30 मई, 2011

अमृत देवता के हाथ



सर्वप्रथम कृष्ण मनुष्य
फिर भगवान्
कभी कुशल राजनेता
कभी सारथी , .....
कभी सार कभी सत्य
आदि अनादि अनंत अच्छेद अभेद
सूक्ष्म ब्रम्हाण्ड
मौन निनाद
वह था
वह है
वह रहेगा ..........
तुम जितना मिटाओगे
वह उभरेगा
कहाँ मार पाया कंस उसे
पूतना ने स्वयं दम तोड़ दिया
क्या कर लिया हिरणकश्यप ने प्रह्लाद का
प्रह्लाद को भस्म करने की चाह लिए
होलिका जल गई !
....
लगी थी दाव पर जब द्रौपदी
भरी सभा में जब हुए थे सब मौन
तो कृष्ण ने महाभारत की नीव रखी
इस पर ऊँगली उठाकर
कर पाओगे क्या तुम कृष्ण को कलंकित ?
दुह्शासन की ध्रिष्ट्ता क्या हो जाएगी गौण
क्या इसके लिए
बचपन से किया कृष्ण ने कोई प्रयोजन ?
......
चेतन ,अचेतन , परोक्ष, अपरोक्ष
इसे वही देख सकता है
जिसमें व्याकुलता हो एकलव्य सी
निष्ठा हो प्रह्लाद सी
जो विनीत हो अर्जुन सा....
द्वेष ,प्रतिस्पर्धा आवेश
असुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
अमृत तो देवता के हाथ ही होता है !

31 टिप्‍पणियां:

  1. एक गूँज के साथ एकदम अपने आप को स्थापित करती हुई रचना .....!!
    सार्थक और ज़ोरदार .....!!
    बहुत सुंदर ..!!

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  2. सूक्ष्म ब्रम्हाण्ड
    मौन निनाद
    वह था
    वह है
    वह रहेगा ......
    तुम जितना मिटाओगे
    ...बिल्‍कुल सच कहा है ... इन पंक्तियों में ।

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  3. असुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
    अमृत तो देवता के हाथ ही होता है !
    ......बहुत सशक्त अभिव्यक्ति आपकी लेखनी को नमन ....।

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  4. यदा यदा हि धर्मस्य ...कृष्ण आते रहेंगे , कृष्ण हैं ..

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  5. द्वेष ,प्रतिस्पर्धा आवेश
    असुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
    अमृत तो देवता के हाथ ही होता है !

    निशब्द कर दिया....बहुत ही उत्कृष्ट और सशक्त प्रस्तुति..आभार

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  6. लगी थी दाव पर जब द्रौपदी
    भरी सभा में जब हुए थे सब मौन
    तो कृष्ण ने महाभारत की नीव रखी
    इस पर ऊँगली उठाकर
    कर पाओगे क्या तुम कृष्ण को कलंकित ?

    महासमर तो होना ही था ... हर चीज़ की अति का अंत होता है ..विनाश होना अवश्यम्भावी है ... बहुत सुन्दर विश्लेषण

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  7. असुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
    अमृत तो देवता के हाथ ही होता है !
    सही कहा आप ने , बहुत सुंदर रचना. धन्यवाद

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  8. असत्य पर सत्य की जीत कर युग में निश्चित है ....वो राम हो या कृष्ण धर्म को जितना ही है .......

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  9. अमृत तो देवता के हाथ ही होता है !
    ekdam sahi kaha........

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  10. लगी थी दाव पर जब द्रौपदी
    भरी सभा में जब हुए थे सब मौन
    तो कृष्ण ने महाभारत की नीव रखी
    इस पर ऊँगली उठाकर
    कर पाओगे क्या तुम कृष्ण को कलंकित ?

    क्या बात है रश्मि जी ...?
    ये चीर हरण क्यों हो रहा है हर जगह ....
    अब तो मेरा भी मन कर रहा है द्रौपदी पर कोई रचना डाल ही दूँ .....
    :))

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  11. जब चीजें हद से गुजर जाती हैं तो महा समर होता ही है.
    बहुत ही सशक्त रचना .उत्कृष्ट

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  12. लाजवाब, सुन्दर लेखनी को आभार...

