02 दिसंबर, 2011

कुछ भी नहीं भूली ...




कुछ भी नहीं भूली ...

नहीं भूली उँगलियों पर कोयले से पड़ी दरारें
क्योंकि कभी उन दरारों से वाकिफ नहीं हुई थी ...
नहीं भूली गोद और आग की दूरी
जरा सी लापरवाही
मेरी अज्ञानता का द्योतक बनती
और मेरी माँ के दिए संस्कार और तरीके ....
कितने सारे प्रश्नों के घेरे में !
.....
नहीं भूली -
एक साथ तवे पर आठ दस रोटियाँ रखना
और एक बार में सबकी प्लेट में गर्म रोटी रखना ...
अब हँसी आती है
क्योंकि पी सी सरकार बनकर भी
कुछ हासिल नहीं हुआ !!
....
नहीं भूली कि कितनी हसरत थी परी बनने की
तभी तो खुद में खुद चाभी भरके
पुरवईया सी तेज हो जाती थी -
घड़ी की सूई १० तक पहुँचे
उससे पहले - घर सुव्यवस्थित
बच्चे तैयार
खाना तैयार
और माथे पर पसीने की एक बूंद भी नहीं ...
फिर भी प्रमाणपत्र मिला ' बेकार ' का !
....
बड़े नाजों पली थी
पर इस पालन पोषण में
संस्कारों की घुट्टी थी
तो जो सामर्थ्य से परे था
वो भी किया .... और करते हुए नसीहतों के पाठ भी पढ़ती रही !
....
अब सोचती हूँ -
गलती सरासर अपनी थी ...
बचपन में 'ब्यूटी एंड द बीस्ट' क्या पढ़ा
खुद को ब्यूटी मान लिया
और सोचा जो कभी बीस्ट मिला हमें
तो राजकुमार बना देंगे सेवा से !
कहानियों में जीने की बुरी आदत ने
बीस्ट के इतने नज़ारे दिखाए
कि मानना पड़ा - 'सब झूठ है '
....
अब न बीस्ट से डर लगता है
न परियों से ख्याल आते हैं
संस्कारों की पिछली घुट्टी का असर भी नहीं रहा
.... अब तो खुद में ठहाके लगाते हैं
कि हम भी क्या क्या करते थे !
कुछ भी नहीं भूली हूँ ...

49 टिप्‍पणियां:

  1. नहीं भूली -
    एक साथ तवे पर आठ दस रोटियाँ रखना
    और एक बार में सबकी प्लेट में गर्म रोटी रखना ...
    अब हँसी आती है
    क्योंकि पी सी सरकार बनकर भी
    कुछ हासिल नहीं हुआ !!

    वाह वाह .
    जीवन में काफी कुछ करने के बाद भी आदमी को अंत में ऐसा महसूस होता है कि अभी तो बहुत कुछ करना बाकी रह गया.इसीलिए मैंने तो अपने latest ग़ज़ल संग्रह का शीर्षक ही "कुछ न हासिल हुआ " रक्खा है.मेरा एक शेर है:-
    वक्ते-रुख्सत 'कुँवर' देख लेना,
    कुछ न हासिल हुआ उम्र भर में.

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  2. कि हम भी क्या क्या करते थे !
    कुछ भी नहीं भूली हूँ ...
    vaakai kyaa kyaa karte they
    yaad kar
    khud pe hanste hein ,

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  3. भई वाह!मानना पड़ेगा आपकी लेखनी को...शब्द आपके किन्तु बातें सबके मन की...बहुत बहुत बधाई|

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  4. अब न बीस्ट से डर लगता है
    न परियों से ख्याल आते हैं
    संस्कारों की पिछली घुट्टी का असर भी नहीं रहा
    .... अब तो खुद में ठहाके लगाते हैं
    कि हम भी क्या क्या करते थे !
    कुछ भी नहीं भूली हूँ ...


    Zindgi ko nichoD diya aapne shabdon mein

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  5. जो पल मन को गहन उदासी देते हैं ...उन बीते हुए पलों को भूलना ही श्रेयस्कर होता है ....स्मृति बहुत दिनों तक साथ नहीं चलती |जो बातें हम कल भूल ही जायेंगे उन्हें आज ही भुला दें तो ज्यादा अच्छा है न ...
    मन में बहुत गहरे उतर गयीं हैं ...
    बहुत अच्छा लिखा है ..

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  6. सोचा जो बीस्ट मिला हमें
    तो राजकुमार बना देंगे सेवा से !
    कहानियों में जीने की बुरी आदत ने
    बीस्ट के इतने नज़ारे दिखाए
    कि मानना पड़ा - 'सब झूठ है '..बहुत बढ़िया ....सबका सच.

