07 सितंबर, 2011

ज़िन्दगी से मुलाकात



कल मेरे अनमने मन की मुलाकात ज़िन्दगी से हुई
सुसज्जित पुष्प आवरण में
खुशबू से आच्छादित
अप्रतिम सौन्दर्य लिए ....
सौन्दर्य ने मन की दशा ही परिवर्तित कर दी
लगा - बसंत तो कहीं गया ही नहीं है !
मुस्कुराती ज़िन्दगी की चपल आँखों ने कहा ,
कुछ कहना है या पूछना है ....

मन ने ज़िन्दगी की आँखों में गोते लगाए
जितने ख्वाब चुन सकता था - चुने
बेशुमार रंगों से रंग लिए
और टिमटिमाती ज़िन्दगी को छू छूकर देखा
बुदबुदाया -' ज़िन्दगी तो माशा अल्लाह कमाल की है
इसे कौन नहीं जीना चाहेगा !'
कई सवाल कुलबुलाये ....
पर ये ज़िन्दगी तो कई खेल खेलती है
...... दर्द का सिलसिला , भय का सिलसिला
हार का सिलसिला .... चलता है तो रुकता ही नहीं
शिकायतों का पुलिंदा लिए हम रोते जाते हैं
और ज़िन्दगी कानों में रुई डाले अनजान बनी रहती है ....

मन आगे बढ़ा... ज़िन्दगी के काँधे पर हाथ रखा
.... ज़िन्दगी फिर मुस्कुराई ,
आँखों को उचकाकर कहा - 'कहो भी ... '
मन ने संयत भाव लिए कहा -
" ज़िन्दगी तुम्हारे सौन्दर्य में तो
कहीं कोई कमी नहीं ....
जीने के हर खुले मार्ग हैं तुमसे जुड़े
व्यवधान का पुट कहीं दिखता ही नहीं
फिर जब हम तुम्हें जीते हैं
तो मार्ग अवरुद्ध कैसे हो जाते हैं !"

ज़िन्दगी ने मन का सर सहलाया
संजीवनी सी लहरें लहरायीं
मन देवदार की तरह हो ज़िन्दगी को सुनने लगा -
" मैं ज़िन्दगी हूँ
जन्म से मृत्यु के मध्य
मैं सिर्फ जीवन देती हूँ
तहस नहस करना मेरा काम नहीं
छल के बीज भी मैं नहीं बोती
विनाश से मेरा कोई नाता नहीं
मैं तो बस देती आई हूँ ...
अर्थ का अनर्थ
यह तो इंसानी दाव पेंच हैं ...
'इसी जीवन में सब होता है '
ऐसा कहकर इन्सान अपनी चालें चलता है
अपने स्वार्थ साधता है
सबकुछ तोड़ मरोड़कर
बढ़ाकर घटाकर
मायूसी से कहता है
'ज़िन्दगी के रंग ही अजीब हैं .... '
सच तो ये है
कि मेरे पास कुछ भी बेमानी नहीं
हर रंग की अपनी खासियत है
अगर इंसानी मिलावट ना हो ...
मैं तो सिर्फ राहें निर्मित करती हूँ
सेंध लगाना इंसानी फितरत है
किसी और को कटघरे में डालना भी
उसकी सधी चाल है .. .."

अनमना मन अनमना नहीं रहा
उसने बड़े प्यार से ज़िन्दगी के हाथ चूमे
लम्बी सी सांस ली
और मेरे पास आ गया
कहीं कोई सवाल शेष नहीं रहा ....

41 टिप्‍पणियां:

  1. इसी जीवन में सब होता है '
    ऐसा कहकर इन्सान अपनी चालें चलता है
    अपने स्वार्थ साधता है
    सबकुछ तोड़ मरोड़कर
    बढ़ाकर घटाकर
    मायूसी से कहता है
    'ज़िन्दगी के रंग ही अजीब हैं .... '

    किस्मत या जिंदगी को दोष देने के बजाय आत्ममंथन करने का संदेश देती बेहतरीन कविता।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. ज़िंदगी तो वाकई..अपने में रंग ही रंग समेटे हुए है ..हम लोग ही इसे अपने अनुसार बदरंग करते हैं.बहुत ही बढ़िया रचना..सच ,कोई सवाल शेष नहीं रहा..इसे पढ़ने के बाद

    जवाब देंहटाएं
  3. shayad zindagee ke mayane hi yahi hai... uska koi bhee rang, koi bhee pal benamee naheen hai... wo to zindgaanee hai... hissa hai hamara...
    waah... bahut acchha laga ye padhkar... kahin andar tak utar gai...

