05 नवंबर, 2011

इक आग का दरिया है और डूब के जाना है..



अजब है ये दुनिया !!! आप किसी को भी आदर्श नहीं बना सकते ... यकीनन मैं भी दुनिया में हूँ , पर एक बात स्पष्ट कर दूँ - जब आदर्श हो या प्रेम हो तो उसके गुण भी अपने, अवगुण भी अपने , अन्यथा आप हम ज़िन्दगी को प्याज के छिलकों की तरह इस्तेमाल करते रह जायेंगे . हम सब जानते हैं कि कोई भी परफेक्ट नहीं होता , पर यदि वह परफेक्ट किसी को मिल जाता है तो आप हम अपना सारा काम छोड़कर उस प्राप्य्कर्ता को यह सिद्ध करने में जुट जाते हैं कि वह पहले कैसे परफेक्ट नहीं था !
किसी से आपकी ना बनती हो तो बात समझ में आती है , पर जिनसे आपके कोई ताल्लुकात नहीं .... उनके अनजाने पन्नों को क्यूँ खोलना ! और यदि खोला तो मुहर कैसे मार दी बिना सोचे समझे ? थोड़ी अक्ल लगाईं होती , नज़रें घुमाई होती ... नहीं , 'कौआ कान ले गया ' सुनते दौड़ पड़े और फिर बड़ी शिद्दत से लिख दिया - ' हम बेखुदी में तुम्हें सोचते रहे ... कौआ कान ले गया !'
आप सोच रहे होंगे ये असली माज़रा क्या है .... मैं भी सोच रही हूँ कि मैं खामखाह इधर उधर क्यूँ कर रही हूँ !

एडवर्ड का नाम आपने भी सुना होगा , जिसने सिम्पसन के प्यार में इंग्लैण्ड का राज्य त्याग दिया ! बहुत छोटी थी , जब माँ ने यह कहानी सुनाई और तब से एक अनजाना चेहरा मेरे पूरे वजूद में चलता रहा . रोमांच होता रहा सोचकर , सिम्पसन ने मना किया लेकिन एडवर्ड ने सिम्पसन के आगे राज्य को तुच्छ बना दिया . ........................................ प्यार सही मायनों में यही है - आत्मा यहीं , परमात्मा यहीं , नैसर्गिक संगीत यहीं .
मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं कि एडवर्ड और सिम्पसन को शब्दों में ढाल सके ! नाम लें या प्यार कहें - यह एक एहसास है सूर्योदय की तरह , चिड़ियों के घोंसले से झाँकने की तरह , मंद हवाओं की तरह , सघन मेघों की तरह , रिमझिम फुहारों की तरह, मिट्टी की सोंधी खुशबू की तरह , गोधूलि की तरह, सूर्यास्त , रात , समुद्र की लहरें , ओस , पपीहे की पुकार , शनैः शनैः फैलती ख़ामोशी में एक मीठी खिलखिलाहट , प्रतीक्षित आँखें , बोलती आँखें , तेज धड्कनें , मौन आमंत्रण , मौन स्वीकृति , ............ जिस उपमा में महसूस करें - प्यार है तो बस है .
फिर भी एक कोशिश की चाह ने कहा - कुछ भी कहो, पर कहो , क्योंकि तुम्हारे अन्दर एक एडवर्ड और सिम्पसन अंगड़ाई लेते रहे हैं और प्यार ही प्यार को कोई रंग दे सकता है सातों रंगों के मेल से ..... मुझे इस सच से इन्कार नहीं कि इस आठवें रंग ने ही मुझे चलाया है ... जब प्यार की बातें होती हैं वहाँ मेरा साया होता ही है .
लिखने को तत्पर हुई तो सोचा - कुछ और पढूं .... तो पढ़ा , एडवर्ड को प्यार करने की आदत थी , वे एक दिलफेंक इन्सान थे .... सिम्पसन से पहले वे शादीशुदा रईस महिला और दो बच्चों की मां फ्रिडा डडले वार्ड के प्रेम में पागल थे और उन्हें पाना चाहते थे !.... पढकर लगा कि जब सोच संकीर्ण हो तो वहाँ बातों का रूप कितना हास्यास्पद हो जाता है .
कम उम्र हो या अनुभवी उम्र ही सही - प्रेम और आकर्षण में फर्क होता है. आकर्षण में भी वही ख्याल उभरते हैं , जो प्रेम में उभरते हैं , पर आकर्षण में ठहराव नहीं होता , न आस्था , न निष्ठा ..... वह रेतकणों की तरह निर्धारित समय पर मुट्ठी से फिसल जाता है . एडवर्ड का राज्य त्याग यदि सिम्पसन के लिए तठस्थ रहा तो फ्रिड़ा डडले वार्ड के लिए क्यूँ नहीं हुआ ? - यह प्रश्न ही उत्तर है !
पूरी ज़िन्दगी सिम्पसन के साथ प्यार में निभानेवाले एडवर्ड से एक बार उनकी कहानी पर फिल्म बनाने की अनुमति लेने लोग गए तो एडवर्ड ने इन्कार कर दिया . उनका कहना था - कि जिस प्यार को उनदोनों ने जिया है , उसे वे कैमरे में नहीं कैद कर सकते और कुछ यूँ हीं देखना उन्हें गवारा नहीं होगा ... तो बेहतर है उनके नहीं रहने पर ही यह कोशिश हो .
प्यार को सम्मान नहीं दे सकते तो चुप रहो .... पर सिर्फ निरादर के ख्याल से (?) किसी का नाम न उछाला जाए तो बेहतर है . एडवर्ड और वार्ड के अधकचरे ज्ञान पर कुछ भी कहने से पहले यह सोचना होगा कि जिस एडवर्ड ने राज्य त्याग दिया ( जो आम बात नहीं ) उसने वार्ड से किनारा क्यूँ कर लिया . आलोचना सोच समझकर हो तो सही है ....
मुझे तो आज भी इस कल्पना मात्र से रोमांच होता है कि उस समय इंग्लैण्ड में कैसी लहर उठी होगी ... सिम्पसन की गति ....... ओह ! आसान नहीं एडवर्ड होना ... यही पंक्तियाँ सही लगती हैं -
ये इश्क नहीं आसान इतना ही समझ लीजिए, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है..









