गुत्थियां सुलझती ही नहीं
इतनी गांठें हैं , इतनी कसी
कि खोलते खोलते उंगलियाँ दुखने लगी हैं
कहीं कहीं से छिल भी गई हैं ...
....................
शुरू से मुझे इन गुत्थियों से डर लगता रहा है
शायद इसीलिए गुत्थियां मेरा पीछा करती हैं
ताकि एक दिन मेरा डर ख़त्म हो जाए
मैं अपनी उँगलियों का ख्याल करने लगूँ
उदासीन हो जाऊँ गांठों से
या फिर इस सत्य को स्वीकार कर लूँ
कि कभी भी कोई गांठ नहीं खुलती ...
बहुत ही सुन्दर कविता दर्शन भी गुंथा हुआ है |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता दर्शन भी गुंथा हुआ है |
जवाब देंहटाएंआपकी यह भावनायें पढ़कर जाने क्यूँ एक गीत याद आगया "यह जीवन है इस जीवन का यही है,यही है रंग रूप"
जवाब देंहटाएंशायद जिन भावनाओं को आपने अपनी रचना के द्वारा कहना चाहा है। जीवन उसी का नाम है।
गहरे विचार लिए सुंदर अभिवक्ती....
बहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंकुछ गांठें होती हैं जो कसी हुई नहीं होतीं वो खुल जाती हैं आपसी सौहार्द से ... पर जो खींच कर कस दी गयी हों उनको खोलने में दुखती हैं उंगलियां भी और मन भी ..तब भी नहीं खुल पातीं ... अनुभव को कहती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंगांठें खोलना आसान नहीं..दिल भी दरक जाता है..सब लहू लुहान हो जाता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशायद इसीलिए गुत्थियां मेरा पीछा करती हैं
जवाब देंहटाएंताकि एक दिन मेरा डर ख़त्म हो जाए
मैं अपनी उँगलियों का ख्याल करने लगूँ
उदासीन हो जाऊँ गांठों से
या फिर इस सत्य को स्वीकार कर लूँ
कि कभी भी कोई गांठ नहीं खुलती ...
बहुत सुन्दर भाव
अच्छे व प्यारे शब्द।
जवाब देंहटाएंगुथ्थिया वाकई नहीं खुलती...दी....इसी जद्दोजहद का नाम शायद जिन्दंगी हैं.
जवाब देंहटाएंकुछ भी हो, गाँठें तो सुलझानी होगी।
जवाब देंहटाएंगुत्थियाँ सुलझाने की कोशिश करो तो और उलझने लगती हैं तब यही लगता है कि बेहतर है गांठे बंधी रहे .
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन!
मैं अपनी उँगलियों का ख्याल करने लगूँ
जवाब देंहटाएंउदासीन हो जाऊँ गांठों से
या फिर इस सत्य को स्वीकार कर लूँ
कि कभी भी कोई गांठ नहीं खुलती .
हर शब्द में गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन ।
behad sunder , bohot khoobsoorat likha hai aapne, ke gaath khulti nahi
जवाब देंहटाएंगाठों को खोल देना ही बेहतर होता है
जवाब देंहटाएंताकि एक दिन मेरा डर ख़त्म हो जाए
जवाब देंहटाएंमैं अपनी उँगलियों का ख्याल करने लगूँ
kitna achcha khyal hai......
गाँठ खिलने की इच्छा लिए सही दिशा में आप चल रहीं हैं...!!ऐसे ही सतत प्रयास से बीतता जाता है जीवन ...बहुत सुंदर रचना .....उदास न हों और प्रयास जारी रखें ....!
जवाब देंहटाएंजाने कब और कैसे बंध जाती हैं ये गुत्थियां ! न खुलें तो एक उसी पर छोड़ देना होगा... भावपूर्ण कविता !
जवाब देंहटाएंउफ़..पर गांठे तो सुलझानी ही होंगी..वर्ना बंधी गांठें देख देख कर जिया कैसे जायेगा.
जवाब देंहटाएंअनुभव को कहती अच्छी भावपूर्ण रचना|
जवाब देंहटाएंअनुभव को कहती अच्छी भावपूर्ण रचना|
जवाब देंहटाएंये गुथियाँ उलझी ही रहें
जवाब देंहटाएंतो बेहतर है
सुलझे हुए ज़ज्बात कभी कभी
उलझा जाते हैं खुद ही को ....khubsurat bhav...kuch sikhne ko mila naya.... thankuu dii
takleefon ke bavjood
जवाब देंहटाएंGutthiyaan bhi khulti hain..
