सर्वप्रथम कृष्ण मनुष्य
फिर भगवान्
कभी कुशल राजनेता
कभी सारथी , .....
कभी सार कभी सत्य
आदि अनादि अनंत अच्छेद अभेद
सूक्ष्म ब्रम्हाण्ड
मौन निनाद
वह था
वह है
वह रहेगा ..........
तुम जितना मिटाओगे
वह उभरेगा
कहाँ मार पाया कंस उसे
पूतना ने स्वयं दम तोड़ दिया
क्या कर लिया हिरणकश्यप ने प्रह्लाद का
प्रह्लाद को भस्म करने की चाह लिए
होलिका जल गई !
....
लगी थी दाव पर जब द्रौपदी
भरी सभा में जब हुए थे सब मौन
तो कृष्ण ने महाभारत की नीव रखी
इस पर ऊँगली उठाकर
कर पाओगे क्या तुम कृष्ण को कलंकित ?
दुह्शासन की ध्रिष्ट्ता क्या हो जाएगी गौण
क्या इसके लिए
बचपन से किया कृष्ण ने कोई प्रयोजन ?
......
चेतन ,अचेतन , परोक्ष, अपरोक्ष
इसे वही देख सकता है
जिसमें व्याकुलता हो एकलव्य सी
निष्ठा हो प्रह्लाद सी
जो विनीत हो अर्जुन सा....
द्वेष ,प्रतिस्पर्धा आवेश
असुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
अमृत तो देवता के हाथ ही होता है !
एक गूँज के साथ एकदम अपने आप को स्थापित करती हुई रचना .....!!
जवाब देंहटाएंसार्थक और ज़ोरदार .....!!
बहुत सुंदर ..!!
सूक्ष्म ब्रम्हाण्ड
जवाब देंहटाएंमौन निनाद
वह था
वह है
वह रहेगा ......
तुम जितना मिटाओगे
...बिल्कुल सच कहा है ... इन पंक्तियों में ।
असुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
जवाब देंहटाएंअमृत तो देवता के हाथ ही होता है !
......बहुत सशक्त अभिव्यक्ति आपकी लेखनी को नमन ....।
यदा यदा हि धर्मस्य ...कृष्ण आते रहेंगे , कृष्ण हैं ..
जवाब देंहटाएंद्वेष ,प्रतिस्पर्धा आवेश
जवाब देंहटाएंअसुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
अमृत तो देवता के हाथ ही होता है !
निशब्द कर दिया....बहुत ही उत्कृष्ट और सशक्त प्रस्तुति..आभार
लगी थी दाव पर जब द्रौपदी
जवाब देंहटाएंभरी सभा में जब हुए थे सब मौन
तो कृष्ण ने महाभारत की नीव रखी
इस पर ऊँगली उठाकर
कर पाओगे क्या तुम कृष्ण को कलंकित ?
महासमर तो होना ही था ... हर चीज़ की अति का अंत होता है ..विनाश होना अवश्यम्भावी है ... बहुत सुन्दर विश्लेषण
असुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
जवाब देंहटाएंअमृत तो देवता के हाथ ही होता है !
सही कहा आप ने , बहुत सुंदर रचना. धन्यवाद
असत्य पर सत्य की जीत कर युग में निश्चित है ....वो राम हो या कृष्ण धर्म को जितना ही है .......
जवाब देंहटाएंअमृत तो देवता के हाथ ही होता है !
जवाब देंहटाएंekdam sahi kaha........
लगी थी दाव पर जब द्रौपदी
जवाब देंहटाएंभरी सभा में जब हुए थे सब मौन
तो कृष्ण ने महाभारत की नीव रखी
इस पर ऊँगली उठाकर
कर पाओगे क्या तुम कृष्ण को कलंकित ?
क्या बात है रश्मि जी ...?
ये चीर हरण क्यों हो रहा है हर जगह ....
अब तो मेरा भी मन कर रहा है द्रौपदी पर कोई रचना डाल ही दूँ .....