50 टिप्‍पणियां:

  1. यह एक एहसास है सूर्योदय की तरह , चिड़ियों के घोंसले से झाँकने की तरह , मंद हवाओं की तरह , सघन मेघों की तरह , रिमझिम फुहारों की तरह, मिट्टी की सोंधी खुशबू की तरह , गोधूलि की तरह, सूर्यास्त , रात , समुद्र की लहरें , ओस , पपीहे की पुकार , शनैः शनैः फैलती ख़ामोशी में एक मीठी खिलखिलाहट , प्रतीक्षित आँखें , बोलती आँखें , तेज धड्कनें , मौन आमंत्रण , मौन स्वीकृति , ............

    ये मात्र शब्द नहीं हैं...प्यार पर रची सुन्दर कविता है...बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रेम और आकर्षण में फर्क होता है. आकर्षण में भी वही ख्याल उभरते हैं , जो प्रेम में उभरते हैं , पर आकर्षण में ठहराव नहीं होता , न आस्था , न निष्ठा ..... वह रेतकणों की तरह निर्धारित समय पर मुट्ठी से फिसल जाता है .

    एक बहुत अच्छी रचना.... सोच संकीर्ण हो तो वहाँ बातों का रूप कितना हास्यास्पद हो जाता है....

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रेम और आकर्षण में फर्क होता है. आकर्षण में भी वही ख्याल उभरते हैं , जो प्रेम में उभरते हैं , पर आकर्षण में ठहराव नहीं होता , न आस्था , न निष्ठा ..... वह रेतकणों की तरह निर्धारित समय पर मुट्ठी से फिसल जाता है .
    आकर्षण और प्रेम के अंतर को इतनी खूबसूरती से समझाने वाली ये पंक्तियां यादगार बन गई हैं.

    जवाब देंहटाएं
  4. प्यार को सम्मान नहीं दे सकते तो चुप रहो .... पर सिर्फ निरादर के ख्याल से (?) किसी का नाम न उछाला जाए तो बेहतर है .

    सटीक बात कहती पंक्तियाँ।

    सादर
    ----
    ‘मौसम और मन’

    जवाब देंहटाएं
  5. रश्मि जी , कवियों और शायरों ने प्रेम /प्यार को बहुत ग्लेमेराइज कर रखा है .
    लेकिन एक गीत मुझे बहुत पसंद है :

    छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
    ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए .
    प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं
    प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए .

    सरस्वती चन्द्र फिल्म के इस गीत में जो सच्चाई बयाँ की गई है , उससे बड़ी सच्चाई मुझे तो नज़र नहीं आती .

    लेकिन आपने लेख बहुत सुन्दर लिखा है .