Humne dekha hai kai baar..
Aabhar....
'या फिर इस सत्य को स्वीकार कर लूं
जवाब देंहटाएंकि कभी भी कोई गाँठ नहीं खुलती '
......मगर गाँठ खोलने का प्रयास तो जारी ही रहेगा
...............गहन .भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति
Jab swikar hota hai to gathen (knots) khulane lagti hai.
जवाब देंहटाएंThis is my experience.
गाँठ तो खोलना ही होगा रश्मि जी.....गहन अनुभूति.सुन्दर रचना...आभार..
जवाब देंहटाएं"जिन्दगी में गांठों का, भी अपना स्थान.
जवाब देंहटाएंसुलझाने की शक्ति का, हमें कराते भान"
सुन्दर चिंतन दी...
सादर...
जिंदगी की गुत्थियों ओ तो कोई नहीं सुलझा पाया ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ।
यह अनुभव है आपका जिसे आपने जिया है और पंक्तियों में गुथा है.... ये समझना मुस्किल है हमारे लिए इशी अनुभव को तो जीना है हमें....
जवाब देंहटाएंdharshnik bhav..
जवाब देंहटाएंगांठ अगर खुल गई, तो वह फिर गांठ कहां रही। अच्छा तो यही है कि गांठ पड़ने ही न दी जाए।
जवाब देंहटाएंताकि एक दिन मेरा डर ख़त्म हो जाए...
जवाब देंहटाएंऔर फिर खुल जाएगी हर गाँठ...
गाँठें वाकई नहीं खुलती प्रयास तो जारी रखना ही पड़ेगा....बहुत सटीक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंगांठ खुले न खुले ... गुत्थियों को खोलना जरूरी है ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने !
जवाब देंहटाएंbhaut hi sarthak likha hai aapne...
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना है मा, आपकी rachnayein बहुत kuch कह् जाती हैं ।
जवाब देंहटाएंगाँठ बिना जीवन कैसा , जीवन का उत्कर्ष गाँठ
जवाब देंहटाएंगाँठ बिना फेरे ना होते और न मनती वर्ष गाँठ.
जुल्फों में जब पड़ जाये, प्रेमी सु-अवसर समझे
सदा बुराई साथ न लाती , देती भी है हर्ष गाँठ.
गाँठ ही बड़ी बहू के पल्लू में चाबी संग साजे
मंझली-छोटी बहुरिया खातिर होती है संघर्ष गाँठ.
मन में कभी न आने पाये-गाँठ बाँध कर रखिये
सम्बंधों में पड़ जाये तो करती है अपकर्ष गाँठ.
देखिये गाँठ की महत्ता -टिप्पणी करने आये थे कविता लिख कर चल दिये. प्रेरणा हेतु आभार.
आपने अपनी कविता के कैनवास पर भावों का रंग बिखेर दिया है....
जवाब देंहटाएंया फिर इस सत्य को स्वीकार कर लूँ
कि कभी भी कोई गांठ नहीं खुलती ...
मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !
har gaanth khul jayegee...
जवाब देंहटाएंhar subah dhul jayegee...
:)
ham saath-saath hain...
yahi gaanthe jo hame hamari y=aur hamare apno ki pahchaan karati hai... :)
प्रयास जारी रहना चाहिए...अगर गांठें तकलीफ देतीं हों...वर्ना इतनी लम्बी रस्सी में कुछ गांठों की परवाह भी नहीं करानी चाहिए...
जवाब देंहटाएंएक गांठ खोलते-खोलते दूसरी लग जाती है कभी-कभी ...
जवाब देंहटाएंइधर तो कुछ गांठे इतनी कसी हुई हैं की लगता है कभी खुलेंगी ही नहीं, नाही कभी काटेंगी वो..
जवाब देंहटाएंगांठ खोलने के चक्कर में
जवाब देंहटाएंकभी-कभी और भी उलझ जाती है !
बहुत बढ़िया रचना ...
शायद ऐसा ही होता है..सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंउम्दा..!!!
जवाब देंहटाएं"इतनी गांठें हैं , इतनी कसी.."
जवाब देंहटाएंगांठो को सुलझाते हुए
कभी-कभी जिन्दगी खुद ही उलझ जाती है