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  7. बहुत खूब आंटी। कुछ भूलना बहुत मुश्किल ही होता है।

    सादर

    ----
    ‘जो मेरा मन कहे’

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  8. बे कार थी - बेकार न थी
    घर कार आई - बेकार हूँ.
    गुल्लक था - झंकार न थी
    झंकार आई - बे-टंकार हूँ.

    जीवन को यथार्थ को संजीदगी से शब्दों में पिरोया है.

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  9. और माथे पर पसीने की एक बूंद भी नहीं ...
    फिर भी सर्टिफिकेट मिला ' बेकार '

    kadva sach....

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  10. कि हम भी क्या क्या करते थे !
    कुछ भी नहीं भूली हूँ ...

    बिल्‍कुल सच कहा .. तभी तो हर पल जीवंत आज भी ...गहरे उतरते शब्‍द ...आभार ।

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  11. बे कार थी-बेकार न थी
    घर कार आई -बेकार हूँ
    गुल्लक था-झंकार न थी
    झंकार आई-बे टंकार हूँ

    बहुत सुंदर बोल सुंदर रचना बधाई...

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  12. जो यादें जलाती हों , उन्हें भुलाना ही ठीक है !
    फिर भी याद आती ही हैं !
    कविता की टीस अंतर्मन को भेदती है ...

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  13. कभी कभी किसी ख़ास भाव या दशा का वर्णन करने के लिये शब्द नहीं मिलते
    आज मैं भी नि:शब्द हूं

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  14. नहीं भूली कि कितनी हसरत थी परी बनने की
    तभी तो खुद में खुद चाभी भरके...
    और माथे पर पसीने की एक बूंद भी नहीं ...
    फिर भी सर्टिफिकेट मिला ' बेकार '

    और भी सब कुछ... कुछ भी नहीं भूला जा सकता हैं...सोच रही हूँ आखिर क्यों होता है यह सब...कुछ हासिल क्यों नहीं होता?
    जीवन के यथार्थ को शब्दों में ढाल दिया है आपने...

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  15. ज़िन्दगी भर की टीस को समेट दिया।

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  16. अब सोचती हूँ -
    गलती सरासर अपनी थी ...
    बचपन में beauty & the beast ' क्या पढ़ा
    खुद को ब्यूटी मान लिया
    और सोचा जो बीस्ट मिला हमें
    तो राजकुमार बना देंगे सेवा से !
    कहानियों में जीने की बुरी आदत ने
    बीस्ट के इतने नज़ारे दिखाए
    कि मानना पड़ा - 'सब झूठ है

    UMDA PRASTUTI...MARMIK CHINTAN.

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  17. ओह ओह ओह ...आजकल इतना सच सच क्यों लिख रही हैं आप...वह भी इतनी सुंदरता से.

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  18. ठहाके का साथ मुस्कराहट से दे रही हूँ.

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  19. और माथे पर पसीने की एक बूंद भी नहीं ...
    फिर भी सर्टिफिकेट मिला ' बेकार '...सही सटीक और सच को दर्शाती अनुपम अभिव्यक्ति...

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  20. पी सी सरकार जादूगर क्या ?
    बहुत सुंदर मन को छू गई रचना !

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  21. नहीं भूली कि कितनी हसरत थी परी बनने की
    तभी तो खुद में खुद चाभी भरके
    पुरवईया सी तेज हो जाती थी -
    घड़ी की सूई १० तक पहुँचे
    उससे पहले - घर सुव्यवस्थित
    बच्चे तैयार
    खाना तैयार
    और माथे पर पसीने की एक बूंद भी नहीं ...
    फिर भी सर्टिफिकेट मिला ' बेकार '

    दिल को छूती बहुत सुन्दर रचना !

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  22. कि हम भी क्या क्या करते थे !
    कुछ भी नहीं भूली हूँ ...

    दिल को छू गई आपकी ये रचना ..

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  23. बहूत हि गहरे जजबात और भावना को प्रस्तुत करती आपकी यह रचना
    बहूत हि सुंदर है...

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  24. कहानियों में जीने की बुरी आदत ने
    बीस्ट के इतने नज़ारे दिखाए
    कि मानना पड़ा - 'सब झूठ है '

    बड़ी खूबसूरती से रचा है दी...
    पी सी सरकार वाली उपमा तो.... वाह!

    सुन्दर रचना....
    सादर बधाई...

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  25. नहीं भूली हूँ उँगलियों पर कोयले से पड़ी दरारें
    क्योंकि कभी उन दरारों से वाकिफ नहीं हुई थी ...
    नहीं भूली गोद और आग की दूरी
    जरा सी लापरवाही
    मेरी अज्ञानता का द्योतक बनती
    और मेरी माँ के दिए संस्कार और तरीके ....
    कितने सारे प्रश्नों के घेरे में !
    ....सच अच्छे-बुरे गुजरे क्षणों को भुलाना आसां नहीं ..
    ..समय के साथ कितना कुछ बदल जाता है.. लेकिन यादें नहीं बदलती....
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार!