    जवाब देंहटाएं
  4. मन ने ज़िन्दगी की आँखों में गोते लगाए
    जितने ख्वाब चुन सकता था - चुने
    बेशुमार रंगों से रंग लिए
    और टिमटिमाती ज़िन्दगी को छू छूकर देखा
    ..इन पंक्तियों में जिंदगी कितनी मासूमियत से सिमट आई है.
    बेहतरीन सम्वेदनशील रचना के लिए बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. aapki kavita ko doob kar padha aur padhte padhte man me us ladki ki tasveer ban gayi jo aapne chhote chhote pairo se thunakti hui, aankhe jhapkati hui radio ki tarah shuru ho jati thi aur achanak jindgi aur man ki mulakat ko dekh badi gambheerta se unki baate sun kar aatmsaat kar rahi ho aur sara saransh pa kar santusht ho kar ek kone me sukoon se baith gayi ho.
    sunder gehen abhivyakti.

    जवाब देंहटाएं
  6. मैं तो सिर्फ राहें निर्मित करती हूँ
    सेंध लगाना इंसानी फितरत है
    किसी और को कटघरे में डालना भी
    उसकी सधी चाल है .. .."

    सच में ज़िंदगी बहुत खूबसूरत है अगर हम उसे समझ पाएँ तो। बहुत गहन चिंतन और उसकी अद्भुत अभिव्यक्ति। आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. अनमना मन अनमना नहीं रहा
    उसने बड़े प्यार से ज़िन्दगी के हाथ चूमे
    लम्बी सी सांस ली
    और मेरे पास आ गया
    कहीं कोई सवाल शेष नहीं रहा ....

    बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  8. लगा - बसंत तो कहीं गया ही नहीं है !

    शिकायतों का पुलिंदा लिए हम रोते जाते हैं
    और ज़िन्दगी कानों में रुई डाले अनजान बनी रहती है ....

    फिर जब हम तुम्हें जीते हैं
    तो मार्ग अवरुद्ध कैसे हो जाते हैं !"

    मैं तो सिर्फ राहें निर्मित करती हूँ
    सेंध लगाना इंसानी फितरत है
    किसी और को कटघरे में डालना भी
    उसकी सधी चाल है .. .."


    Aaabhar....

    जवाब देंहटाएं
  9. no words...... behtreen
    zindagi se labrez.....aaj apke haath bhi chumde ko dil chah raha hai diiii...... aaj ye kavita padhkr ek bahaut badi sikh mili hai..... "Chitralekha"... mujhe bahaut pasand hai..... aapki kavita ne uski ek jhalak dikha di

    जवाब देंहटाएं
  10. संपूर्ण जिन्दगी की दास्ताँ यूं ही कही जाती है

    जवाब देंहटाएं
  11. वाकई जिन्दगी तो हर इंसान के जीवन में एक जैसे ही रूप में आती है और हम ही उसे अलग अलग रंग देते हैं बेचारा निश्छल मन इसको जान कब पाया है? शातिर दिमाग चालें चलता है और तब वह मन को साझीदार नहीं बनाता है, साजिशे रचता है और अंजाम देता है.

    जवाब देंहटाएं
  12. -' ज़िन्दगी तो माशा अल्लाह कमाल की है
    इसे कौन नहीं जीना चाहेगा !'

    सच में दी ..ज़िन्दगी तो कमाल की है ...हम ही उसे अपनी चालों से अव्यवस्थित कर देते हैं....!!
    बहुत सुंदर जीवन दर्शन ...!!

    जवाब देंहटाएं
  13. ज़िन्दगी की खूबसूरती का बखान एक खूबसूरत दिल वाला इंसान ही कर सकता है....इंसान का यह भी तो एक खूबसूरत रूप है जो मन को मोह लेता है..

    जवाब देंहटाएं
  14. जिंदगी बहुत खूबसूरत है ...मन ने मान ही लिया ना!
    मीठी सी कविता!

    जवाब देंहटाएं
  15. ahavaal e basahr kya pooch raha hai maula,
    Zindagi zeena hi ik haadisaat hai

    जवाब देंहटाएं
  16. जीवन के हर उस लम्‍हे को आपने इस रचना में व्‍यक्‍त किया है जिसे जिया है हर शख्‍स ने या फिर जी लेता है इस जीवनकाल में ... नि:शब्‍द करती रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  17. कल 09/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  18. ज़िंदगी से मुलाक़ात अच्छी रही ..सारे रंग सिमटे हैं इस ज़िंदगी के इस रचना में ..