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  13. astay pe satay ki jeet hamesha se hi hui hai... bhut hi sarthak parstuti...

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  14. अवतार आसमान से नहीं टपकते ... हमारे समाज से ही कोई कोई ऐसे व्यक्तित्व का धनि होता है कि उसे अवतार कहा जाता है ... आज भी हमारे बीच ऐसे अवतार हैं ... हमें उन अवतारों का साथ देना है ... तभी समाज में क्रांति आएगी ...

    आपकी रचना बहुत सुन्दर है ... चिंता की गहराई से आपने शब्द चुनकर लाये हैं ...

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  15. असुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
    अमृत तो देवता के हाथ ही होता है !

    बहुत सुंदर ....

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  16. अक्षरश: सत्‍य कहा है ...रचना का हर भाव हर पक्ष अपने आप में बे‍हद सटीक एवं सार्थक ..।

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  17. बहुत प्रभावशाली कृति! आभार !

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  18. is rachnaa ne mere manpasand vishay krishna ko chhua hai ... kuchh likhne kaa man ho aaya

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  19. इस अप्रतिम रचना के लिए ...बधाई

    नीरज

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  20. कृष्णा कृष्ण ही हैं............न जाने क्यूँ बचपन से ही आदर्श राम की बजाय कृष्ण के बहुआयामी चरित्र ने ज्यादा लुभाया है......बहुत सशक्त रचना........!!!

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  21. "लगी थी दाव पर जब द्रौपदी
    भरी सभा में जब हुए थे सब मौन
    तो कृष्ण ने महाभारत की नीव रखी
    इस पर ऊँगली उठाकर
    कर पाओगे क्या तुम कृष्ण को कलंकित ?
    दुह्शासन की ध्रिष्ट्ता क्या हो जाएगी गौण
    क्या इसके लिए
    बचपन से किया कृष्ण ने कोई प्रयोजन ?"

    विचार करने को विवश करती पंक्तियाँ...

    पूरी रचना सशक्त रही ...



    कुँवर जी,

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  22. असुरों सा समुद्र मंथन तो कर सकता है
    अमृत तो देवता के हाथ ही होता है !

    बिल्कुल सही कहा।सुन्दर प्रस्तुति।

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  23. दी ,आप ने मेरी कल्पना के कान्हा की तस्वीर ही खींच दी ....सादर!

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  24. बेहतरीन और निःशब्द करते शब्द , एक उत्कृष्ठ रचना, मुरलीधर को कौन चुनौती दे सकता है , कान्हा आएंगे फिर मुरली बजेगी, फिर राधा दीवानी होंगी, एक बार फिर रचा जायेगा महाभारत, तैयार रहें

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  25. अमृत हाथ आते ही देवता बन जाते हैं आधुनिके।

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  26. बहुत ही सरल शब्दों में
    बहुत सी अबूझ बातों का जिक्र कर दिया आपने.
    मगर जिनके लिए
    "अज्ञानता ही सुख का कारण हो"

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  27. चेतन ,अचेतन , परोक्ष, अपरोक्ष
    इसे वही देख सकता है
    जिसमें व्याकुलता हो एकलव्य सी
    निष्ठा हो प्रह्लाद सी
    जो विनीत हो अर्जुन सा....

    सत्य वचन....बहुत ही उत्कृष्ट रचना

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  28. अज्ञानता या कम ज्ञान की इति ....... अब उन पर व्यर्थ चर्चा कैसी !

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  29. आपकी रचनाये उस ऊँचाई को प्राप्त कर चुकी हैं जहाँ बस निःशब्द रह जाना होता है ...
    अद्भुत !

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  30. उसके लिए भी विष्णु का सहारा लिया...

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  31. उसके लिए भी विष्णु का सहारा लिया...

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...