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  26. तभी तो खुद में खुद चाभी भरके
    पुरवईया सी तेज हो जाती थी -


    आप इतना यथार्त कैसे लिख लेती है
    सब कुछ दिल मे उतर गया ..मेरे पास कोई शब्द नहीं

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  27. कुछ बी भूलना इतना आसान कहाँ होता है... दिल को छू हर एक पंक्ति.... हर बार की तरह.....

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  28. काश हम अपने स्वप्नों से बाहर आ जीवन का सत्य समझ पाते।

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  29. आधुनिक जीवन में नारी कि स्थिति बयां करती सुन्दर रचना. भूलना नहीं चाहिए, यादों से बेहतर करने की और गलतियाँ न दुहराने की सीख मिलाती है.

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  30. अब तो खुद में ठहाके लगाते हैं
    कि हम भी क्या क्या करते थे !
    कुछ भी नहीं भूली हूँ ...

    ....जीवन की सच्चाई का बहुत सटीक चित्रण..आभार

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  31. जीवन की मुश्किलों या कहिए मुश्किल से होने वाली असहनीय पीडा को भी आपने जिस तरह से गूंथा है कि वो उस दर्द को कम करता नजर आ रहा है।
    बहुत सुंदर रचना

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  32. beauty & best ki bajaay beautiful & bold bane hote to rajkumari hi rahte.

    bahut bahut sunder dil ko chhooti abhivyakti.

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  33. सच ऐसे भाव भी मन में कहीं न कहीं छुपे ही रहते हैं...... बहुत बढ़िया रचना

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  34. सच ही नहीं भूलीं आप कुछ भी ..तभी न सब कुछ समेट लिया इन पंक्तियों में ..सच्चाई से रु ब रु कराती रचना जो मन में एक असीम टीस भर जाती है

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  35. कभी कभी लगता है संस्कार विहीन आदमी मनमानी करके तो जी लेता है .....

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  36. वाह ..बेजोड़ भावाभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  37. संस्कारों के नाम पर...हम वाकई पता नहीं क्या-क्या करते हैं...अपने आप को झूठी दिलासा देते हुए...करो वही जो दिल करे...

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  38. achhi rachna hai.......beauty ne baad mein beast ki harkat yaad karke jo thahake lagaye vo majedaar the... pari banane ki hasrat bhi khusnuma thi.... jo bhi beauty -beast ke is jhagre se nikal gaya use us 'bekar' ke bekaar certificate se kya lena dena....... beauty ne beast ko sikha diya hoga..........
    unke sitam ab lagte hain bachkane...
    hum abaad huye, majboot huye dard sahte sahte...
    koi to unki chaal unpar hi ajmata hoga
    ankhain to bharti hongi, vo sabh yaad karte karte

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  39. जीवन में जब अति हो जाती है तो मन विद्रोही हो जाता है ...

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  40. कहीं न कहीं ये टीस हम सभी के मन में रहती है, इतना कुछ के बाद भी जाने क्यों बेकार करार कर दी जाती है...अच्छे बनने की हर मुमकिन कोशिश और अंत में हताश मन...बहुत अच्छी रचना.

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  41. क्या लिख दिया आपने...
    इनती गहरे में कैसे चले जाते हो आप

    परी की तरह तो मैं भी पली
    ... पाल भी रही हूँ
    संस्कारों की चाभी तो मुझे में भी भरी गयी
    ..... भर भी रही हूँ
    पर मैं भी हूँ .... हाँ मैं हूँ
    ये ना जाने क्यूँ .. कभी भूल ही ना पाई
    अब तो याद भी नहीं कि
    किसने क्या कहा ... क्या सिखाया
    पर खुद को हमेशा जाना .. हमेशा समझा
    खुद का होना शायद दुनिया के
    ना चाहते हुए भी उन पर
    ज़बरदस्ती थोपा
    और आज मैं हूँ .. हाँ मैं हूँ

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  42. नारी जीवन के अहम पहलों को चित्ररार्थ करती रचना यही तो है नररी जीवन जिसे केवल एक नारी ही समझ सकती है दूसरा और कोई नहीं ....

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  43. नहीं भूली -
    एक साथ तवे पर आठ दस रोटियाँ रखना
    और एक बार में सबकी प्लेट में गर्म रोटी रखना ...
    अब हँसी आती है
    क्योंकि पी सी सरकार बनकर भी
    कुछ हासिल नहीं हुआ !!

    दीदी !

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...