    जवाब देंहटाएं
  19. अनमना मन अनमना नहीं रहा
    उसने बड़े प्यार से ज़िन्दगी के हाथ चूमे
    लम्बी सी सांस ली
    और मेरे पास आ गया
    कहीं कोई सवाल शेष नहीं रहा ....
    सुन्दर भावपूर्ण आत्म मंथन करने को प्रेरित करती सार्थक रचना......

    जवाब देंहटाएं
  20. WAH-WAH----- rashmi di
    bahut hi khoobsurati se jindagi ke saare palo ko aapne satrange rango se mila kar rangeen bana diya hai .sach aapki yah kriti mujhe bahut bahut hi achhi lagi .
    aapne aadi se lekar ant tak ke beech ke samay ko bahut hi sundarta ke saath abhivykt kiya hai .
    behatreen-----------
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  21. अनमने से दिल को ये कविता पढ़ कर रहत मिली

    बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  22. abhi abhi jiwan ke rango ko dekha laga tum khuli hawa me sans le rahi ho rangon ko
    sungh rahi ho.

    जवाब देंहटाएं
  23. जीवन दर्शन को दर्शाती एक शानदार रचना।

    जवाब देंहटाएं
  24. बहुत अच्छी रही अनमने से मन की जिंदगी से मुलाक़ात... सुंदर से जीवन में कहीं यह मन ही तो रंग नहीं भर देता कभी सुनहरे कभी मटमैले....

    जवाब देंहटाएं
  25. 'ज़िन्दगी के रंग ही अजीब हैं .... '
    सच तो ये है
    कि मेरे पास कुछ भी बेमानी नहीं
    हर रंग की अपनी खासियत है
    अगर इंसानी मिलावट ना हो ...
    मैं तो सिर्फ राहें निर्मित करती हूँ
    सेंध लगाना इंसानी फितरत है...

    सच कह रही हैं पंक्तियाँ....नि:शब्‍द करती रचना...

    जवाब देंहटाएं
  26. मन ने ज़िन्दगी की आँखों में गोते लगाए
    जितने ख्वाब चुन सकता था - चुने
    बेशुमार रंगों से रंग लिए
    और टिमटिमाती ज़िन्दगी को छू छूकर देखा
    बुदबुदाया -' ज़िन्दगी तो माशा अल्लाह कमाल की है
    इसे कौन नहीं जीना चाहेगा !'

    अच्छे सवालों को उठाती यह रचना.... दिलो-दिमाग को छू गयी. बधाई , लाजवाब रचना......!!!!

    जवाब देंहटाएं
  27. अशेष भी शेष ना रहा...

    बहुत दार्शनिक..चिंतन

    जवाब देंहटाएं
  28. बहुत ही सुन्दर कविता बधाई रश्मि जी

    जवाब देंहटाएं
  29. जिंदगी के खेल सच में अजीब है ... कभी खुशी कभी गम है ...

    जवाब देंहटाएं
  30. ज़िन्दगी का सच बयान कर दिया आपने इस रचना में
    सही में ये इंसान ही है जो इसे जटिल बना देता है !! बहुत सुन्दर रचना !!!


    http://sahitya-varidhi-sudhakar.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  31. गहन जीवन दर्शन है आपकी इस रचना में.... सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  32. उसने बड़े प्यार से ज़िन्दगी के हाथ चूमे
    लम्बी सी सांस ली
    और मेरे पास आ गया

    जिंदगी से मुलाकात सुखद रही ...बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  33. मन ने ज़िन्दगी की आँखों में गोते लगाए
    जितने ख्वाब चुन सकता था - चुने
    बेशुमार रंगों से रंग लिए
    और टिमटिमाती ज़िन्दगी को छू छूकर देखा...

    वाह दी! खुबसूरत शब्द संयोजन और भावबोध का सुन्दर उदाहरण...
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  34. zindgi ne sahi jawaab diya...
    " मैं ज़िन्दगी हूँ
    जन्म से मृत्यु के मध्य
    मैं सिर्फ जीवन देती हूँ
    तहस नहस करना मेरा काम नहीं
    छल के बीज भी मैं नहीं बोती
    विनाश से मेरा कोई नाता नहीं
    मैं तो बस देती आई हूँ ...

    baaki sab to manushya ka kamaal hai ki jivan ko kaanto se bhar deta hai ya aanandmay rahta hai. bahut achchhi rachna, badhai Rashmi ji.

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...