    जवाब देंहटाएं
  6. कम उम्र हो या अनुभवी उम्र ही सही - प्रेम और आकर्षण में फर्क होता है. आकर्षण में भी वही ख्याल उभरते हैं , जो प्रेम में उभरते हैं , पर आकर्षण में ठहराव नहीं होता , न आस्था , न निष्ठा ..... वह रेतकणों की तरह निर्धारित समय पर मुट्ठी से फिसल जाता है .

    आपने स्वयं ही तो उत्तर दे दिया है की वर्ड से किनारा क्यों कर लिया ? एडवर्ड वर्ड के प्रति आकर्षित थे ... प्रेम नहीं था .. आकर्षण के साथ प्रेम जन्म ले तो समर्पण की भावना आती है और यदि आकर्षण के साथ वासना जन्म ले ..या केवल पाने की इच्छा जागृत हो तो वहरेत कणों की तरह बिखर जाता है ..

    मुझे तो ऐसा ही समझ आता है ... अनुभवी नहीं हूँ :)

    जवाब देंहटाएं
  7. ्निशब्द हूँ और सोच मे हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  8. सच में ममा.... आपने बहुत ही अच्छा लेख लिखा है... आपने यह बिलकुल सही लिखा है की आकर्षण में ठहराव नहीं होता ... और प्रेम तो स्टैटिक है... प्यार का कभी निरादर नहीं करना चाहिए... मुझे आपका आलेख बहुत अच्छा लगा... बहुत ही खूबसूरत...

    जवाब देंहटाएं
  9. प्यार के लिये जिस समर्पण की जरूरत होती है वो आसान नहीं ,शायद इसीलिये आकर्षण को प्यार का नाम दे कर इतने प्यारे एहसास को धूमिल कर दिया जाता है ..... सादर !

    जवाब देंहटाएं
  10. यह एक एहसास है सूर्योदय की तरह , चिड़ियों के घोंसले से झाँकने की तरह , मंद हवाओं की तरह , सघन मेघों की तरह , रिमझिम फुहारों की तरह, मिट्टी की सोंधी खुशबू की तरह , गोधूलि की तरह, सूर्यास्त , रात , समुद्र की लहरें , ओस , पपीहे की पुकार , शनैः शनैः फैलती ख़ामोशी में एक मीठी खिलखिलाहट , प्रतीक्षित आँखें , बोलती आँखें , तेज धड्कनें , मौन आमंत्रण , मौन स्वीकृति , ............ जिस उपमा में महसूस करें - प्यार है तो बस है .

    दीदी
    कितना कुछ है आपके पास ! कभी कभी आप अकथनीय को भी कह जाते हो !
    प्रणाम दी !

    जवाब देंहटाएं
  11. इस आठवें रंग ने ही मुझे चलाया है ... जब प्यार की बातें होती हैं वहाँ मेरा साया होता ही है .
    बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ..बेहतरीन लेखन के साथ एक संदेश देती प्रस्‍तुति ...आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  12. अजीब इत्तिफाक ही कहिये कल से ही यही एक जुमला मेरे होंठो से बाहर निकल रहे हैं..
    तिस पर ये प्रस्तुति.. बहुत सुन्दर रचना.. आभार...

    जवाब देंहटाएं
  13. सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत अच्छे भावों को केन्द्रीकरण कर आपने ये लेख लिखा है जो सहज ही आये !

    जवाब देंहटाएं
  15. एक अद्भुत अहसास का नाम है शायद प्यार,जिसे शब्दों में व्यक्त करना आप जैसी विदुषी ही वर्णित कर सकती है. लेख इसकी पराकास्था है शायद .बधाई

    जवाब देंहटाएं
  16. कम उम्र हो या अनुभवी उम्र ही सही - प्रेम और आकर्षण में फर्क होता है. आकर्षण में भी वही ख्याल उभरते हैं , जो प्रेम में उभरते हैं , पर आकर्षण में ठहराव नहीं होता , न आस्था , न निष्ठा ..... वह रेतकणों की तरह निर्धारित समय पर मुट्ठी से फिसल जाता है...."

