हादसे अपने अपने होते हैं
अपने नहीं होते
तो दूसरे के दर्द में कोई रोता ही नहीं !
ये सच है
कि सबको अपनी बात पे ही रोना आता है
पर अपनी बात - सामने की पुनरावृति से जुड़ी होती है !
... जिसने हादसों की आवाज़ न सुनी हो
वह किसी के हादसे को सुनेगा ही क्यूँ
... उसे तो महज वह शोर लगेगा
रोना तो दूर की बात होगी
उसके चेहरे पर एक खीझ की रेखा होगी !
पर हम भी कहाँ साथ रोनेवाले का हाथ थामते हैं
जिनके चेहरे पर खीझ होती है
उन्हें समझाने में लगे रहते हैं ...
असफल होकर गाते हैं -
'कौन रोता है किसी और की खातिर ...'
जैसे सारी दुनिया दुश्मन हो !
दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
क्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
अगले हादसे का इंतज़ार होता है
..... हादसों को नियति बनाकर चलना
हमें सहज लगता है
और जब यह सहज लगता है
तो हम सिर्फ पागल दिखाई देते हैं
....... सिर्फ पागल !
sahi hai hadse apne apne hote hain apne nahi ....
जवाब देंहटाएंहादसे अपने अपने होते हैं
जवाब देंहटाएंअपने नहीं होते
सूत्र वाक्य सी बात!
paagalpan koi chhodnaa nahee chaahtaa
जवाब देंहटाएंहादसे अपने अपने होते हैं
जवाब देंहटाएंअपने नहीं होते
Sundar prastuti....
दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
जवाब देंहटाएंक्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
अगले हादसे का इंतज़ार होता है
यह हादसे .....जीवन की नियति हैं ..क्या करें यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है ...!
झोठी सांत्वना देते लोग अपने नहीं होते .. हादसे सब के अपने अपने होते हैं ... बहुत गहन चिंतन
जवाब देंहटाएंअपने नहीं होते
जवाब देंहटाएंतो दूसरे के दर्द में कोई रोता ही नहीं !
ये सच है
बिल्कुल ...हकीकत बयां करती अभिव्यक्ति .. ।
दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
जवाब देंहटाएंक्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
अगले हादसे का इंतज़ार होता है
बिलकुल सही कहा आपने।
सादर
Sach kaha hai .... Koun rota hai kisi aur ki khatir e dost ... Sabko spin hi kisi baat pe Rona aaya ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता.... आज के रिश्तो की हकीकत...
जवाब देंहटाएंdard aise bhi mehsoos kiyaa jaata hai
जवाब देंहटाएंहादसे...प्रभावित करनेवाली रचना।
जवाब देंहटाएंrishte haadse me badal kyon rahe hain...aur kab tak ham aise hi pagal dikhenge!!
जवाब देंहटाएंdi ki ek aur vicharniya rachna..
sach baat hai di .....apni zindagi se khud hi jhoojhana hota hai ...
जवाब देंहटाएंbahot khoobsurti se likhi hain......
जवाब देंहटाएंगहन जीवन दर्शन्।
जवाब देंहटाएंइस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
हादसों को नियति बनाकर चलना
जवाब देंहटाएंहमें सहज लगता है
और जब यह सहज लगता है
तो हम सिर्फ पागल दिखाई देते हैं
....... सिर्फ पागल !
सही है, बिलकुल सही बात कहती हमेशा की तरह बहुत ही शानदार प्रस्तुति....
बहुत सुंदर कविता बधाई ...
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट में स्वागत है
हादसे हादसे होते हैं। वास्तव में वे किसी के नहीं होते।
जवाब देंहटाएंकल 26/11/2011को आपकी किसी पोस्टकी हलचल नयी पुरानी हलचल पर हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
आप की रचना हमेशा लाजवाब होती है...आज भी है...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
और जब यह सहज लगता है
जवाब देंहटाएंतो हम सिर्फ पागल दिखाई देते हैं
....... सिर्फ पागल !
बिलकुल सही...
सच कोई किसी का दुख महसूस नहीं करता...सिर्फ समझाना जानते हैं लोग
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
हादसे सबके अपने होते हैं...सच है.
जवाब देंहटाएंहादसे सबके अपने होते हैं...सच है.
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन दी... सार्थक...
जवाब देंहटाएंसादर...
पर हम भी कहाँ साथ रोनेवाले का हाथ थामते हैं
जवाब देंहटाएंजिनके चेहरे पर खीझ होती है
उन्हें समझाने में लगे रहते हैं ...
असफल होकर गाते हैं -
'कौन रोता है किसी और की खातिर ...'
जैसे सारी दुनिया दुश्मन हो !
बेहद सारगर्भित सन्देश है यह…………
दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
जवाब देंहटाएंक्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
अगले हादसे का इंतज़ार होता है
आपकी रचना ..हमेसा कि तरह सबसे अलग है
सत्य को उजागर करती सी ..आपके शब्दों को नमन
ये दुनिया का दस्तूर है ...यहाँ रोने वाले के आंसू नहीं पोंछे जाते
जवाब देंहटाएंदोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
जवाब देंहटाएंक्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
अगले हादसे का इंतज़ार होता है
..... हादसों को नियति बनाकर चलना
हमें सहज लगता है
और जब यह सहज लगता है
तो हम सिर्फ पागल दिखाई देते हैं
....... सिर्फ पागल !.........सभी कुछ समेटती है ये पंक्तिया.....या यु कहे निशब्द करती है कुछ कह नही सकते.... सिर्फ महसूस कर सकते है.....
और फिर ये भावनाएं पागलपन सी नज़र आती हैं
जवाब देंहटाएंदोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
जवाब देंहटाएंक्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
अगले हादसे का इंतज़ार होता है
..... हादसों को नियति बनाकर चलना
हमें सहज लगता है
शायद खुशियों से ज्यादा दुःख पर ध्यान केंद्रित रहता है और हादसे नियति बन जाते हैं ....जितने ज्यादा कानून बने है अदालतों में मामले बढे हैं ...
यह सच है कि पागलपन बढ़ा है
दोस्त तो हम अक्सर खो देते हैं
जवाब देंहटाएंक्योंकि हमें दोस्ती से अधिक
अगले हादसे का इंतज़ार होता है
..... हादसों को नियति बनाकर चलना
हमें सहज लगता है
सुंदर रचना
बधाई ...!!
« बहुत ही सुन्दर भाव »
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंजिसने हादसों की आवाज़ न सुनी हो
जवाब देंहटाएंवह किसी के हादसे को सुनेगा ही क्यूँ
... उसे तो महज वह शोर लगेगा
रोना तो दूर की बात होगी
उसके चेहरे पर एक खीझ की रेखा होगी !
बहुत गहन और लाजबाब प्रस्तुति हमेशा की तरह !
आभार !
sundar rachana..
जवाब देंहटाएंक्या करें, अपनी पीड़ा सर्वाधिक सालती है।
जवाब देंहटाएंgahan anubhootiyon ko shabd diye hain.
जवाब देंहटाएंलगता है जैसे हमारी हादसे ही हमारी नियति हैं इसलिए हम इन्हें अपनी नियति बना लेते हैं ...
जवाब देंहटाएंहादसे अपने अपने होते हैं
जवाब देंहटाएंअपने नहीं होते
तो दूसरे के दर्द में कोई रोता ही नहीं !
...
हाँ दीदी हादसे अपने ही होते हैं.
बहुत बड़ा हकीकत...
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