकर का सुख भोगता है और एक वो जो स्वाभिमान के लिए दर्द के आंसू तो बहता है परन्तु हारता नहीं, दृढ़ता से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करता है | काल दोनों को एक ही अंत देता है लेकिन एक साथ ले जाता है अपने दुष्कर्मो का पश्च्याताप और एकाकीपन, वही दूसरा सुकून के आंसू और अपना स्वाभिमान |

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  13. बहुत ही जीवंत और बहुत ही दिल के करीब लिखा है आपने। बहुत अच्छा लगा।

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  14. Tum akele rahoge;
    aur mere saath sukoon ke aansoo honge

    aapki ye nazm hamari hui....poori nazm ko pain mein jeete hue jo last mein positivity likh di aapne bas wahi laga.....ke jaise khokar paana kya hota hai.....padh kar sukoon mila

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  15. जीवन का सच दर्शाती अभिव्यक्ति... सच है जीवन के अंतिम पड़ाव पर हर किसी के हिस्से में सिर्फ "धरती का एक टुकड़ा" ही आता है फिर वो चाहे कोई भी क्यूँ ना हो...
    गुलज़ार साब की एक त्रिवेणी याद आ गयी -
    "सब पे आती है सबकी बारी से
    मौत मुंसिफ है कम-ओ-बेश नहीं

    ज़िन्दगी सब पे क्यूँ नहीं आती"

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  16. अकेलेपन का एहसास जीवन के अंतिम वसंत पर ही होता है .......... उस वक़्त पूरा जीवन चलचित्र की भाँती सामने से घूम जाता है ........... बहूत ही शशक्त रचना है ..........

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  17. अकेलेपन का एहसास जीवन के अंतिम वसंत पर ही होता है .......... उस वक़्त पूरा जीवन चलचित्र की भाँती सामने से घूम जाता है ........... बहूत ही शशक्त रचना है ..........

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  18. दर्द के साथ ही जीवन के यथार्थ को बहुत खूबसूरती के साथ पेश करती हुई एक बेहतरीन रचना---
    हेमन्त कुमार

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  19. बहुत भावपूर्ण रचना है। बहुत सुन्दर!!

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  20. जीवन की शाम है
    धरती का एक टुकडा मुझे मिलेगा
    तो निःसंदेह
    तुम भी एक टुकड़े के ही भागीदार होगे
    पर तुम
    अकेले रहोगे,
    मेरे साथ -
    मेरे सुकून के आंसू होंगे |
    शायद पूरी नारी जाती का दर्द छिपा है इस कविता मे सुन्दर अभिव्यक्ति आभार्

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  21. अपने मन की सच्ची बातें कवयित्री सीधे-सीधे अपने ही मुख से कह रही है और पाठक को उन भावों के साथ तादातम्य अनुभव करने में बड़ी सुगमता होती है। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। बधाई।

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  22. बहुत खूब लिखा हें आपने
    आप् हमे ऐसा लिखने की
    प्रेरणा देते हें!!
    आपको बधाई और धनवाद!!!!!

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  23. रिश्तो को जो जीता है वही खोता है .. अम्मा कहती है न् "जो स्नेह करता है वही दुःख पता है" पर नी:संदेह सबकुछ होते हुए "तुम" अकेला रहेंगा, और "मैं" के साथ सुकून .....
    जीवन का निष्कर्ष (सार) है यह ....ILu

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  24. maine aise bhavo se bhre shbd ka sundar sanyojan nahi padha aaj tak...

    Aap chh gaye antrman ko..
    Sobhagya hai mere jo mein aapse judi hu....

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  25. wow !!
    क्या खूब लिखा है...इन शब्दों में बहुत जान है

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  26. ye jindgi bhi kya hai
    mahaj ek mrigtrishna
    jaha
    kabhi kabhi
    ham kadam saye bi
    jiye chale jate hai
    apni apni jindgi...............

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  27. पर तुम
    अकेले रहोगे,
    मेरे साथ
    मेरे सकूँ के आंसूं होगें

    सारांश बहुत ही सटीक है

    बधाई .

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  28. rashmiji, yeh rachna har vykti ko kisi ke sath hone ya n hone ka ahsas dilati hai. dhanywad, Rajendra Karahe

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...