    मेरे विचार से आकर्षण प्रेम का बाहरी रूप हैं --जब तक हम किसी के बाहरी रूप से आकर्षित नहीं होगे --अंदरूनी प्रेम उपजना मुश्किल हैं --यह आकर्षण प्रेम मैं केवल एक स्त्री -पुरुष के लिए ही कह रही हूँ --वरना प्रेम की कोई सीमा नहीं ,प्रेम परिवार से ,पडोसी से, जानवर से या ईश्वर से, किसी बाहरी वस्तु से भी हो सकता हैं --कई बार हम किसी को देखे बगेर भी प्रेम करने लगते हैं- -- प्रेम का साम्राज्य बेहद विशाल हैं ---जिसका न अंत हैं न प्रारम्भ ..

    जवाब देंहटाएं
  17. aalekh padhkar aanand aa gaya bahut sahi baat kahi aakarshan me thahraav nahi hota...thaharaav vahan hota hai jahaan dono taraf se ekdoosre ki bhaavnaao ka dil se sammaan ho vahi asli pyaar upajta hai aur thaharta bhi hai.

    जवाब देंहटाएं
  18. यह एक एहसास है सूर्योदय की तरह , चिड़ियों के घोंसले से झाँकने की तरह , मंद हवाओं की तरह , सघन मेघों की तरह , रिमझिम फुहारों की तरह, मिट्टी की सोंधी खुशबू की तरह , गोधूलि की तरह, सूर्यास्त , रात , समुद्र की लहरें , ओस , पपीहे की पुकार , शनैः शनैः फैलती ख़ामोशी में एक मीठी खिलखिलाहट , प्रतीक्षित आँखें , बोलती आँखें , तेज धड्कनें , मौन आमंत्रण , मौन स्वीकृति , ............ जिस उपमा में महसूस करें - प्यार है तो बस है .

    प्रेम एक बेहद खूबसूरत एहसास , जिसने इसे जिया नहीं , उसे अपना मुंह बंद रखना चाहिए ...
    किसी के प्रेम पर हंसने या तंज करने से पहले उस जैसा प्रेम करके तो देखे कोई ....

    बेहद खूबसूरत कविता जैसी ही रचना ...आप ऐसे भी लिखा करें !

    जवाब देंहटाएं
  19. प्रेम और आकर्षण में फर्क होता है. आकर्षण में भी वही ख्याल उभरते हैं , जो प्रेम में उभरते हैं , पर आकर्षण में ठहराव नहीं होता'
    पर क्या आकर्षण प्रेम का एक आवश्यक सोपान नहीं है?

    जवाब देंहटाएं
  20. पर प्रेम की शुरूआत आकर्षण से ही होती है। यह बात अलग है है कि प्रेम आकर्षण खत्‍म होने के बाद भी जीवित रहता है। आकर्षण कुछ समय के लिए ही रहता है। वह झणभंगुर है और प्रेम चिरजीवी। और आकर्षण केवल सुंदरता या देह का नहीं होता। वह वाणी का हो सकता है,छवि का हो सकता है, व्‍यवहार का हो सकता है। और सबसे महत्‍वपूर्ण बात तो यह है कि जरूरी नहीं है कि प्रेम की अभिव्‍यक्ति दोनों तरफ से हो। वह तो एक तरफा भी होता है।

    जवाब देंहटाएं





  21. आदरणीया दीदी रश्मि प्रभा जी
    प्रणाम !

    सचमुच आपका आलेख कविता - सा है…
    वस्तुतः प्रेम और आकर्षण में अंतर है …

    मेरा लिखा एक छंद शायद मेरी बात कह पाए -
    आशय समझिए प्रेम का , है प्रेम केवल भावना !
    है आत्माओं का मिलन ! कब प्रेम दैहिक-वासना ?
    दे’कर पुनः मत ढूंढ़िए कुछ प्राप्ति की संभावना !
    रहिए समर्पित ! मत करें अवहेलना-अवमानना !

    ©copyright by : Rajendra Swarnkar


    निरंतर श्रेष्ठ प्रविष्टियों के लिए आभार ! बधाई !

    मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  22. ये इश्क नहीं आसान इतना ही समझ लीजिए, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है..

    बिलकुल सही पंक्तियाँ हैं और आपने अपने आलेख में बहुत खूबसूरती से प्यार और समपर्ण से भरे अह्साओं से परिचित कराया है.

    जवाब देंहटाएं
  23. इतने गंभीर विषय पर मेरी टिपण्णी मायने तो नहीं रखती ,परन्तु ,विषय भी अच्छा है ,जीवन सन्दर्भों में अख्यांश भी .......प्रभावशाली /

    जवाब देंहटाएं
  24. कम उम्र हो या अनुभवी उम्र ही सही - प्रेम और आकर्षण में फर्क होता है. आकर्षण में भी वही ख्याल उभरते हैं , जो प्रेम में उभरते हैं , पर आकर्षण में ठहराव नहीं होता.......


