काम से थककर चूर कर्तव्यों की बलिवेदी पर
जब एक एक करके कई मौत हुई
...
कानून के अंधेपन के आगे
जब कई घरों से विलाप के स्वर
त्रिनेत्र बने
........
तो डरी सहमी लड़कियां सजग होने लगीं
माता पिता ने उन्हें हर शिक्षा देने की ठानी
कानून ने भी कई रास्ते खोल दिए ....
....
पर जो घुट घुटकर जीते हैं
वे उन रास्तों को पार करने से पहले भी
सौ बार सोचते हैं
पैसा ससुरालवाले को दहेज़ में दें
या क़ानूनी दावपेंच को
इस दुविधा में वे आज भी गुमनाम होते हैं !
आरक्षण , कानून , शिक्षा , आर्थिक मामले में
स्त्रियों का जो वर्ग उभरकर नारे लगा रहा है
उनके साथ अन्याय करने की
किसी सहमे पुरुष में हिम्मत नहीं
वह हतप्रभ ... एक कप चाय मांगने पर
अन्यायी बन बैठा है
माँ बहनों के लिए दायित्व निभाता
पत्नी की नज़र में नपुंसक , या क्रूर हो चला है
वैसे यह स्थिति पहले भी थी , कि -
'मैं इधर जाऊँ या उधर जाऊँ ...'
अब तो हर तरफ नारी का वर्चस्व है !
नारी भ्रूण हत्या का मामला जितना गंभीर है
उतना ही गंभीर है लड़कों का आगत से डरना !
यातनाओं के सुलगते दर्द मध्यमवर्गीय परिवार के थे
पर कमान उच्च वर्गीय महिलाओं के हाथ में है ...
पेज 3 के परिधान में भाषण देती
वे कितनी हास्यास्पद लगती हैं
एक बार नम्र होकर पूछें तो सही ...
किटी पार्टी में रोक
नशे में कम कपड़ों में डगमगाने से रोक
पुरुषों के बीच उनके ग्रुप के हास्य में बैठने से रोक
संभ्रांत पुरुषों के ऊपर फंदा बनकर झूलता है
जितनी भी संस्थाएं हैं नारी उत्थान की
वे पैसा खाती हैं
और जिन स्त्रियों को देख ब्रम्हा भी डर जाएँ
उनके लिए नारे लगाती हैं !
जुल्म की शिकार जिस तरह रामायण में शूर्पनखा थी
वही हाल आज ७५ प्रतिशत शहरों में है ....
किसी स्वर्ण मृग का सवाल नहीं
लक्ष्मण कोई रेखा खींचे
मजाल नहीं
अब तो रावण को तथाकथित सीता सावित्री हर लेंगी
प्राण यमराज क्या लेगा
अब तो कानून के आगे
नारी यमराज की कुर्सी लिए बैठी है
मामला हंसने का नहीं बंधु
बहुत गंभीर है
आजकल की लड़कियां अच्छे भले लड़कों को
मानव बनना सिखाती हैं
फिर मानव से महामानव
और देखते देखते वह महामानव
एक बिचारे इन्सान में तब्दील हो जाता है
शिकायती पुलिंदे का सरताज !
..............................