:))
जब चीजें हद से गुजर जाती हैं तो महा समर होता ही है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त रचना .उत्कृष्ट
लाजवाब, सुन्दर लेखनी को आभार...
जवाब देंहटाएंastay pe satay ki jeet hamesha se hi hui hai... bhut hi sarthak parstuti...
जवाब देंहटाएंअवतार आसमान से नहीं टपकते ... हमारे समाज से ही कोई कोई ऐसे व्यक्तित्व का धनि होता है कि उसे अवतार कहा जाता है ... आज भी हमारे बीच ऐसे अवतार हैं ... हमें उन अवतारों का साथ देना है ... तभी समाज में क्रांति आएगी ...
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत सुन्दर है ... चिंता की गहराई से आपने शब्द चुनकर लाये हैं ...
असुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
जवाब देंहटाएंअमृत तो देवता के हाथ ही होता है !
बहुत सुंदर ....
अक्षरश: सत्य कहा है ...रचना का हर भाव हर पक्ष अपने आप में बेहद सटीक एवं सार्थक ..।
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली कृति! आभार !
जवाब देंहटाएंis rachnaa ne mere manpasand vishay krishna ko chhua hai ... kuchh likhne kaa man ho aaya
जवाब देंहटाएंइस अप्रतिम रचना के लिए ...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
कृष्णा कृष्ण ही हैं............न जाने क्यूँ बचपन से ही आदर्श राम की बजाय कृष्ण के बहुआयामी चरित्र ने ज्यादा लुभाया है......बहुत सशक्त रचना........!!!
जवाब देंहटाएं"लगी थी दाव पर जब द्रौपदी
जवाब देंहटाएंभरी सभा में जब हुए थे सब मौन
तो कृष्ण ने महाभारत की नीव रखी
इस पर ऊँगली उठाकर
कर पाओगे क्या तुम कृष्ण को कलंकित ?
दुह्शासन की ध्रिष्ट्ता क्या हो जाएगी गौण
क्या इसके लिए
बचपन से किया कृष्ण ने कोई प्रयोजन ?"
विचार करने को विवश करती पंक्तियाँ...
पूरी रचना सशक्त रही ...
कुँवर जी,
असुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
जवाब देंहटाएंअमृत तो देवता के हाथ ही होता है !
बिल्कुल सही कहा।सुन्दर प्रस्तुति।
दी ,आप ने मेरी कल्पना के कान्हा की तस्वीर ही खींच दी ....सादर!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और निःशब्द करते शब्द , एक उत्कृष्ठ रचना, मुरलीधर को कौन चुनौती दे सकता है , कान्हा आएंगे फिर मुरली बजेगी, फिर राधा दीवानी होंगी, एक बार फिर रचा जायेगा महाभारत, तैयार रहें
जवाब देंहटाएंअमृत हाथ आते ही देवता बन जाते हैं आधुनिके।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सरल शब्दों में
जवाब देंहटाएंबहुत सी अबूझ बातों का जिक्र कर दिया आपने.
मगर जिनके लिए
"अज्ञानता ही सुख का कारण हो"
चेतन ,अचेतन , परोक्ष, अपरोक्ष
जवाब देंहटाएंइसे वही देख सकता है
जिसमें व्याकुलता हो एकलव्य सी
निष्ठा हो प्रह्लाद सी
जो विनीत हो अर्जुन सा....
सत्य वचन....बहुत ही उत्कृष्ट रचना
अज्ञानता या कम ज्ञान की इति ....... अब उन पर व्यर्थ चर्चा कैसी !
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाये उस ऊँचाई को प्राप्त कर चुकी हैं जहाँ बस निःशब्द रह जाना होता है ...
जवाब देंहटाएंअद्भुत !
उसके लिए भी विष्णु का सहारा लिया...
जवाब देंहटाएंउसके लिए भी विष्णु का सहारा लिया...
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