    सच ,सोलह आने सच..

    जवाब देंहटाएं
  25. बड़ी प्यारी पोस्ट पढ़ाई आपने।
    आज का दिन तो बड़ा प्यारा है
    आज लगता है सब हमारा है।

    जवाब देंहटाएं
  26. jisko apna pyaar mil jaye usse jayada kismat wala kon hoga...
    bahut kam log pyaaar me manjil ko pate hain...
    jai hind jai bharat

    जवाब देंहटाएं
  27. आपकी उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

    जवाब देंहटाएं
  28. त्‍याग करना कठिन है और प्रेम के लिए त्‍याग करना और भी कठिन। अच्‍छा आलेख।

    जवाब देंहटाएं
  29. प्रेम और आकर्षण का फर्क एडवर्ड ने समझ लिया और जब प्रेम में हुआ तो राज्य त्याग दिया. प्रेम इतना आसान नहीं, जब होता है तो होता है. एडवर्ड को फ्रिडा के लिए आकर्षण रहा होगा प्रेम नहीं, अन्यथा सिम्पसन जीवन में नहीं आती. इनकी कहानी के साथ हिन् प्रेम के प्रति आपका नज़रिया भी बहुत अच्छी तरह से आपने लिखा है. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  30. मनुष्य में जितने भी भाव जागृत होते हैं ,,,,,,,,उनमे प्रेम और वात्सल्य ही सबसे अच्छे हैं .........इश्क में सब बेवजह होता है ...........बेहतरीन लेख ....काश मैं भी आप जैसा लिख पाता........बहुत खूब

    अजित सिंह तैमूर
    WebRep
    Overall rating

    जवाब देंहटाएं
  31. बाप रे... बस पढ़ती ही गयी .. बिना रुके ... आपकी कलम भी और मेरी आँखें भी
    भावनायें छलकी आपकी लेखनी से ... और आकर बस गयीं मुझमें
    बेहतरीन ... लाज़वाब कर गयीं मुझे
    क्या कभी ऐसा ही cristal clear जानकारी " कृष्ण और राधा " के प्रेम सम्बन्ध पर भी मिलेगी
    कुछ भी कहने से पहले ..... इतना बता दूँ कि - इन्होने अपनी राधा के लिए किसी भी चीज़ का त्याग नहीं किया था
    फिर भी लोग इन्हें पूजते हैं ...... एडवर्ड - सिम्पसन को नहीं
    क्यूँ भला ......?

    जवाब देंहटाएं
  32. प्यार एक एहसास है... प्यार तो बस प्यार है...जिस उपमा में महसूस करें - प्यार है तो बस है ... सुदर चिंतन... आभार

    जवाब देंहटाएं
  33. अरे मेरी टिप्पणी कहाँ गई???:(

    जवाब देंहटाएं
  34. आपका लेख भी कविता जैसा ही सुंदर है
    जो की मुझे बहुत पसंद आया है !
    बहुत बढ़िया .......

    जवाब देंहटाएं
  35. आग का दरिया है या फूलों की सेज पता नहीं .पर इतना पता है कि और भी गम हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा.
    पर आपका लेख बेहद काव्यात्मक है .और सही भी.

    जवाब देंहटाएं
  36. आप केवल अपनी प्रेम की गहराई का आकलन कर सकते है.. अन्य प्रेम पर बस मौन स्वीकृति ही दे सकते हैं..सुन्दर पोस्ट बन पड़ा है..आपको बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  37. Thank you so much Badi Maa... jaroori hai waqt-waqt par aise aalekh likhe jane ki... kyonki kai baar ham aakashan ko prem samajhte hain aur fir wahi Edward jaise kinara karna padta hai... tab dil dukhta bhi hai aur kahi ek guilty bhi mahsoos hoti hai...

    जवाब देंहटाएं
  38. प्रेम और आकर्षण में फर्क होता है. आकर्षण में भी वही ख्याल उभरते हैं , जो प्रेम में उभरते हैं , पर आकर्षण में ठहराव नहीं होता , न आस्था , न निष्ठा ..... वह रेतकणों की तरह निर्धारित समय पर मुट्ठी से फिसल जाता है .

    एक बहुत अच्छी रचना..॥हमने देखी है उन आँखों कि महकती खुशबू,सिर्फ एहसास है यह रूह से महसूस करो प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो ....

    जवाब देंहटाएं

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...